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ठाकरे परिवार से पहली बार बन रहा है सीएम, असली वारिस समझे जाने वाले राज ठाकरे का क्या है रुख

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नई दिल्ली- शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे ने 1966 में पार्टी की नींव रखी थी और उनकी राजनीतिक विरासत को उन्हीं के ढर्रे पर शुरू से उनके भतीजे राज ठाकरे ने ही सजाया-संवारा था। 2000 के दशक तक शिवसैनिक उनमें ही बाल ठाकरे का अक्स देखते रहे। क्योंकि, उनका हाव-भाव, उनकी चाल-ढाल और आक्रामक राजनीति करने का तरीका बिल्कुल उनके चाचा पर ही गया था। पार्टी कार्यकर्ताओं ने भी मान लिया था कि शिवसेना प्रमुख अपनी सियासी विरासत भतीजे को ही देकर जाने वाले हैं। लेकिन, ऐसा हो नहीं पाया। आज की तारीख में दोनों भाई शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और एमएनएस प्रमुख कट्टर राजनीतिक विरोधी हैं। वह हाल के सियासी घमासान पर भी चुप रहे हैं। ऐसे में चर्चा इस बात की हो रही है कि उद्धव की ताजपोशी को लेकर उनका रुख क्या है और क्या वे शिवाजी पार्क में गुरुवार को ठाकरे परिवार के लिए होने वाले ऐतिहासिक कार्यक्रम की गवाह बनेंगे।

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ठाकरे परिवार का पहला सदस्य बन रहा है मुख्यमंत्री

ठाकरे परिवार का पहला सदस्य बन रहा है मुख्यमंत्री

उद्धव ठाकरे शायद जब राजनीति का ककहरा ही सीख रहे थे, तब राज ठाकरे अपने चाचा और शिवसेना प्रमुख बालासाहेब से राजनीति की तमाम कलाबाजियां सीख चुके थे। राजनीति में उनकी आक्रामक छवि देखकर लोग आमतौर पर उन्हें ही बालासाहेब का असली वारिस समझते रहे। लेकिन, सियासी परिवारों में अक्सर जो देखने को मिलता है,वह मातोश्री में भी देखने को मिला। बाल ठाकरे की सियासी विरासत उनके बेटे उद्धव ठाकरे को मिली और राज ठाकरे को शिवसेना एवं मातोश्री से बाहर अपना राजनीतिक भविष्य तलाशना पड़ा। आज समय का पहिया पूरी तरह से घूम चुका है। उद्धव ठाकरे परिवार के पहले सदस्य हैं, जो मातोश्री की रिमोट कंट्रोल वाली संस्कृति से काम करने के बजाय खुद ही मुख्यमंत्री बनने के लिए तैयार हैं। जबकि, मातोश्री से निकलने के बाद राज ठाकरे राजनीतिक जमीन नहीं तैयार कर पाए हैं, जिनकी दीक्षा उन्हें उनके चाचा देकर गए थे।

सियासी उठापटक पर चुप्पी साधे रहे

सियासी उठापटक पर चुप्पी साधे रहे

कभी महाराष्ट्र की सियासत में तूफान खड़ा करने के लिए जाने जाते रहे एमएनएस प्रमुख पिछले महीने भर से चली राजनीतिक उठापटक से पूरी तरह गायब ही रहे हैं। यहां तक कि जब मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले से साफ हो गया कि उनके चचेरे भाई राज्य के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं, लेकिन फिर भी राज ठाकरे ने चुप्पी साधे रहने में ही भलाई समझी है। न कहीं पर उनका कोई बयान आया है और न ही उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल पर इस संबंध में कुछ लिखा ही है। जबकि, संविधान दिवस पर उन्होंने जरूर ट्वीट किए थे। ऐसे में यह पता नहीं चल पा रहा है कि राज्य में ठाकरे परिवार के पक्ष में बने सियासी समीकरण को लेकर उनका रुख क्या है ? क्या उन्हें भाई को सीएम बनता देख खुशी हो रही है या उद्धव उन्हें सिर्फ राजनीतिक विरोधी ही नजर आते हैं?

आदित्य ठाकरे पर नरम रहा है रुख

आदित्य ठाकरे पर नरम रहा है रुख

विधानसभा चुनाव अभियान के दौरान राज ठाकरे ने उद्धव की पार्टी पर हमला बोलने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा था। उन्होंने शिवसेना की कार्य संस्कृति पर भी जमकर प्रहार किए थे। लेकिन, जब बारी मुंबई की वर्ली विधानसभा सीट की आई तो राज ठाकरे ने वहां एमएनएस का कोई उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला किया। यह इसलिए हुआ, क्योंकि इस सीट पर ठाकरे परिवार के पहले सदस्य आदित्य ठाकरे चुनावी किस्मत आजमाने उतरे थे। यानि,जब बात परिवार की आई तो उद्धव ने राजनीति को दूर करने में देरी नहीं की।

उद्धव की ताजपोशी में आने की है उम्मीद

उद्धव की ताजपोशी में आने की है उम्मीद

राज और उद्धव ठाकरे के बीच काफी राजनीतिक मतभेद रहे हैं, लेकिन ऐसे कई मौके आए हैं जब दोनों सियासी मतभेदों को भुलाकर एक साथ भी आए हैं। पिछले अगस्त महीने में ही जब प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग ऐक्ट के तहत प्रवर्तन निदेशालय ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना प्रमुख को पूछताछ के लिए अपने मुंबई स्थित दफ्तर में बुलाया था, तब उद्धव खुलकर उनके बचाव में उतर आए थे और अपने भाई का समर्थन किया था। बुधवार को उद्धव ठाकरे शिवाजी पार्क में शपथग्रहण करने जा रहे हैं और जाहिर है कि इसमें आने का निमंत्रण उनकी ओर से राज ठाकरे को भी भेजा जा रहा है। इसलिए, माना जा रहा है कि सभी राजनीतिक मतभेदों को दूर रखकर राज ठाकरे परिवार के इस ऐतिहासिक मौके का गवाह जरूर बनना चाहेंगे।

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English summary
Raj Thackeray is still silent on the decision of the first member of the family to be made the CM, it is believed that he will definitely arrive at the swearing-in ceremony.
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