Gama Pehlwan: 'रुस्तम-ए-हिंद' जो कभी किसी से नहीं हारा, उसकी गरीबी में गुजरी जिंदगी
Gama Pehlwan: 'रुस्तम-ए-हिंद' जो कभी किसी से नहीं हारा, उसकी गरीबी में गुजरी जिंदगी
नई दिल्ली, 22 मई: गामा पहलवान का आज 144 वां जन्मदिन है और गूगल ने डूडल बनाकर उन्हें सम्मान दिया है। गामा पहलवान ने कुश्ती की शुरूआत उस वक्त की थी, जब राजा-महराजाओं का दौर हुआ करता था। अखाड़े होते थे और अक्सर कुश्ती के मुकाबले हुआ करते थे। 50 साल के अपने जीवन में गामा पहलवान कभी किसी भी पहलवान से नहीं हारे। उन्हें 'द ग्रेट गामा', 'शेर-ए-पंजाब' और 'रुस्तम-ए-हिंद' आदि के नाम से भी जाना जाता था। ऐसा कहा जाता है कि गामा पहलवान का अंतिम समय काफी गरीबी में गुजरा था। आइए जानते है गामा पहलवान से जुड़ी कुछ रोचक बातें।
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कोई भी पहलवान नहीं कर पाया था चित
22 मई 1878 को गुलाम मोहम्मद बख्श बट (गामा पहलवान) का जन्म हुआ था, जिसके नाम से देश ही नहीं, बल्कि विदेशी पहलवानों की पतलून तक गीली हो जाती थी। भारत की आन बान शान गामा ने 50 सालों तक अखाड़े का गौरव बढ़ाया। लेकिन इनके जन्म स्थान को लेकर विवाद है। कोई कहता है कि गामा पहलवान का जन्म अमृतसर के जब्बोवाल गांव में हुआ था। तो कोई कहता है कि इनका जन्म मध्य प्रदेश के दतिया डिस्ट्रिक में हुआ था।
पहलवानों के खानदान से थे गामा पहलवान
गुलाम मोहम्मद बख्श बट (गामा पहलवान) की लंबाई 5 फीट 7 इंच और वजन लगभग 113 किलो था। उनके पिता का नाम मोहम्मद अजीज बख्श था, वो भी पहलवान थे। गामा के खून में ही पहलवानी थी। अजीज बख्श ने गामा को दंड-बैठक करना सिखाया था। जब गामा पांच साल के हुए तो उनके पिता की मौत हो गई। उसके बाद गामा पहलवान ने माधो सिंह से कुश्ती के और दांव-पेंच से सीखे थे और कुश्ती लड़ते थे।
राजा भवानीसिंह ने उठाई थी गामा के ट्रेनिंग की जिम्मेदारी
मोहम्मद अजीज बक्श की जिस वक्त मृत्यु हुई थी उस समय दतिया के राजा भवानी सिंह थे। राजा भवानी सिंह गामा के पिता को अच्छी तरह से जानते थे। राजा भवानी सिंह ने गामा और उनके भाई की आगे की ट्रेनिंग की जिम्मेदारी उठाई थी। उस दौर में राजाओं के दरबारों में कुश्तियां हुआ करती थीं। कुश्ती लोगों के लिए मनोरंजन का एक जरिया हुआ करती थी और राजाओं के पास अपने पहलवान होते थे। जिनके खाने, रहने और ट्रेनिंग का खर्चा राजा लोग उठाया करते थे। दतिया के राजा गामा को अपने दरबार का पहलवान बनाना चाहते थे।
कभी नहीं सोचा था कि दुनिया के महारथी बनेंगे
गामा पहलवान ने यह बात कभी सोची भी नहीं होगी कि वह दुनिया के महारथी बन जाएंगे। बता दें कि गामा पहलवान ने अपने जीवन के 50 साल में प्रोफेशनल कुश्ती लड़ी, लेकिन उनका रिकॉर्ड है कि वो एक बार भी नहीं हारे। उनके सामने आने आला हर पहलवान धूल चाटकर वापस लौटता था। गामा की तूती ने केवल भारत बल्कि ब्रिटेन सहित दुनियाभर के तमात बड़े देशों में बोलती थीं। साल-दर-साल गामा की ख्याति बढ़ती रही और वह देश के अजेय पहलवान बन गए।
गरीबी में हुई गामा की मौत
गामा पहलवान ने साल 1952 में पहलवानी से सन्यास ले लिया था। इसके बाद गामा ने किसी को चैलेंज नहीं किया। बताया जाता है कि 1947 में हुई भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय गामा पाकिस्तान चले गए। गामा ने अपना आखिरी समय बहेद गरीबी में बिताया और उन्हें रावी नदी के किनारे एक झोपड़ी बना कर रहना पड़ा। इस दौरान उन्हें एक के बाद एक बीमारियों ने घेर लिया। गरीबी और इलाज के लिए पैसे ना होने के चलते उन्हें अपनी सोने और चांदी की ट्रॉफियां बेचनी पड़ीं। बताया जाता है कि 22 मई 1960 को गरीबी औऱ बीमारी से जूझते हुए गामा पहलवान की लाहौर में मौत हो गई।