मुजफ्फरनगर: मर्डर के अलावा गैंगरेप और दंगों के केस में भी बच गए आरोपी, सामने आई बड़ी खामियां
लखनऊ: उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में साल 2013 में हुए दंगों में पीड़ित लोगों को डराने और धमकाने की बात सामने आई है। इस दंगों से जुड़े 41 में से 40 मामलों में सभी आरोपी बरी हो गए। इन मामलों में पुलिस वाले तक अपने बयानों से मुकर गए। पीड़ितों का कहना है कि उन्हें डराया और धमकाया जा रहा है। गैंगरेप के जैसे मामलो में मेडिकल जाचं में देरी हुई। एक मामले में तो तीन महीने की देरी हुई। डॉक्टरों और पुलिसवालों का क्रॉस एग्जामिनेशन तक नहीं हुआ। दंगों के मामले में लापरवाही की लिस्ट बहुत लंबी है।
मुजफ्फरनगर दंगो के आरोपी बरी
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक इन मामलों में अदालत के रिकॉर्डों की जांच करने पर ये बात सामने आई कि मर्डर के 10 मामलों में आरोपी बरी हो गए। इसी तरह गैंगरेप के चार मामलों और दंगो से जुड़े 26 मामलों में यही हुआ। इन वजहों से 168 आरोपी बरी हो गए। ये सभी मामले मुस्लिमों पर हुए हमले से जुडे़ हैं। 2013 में हुए दंगों मे करीब 65 लोग मारे गए थे। अखिलेश यादव की सरकार में इन मामलों की जांच शुरू हुई। इन मामलों में ट्रायल उनकी और बीजेपी सरकार दोनों में चला।
गैंगरेप के मामलों का क्या हुआ
गैंगरेप के आरोपों में आरोपियों को बरी करने की वजह पर गौर करने पर पता चलता है कि गैंगरेप के केस की एक पीड़ित ने बताया कि उसकी मेडिकल जांच 3 महीने बाद की गई। डॉक्टर ने कोर्ट में कहा कि हमें मेडिकल जांच के दौरान शरीर पर चोट के कोई निशान नहीं मिले। इस मामले में पाया गया कि पीड़िता 17 हफ्तों की गर्भवती हैं। इस जांच में देरी को कोई उल्लेख नहीं है। देरी की वजह जानने के लिए ना तो डॉक्टर और ना ही जांच अधिकारी को क्रॉस एग्जामिनेशन किया गया। दूसरे गैंगरेप के केस में उसकी शिकायत के एक हफ्ते बाद पीडि़ता की मेडिकल जांच हुई। आदेश में सिर्फ ये जिक्र मिला कि डॉक्टर ने कोर्ट के समक्ष मेडिकल जांच की प्रामणिकता की पुष्टि की। लेकिन इसमें डॉक्टर के निष्कर्षों का उल्लेख नहीं मिला। गैंगरेप के तीसरे केस में मेडिकल जांच रिपोर्ट का उल्लेख है। इस रिपोर्ट के निष्कर्ष पर कुछ नहीं कहा गया है। इस मामले में डॉक्टर को गवाह के तौर पर सूचीबद्ध नहीं किया गया।चौथे मामले में कोर्ट में बताया कि पीड़िता की मेडिकल जांच शिकायत के 40 दिन बाद हुई। डॉक्टर ने बताया कि पीड़िता पांच बच्चों की माँ है और उसकी मेडिकल जांच सही नहीं है।
'पुलिस ने पीड़ितों को धमकाया'
गैंगरेप के दो मामलों में पीड़ितों ने बताया कि उन्हें आरोपियों का नाम लेने के लिए सिखाया गया। इसे लेकर पुलिस से क्रॉस एग्जामिनेशन नहीं किया गया। चार मामलों में 7 गवाह कोर्ट में पुलिस के सामने दिए गए अपने बयान से पलट गए। ये सभी पीड़ितों के रिश्तेदार थे। उनका कहना था कि वो भीड़ से बचने के लिए भाग गए थे और उन्होंने कुछ नहीं देखा। दो मामलों में पीड़ितों के रिश्तेदारों ने कहा कि पुलिस ने उनके बयान नहीं लिए बल्कि राहत कैंप में किसी और ने बयान लिए। दो पीड़ितों ने ने कहा कि पुलिस के सिखाने पर उन्होंने आरोपियों का नाम लिया ताकि मुआवजा मिल सके। दो अन्य ने बताया कि किसी अनजान अधिकारी ने उनसे राहत कैंप में कोरे कागज पर हस्ताक्षर करवाए। अदालत ने माना कि गैंगरेप के सभी चार मामलों में आईपीसी की धारा 164 के तहत लिए बयानों में कोई ठोस सबूत लायक नहीं थे।
दंगो के मामले में भी लापरवाही
हत्या और गैंगरेप के मामलों के अलावा दंगों के 26 मामलो में भी ये बात सामने आई कि सही प्रक्रिया नहीं अपनाई गई। दंगों के दो केस ऐसे थे कि जिसमें मौके पर मौजूद पुलिस अफसरों की तरफ से मामले दर्ज किए गए। बाद में ट्रायल के दौरान इन अधिकारियों ने कहा कि वो आरोपियों को नहीं पहचान सकते। दंगो के 10 केस में एक भी पुलिस अधिकारी से क्रॉस एग्जामिनेशन नहीं किया गया। 13 गवाहों ने माना कि उनसे कुछ अफसरों ने कोरे कागज पर उनके अंगूठे के निशान लिए। 52 गवाह अपने बयानों से पलट गए और कहा कि वो दंगों से पहले ही मौके से भाग गए थे।
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