NRC Assam से जुड़ी पूरी कहानी, तो इसलिए असम को गिनने पड़े अपने नागरिक
बेंगलुरु। केन्द्र की मोदी सरकार में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस असम में (एनआरसी) की फाइनल लिस्ट जारी हो चुकी है। जिसका वर्षों से असम के लोगों को इंतजार था वो आज हुआ। गृह मंत्रालय ने फाइनल लिस्ट की सूची जारी की।
एनआरसी के स्टेट कॉर्डिनेटर प्रतीक हजेला ने बताया कि 3 करोड़ 11 लाख 21 हजार लोगों का एनआरसी की फाइनल लिस्ट में जगह मिली और 19,06,657 लोगों को बाहर कर दिया गया। जो लोग इससे संतुष्ट नहीं है, वे फॉरनर्स ट्रिब्यूनल के आगे अपील दाखिल कर सकते हैं। राज्य में सुरक्षा व्यवस्था को देखते हुए सुरक्षा-व्यवस्था के लिए 51 कंपनियां तैनात की गई हैं।
गौरतलब है कि असम में रह रहे घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें देश से बाहर भेजने के लिए 1951 में नेशनल रजिस्टर फॉर सिटीजन (एनआरसी) बनाया गया था। मोदी सरकार के प्रमुख मुद्दों में से एक रहा है। आज इस लिस्ट में सिर्फ उन लोगों के नाम शामिल किए गए हैं, जो 25 मार्च 1971 के पहले से असम में रह रहे हैं। आइये जानते हैं असम एनआरसी से जुड़ी पूरी कहानी। आखिर सरकार को असम के नागरिका गिनने की जरुरत पड़ी ?
1971 से 1991 के बीच असम में बड़ी संख्या में मतदाता बढ़े, जिसने असम में अवैध तरीके से लोगों के प्रवेश की तरफ इशारा किया। इस आधार पर एनआरसी में करीब 2.89 करोड़ लोगों को भारत का नागरिक माना गया है। वहीं 40 लाख लोगों को भारतीय नागरिकता नहीं दी गई थी।
वर्षों पहले ये हुआ
1947 में भारत-पाकिस्तान का बंटवारा होने के बाद कई लोग असम से पूर्वी पाकिस्तान चले गए जो वर्तमान में बंगलादेश है। लेकिन लोगों के घर-परिवार वहीं रह गए और अवैध तरीके से भारत में लोगों का आना-जाना इसके बाद भी जारी रहा। ऐसे में 1979 में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन और ऑल असम गण संग्राम परिषद ने असम में अवैध रूप से रह रहे प्रवासियों के खिलाफ हिंसक आंदोलन छेड़ दिया। यह आंदोलन छह वर्ष तक जारी रहा। अगस्त, 1985 में भारत सरकार और इन दोनों संगठनों के बीच असम समझौता हुआ जिसके बाद हिंसा पर रोक लगी और असम में नई सरकार का गठन हुआ। इस समझौते का एक अहम भाग यह था कि 1951 की एनआरसी सूची में संशोधन किया जाएगा।
हिंसा के बाद रोक दी गई थी गणना
अनुमान
है
कि
देश
में
दो
करोड़
से
ज्यादा
अवैध
बांग्लादेशी
निवास
कर
रहे
हैं।
जिसमें
से
55
लाख
वेस्ट
बंगाल
और
15
लाख
से
ज्यादा
असम
में
हैं।
1985
में
पूर्व
प्रधानमंत्री
राजीव
गांधी
के
कार्यकाल
में
मांग
जोर
पकड़ी
थी।
2010
में
पायलट
प्रोजेक्ट
के
तहत
राज्य
के
दो
जिलों
में
एनआरसी
अपडेशन
की
प्रक्रिया
आरंभ
हुई।
बारपेटा
शहर
में
इसके
विरोध
में
उग्र
प्रदर्शन
हुआ
जिसमें
चार
लोगों
की
मौत
हो
गई।
इसके
बाद
इनकी
गणना
का
काम
रोक
दिया
गया
था।
2014-2015
में
सुप्रीम
कोर्ट
के
निर्देश
पर
एनआरसी
अपडेशन
का
काम
फिर
से
आरंभ
हुआ
था।ये
है
असली
कारण
असम में क्यों है इनको लेकर आक्रोश
