'गांधी को गोली RSS ने मारी', राहुल कितना सच बोल रहे हैं
''गांधी जी को मारा इन्होंने. आरएसएस के लोगों ने गांधी जी को गोली मारी और आज उनके लोग गांधी जी की बात करते हैं.''
राहुल गांधी ने ये बात 2014 में 6 मार्च को महाराष्ट्र के भिवंडी में एक चुनावी रैली में कही थी. राहुल गांधी के इस भाषण पर आरएसएस के एक कार्यकर्ता राजेश कुंते ने मुक़दमा दर्ज कराया, 2016 में भिवंडी की एक अदालत ने राहुल को ज़मानत दे दी.
''गांधी जी को मारा इन्होंने. आरएसएस के लोगों ने गांधी जी को गोली मारी और आज उनके लोग गांधी जी की बात करते हैं.''
राहुल गांधी ने ये बात 2014 में 6 मार्च को महाराष्ट्र के भिवंडी में एक चुनावी रैली में कही थी. राहुल गांधी के इस भाषण पर आरएसएस के एक कार्यकर्ता राजेश कुंते ने मुक़दमा दर्ज कराया, 2016 में भिवंडी की एक अदालत ने राहुल को ज़मानत दे दी.
यह मामला अभी ख़त्म नहीं हुआ है. 12 जून, 2018 को राहुल गांधी भिवंडी की अदालत में हाज़िर हुए और कहा कि उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है. जज ने तय किया है कि राहुल के ख़िलाफ़ मुकदमा चलेगा.
अब राहुल गांधी मानहानि के मुक़दमे का सामना करेंगे. राहुल ने कहा कि यह विचारधारा की लड़ाई है और वे पीछे नहीं हटेंगे.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 2016 में सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया था कि एफ़आईआर रद्द की जाए, लेकिन बाद में उन्होंने याचिका ये कहते हुए वापस ले ली थी कि वे आरएसएस से कोर्ट में लड़ना चाहते हैं.
आरएसएस का कहना है कि अगर राहुल सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांग लें तो मुक़दमा वापस ले लिया जाएगा. राहुल का कहना है कि उन्होंने जो कहा है उसके हर शब्द पर वे डटे रहेंगे.
गांधी की हत्या करने वालों को लेकर कोई रहस्य नहीं है, सवाल ये है कि आरएसएस से उनका कोई संबंध था या नहीं था?
गांधी की हत्या किसने की थी?
महात्मा गांधी 30 जनवरी, 1948 को दिल्ली के बिड़ला भवन में शाम की प्रार्थना में शामिल होने जा रहे थे. इसी दौरान नथूराम विनायक गोडसे ने गांधी को गोली मार दी थी.
केंद्र सरकार के आदेश पर गांधी की हत्या से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए लाल किले के भीतर एक विशेष अदलत का गठन किया गया था.
यहीं हुई अदालती सुनवाई में आठ लोगों को दोषी ठहराया गया. गोडसे और हत्या की साज़िश रचने वाले नारायण आप्टे को हत्या के अपराध के लिए 15 नवंबर, 1949 को फांसी दी गई.
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गोडसे ने गांधी की हत्या क्यों की?
'गांधी वध क्यों' किताब में नथूराम के भाई गोपाल गोडसे ने लिखा है, ''अगर देशभक्ति पाप है तो मैं मानता हूं मैंने पाप किया है. अगर प्रशंसनीय है तो मैं अपने आपको उस प्रशंसा का अधिकारी समझता हूं. मुझे भरोसा है कि मनुष्यों के ऊपर कोई अदालत हो तो उसमें मेरे काम को अपराध नहीं समझा जाएगा. मैंने देश और जाति की भलाई के लिेए यह काम किया. मैंन उस व्यक्ति पर गोली चलाई जिसकी नीति से हिन्दुओं पर घोर संकट आए, हिन्दू नष्ट हुए.''
नथूराम गोडसे किसी ज़माने में आरएसएस के सदस्य रहे थे, लेकिन बाद में वो हिन्दू महासभा में आ गए थे. हालांकि 2016 में आठ सितंबर को इकनॉमिक टाइम्स को दिए इंटरव्यू में गोडसे के परिवार वालों ने कहा था कि "गोडसे ने न तो कभी आरएसएस छोड़ा था, और न ही उन्हें निकाला गया था".
