जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल जगमोहन का निधन, चरमपंथ को लेकर अपनाया था सख़्त रवैया
90 के दशक में जगमोहन को राज्यपाल बनाने के विरोध में तत्कालीन मुख्यमंत्री फ़ारूख़ अब्दुल्ला ने इस्तीफ़ा दे दिया था जिसके बाद वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू हो गया.
अविभाजित जम्मू कश्मीर के गवर्नर रहे जगमोहन मलहोत्रा का सोमवार रात निधन हो गया. उनके देहांत की सूचना उनके परिवार ने उनके ही ट्विटर हैंडल पर दी है.
https://twitter.com/PadmaVibhushanJ/status/1389313808183676930
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन को देश के लिए एक बड़ी क्षति बताते हुए लिखा है कि "वो एक बेहतरीन प्रशासक और प्रख्यात विद्वान थे,उन्होंने सदा भारत की बेहतरी के लिए काम किया. उनके मंत्रित्व के कार्यकाल में नई नीतियाँ बनाई गईं."
https://twitter.com/narendramodi/status/1389405620554526720
1927 में अविभाजित भारत के हाफ़िज़ाबाद (फिलहाल पाकिस्तान में है) में जन्मे जगमोहन दिल्ली के एलजी रह चुके हैं. जगमोहन नाम से जाने जाने वाले जगमोहन मलहोत्रा को आपातकाल के दौरान उन्हें राजधानी के सौंदर्यीकरण का काम सौंपा गया था.
वो कुछ वक्त के लिए गोवा, दमन ओर दीव के भी राज्यपाल रहे.
बाद में 1984 से लेकर 1989 तक अविभाजित जम्मू कश्मीर राज्य के राज्यपाल रहे थे. 1990 में भी कुछ महीनों के लिए वो जम्मू कश्मीर के राज्यपाल रहे थे.
1990 में उन्हें राज्यसभा के लिए नामांकित किया गया. 1996, 1998 और 1999 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने दिल्ली सीट से बीजेपी के नेता के तौर पर चुनाव लड़ा और जीते.
अपने राजनीतिक करियर के दौरान वो 1999 अक्तूबर में शहरी विकास मंत्री, 1999 नवंबर में पर्यटन मंत्री और 2001 में पर्यटन और संस्कृति मंत्री रहे.
उन्हें 1991 में पद्मश्री, 1977 में पद्म भूषण और 2016 में पद्म विभूषण सम्मान से नवाज़ा गया था.
याद किया जाता है जम्मू कश्मीर के लिए उनका सख़्त रवैया
जगमोहन जब दूसरी बार जम्मू कश्मीर के गवर्नर बने, तब वहां चरमपंथ बढ़ रहा था घाटी से कश्मीरी पंडितों का पलायन शुरू हो चुका था.
उस दौर में जगमोहन ने राज्य को मिले विशेष दर्जे का विरोध किया था और चरमपंथियों और अलगावगादियों के ख़िलाफ़ कड़े कदम उठाने के बारे में कहा था.
गवर्नर के पद रहते हुए उनके सामने मुश्किल 1989 में आई जब तत्कालीन गृह मंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद की बेटी को अग़वा कर लिया गया. केंद्र सरकार ने तब कड़ा रुख़ अपनाने का फ़ैसला किया और जगमोहन को प्रदेश का राज्यपाल बनाया.
राज्य के मुख्यमंत्री फ़ारुख़ अब्दुल्ला ने उनकी नियुक्ति का विरोध किया और इस्तीफ़ा दे दिया. इसके बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया.
इधर मुफ़्ती मोहम्मद सईद की बेटी के अगवा होने के बाद सुरक्षाबलों में कड़ी कार्रवाई शुरू कर दी थी और वो घर घर तलाशी लेने लगे और लोगों से पूछताछ करने लगे. नागरिक सुरक्षाबलों का विरोध करने के लिए बड़ी संख्या में सड़कों पर उतरने लगे और कर्फ्यू लगा दिया गया.
एक मार्च के दौरान गवाकदल ब्रिज पर बड़ी संख्या में एकत्र लोगों पर सुरक्षाबलों ने फायरिंग की. वॉशिंगटन पोस्ट के अनुसार इस घटना में कम से कम 45 लोगों की मौत हुई. इस घटना की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निंदा हुई और नियुक्ति के पांच महीने बाद जगमोहन को इस्तीफ़ा सौंपना पड़ा था.
साल 2019 में जब बीजेपी सरकार ने जम्मू कश्मीर को विषेश दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाने की फ़ैसला किया उस वक्त अमित शाह ने 370 के हटाने के फायदों के बारे में बताने के लिए पार्टी के राष्ट्रव्यापी संपर्क अभियान के तहत जगमोहन से मुलाक़ात की थी.
https://twitter.com/AmitShah/status/1168852766443393027
अनुच्छेद 370 को जगमोहन विभाजनकारी मानते थे. उनका कहना था कि जब पूरे देश के मुसलमान बिना इस अनुच्छेद के रह सकते हैं तो जम्मू कश्मीर में ही विशेष दर्जा क्यों.
उनका कहना था कि ये ग़रीबों के हित में नहीं है और निहित स्वार्थ वाले तत्व इसका इस्तेमाल करते हैं.
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