सियासत से दूरियां बढ़ाता गांधी परिवार
नई दिल्ली(विवेक शुक्ला) क्या कांग्रेस का जल्द रिवाइवल होगा ?हो सकता है, पर लगता नहीं है। राहुल गांधी सबकुछ छोड़छाड़ कर अप्रत्याशित छुट्टी मना रहे हैं। प्रियंका गांधी अपने पति रॉबर्ट वाड्रा के बिजनेस कारनामों की वजह से दाग झेल रही हैं। और सोनिया गांधी अब पहले की तरह से एक्टिव नहीं हैं। वह राजनीति में ज्यादा रुचि नहीं दिखा रहीं। और गांधी परिवार के बिना तो कांग्रेस मतलब जीरो।
नदीम अख्तर मानते हैं कि फिलहाल कांग्रेस अपने अब तक के सबसे बड़े संकटकाल से गुजर रही है। इंदिरा गांधी के समय भी ऐसा संकट आया था, लेकिन तब इंदिरा खुद नाव खेने के लिए तैयार थीं। पार्टी टूट गई और -असली- वाली कांग्रेस इंदिरा गांधी की ही कहलाई। सो कांग्रेस मतलब नेहरू-गांधी परिवार। लेकिन आज परिस्थितियां बिलकुल जुदा हैं। अब गांधी परिवार ही कदम पीछे खींच रहा है। देश की केंद्रीय राजनीति में एक शून्य सी स्थिति पैदा हो गई है।
कांग्रेस अपने अब तक के सबसे बड़े संकटकाल से गुजर रही है
वरिष्ठ पत्रकार नदीम अख्तर कहते हैं किमुझे याद पड़ता है कि राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया इतना डरी हुई थीं कि राजनीति से ही किनारा कर लिया। उन्हें डर था (शायद आज भी है) कि अगर वे लोग राजनीति में सामने आए तो राजीव गांधी की तरह उन्हें भी मार दिया जाएगा। और दुनिया की हर मां की तरह सोनिया राहुल-प्रियंका को सियासत से से दूर रखती रहीं। कांग्रेस को तो चलाया लेकिन देश चलाने के लिए मनमोहन सिंह को चुना।
मांझी नहीं बने
मनमोहन सिंह की भी तारीफ करनी पड़ेगी कि 10साल तक प्रधानमंत्री होने के बावजूद बिहार के जीतन राम मांझी की तरह कभी उनकी महत्वाकांक्षा नहीं जागी और वे सोनिया के फरमाबरदार बने रहे।
बुझे-बुझे राहुल
अब जब लोकसभा और दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ऐतिहासिक पतन को प्राप्त हुई है, राहुल गांधी चिंतन-मनन से आगे की बात ही नहीं कर रहे. कहीं किसी सार्वजनिक सभा में दिखे भी तो बुझे-बुझे, आधे मन से। लेकिन इन सबके बीच सोनिया गांधी रहस्यमय ढंग से चुप हैं।
लगता है कि राहुल गांधी का राजनीति से मोहभंग हो चुका है या फिर पार्टी के थोड़े-बहुत दबाव के कारण बीच-बीच में मंच पर प्रकट हो जाते हैं। बाकी टाइम वे गायब-चुप्प ही रहते हैं और ये सभी जानते हैं कि राजनीति, पिकनिक स्पॉट नहीं है, कि जब मन चाहा घूम-टहल के महल में लौट आए।
सोनिया गांधी का मोह भंग
सोनिया गांधी का भी भी 10 साल तक सत्ता को करीब से देखने के बाद राजनीति से अब मोहभंग हो चुका है। लेकिन चूंकि पार्टी गांधी परिवार के अलावा और किसी को आलाकमान के रूप में नहीं देख सकता, पार्टी के टूटकर बिखरने का खतरा है, सो वो किसी तरह इसे ढो रही हैं। वरना सोनिया जिस तरह की महिला हैं, उनमें जबरदस्त फाइटर स्पिरिट है।
फर्जी खबरें
हां, बीच-बीच में पार्टी संगठन और संचालन को लेकर सोनिया और राहुल में मतभेद की फर्जी खबरें मीडिया में आती रहती हैं।जो पत्रकार अभी तक सोनिया-राहुल के रिश्ते को नहीं समझ पाए, वे कांग्रेस के भाग्य पर स्टोरी क्या खाक लिखेंगे !!!
नहीं रहा विपक्ष
विपक्ष तो रहा ही नहीं। लोकसभा में तो ऐसे ही कांग्रेस के सांसद बहुत कम हैं, राज्यसभा में भी (जहां विपक्ष का बहुमत है) कांग्रेस के तेवर एकदम से ढीले हैं। हां, क्षेत्रीय पार्टियों के साथ कभी-कभी कांग्रेस वाले संसद में विपक्ष धर्म का निर्वाह करते दिख जाते हैं।