नथूराम गोडसे और विनायक दामोदर सावरकर के वंशज सत्याकी गोडसे ने 'इकनॉमिक टाइम्स' को दिए इंटरव्यू में कहा था, ''नथूराम जब सांगली में थे तब उन्होंने 1932 में आरएसएस ज्वाइन किया था. वो जब तक ज़िंदा रहे तब तक संघ के बौद्धिक कार्यवाह रहे. उन्होंने न तो कभी संगठन छोड़ा था और न ही उन्हें निकाला गया था.''
गांधी की हत्या और आरएसएस
महात्मा गांधी की हत्या के तार आरएसएस से भी जोड़े जाते रहे हैं. नवजीवन प्रकाशन अहमदाबाद से प्रकाशित गांधी के निजी सचिव रहे प्यारेलाल नैयर ने अपनी किताब 'महात्मा गांधी: लास्ट फ़ेज' (पृष्ठ संख्या-70) में लिखा है, ''आरएसएस के सदस्यों को कुछ स्थानों पर पहले से निर्देश था कि वो शुक्रवार को अच्छी ख़बर के लिए रेडियो खोलकर रखें. इसके साथ ही कई जगहों पर आरएसएस के सदस्यों ने मिठाई भी बांटी थी.''
गांधी की हत्या के दो दशक बाद आरएसएस के मुखपत्र 'ऑर्गेनाइज़र' ने 11 जनवरी 1970 के संपादकीय में लिखा था, ''नेहरू के पाकिस्तान समर्थक होने और गांधी जी के अनशन पर जाने से लोगों में भारी नाराज़गी थी. ऐसे में नथूराम गोडसे लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, गांधी की हत्या जनता के आक्रोश की अभिव्यक्ति थी.''
गांधी की हत्या से जुड़े कुछ और तथ्य सामने आने के बाद सरकार ने 22 मार्च 1965 को एक जाँच आयोग का गठन किया. 21 नवंबर 1966 को इस जाँच आयोग की ज़िम्मेदारी सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस जेएल कपूर को दी गई.
कपूर आयोग की रिपोर्ट में समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया और कमलादेवी चटोपाध्याय की प्रेस कॉन्फ़्रेंस में उस बयान का ज़िक्र है जिसमें इन्होंने कहा था कि 'गांधी की हत्या के लिए कोई एक व्यक्ति ज़िम्मेदार नहीं है बल्कि इसके पीछे एक बड़ी साज़िश और संगठन है'. इस संगठन में इन्होंने आरएसएस, हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग का नाम लिया था.
गांधी की अंत्येष्टि के ठीक बाद 31 जनवरी को कैबिनेट की बैठक बुलाई गई. इस बैठक में कैबिनेट के सीनियर मंत्री, बड़े अधिकारी और पुलिस के लोग शामिल थे. इसमें आरएसएस और हिन्दू महासभा को प्रतिबंधित करने का फ़ैसला लिया गया.
गांधी के पड़पोते तुषार गांधी ने अपनी किताब 'लेट्स किल गांधी' में लिखा है, ''गृह मंत्री सरदार पटेल की बेटी मणिबेन पटेल ने कपूर आयोग से कहा है कि प्रतिबंध के फ़ैसले की अगली सुबह ही उनके पिता से आरएसएस के लोग मिलने आए. मणिबेन ने कहा है कि एक फ़रवरी 1948 को भी उनके पिता से आरएसएस के लोग मिलने आए थे और कहा था कि उनका संगठन गांधी की हत्या में शामिल नहीं है.''
आरएसएस पर पाबंदी लगाने का कैबिनेट का फ़ैसला लीक हो गया. तुषार गांधी ने अपनी किताब में कपूर आयोग को दिए एक गवाह के बयान के हवाले से बताया है कि पाबंदी की ख़बर सुन आरएसएस नेता भूमिगत हो गए. आरएसएस पर यह पाबंदी फ़रवरी 1948 से जुलाई 1949 तक रही थी.
