पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने दिया विवादित बयान बोले- "राष्ट्रवाद" कोरोना से भी बड़ी बीमारी
नई दिल्ली। देश पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी (Hamid Ansari) और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने "धार्मिकता" और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर शुक्रवार को जमकर हमला बोला। उन्होंने कहा कि राष्ट्र के मूल मूल्यों को चोट पहुंचाई जा रही है। हामिद अंसारी ने एक विवादित बयान दे डाला उन्होंने राष्ट्रवाद को कोरोना महामारी से भी बड़ी बीमारी बताया।

ये बात अंसारी ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर की नयी बुक 'The Battle of Belonging' के डिजिटल विमोचन समारोह में बोली। हामिद अंसारी ने कहा कोरोना के आने से पहले ही भारत देश 'धार्मिक कट्टरता' और 'आक्रामक राष्ट्रवाद' जैसी महामारी का शिकार हो चुका है। यूपीए की सरकार में 10 वर्षों तक उपराष्ट्रपति रहे अंसारी ने कहा कोरोना वायरस से पहले हमारा भारतीय समाज अन्य महामारियों, जिसमें धार्मिक कट्टरता और आक्रामक राष्ट्रवाद का शिकार हो चुका था। अंसारी ने कहा कि धार्मिक कट्टटरा और आक्रामक राष्ट्रवाद के मुकाबले 'देशप्रेम' अधिक सकारात्मक अवधारणा है क्योंकि यह सैन्य और सांस्कृतिक रूप से रक्षात्मक है।
मोदी सरकार पर अंसारी ने किया ये कटाक्ष
हामिद अंसारी ने पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि 4 वर्षों की छोटी सी अविध में भारत ने उदार राष्ट्रवाद से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद तक एक ऐसी राजनीतिक परिकल्पना का सफर तय कर ली है कि ये लोगों के दिमाम में अब घर कर चुकी है। उन्होंने कहा "भारत के एक आदर्श (पुस्तक में) के लिए एक भावुक दलील है, एक ऐसा भारत जो हमारी पीढ़ी द्वारा दिया गया था" और अब यह "विचारों और विचारधाराओं" से लुप्तप्राय है। इसे हमारे और उनके बारे में कल्पना के मापदंड पर खंडित करें"। अंसारी ने कहा कि आज देश ऐसे 'प्रकट और अप्रकट' विचारों एवं विचारधाराओं से खतरे में दिख रहा है जो उसको 'हम और वो' की काल्पनिक श्रेणी के आधार पर बांटने की कोशिश करती हैं।
अंसारी ने कहा "हिथर्टो, हमारे मूल मूल्यों को एक बहुवचन समाज, एक लोकतांत्रिक राजनीति और एक धर्मनिरपेक्ष राज्य संरचना के अस्तित्ववादी वास्तविकता के रूप में अभिव्यक्त किया गया था। इन्हें स्वतंत्रता आंदोलन में स्वीकार किया गया था, इन्हें संविधान में शामिल किया गया था और संविधान के प्रस्तावना में इनकैप्सुलेट किया गया था।
फारूख अब्दुल्ला बोले- हम पाकिस्तान के साथ चले जाते, लेकिन
वहीं जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला ने इस अवसर पर कहा '1947 में हमारे पास मौका था कि हम पाकिस्तान के साथ चले जाते, लेकिन मेरे वालिद और अन्य लोगों ने यही सोचा था कि दो राष्ट्र का सिद्धांत हमारे लिए ठीक नहीं है। यहीं कारण था कि हम यह देश को छोड़कर नहीं गए' फारूक अब्दुल्ला ने फिर दोहराया कि मौजूदा केन्द्र सरकार देश को जिस तरह से देखना चाहती है, उसे वह कभी स्वीकार नहीं करने वाले हैं।
अत्याचारी आते हैं और अत्याचार करते हैं, राष्ट्र जीवित रहते हैं
मालूम हो कि कश्मीर में 5 अगस्त 209 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से ही भाजपा की विरोधी पार्टियां इसका विरोध कर रही हैं। अब्दुल्ला ने कहा कि हिंदू, मुस्लिम, सिख या ईसाई अलग नहीं हैं क्योंकि वे सभी इंसान हैं और इस तरह "हमने (महात्मा) गांधी का भारत, (जवाहरलाल) नेहरू का भारत, एक ऐसा भारत जो सभी का है।" इस सरकार में आने तक मुझे यही महसूस हुआ। वे सोचते हैं कि केवल एक भारतीय ही भारतीय हो सकता है और बाकी सभी जो भारतीय नहीं हो सकते, वे दूसरे दर्जे के नागरिक हैं। यह मैं अपने मरने के दिन तक कभी स्वीकार नहीं करने वाला।" भाषा पर पंथ पर आज हमें धर्म पर, विभाजित किया जा रहा है। नेशनल कांफ्रेंस के नेता ने कहा कि अत्याचारी आते हैं और अत्याचार करते हैं, राष्ट्र जीवित रहते हैं और मुझे विश्वास है कि उनका राष्ट्र बचेगा, ये डिवाइडर जाएंगे।