महाराष्ट्र सरकार: भाजपा-अजित क्या जुटा पाएंगे बहुमत का जादुई आकंड़ा
महाराष्ट्र फडणवीज सरकार गठन: भाजपा-अजित क्या जुटा पाएंगे बहुमत का जादुई आकंड़ा
बेंगलुरु। महाराष्ट्र में रातोंरात सत्ता के सारे समीकरण बदलते हुए भारतीय जनता पार्टी ने एनसीपी के साथ मिलकर सरकार का गठन कर लिया है। शनिवार सुबह देवेंद्र फडणवीस ने सीएम पद और एनसीपी नेता अजीत पवार ने डिप्टी सीएम पद की शपथ लेकर सबको अचंभित कर दिया। जबकि इससे पहले शुक्रवार शाम को ही एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार ने बयान दिया था कि सरकार गठन को लेकर तीनों दलों के बीच सहमति बन गई है और उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के अगले मुख्यमंत्री होंगे। लेकिन अब यह सवाल उठता है कि अजीत पवार के सहयोग से भाजपा ने महाराष्ट्र में सरकार तो बना ली लेकिन क्या भाजपा और एनसीपी नेता अजित पवार बहुमत साबित कर पाएंगे। अब दोनों के सामने विधानसभा में बहुमत साबित करने की सबसे बड़ी चुनौती है।
मुख्मंत्री पद की शपथ लेने के बाद महाराष्ट्र के दोबारा बने सीमएम फडणवीस ने कहा, 'मैं एनसीपी नेता अजीत पवार का आभार व्यक्त करता हूं। उन्होंने महाराष्ट्र में एक स्थायी सरकार देने का फैसला लिया और बीजेपी के साथ आए। कुछ दूसरे नेता भी हमारे साथ हैं और हमने सरकार बनाने का दावा पेश किया। भाजपा और एनसीपी नेता अजीत पवार ने मिलकर सरकार तो बना ली है लेकिन राजनीतिक समीकरणों को उलझा दिया है। महाराष्ट्र की नवनियुक्त सरकार को 30 नवंबर तक बहुमत साबित करना है।
शरद पवार ने इसे बताया अजीत का व्यक्तिगत फैसला
बता दें कि अजीत पवार के बागी होने के बाद भाजपा सरकार में शामिल होने पर शरद पवार ने कहा, 'ये फैसला पार्टी का नहीं है। यह अजीत पवार का निजी फैसला है। मैं साफ करना चाहता हूं कि हम इस फैसले का समर्थन नहीं करते हैं।' बीजेपी को समर्थन अजित पवार का निजी फैसला है।
इतना ही नहीं अनाचक हुई इस उलटफेर की स्थिति को संभालते हुए शरद पवार ने अपनी ताकत महाराष्ट्र की राजनीति में दिखा दी है। शनिवार शाम मुंबई के वाईबी चव्हाण सेंटर में एनसीपी एक बैठक की। जिसमें एनसीपी प्रमुख शरद पवार के साथ बैठक में कुल 49 विधायक मौजूद हैं। अजित पवार सहित एनसीपी के मात्र 4 विधायक बैठक के लिए नहीं आए थे। सभी विधायकों को मुंबई के एक होटल में रखा जाएगा।
पवार की बैठक में मौजूद थे 54 में से 49 एनसीपी विधायक
एनसीपी के कुल 54 विधायकों ने चुनाव में जीत दर्ज करवायी थी। वहीं अजीत पवार पर पार्टी ने अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए विधायक दल के नेता के पद से हटा दिया गया है। इसके साथ ही दिलीप वलसे पाटील को पार्टी के विधायक दल का नेता चुना गया है।वहीं दूसरी ओर शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने 23 नवंबर को देवेंद्र फडणवीस को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने के महाराष्ट्र के राज्यपाल के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक संयुक्त याचिका दायर की है। तीनों पार्टियों ने मामले की तत्काल सुनवाई की मांग की है।
देखना ये है कि अब कितने विधायक देंगे अजीत का साथ