कपूर आयोग में तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल की बेटी मणिबेन पटेल को भी गवाह के तौर पर पेश किया गया था. वो गवाह नंबर 79 थीं. उन्होंने कपूर आयोग से कहा था, "एक मीटिंग में मेरे पिता को जयप्रकाश नारायण ने सार्वजनिक रूप से गांधी की हत्या के लिए ज़िम्मेदार बताया. उस बैठक में मौलाना आज़ाद भी थे पर उन्होंने इसका विरोध नहीं किया और यह मेरे पिता के लिए गहरा झटका था.''
गांधी की सुरक्षा को लेकर एक पुलिस ऑफ़िसर बीबीएस जेटली से कपूर आयोग ने पूछा था कि गांधी जब ज़िलों का दौरा करते हैं तो वो कैसे सुरक्षा प्रदान करते थे? इस पर जेटली ने कहा था, "स्थानीय पुलिस को शामिल नहीं किया जाता था. बिना वर्दी के सामान्य कपड़ों में पुलिस वालों को बुलाकर उनकी रणनीतिक तौर पर तैनाती की जाती थी.''
जेटली ने कपूर आयोग से कहा था, "मैंने महात्मा गांधी को आरएसएस से ज़ब्त किए हथियारों को दिखाया था और गृह मंत्री से कहा था कि आरएसएस की तरफ़ से कुछ गंभीर वारदात हो सकता है.''
कपूर आयोग की जाँच रिपोर्ट में अलवर शहर की गतिविधियों का विस्तार से ज़िक्र किया गया है. इसमें बताया गया है कि एक विदेशी व्यक्ति साधु का रूप धारण कर स्थानीय हिन्दू महासभा के सचिव गिरधर सिद्धा के साथ रह रहा था.
इस विदेशी व्यक्ति ने कपूर आयोग से कहा है कि 'अलवर में गांधी की हत्या से जुड़ा एक पैम्फलेट शाम में तीन बजे ही छप गया था, जबकि हत्या उस दिन शाम में 5 बजकर 17 मिनट पर हुई थी. अलवर में आरएसएस के लोगों ने भी ख़ुशी में मिठाई बाँटी थी और पिकनिक मनाया था'. (तुषार गांधी, पृष्ठ 770)
17 जनवरी 1948 को इस केस के आठवें अभियुक्त डॉक्टर दत्तात्रेय सदाशिव परचुरे ने 15 पन्नों का बयान कोर्ट में पढ़ा था. उन्होंने अपने बयान में कहा था, ''मैं नथूराम गोडसे को जानता हूँ. वो आरएसएस में मुख्य संगठनकर्ता था. वो 'हिन्दू राष्ट्र' नाम से एक अख़बार निकालता था.''
'आरएसएस अब गांधीवादी बन गया है'
नथुराम गोडसे के भाई गोपाल गोडसे ने 28 जनवरी, 1994 को फ्रंटलाइन को दिए इंटरव्यू में कहा था, ''हम सभी भाई आरएसएस में थे. नथूराम, दत्तात्रेय, मैं ख़ुद और गोविंद. आप कह सकते हैं कि हम अपने घर में नहीं, आरएसएस में पले-बढ़े हैं. आरएसएस हमारे लिए परिवार था. नथूराम आरएसएस में बौद्धिक कार्यवाह बन गए थे. नथूराम ने अपने बयान में आरएसएस छोड़ने की बात कही थी. उन्होंने यह बयान इसलिए दिया था क्योंकि गोलवलकर और आरएसएस गांधी की हत्या के बाद मुश्किल में फँस जाते, लेकिन नथूराम ने आरएसएस नहीं छोड़ा था.''
इसी इंटरव्यू में गोपाल गोडसे से पूछा गया कि आडवाणी ने नथूराम के आरएसएस से संबंध को ख़ारिज किया है तो इसके जवाब में उन्होंने कहा, ''वो कायरतापूर्ण बात कर रहे हैं. आप यह कह सकते हैं कि आरएसएस ने कोई प्रस्ताव पास नहीं किया था कि 'जाओ और गांधी की हत्या कर दो', लेकिन आप नथूराम के आरएसएस से संबंधों को ख़ारिज नहीं कर सकते. हिन्दू महासभा ने ऐसा नहीं कहा. नथूराम राम ने बौद्धिक कार्यवाह रहते हुए 1944 में हिन्दू महासभा के लिए काम करना शुरू किया था.''
