दिग्गज हस्तियां... जिन्होंने साल 2016 में दुनिया को कहा अलविदा
साल 2016 जहां कई मायनों में खास रहा, वहीं हमारे बीच की कई बड़ी हस्तियों को भी हमसे दूर ले गया। राजनीति, सिनेमा और साहित्य से जुड़े इन लोगों का जाना साल 2016 का सबसे दुखद पल रहा।
नई दिल्ली। कुछ ही दिनों बाद बीते हुए लम्हों में शामिल होने वाला साल 2016 अपने साथ कई कड़वी यादें भी छोड़ जाएगा। इस साल कई ऐसी हस्तियां हमारे बीच से चली गईं, जिनका चेहरा सामने आते ही यादों के कई पन्ने खुद-ब-खुद पलटने लगते हैं। इन हस्तियों का उनसे जुड़ी दुनिया में एक खास मुकाम था। साल 2017 के स्वागत के बीच आइए नजर डालते हैं ऐसे चेहरों पर, जो अब केवल यादों के आइने में ही दिखाई देंगे।
प्रत्युषा बनर्जी (आनंदी)
छोटे परदे पर 'बालिका वधु' में आनंदी के नाम से मशहूर हुईं प्रत्युषा बनर्जी हमें इस साल छोड़कर चली गईं। उनका शव करीब 8 महीने पहले अप्रैल में मुंबई के गोरेगांव में उनके ही फ्लैट में पंखे से लटका मिला था।
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पोर्स्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक प्रत्युषा की मौत दम घुटने से हुई थी। उनके करीबी लोगों का कहना था कि काम और आर्थिक बदहाली से वो परेशान थीं लेकिन वो इतनी कमजोर नहीं थीं कि आत्महत्या कर लें। इस मामले में प्रत्युषा के प्रेमी राहुल राज सिंह पर आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप है। राहुल अभी जमानत पर बाहर है और उसका दावा है कि प्रत्युषा के माता-पिता ने उस पर झूठे आरोप लगाए हैं।
मशहूर कॉमेडियन एक्टर रज्जाक खान
पतले-दुबले शरीर के बावजूद अपनी कॉमेडी से बॉलीवुड में खास जगह बनाने वाले मशहूर कॉमेडियन एक्टर रज्जाक खान का इसी साल 1 जून को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।
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रज्जाक खान ने मोहरा, बाजीगर, क्योंकि मैं झूठ नहीं बोलता, हंगामा, हैलो ब्रदर और हेरा फेरी जैसी यादगार फिल्में की। रज्जाक ने 100 से भी ज्यादा फिल्मों में हास्य भूमिकाएं निभाईं। इन फिल्मों में रज्जाक ने अपने किरदार से लोगों को खूब हंसाया।
तमिलनाडु की सीएम जयललिता
लंबी बीमारी के बाद बीते 5 दिसंबर को तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता जिंदगी की जंग हार गईं। अम्मा के नाम से जानी जाने वाली जयललिता के निधन की खबर के सदमे से उनके कई समर्थकों की मौत हुई। जयललिता ने मुख्यमंत्री रहते हुए कुछ ऐसे दमदार काम किए, जिनकी वजह से उनके समर्थक ही क्या, विपक्षी पार्टियां भी उनकी तारीफ करती हैं। यही वजह थी कि उनके समर्थक उनके लिए जान छिड़कते थे जिस तरह से जयललिता की अंतिम यात्रा में जन सैलाब उमड़ा, उससे साफ था कि अम्मा की जनकल्याणकारी योजनाओं ने लोगों के दैनिक जीवन को काफी हद तक बदलकर रख दिया था।
राजेश विवेक