गौरतलब है कि महाराष्ट्र विधानसभा 2019 के लिए 21 अक्तबूर को चुनाव हुए। जिनका परिणाम 24 अक्तूबर को फैसला आया। इसमें भाजपा 105, शिवसेना 56, कांग्रेस 44 और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को 54 सीटों पर जीत हासिल की। इसके अलावा बहुजन विकास अघाड़ी के खाते में तीन सीटें गई हैं।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लमिन, प्रहर जनशक्ति पार्टी और समाजवादी पार्टी को दो-दो सीटों पर जीत हासिल हुई। वहीं राज्यभर से 13 निर्दलीय उम्मीदवारों को चुना गया है। अब यह जब शरद पवार की बैठक में एनसीपी के 54 में से 49 विधायक मौजूद होने का एनसीपी दावा कर रही हैं तो अब आने वाले दिनों में यक देखना और रुचिकर होगा कि एनसीपी के कितने विधायक पार्टी से अलग होकर अजित के साथ जाएंगे।
भाजपा को बहुमत साबित करने में क्या होगी परेशानी
महाराष्ट्र विधानसभा की कुल 288 सीटें हैं। महाराष्ट्र की भाजपा की नवनियुक्त सरकार को 30 नवंबर तक बहुमत साबित करना हैं । जिसके लिए आगामी सदन में बहुमत साबित करने के लिए 145 का जादुई आंकड़ा चाहिए।
भाजपा के पास 105 और एनसीपी के 54 विधायक हैं यदि दोनों पार्टियों के आंकड़े को मिला दिया जाए तो यह 159 होता है जो बहुमत से ज्यादा है। लेकिन एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार इस सरकार के गठन को गलत बता चुके हैं और एनसीपी का समर्थन देने से इंकार कर चुके है तो ऐसे में भाजपा को बहुमत साबित करने में परेशानी हो सकती है।
ऐसी स्थिति में बहुमत करने में नहीं होगी मुश्किल
इस सरकार के गठन के बाद एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने साफ कर दिया हैं भाजपा के साथ जाना अजित का व्यक्तिगत निर्णय है। ऐसे में माना जा रहा है कि भाजपा को एनसीपी के सभी 54 विधायकों का समर्थन नहीं मिलने वाला है।
जबकि महाराष्ट्र में भाजपा का सहयोग करने वाले अजित पवार का दावा किया है कि उनके पास एनसीपी के आधे से ज्यादा विधायकों का समर्थन है। वहीं भाजपा दावा किया कि उसे 13 निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल है। अगर यह सच हैं तो बहुमत साबित करने कोई मुश्किल नही होगी।
अजीत को हर हाल में चाहिए 36 विधायकों का साथ
दरअसल अजीत पवार ने एनसीपी से बगावत करके भाजपा का सरकार बनाने में सहयोग किया है। ऐसे में दल बदल कानून लागू होता है। दल बदल कानून के प्रावधान के अंतर्गत अलग गुट को मान्यता हासिल करने के लिए दो तिहाई विधायकों के समर्थन की आवश्यकता होती है।
इस तरह अजित पवार की चुनौती 36 विधायकों का समर्थन हासिल करना है। यदि वह 36 या इससे ज्यादा विधायकों का समर्थन हासिल कर लेते हैं तो उन्हें नई पार्टी बनाने में कोई दिक्कत नहीं होगी। मगर ऐसा न होने की परिस्थिति में बागी विधायकों की विधानसभा सदस्यता खत्म हो सकती है।
क्या है दलबदल कानून
दरअसल,
'आया
राम
गया
राम'
का
यह
मुहावरा
1967
में
तब
बेहद
चर्चा
में
आया
जब
हरियाणा
के
एक
विधायक
गया
लाल
एक
ही
दिन
में
तीन
अलग-अलग
पार्टियों
में
शामिल
हुए।
ऐसे
में
दल-बदल
कानून
इसी
कारण
से
लाया
गया
ताकि
राजनीतिक
अस्थिरता
को
रोका
जा
सके
और
भारतीय
राजनीति
की
गरिमा
बरकरार
रहे।
1985
में
दलबदल
कानून
को
10वीं
अनुसूची
में
शामिल
किया
गया।
इस
कानून
के
तहत
यदि
कोई
विधायक
जिस
पार्टी
के
टिकट
पर
चुना
जाता
है,
उस
पार्टी
को
स्वेच्छा
से
छोड़ता
है
या
फिर
अपनी
पार्टी
के
इच्छा
के
विपरीत
जाकर
वोट
करता
है
तो
उसे
अयोग्य
करार
दिया
जाएगा।
यदि
पार्टी
नेतृत्व
15
दिनों
के
भीतर
वोट
या
अवज्ञा
को
रद्द
कर
देता
है
तो
विधायक
को
अयोग्य
करार
नहीं
दिया
जाता
है।
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