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गलवान घाटीः कभी भी पलट सकता है चीन, जानिए कब-कब चीन ने पलटकर किया है विश्वासघात?

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बेंगलुरू। कहते हैं आदत एक बार बदली भी जा सकती है, लेकिन फितरत नहीं बदली जा सकती है। कुछ ऐसा ही हाल चीन का है, जो हर बार अपनी धोखेबाजी की फितरतों से बाज नहीं आ सका है। यह बात एक नहीं, बल्कि कई बार खुद चीन ने अपनी धोखेबाजी की फितरत से पुष्टि कर चुका है।

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गौरतलब है पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों पर धोखे से हमला चीन के धोखेबाजी का एक ताजा उदाहरण है। आज से ठीक 58 वर्ष पहले ने वर्ष 1962 में भी चीन ने इसी गलवान घाटी में भारत की पीठ पर छूरा भोंका था और उसकी यह फितरत अनवरत रूप से आज भी बदस्तूर कायम है।

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पूर्वी लद्दाख में एलएसी के निकट गलवान घाटी में भारत और चीन सैनिकों के बीच गतिरोध की वजह चीन की विस्तारवादी नीति है। फिलहाल, करीब तीन महीने तक चले गतिरोध के बाद चीनी सैनिक पेट्रोल पॉइंट 14 से 1.5-2 किलोमीटर पीछे हट गए हैं, लेकिन खतरा अभी भी बना हुआ है।

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चीन अपनी फितरत से बाज आएगा, इसकी पूरी संभावना है। हालांकि गत 15 जून को गलवान घाटी में हुए संघर्ष में चीनी सैनिकों के हताहतों की संख्या और कोरोनावायरस फैलाने के अपराधी के रूप में देख जा रहे चीन की हेकड़ी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर थोड़ी टूटी जरूर है।

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लेकिन चीन के धोखे के इतिहास से परिचित जानते हैं कि सतर्कता में थोड़ी सी चूक चीन को पलटवार करने में मददगार साबित हो सकता है। यही कारण है केंद्र मोदी सरकार वर्ष 1962 समेत सभी चीनी पैंतरों से सबक लेते हुए अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर अभी भी चौकसी बनाकर रखी है।

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इसकी बानगी उत्तराखंड बॉर्डर पर दिखा है, जहां चौकस भारतीय वायुसेना ने चीन और नेपाल सीमा के पास चॉपर से उड़ान भरकर जायजा लेने से समझा जा सकता है। सीमा पर वायुसेना कितनी चौकस है इसका अंदाजा मिग 29 लड़ाकू विमानों के रात्रिकाल में सीमा पर निगेहबानी से देखा जा सकता है।

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केंद्र में मोदी सरकार के नेतृत्व में भारत सेना वर्ष 1962 में चीनी सेना धोखे से सबक लेते हुए थल से नभ तक चीन पर कड़ी नजर रखे हुए है। युद्धक विमानों और हेलीकॉप्टर ने सीमा पर पूरी तैयारी के साथ फारवर्ड एयरबेस से भारत-चीन सीमा के ऊपर उड़ान भरकर चीन की एक-एक हरकत पर बाज की तरह नजर रखे हुए हैं, जो यह चीन को बताने के लिए काफी है कि मौजूदा भारत 1962 का भारत नहीं है और इस बार उसे करारा जवाब मिलेगा।

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एक तरफ लद्दाख में जहां भारत ने बड़ी संख्या में जवानों को तैनात कर रखा है। वहीं, चीन से लगती सीमा पर ITBP से लेकर सेना के जवान तक लगातार चीनी फितरतों का जवाब देने के लिए तैयार रखा गया है, क्योंकि इससे पहले 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान भी गलवान घाटी से सैनिकों के हटाने के बाद चीन ने नेहरु से दोस्ती के बावजूद भारत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और भारत 200 सैनिकों को अपनी शहादत देनी पड़ी थी।

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याद कीजिए, 50 का वह दशक जब हिंदी चीनी भाई भाई के नारे के बीच चीन ने भारत को धोखा दिया। हालांकि आज का भारत 1962 की तुलना में काफी सशक्त और बलशाली हो चुका है, जहां सेना का नेतृत्व करने वाली सरकार चीनी आक्रामत का जवाब उसकी भाषा में देने के लिए तैयार खड़ा है।

