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JNU से लेकर हॉन्ग कॉन्ग तकः सड़क पर क्यों उतरते हैं छात्र

दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्र नाराज़ हैं. सभी के लिए शिक्षा का मुद्दा उनकी ज़ुबां पर है. निजी संस्थानों में शिक्षा हासिल करना महंगा है और सरकारी संस्थाओं में सीटों की संख्या सीमित है और सभी के लिए जेएनयू में शिक्षा पाना मुमकिन नहीं. ग़रीब परिवारों से आने वाले कई छात्र जेएनयू से निकलकर समाज के उच्च वर्ग में अपना स्थान बनाते हैं.

By विनीत खरे
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विरोध प्रदर्शन करते छात्र
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विरोध प्रदर्शन करते छात्र

दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्र नाराज़ हैं. सभी के लिए शिक्षा का मुद्दा उनकी ज़ुबां पर है.

निजी संस्थानों में शिक्षा हासिल करना महंगा है और सरकारी संस्थाओं में सीटों की संख्या सीमित है और सभी के लिए जेएनयू में शिक्षा पाना मुमकिन नहीं.

ग़रीब परिवारों से आने वाले कई छात्र जेएनयू से निकलकर समाज के उच्च वर्ग में अपना स्थान बनाते हैं.

भारत में जेएनयू के छात्र पुलिस, नौकरशाही, पत्रकारिता, सहित समाज के हर हिस्से में हैं.

जेएनयू के पूर्व वाइस चांसलर डॉक्टर वाईके अलघ कहते हैं, "भारतीय समाज के बेहतर विकास के लिए ज़रूरी है कि हम जेएनयू जैसे और संस्थान खोलें."

इन्हीं कारणों से जेएनयू में फ़ीस और दूसरे ख़र्चों में होने वाली बढ़ोत्तरी के कारण छात्र प्रदर्शनों पर सभी की निगाहे हैं.

म्युनिसिपल स्कूल में पढ़े और कई विश्वविद्यालयों में महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके प्रोफ़ेसर अख्तर-उल वासे कहते हैं, "आर्थिक सुधारों के बाद हमने शिक्षा और स्वास्थ्य सेक्टरों को निजी हाथों में दे दिया है जिससे ग़रीब अपने सिस्टम से बाहर हो गया है. अगर छात्र ग़रीबों के हक़ में मांग उठा रहे हैं तो हमें उनका सम्मान करना चाहिए. शिक्षा कोई व्यापार नहीं है."

प्रदर्शनकारियों से बात करता मीडिया
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प्रदर्शनकारियों से बात करता मीडिया

'यहं देखें कि स्टूडेंट कैसे रहते हैं'

अख्तर-उल वासे कहते हैं, "मैं पिछले दो हफ़्तों से जेएनयू में प्रदर्शनों को कवर कर रहा हूं. विश्वविद्यालय के भीतर हॉस्टल में छात्रों से मिला. उनके प्रदर्शनों को नज़दीक से देखा. देखा कि किस तरह सुरक्षाबल छात्रों को ताक़त के ज़ोर से, डंडों से पीछे धकेल रहे हैं, छात्रों को घसीटकर ले जा रहे हैं, कुछ उन्हें अपने बच्चों जैसा भी बता रहे हैं."

रोचक बात थी कि पुलिस की वर्दी पहनने वाले जेएनयू के पूर्व छात्र भी थे.

जेएनयू के बाहर छात्रों को मुफ़्तखोर, कामचोर, करदाताओं के पैसों पर ऐश करने वाला बताया जा रहा है.

वो छात्र, जिनके पिता किसान, गार्ड हैं, छोटी दुकान चला रहे हैं, कह रहे हैं, ज़रा ये लोग यहां आकर तो देखें कि हम क्या ऐश कर रहे हैं.

गिरे हुए बैरिकेड
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गिरे हुए बैरिकेड

इन प्रदर्शनों में पुलिस के ताक़त के ज़ोर पर ज़मीन पर पिसते, एक दूसरे पर गिरते छात्र बड़ी संख्या में सुरक्षाबलों के इस्तेमाल से सन्न थे.

