छत्तीसगढ़ में छोटे-मोटे वन उत्पाद जमा कर 2,500 करोड़ रुपये कमाएंगे वनवासी
रायपुर- वन संरक्षण के क्षेत्र में आज छत्तीसगढ़ पूरे देश का अगुआ राज्य बन चुका है। यही वजह है कि जब कोविड-19 के चलते जारी लॉकडाउन की वजह से समूचे देश में वन-आधारित आर्थिक गतिविधियां ठप हैं, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अगुवाई में छत्तीसगढ़ ने इसी समय में कई सारी कामयाबियां हासिल की हैं। इस दौरान प्रदेश में वन उत्पाद जमा करने में सबसे ज्यादा भागीदारी देखने को मिली है। इसका फायदा ये हुआ है कि इसकी वजह से वनवासियों को 2,500 करोड़ रुपये की आमदनी होने की उम्मीद है।
TRIFED से जो आंकड़े मिले हैं, उसके मुताबिक राज्य में अब तक 1 लाख क्विंटल वन उत्पाद संग्रह किया गया है, जिसके लिए जमा करने वालों को करीब 30 करोड़ 20 लाख रुपये दिए गए हैं। ऐसे वक्त में जब कोरोना वायरस महामारी ने पूरी दुनिया की अर्थव्यस्था को चौपट कर दिया है, उसी समय में जनजातीयों द्वारा जमा किए गए वन उत्पाद के चलते न सिर्फ जनजातीयों की आजीविका अच्छे से चल पा रही है, बल्कि छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था को भी नई धार मिल रही है। लॉकडाउन में फैक्ट्रियां के बंद होने से देश और दुनिया में रोजगार की समस्या गहरा गयी है, लेकिन, छत्तीसगढ़ में इस संकट काल में भी वनवासियों को वन उत्पाद और वन-औषधि संग्रह करने में रोजगार मिल रहा है, जिसके चलते प्रदेश में आत्मनिर्भरता तो बढ़ ही रही है, अर्थव्यवस्था के पहिये भी रफ्तार पकड़ रहे हैं। छत्तीसगढ़ सरकार की नयी आर्थिक रणनीति वनों के जरिए इस बड़ी आबादी के जीवन में बड़ा बदलाव ला रही है। राज्य में हर साल 15 लाख मानक बोरियां तेंदूपत्ता संग्रह की जाती है। इससे 12 लाख 65 हजार परिवारों को रोजगार मिल रहा है। राज्य सरकार द्वारा तेंदूपत्ता का मूल्य बढ़ाकर अब 4,000 रुपये प्रति मानक बोरी कर दी गई है, जिससे उन्हें 649 करोड़ रुपये का सीधा फायदा मिल रहा है।
छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदे जाने वाले वन उत्पादों की संख्या 7 से बढ़ाकर अब 25 कर दी है। योजना के दायरे में लाए गए वन उत्पादों का कुल 930 करोड़ रुपये का व्यापार प्रदेश के अंदर होता है। वन उत्पादों की खरीदी 866 हाट-बाजारों के माध्यम से की जा रही है। प्रदेश में काष्ठ कला विकास, लाख चूड़ी निर्माण, दोना पत्तल निर्माण, औषधि प्रसंस्करण, शहद प्रसंस्करण, बेल मेटल, टेराकोटा हस्तशिल्प कार्य आदि से 10 लाख मानव दिवस रोजगार का सृजन हो रहा है। वन विकास निगम के जरिए बैंम्बू ट्री गार्ड, बांस फर्नीचर निर्माण, वन-औषधि बोर्ड के जरिए औषधीय पौधों का रोपण आदि से करीब 14 हजार युवकों को रोजगार दिया जा रहा है। इसी तरह सीएफटीआरआई मैसूर की सहायता से महुआ आधारित एनर्जी बार, चॉकलेट, आचार, सैनिटाइजर, आंवला आधारित डिहाइड्रेटेड प्रोड्क्ट्स, इमली कैंडी, जामुन जूस, बेल शरबत, बेल मुरब्बा, चिरौंजी और काजू पैकेट्स के उत्पादन की योजना बनाई जा रही है। इससे 5 हजार से ज्यादा परिवारों को रोजगार मिलेगा।
छत्तीसगढ़ में छोटे-मोटे वन उत्पादों को जमा करने से वनवासियों की आय में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। जशपुर और सरगुजा जिलों में चाय बागान से लाभार्थियों को सीधे फायदा मिल रहा है। कोविड-19 के संकट काल में 50 लाख मास्क की सिलाई से एक हजार महिलाओं को रोजगार मिला है। चालू वर्ष में लगभग 12 हजार महिलाओं को इमली के प्राथमिक प्रसंस्करण से 3 करोड़ 23 लाख रुपये की अतिरिक्त आमदनी हुई है। वनवासियों की आय बढ़ाने के मकसद से वर्ष 2019 में 10 हजार 497 वनवासियों की स्वयं की भूमि पर 18 लाख 56 हजार फलदार और लाभकारी तरह के पौधे रोपे गए। वर्ष 2020 में वनवासियों की स्वयं की भूमि पर 70 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य है। लाख उत्पादन को बढ़ावा देने के प्रयासों के तहत 164 उत्पादन क्षेत्रों में 36 हजार मुख्य किसानों का चयन किया गया है। लगभग 800 लाभार्थियों द्वारा हर वर्ष लगभग 12 हजार क्विंटल वर्मी कंपोस्ट का उत्पादन किया जा रहा है।
इसके अलावा वन आधारित अन्य गतिविधियों से भी वन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं। राज्य में पूरे साल भूजल संरक्षण, खराब वनों का सुधार, फसल कटाई आदि गतिविधियों से 30 लाख मानव दिवस का रोजगार पैदा हो रहा है। वन रोपण, नदी तट रोपण आदि से 20 लाख मानव दिवस रोजगार पैदा हो रहे हैं। इसी तरह कैंपा के तहत नरवा विकास कार्यक्रम से करीब 50 लाख मानव दिवस रोजगार उपलब्ध है। आवर्ती चरई योजना, जैविक खाद उत्पादन, सीड बॉल के निर्माण आदि से 7 हजार से ज्यादा जनजातीय युवाओं को रोजगार मिला है।