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उल्लेखनीय है युद्ध जैसी स्थिति के बीच जब दोनों देशों के सैनिक सीमा पर खड़े हों, तो ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लेह में किया गया औचक दौरा चीन को बताने के लिए काफी था कि आज का भारत 1962 से कितना कितना बदल चुका है और वह पलटकर जवाब ही नहीं, घुटने भी टेकने के लिए मजबूर कर सकता है।

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वर्ष 2017 में चीन ने डोकलाम में चीनी सैनिकों ने घुसपैठ

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वर्ष 2017 में चीन ने एलएसी का सम्मान नहीं किया और धोखेबाजी करते हुए सीमा पर तनाव बढ़ा दिया था। डोकलाम में चीन सैनिकों ने की घुसपैठ की कोशिश की, जिसके चलते करीब 73 दिन तनाव रहा। यह अलग बात है कि चीन को घुटने टेकने पड़े और डोकलम से सैनिकों को हटाना पड़ गया।

आज भी चीन की फितरतों में नहीं आया है कोई बदलाव

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वर्ष 2014 में भारत में सत्ता परिवर्तन के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच पिछले 6 सालों में करीब 18 बार मुलाकात हो चुकी है। कई बार दोनों नेताओं के बीच वन टू वन की मुलाकात हुई है तो कई बार महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भी दोनों नेताओं के बीच चर्चा हुई। हर मुलाकात में चीन शांति का राग ही अलापता नजर आता है, लेकिन गलवान घाटी में जो कुछ हुआ, उससे कोई अनभिज्ञ नहीं है, जब चीनी सैनिकों ने पीछे भारतीय सैनिकों पर हमला करके 20 सैनिकों को शहीद कर दिया, लेकिन चीन भूल गया था कि उसको बराबर टक्कर मिलेगा।

दो कदम पीछे लेकर, एक कदम आगे बढ़ाने को लेकर कुख्यात है चीन

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यही कारण है कि चीन को पूर्वी लद्दाख के गतिरोध स्थल से दो कदम पीछे लेना पड़ा है, लेकिन चीन के लिए कुख्यात है कि वह दो कदम पीछे लेकर, एक कदम आगे बढ़ा देते है। चूंकि चीन अभी विश्वसनियता, अंतर्राष्ट्रीयता मान्यता और व्यापारिक दृष्टि से अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है, इसलिए संभव है कि फिलहाल चीन अपनी फितरतों को पोस्टपोन कर सकता है, लेकिन सही वक्त आने पर चीन दोबारा स्ट्राइक करने से बाज नहीं आएगा।

वर्ष 1962 में गलवान घाटी में भारत को धोखा दे चुका है चीन

वर्ष 1962 में गलवान घाटी में भारत को धोखा दे चुका है चीन

1962 में भी गलवान एरिया खबरों में था, उस वक्त भी चीनी सैनिक गलवान एरिया में आ गए थे और अब भी गलवान खबरों में है। 1962 में 15 जुलाई को सभी समाचार पत्रों में गलवान को लेकर ही प्रमुख खबर थी। उस दिन की एक हेडलाइन थी- Chinese troops withdraw from Galwan post। लेकिन इस खबर के छपने के कुछ महीने बाद ही भारत-चीन के बीच 1962 का युद्ध शुरू हो गया।

भारत-चीन सीमा पर करीब 45 साल बाद किसी सैनिक की जान गई

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वर्ष 1975 में एलएसी पर चीन ने घात लगाकर हमला किया था, जिसमें चार सैनिक शहीद हुए थे। तब से दोनों देशों में झड़प तो कई बार हुई, लेकिन जान किसी की कभी नहीं गई। बीते एक महीने से लद्दाख में कई मौकों पर भारत और चीन की सीमाएं आमने-सामने हुईं। दोनों के बीच हिंसक झड़प हुईं और दोनों ओर से सैनिक घायल भी हुए। मगर इस दौरान एक भी गोली नहीं चली थी, लेकिन चीन ने गलवान घाटी में एक बार धोखे से हमलाकर 20 भारतीय सैनिकों को शहीद किया है। हालांकि 43 से अधिक चीनी सैनिकों की झड़प में जान गई है।