एक ऑडिटोरियम के बाहर प्रदर्शन में एक महिला छात्र ने ग़ुस्से में कहा, "किसी लोकतंत्र की राजधानी में क्या छात्रों के साथ ऐसा होता है? वाइस चांसलर हमसे बात ही नहीं करना चाहते."

जेएनयू वाइस चांसलर को एक साक्षात्कार के लिए भेजे एक ईमेल का अभी तक जवाब नहीं मिला है.

छात्रों पर ताक़त के इस्तेमाल का असर कई बार उम्मीद से उलट होता है, ये कोई नई बात नहीं.

एक घायल छात्र
BBC
एक घायल छात्र

'ताक़त का इस्तेमाल नहीं कर सकते'

डॉक्टर अलघ कहते हैं, "जवान लोग आदर्शवादी होते हैं. हमें उनकी आदर्शवादिता को समझना होगा. अगर हम उनके साथ मारपीट करेंगे, वो वापस आप पर वार करेंगे. जिस देश में युवा जनसंख्या का इतना मज़बूत हिस्सा है, ये करना बेवकूफ़ी होगा... हमें सीखना चाहिए कि उन्हें कैसे मैनेज किया जाए."

"जब मैं वाइस चांसलर था तो मुझे सलाह दी जाती थी कि मैं पुलिस बुला लूं. मैं कहता था अगर कैंपस में पुलिस आ गई तो मेरी जगह वो पुलिस वाला वाइस चांसलर बन जाएगा. आप ताक़त का इस्तेमाल नहीं कर सकते."

"अगर युवा बदलाव नहीं चाहते और उन्होंने आग का आविष्कार नहीं किया होता, तो हम आज भी स्टोन एज में रहते. आप ये नहीं कह सकते हैं कि जिस छात्र का पिता किसान है, और उसके पास ज़मीन नहीं है, वो होस्टल में रेस्तरां के स्तर का ख़र्च दे. हमें ये समझना होगा कि हम जब उनकी उम्र में थे तो हमने भी विद्रोह किया था, नहीं तो हम अभी तक ब्रितानी साम्राज्य का हिस्सा होते. हमें बदलाव को मैनेज करना होगा."

सालों से जेएनयू में 'ग़रीबी', 'भ्रष्टाचार', 'बांटने वाली राजनीति' आदि से 'आज़ादी' की मांग होती रही है, यहां के कैंपस, 'फ़्रीडम स्क्वेयर' तक सीमित नहीं.

पड़ोसी पाकिस्तान में भी फ़ीस की बढ़ोत्तरी, बेहतर शिक्षा, 'कैंपस में गिरफ़्तारी', कथित उत्पीड़न आदि मांगों को लेकर 29 नवंबर को स्टूडेंट सॉलिडैरिटी मार्च की तैयारी है.

एक वायरल वीडियो में छात्र 'नवाज़ भी सुन लें…', 'शाहबाज़ भी सुन लें…', 'इमरान भी सुन लें...' आज़ादी के नारे लगाते दिखते हैं. उनके नारों को देखकर ऐसा लगेगा कि ये नारे जेएनयू छात्र लगा रहे हैं.

विरोध प्रदर्शन करते छात्र
Getty Images
विरोध प्रदर्शन करते छात्र

युवाओं ने तय की दिशा

साल 2016 में जब जेएनयू में आज़ादी के नारे लगे, प्रदर्शन हुए, तो छात्रों के ख़िलाफ़ राजद्रोह के मामले दर्ज हुए.

ताज़ा प्रदर्शनों पर पाकिस्तान में भी छात्रों के ख़िलाफ़ राजद्रोह के मुकदमें दर्ज होने की रिपोर्टें हैं.

चाहे अंग्रेज़ों के खिलाफ़ आज़ादी की लड़ाई हो, आपातकाल के खिलाफ़ आंदोलन, या फिर मंडल के दिनों के प्रदर्शन, छात्रों ने भारत की दशा और दिशा तय की है.

भारत में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में जेपी आंदोलन इतनी मज़बूती से उभरा कि आख़िरकार प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सत्ता से हटाकर देश की पहली ग़ैर-कांग्रेसी सरकार वजूद में आई.

विरोध प्रदर्शन करते छात्र
Getty Images
विरोध प्रदर्शन करते छात्र

लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार और सुशील मोदी जैसे नेता जेपी आंदोलन में विद्यार्थी नेता के रूप में उभरे.