आक्रोश उनको लेकर है जो पिछले चार- पांच दशकों में सरहद पार से दबे पांव पहुंचे हैं और जिन्होंने तत्कालीन अल्पसंख्यक तुष्टीकरण वाली सरकारों के संरक्षण का लाभ उठाते छल कपट से जमीन के पट्टे, राशन कार्ड, मतदाता परिचय पत्र हथिया लिए हैं। जो हिंसक मुठभेड़ें होती रही हैं, वह हिंदू मुसलमानों के बीच नहीं वरन विदेशी बंगाली- बांग्लादेशी मूल के बाहरियों और असम की बोडो और अन्य जनजातियों के बीच होती रही है। यह समझना कठिन नहीं कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू तो उत्पीड़न की शिकायत कर शरणार्थी होने का दावा कर सकते हैं पर क्या यही तर्क मुसलमान घुसपैठिए दे सकते हैं? राज्य और देश के सीमित संसाधनों पर पहला हक भारत के नागरिकों का है। साथ ही घुसपैठियों की बाढ़ के साथ असामाजिक आपराधिक तत्वों का दाखिल होना भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
घुसपैठियों के आंकड़ो को लेकर केवल लगता रहा अनुमान
10 अप्रैल, 1992 को असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री हितेश्वर सैकिया ने यह आंकड़ा 30 लाख बताया। दो दिन बाद उन्होंने अपना बयान वापस ले लिया।
6 मई, 1997 को तत्कालीन गृह मंत्री इंद्रजीत गुप्ता ने देश में रह रहे कुल अवैध अप्रवासियों की अनुमानित संख्या 01 करोड़ संसद में बताई।
2004 में गृह मंत्रालय ने असम के लिए यह आंकड़ा 50 लाख बताया।
2009 में असम पब्लिक वक्र्स एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में यह आंकड़ा 41 लाख बताया था।
अब तक क्या क्या हुआ
1951 पूर्वी पाकिस्तान से भारत में अवैध प्रवेश करने वाले लोगों और भारतीय नागरिकों की पहचान करने के लिए पहली बार नेशनल रजिस्टर फॉर सिटीजन तैयार किया गया।
1961 36% 1951 से 1961 तक असम की जनसंख्या में इजाफा इस दौरान देश की आबादी 22 फीसद ही बढ़ी। असम में तेजी से जनसंख्या वृद्धि के लिए पूर्वी पाकिस्तान से अवैध घुसपैठ को दोषी माना गया।
1971 35% 1961 से 1971 तक असम की जनसंख्या में इजाफा (देश की आबादी में इजाफा 25 फीसद हुआ)
1978 50% 1971 से 1978 तक असम में मतदाताओं की संख्या में हुआ इजाफा 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के सात साल बाद असम में मतदाताओं की संख्या 50 फीसद तक बढ़ी। असम के मंगलदोई लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में ही पचास हजार अधिक मतदाता पाए गए।
1985 1979 में असम में अवैध तरीके से आने वाले लोगों के खिलाफ शुरू हुआ हिंसक प्रदर्शन 1985 में असम समझौते के बाद बंद हुआ। इसका एक मुख्य बिंदू यह था कि 1951 का एनआरसी संशोधित किया जाए और इसमें वर्ष 1971 को मानक वर्ष माना गया।
2015 सुप्रीम कोर्ट ने 2009 में दायर एक जनहित याचिका के बाद इस प्रक्रिया की निगरानी शुरू की। इसके बाद
2015 में एनआरसी पर काम किया जाना शुरू हुआ।
2018 एनआरसी मसौदा के एक हिस्से का प्रकाशन 31 दिसंबर, 2017 की आधी रात को किया गया था और पूरा मसौदा 30 जुलाई, 2018 को प्रकाशित किया गया। रजिस्टर में शामिल करने के लिए 3,29,91,384 आवेदकों में से कुल 2,89,83,677 लोग पात्र पाए गए।
2019 26 जून, 2019 को, एनआरसी प्राधिकरण ने नई निष्कासन सूची के साथ अतिरिक्त मसौदा प्रकाशित किया। इस सूची में 1,02,462 लोगों को शामिल किया गया।
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