हिन्दू महासभा के वर्तमान महासचिव मुन्ना कुमार शर्मा ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि ''आरएसएस अब गांधीवादी बन गया है. उन्हें अब गोडसे से दिक़्क़त होती है जबकि सच यह है कि गोडसे हमारे थे और हम ये बात मानते हैं, वे आरएसएस के भी थे, लेकिन वे अब नहीं मानते''. शर्मा कहते हैं कि तब आरएसएस और हिन्दू महासभा कोई अलग संगठन नहीं थे.
गांधी की हत्या के बाद पटेल को एक युवक ने पत्र लिखा, उसने खुद को आरएसएस का सदस्य बताया था, उसने लिखा कि संघ से उसका मोहभंग हो गया है. पत्र में उसने लिखा कि ''आरएसएस ने पहले से ही कुछ जगहों पर अपने लोगों को कह दिया था कि अच्छी ख़बर आने वाली है, शुक्रवार को रेडियो खुला रखें. हत्या के बाद आरएसएस की शाखाओं में मिठाइयाँ बाँटी गईं''. (तुषार गांधी, लेट्स किल गांधी, पृष्ठ 138)
सितंबर 1948 में आरएसएस के तब के प्रमुख माधव सदाशिव गोलवलकर ने पटेल को पत्र लिख आरएसएस पर पाबंदी लगाने का विरोध किया था.
सरदार पटेल ने गोलवलकर को 11 सितंबर 1948 को भेजे जवाब में कहा, ''संघ ने हिन्दू समाज की सेवा की है, लेकिन आपत्ति इस बात पर है कि आरएसएस बदले की भावना से मुसलमानों पर हमले करता है. आपके हर भाषण में सांप्रदायिक ज़हर भरा रहता है. इसका नतीजा यह हुआ कि देश को गांधी का बलिदान देना पड़ा. गांधी की हत्या के बाद आरएसएस के लोगों ने ख़ुशियां मनाईं और मिठाई बाँटीं. ऐसे में सरकार के लिए आरएसएस को बैन करना ज़रूरी हो गया था."
16 अगस्त 1949 को पटेल से गोलवलकर ने मुलाक़ात की. इस मुलाक़ात के बाद पटेल ने नेहरू को लिखा, ''मैंने गोलवलकर से बताया है कि उन्होंने क्या ग़लती की है जो नहीं होनी चाहिए थी. मैंने उनसे साफ़ कहा है कि वो विनाशकारी तरीक़ों से बाज़ आएँ और रचनात्मक भूमिका अदा करें.''
सरदार पटेल और आरएसएस
इसके कुछ महीने पहले ही पटेल ने जयपुर में आरएसएस पर तीखा हमला बोलते हुए कहा था, ''हम लोग आरएसएस या किसी अन्य सांप्रदायिक संगठन को देश को पीछे धकेलने की अनुमति नहीं देंगे. मैं एक सिपाही हूँ और तोड़ने वाली ताक़तों के ख़िलाफ़ लड़ूँगा. यदि ऐसा मेरा बेटा भी करेगा तो उसे बख्शा नहीं जाएगा.''
इसी तरह 6 जनवरी 1948 को सरदार पटेल ने लखनऊ में मुसलमानों को संबोधित करते हुए चेताया था. उन्होंने पूछा था, ''कश्मीर में पाकिस्तानी हमले की निंदा क्यों नहीं की गई. आप दो नावों पर सवार नहीं रह सकते. किसी एक को चुनना होगा. जो पाकिस्तान जाना चाहते हैं वे जाएँ और शांति से रहें.''
गांधी की हत्या में सरदार पटेल पर कई तरफ़ से सवाल दागे जा रहे थे. उनसे संसद में भी तीखे सवाल पूछे गए. दूसरी तरफ़ लाल किले में मामले की अदालती सुनवाई भी जारी थी.