चाहे पश्चिम बंगाल में #Hokkolorob हो, हैदराबाद में #JusticeforRohith या फिर ताज़ा #Standwithjnu , छात्र अपने अधिकारों मांग के समर्थन में एकजुट हो रहे हैं.

#Hokkolorob का अर्थ है 'कलरव' या 'शोर' और ये शुरू हुआ था सितंबर 2014 में जब कोलकाता के जाधवपुर विश्वविद्याल कैंपस में एक महिला के कथित यौन उत्पीड़न को दबाने की कोशिश की गई तो हज़ारों छात्र प्रशासन के विरोध में खड़े हो गए.

बंगाल में प्रसिडेंसी और शांति निकेतन में भी छात्र प्रदर्शन हुए हैं.

रोहित वेमुला की मौत पर हैदराबाद विश्वविद्यालय के अलावा दूसरे विश्वविद्याल के छात्र भी सड़कों पर उतरे.

हॉन्ग-कॉन्ग में विरोध प्रदर्शन
Reuters
हॉन्ग-कॉन्ग में विरोध प्रदर्शन

हॉन्ग-कॉन्ग के प्रदर्शन

आजकल दुनिया का ध्यान हॉन्ग-कॉन्ग में हफ़्तों से जारी प्रदर्शनों पर भी है, जिनमें छात्रों की अहम भूमिका है.

ये प्रदर्शन एक विवादित प्रत्यर्पण विधेयक के विरोध में शुरू हुए थे लेकिन इस विधेयक के वापस लेने के बावजूद ये प्रदर्शन जारी हैं.

प्रदर्शनकारियों को लगता है कि हॉन्ग-कॉन्ग की विशिष्ट पहचान को चीन की राजनीतिक प्रणाली से ख़तरा है.

चीन ने कई तरीक़ों से इस प्रदर्शन पर काबू पाने की कोशिश की है जिसमें सूचना को हथियार की तरह इस्तेमाल किया गया है, लेकिन ये प्रदर्शन जारी हैं.

अमरीका में सिराक्यूज़ विश्वविद्यालय में छात्र कैंपस में अफ़्रीकी और एशियाई मूल के छात्रों के खिलाफ़ कथित नस्लवादी घटनाओं के बाद सुधारों की मांग के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे हैं.

60 के दशक के पेरिस और बर्कले और हाल में चिली में छात्रों के प्रदर्शनों की याद अभी भी ताज़ा है.

हॉन्ग-कॉन्ग में विरोध प्रदर्शन
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हॉन्ग-कॉन्ग में विरोध प्रदर्शन

1968 में क़रीब आठ लाख छात्र, शिक्षक और कर्मचारी पेरिस की सड़कों पर चार्ल्स डी गॉल की सरकार के विरोध में निकले थे और पुलिस अत्याचार के विरोध में प्रदर्शन किए थे.

इसी दशक में बर्कले में कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय में वियतनाम युद्ध के ख़िलाफ़ छात्रों ने प्रदर्शन किए. वो दौर था जब बर्कले 'फ़्री स्पीच मूवमेंट' का गढ़ था.

क़रीब तीस साल पहले बीज़िंग के तियानमन स्क्वेयर पर लाखों छात्र लोकतंत्र के समर्थन में सड़कों पर उतरे लेकिन चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने इन प्रदर्शन को ताक़त के ज़ोर पर कुचल दिया.

एक आर्मी टैंक के सामने एक प्रदर्शनकारी की तस्वीर का शुमार 20वीं सदी की सबसे बेहतरीन फ़ोटो में किया जाता है.

पंजाब में पूर्व छात्र नेता और अभी एक विश्वविद्यालय में शिक्षक अमनदीप कौर कहती हैं, "छात्र एकता उन्हें अधिकार, बेहतर मौक़े और सुविधाएं मुहैया करवाती है. जहां छात्र एकत्रित नहीं होते, जैसे जहां मैं काम कर रही हैं, वहां छात्र अधिकारों से वंचित रह जाते हैं. छात्र प्रदर्शन समाज में बदलाव लाते हैं."

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English summary
From JNU to Hong Kong: Why do students get on the road
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