संधि तोड़कर चीन ने भारतीय सैनिकों पर किया हमला

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भारत और चीन दोनों देशों की बीच हुए एक संधि के मुताबिक दोनों देश कितने भी मतभेदों के बीच सीमा पर हथियार नहीं उठाने को लेकर समझौता किया था। रैंक के अनुसार जिन अधिकारियों के पास बंदूक होंगी, लेकिन उनका मुंह जमीन की तरफ होगा। पूर्वी लद्दाख में गत 15 जून को भी भारत ने समझौते का पूरी तरह से पालन किया, लेकिन चीन ने अपनी फितरत के मुताबिक एक बार धोखा किया और 20 भारतीय सैनिकों को अपनों प्राणों का बलिदान देना पड़ा।

भारत के करीब 48,000 वर्ग किमी जमीन पर कब्जा करके बैठा है चीन

भारत के करीब 48,000 वर्ग किमी जमीन पर कब्जा करके बैठा है चीन

अतिक्रमणकारी चीन लगातार भारत उसकी सीमा का अक्रिमण करता आया है। हकीकत यह है कि चीन भारत की करीब 48 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा करके बैठा है। इसके साथ ही आए दिन वह अरुणाचल, सिक्किम, लद्दाख आदि भारत के क्षेत्रों में घुसपैठ करता रहता है।

दौलत बेग ओल्डी पर है चीन की पैनी नजर

दौलत बेग ओल्डी पर है चीन की पैनी नजर

चीन की नई चालबाजी का सबूत सामने आ गया है और उसकी नजर अब दौलत बेग ओल्डी पर है, जून में चीनी सेना का जमावड़ा यहां बढ़ा है। चीन ने यहां नए कैंप और वाहनों के लिए ट्रैक बनाए हैं। ये इलाका दौलत बेग ओल्डी से जुड़ता है, जहां भारतीय सेना का कैंप है। चीन का सीधा मकसद दौलत बेग ओल्डी में भारत के लिए मुश्किलें खड़ा करना है। चीन एलएसी के करीब पैट्रोलिंग प्वाइंट 15, 17 और 17 ए की तरफ बढ़ रहा है, जहां सड़क के जरिए वो भारी वाहन और जवानों का जमावड़ा कर रहा है।

काराकोरम दर्रे पर भी लगी है चीन की कड़ी नजर

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चीन कारोकोरम में घुसपैठ करने में लगा है। वह भारतीय सेना को पैट्रोलिंग करने से रोक रहा है और पैट्रोलिंग प्वाइंट 10 और 13 पर चीन रुकावट डालने में लगा है। चीन दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) और देपसांग सेक्टरों में नया मोर्चा खोल सकता है।

मौजूदा नेतृत्व के साथ-साथ भारत के लिए समय भी अनुकूल है

मौजूदा नेतृत्व के साथ-साथ भारत के लिए समय भी अनुकूल है

गलवान घाटी में चीन की हालिया हरकतों के बाद भारत ने उसे करारा जवाब देने का मन बना लिया है और मौजूदा समय में नेतृत्व के साथ भारत के लिए समय भी अनुकूल है। पूरी दुनिया चीन को कोरोनावायरस फैलाने के लिए जिम्मेदार मानती है और चीन को सजा देने के लिए पूरी तैयार है। इनमें अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया समेत तमाम यूरोपीय देश शामिल हैं।

पहले से डूब रही चीन अर्थव्यस्था का मटियामेट होना तय है

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भारत को संयुक्त राष्ट्र के अन्य स्थायी सदस्यों- अमेरिका, ब्रिटेन, रूस और फ्रांस के साथ मिलकर चीन को सुरक्षा परिषद से बाहर करने की कवायद भी शुरू करनी चाहिए। साथ ही, आंतकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान के साथ खड़े चीन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तिरस्कृत भी किया जाना चाहिए, जिससे पूरी तरह से अलग-थलग किया जा सके। चीनी सामानों और चीन करारों के निरस्तीकरण से चीन को अच्छी चोट पहुंचाई जा रही है, जिससे पहले से डूब रही चीन अर्थव्यस्था का मिटियामेट होना तय है।

Comments
English summary
Cheating attacks on Indian troops in the Galvan Valley of eastern Ladakh are a recent example of China's fraud. Just 58 years before today, in the year 1962, China had stabbed the back of India in the same Galvan valley and its spirit is uninterrupted even today. Chinese troops have retreated 1.5–2 km from Petrol Point 14, after a standoff that lasted for nearly three months, but the threat still remains.
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