8 नवंबर 1948 को कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई तो मुख्य अभियोजक चंद्र किशन दफ्तरी ने कहा कि अब वो कोई और गवाह पेश नहीं करना चाहेंगे. इसके बाद अदालत ने नथूराम गोडसे से कहा कि क्या वो कुछ कहना चाहेंगे?
नथूराम ने जवाब दिया कि वो 93 पन्नों का लंबा बयान पढ़ना चाहते हैं. नथूराम ने सवा दस बजे दिन में अपना बयान पढ़ना शुरू किया. बयान पढ़ने से पहले उन्होंने कहा कि वो 6 हिस्सों में पढ़ेंगे. उन्होंने कहा कि उनका आख़िरी बयान तुष्टीकरण की राष्ट्र विरोधी नीति पर होगा. हालाँकि दफ्तारी ने नथूराम के बयान को कोर्ट के रिकॉर्ड में नहीं रखने का आग्रह किया. (तुषार गांधी, लेट्स किल गांधी, पेज 607)
उन्होंने कहा कि इन बयानों का केस से कोई लेना-देना नहीं है. नथूराम बयान पढ़ रहे थे और समय दिन का 11 बज गया. इसी दौरान वो अचानक चक्कर खाकर गिर गए. कुछ देर आराम करने के बाद उन्होंने फिर पढ़ना शुरू किया. नथूराम ने क़रीब पाँच घंटों में अपना पूरा बयान पढ़ा. अपने बयान के अंत में उन्होंने चिल्लाकर नारा लगाया- अखंड भारत अमर रहे, वंदे मातरम.' उस दिन अदालत पूरी तरह से भरी हुई थी.
10 फ़रवरी 1949 को दिन में साढ़े 11 बजे जज आत्मचरण ने गांधी की हत्या पर सुनवाई पूरी होने के बाद फ़ैसला सुनाया. नथूराम विनायक गोडसे और नारायण दत्तात्रेय आप्टे को फाँसी की सज़ा सुनाई गई.
विष्णु आर करकरे, मदनलाल के पाहवा, शंकर किस्टया, गोपाल गोडसे और डॉक्टर दत्तात्रेय सदाशिव परचुरे को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई.
वहीं विनायक दामोदर सावरकर को जज ने बेगुनाह माना और तत्काल रिहा करने का आदेश दिया. फ़ैसला सुनाए जाने के बाद इन सभी ने नारा लगाया- 'हिन्दू धर्म की जय. तोड़ कर रहेंगे पाकिस्तान हिन्दू हिन्दी हिन्दुस्तान.'
जज आत्मचरण ने फ़ैसला सुनाने के बाद कहा जिन्हें हाई कोर्ट में अपील करनी है वो 15 दिनों के भीतर कर सकते हैं. सभी दोषी ठहराए लोगों ने पंजाब हाई कोर्ट में चार दिनों के भीतर अपील की.
तुषार गांधी ने अपनी किताब 'लेट्स किल गांधी' में लिखा है, ''गांधी की हत्या में विनायक दामोदर सावरकर के रिहा हो जाने पर कई तरह के सवाल उठ रहे थे. सावरकर के ख़िलाफ़ मुकम्मल जाँच नहीं की गई. पटेल ने भी इस बात को स्वीकार किया था कि अगर सावरकर दोषी पाए जाते तो मुसलमानों के लिए परेशानी होती और हिन्दुओं के ग़ुस्से को नहीं संभाल पाते.'' (पेज 732)
तुषार गांधी ने लिखा''पटेल का मानना था कि सावरकर को सज़ा होती तो अतिवादी हिन्दुओं की प्रतिक्रिया बहुत तीव्र होती और कांग्रेस इससे डरी हुई थी. जाँच अधिकारी नागरवाला ने इस बात को मानने से इनकार कर दिया था कि सांवरकर गांधी की हत्या की साज़िश में शामिल नहीं थे.''
राहुल गांधी इस मामले को कहां तक ले जाते हैं और अदालती सुनवाई में किन-किन तथ्यों को शामिल किया जाता है, आने वाले में वक़्त में ये देखना और दिलचस्प होगा.