वीराना, जोशीले, बैंडिट क्वीन, लगान, बंटी और बबली व स्वदेश जैसी यादगार फिल्मों में काम करने वाले राजेश विवेक का 14 जनवरी को निधन हो गया। इन फिल्मों मे राजेश ने बेहतरीन अभिनय किया था। राजेश को महाभारत सीरियल में वेदव्यास की भूमिका के लिए भी याद किया जाता है। वीराना और जोशीले में उन्होंने नेगेटिव रोल किया जबकि मुझसे शादी करोगी व बंटी और बबली जैसी फिल्मों में उनकी कॉमेडी ने काफी गुदगुदाया।
निदा फाजली
इसी साल 8 फरवरी को हिंदी और उर्दू के मशहूर शायर निदा फाजली का निधन हो गया। 'कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता' जैसी मशहूर गजल लिखने वाले निदा फाजली का पूरा नाम मुकतिदा हसन निदा फाजली था। दिल्ली में जन्मे फाजली के माता-पिता विभाजन के दौरान पाकिस्तान चले गए थे, लेकिन फाजली ने भारत में ही रहे। उन्हें साहित्य अकादमी और पद्म श्री पुरस्कार से भी नवाजा गया था। उनकी मशहूर गजलें 'कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता', 'होश वालों को खबर क्या' (सरफरोश), 'तू इस तरह से मेरी जिंदगी में' (आप तो ऐसे ना थे) और 'आ भी जा, आ भी जा' (सुर) आदि रहीं।
फिदेल कास्त्रो
क्यूबा के पूर्व राष्ट्रपति और क्रांतिकारी नेता फिदेल कास्त्रो का निधन भी इसी साल 26 नवंबर को हुआ। कास्त्रो क्यूबा के 17वें राष्ट्रपति रह चुके थे। वर्ष 2008 में कास्त्रो ने राजनीति से संन्यास ले लिया था लेकिन वह राजनीति में बराबर सलाहकार की भूमिका में रहे। कास्त्रो 17 साल तक क्यूबा के प्रधानमंत्री रहे और फिर 32 वर्ष तक उन्होंने बतौर राष्ट्रपति देश पर राज किया। वर्ष 1956 में कास्त्रो ने क्यूबा क्रांति की शुरुआत की थी। वर्ष 1959 में उन्होंने क्यूबा के तानाशाह बटिस्टा का तख्तापलट कर दिया। इसके बाद तो कास्त्रो नेशनल हीरो बन गए।
अपने पूरे जीवन काल में उन्होंने जिसकी नाक में सबसे ज्यादा दम किया वो अमेरिका ही था। इसके चलते अमेरिका ने फिदेल कास्त्रो को मारने के लिए 638 तरीकों का इस्तेमाल किया, पर अमेरिका इसमें एक बार भी सफल नहीं हो पाया।
साहित्यकार महाश्वेता देवी
जानी मानी साहित्यकार और सामाजिक कार्यकर्ता महाश्वेता देवी भी इस साल हमें छोड़कर चली गईं। उनका 28 जुलाई को निधन हुआ था। महाश्वेता देवी को लंबे समय से गुर्दे और रक्त संक्रमण की समस्या थी।
महाश्वेता देवी को ज्ञानपीठ, पद्म विभूषण, साहित्य अकादमी और मैग्सेसे जैसे बड़े सम्मानों से नवाजा गया था। उन्होंने लंबे समय तक आदिवासियों के बीच काम किया।
उनके साहित्य का भी काफी हिस्सा आदिवासियों के जीवन पर आधारित था। महाश्वेता देवी ने हजार चौरासी की मां, ब्रेस्ट स्टोरीज और तीन कोरिर शाध जैसी चर्चित किताबें लिखीं। उनकी कुछ किताबों पर फिल्में भी बनीं।
जयललिता के राजनीतिक सलाहकार चो रामास्वामी
तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता के करीबी और राजनीतिक सलाहकार रहे चो रामास्वामी का 7 दिसंबर को निधन हो गया। बीजेपी से राज्यसभा में सांसद रह चुके रामास्वामी एक अभिनेता और वरिष्ठ पत्रकार भी थे।
राजनीति की बेहतर समझ रखने वाले रामास्वामी से जयललिता अक्सर सलाह लेती थीं। राजनीतिक विश्लेषक होने के अलावा उनका जीवन थिएटर से जुड़ा रहा। उसके अलावा वह तमिल पत्रिका तुगलक (Thuglak) के भी संपादक थे।
रामास्वामी ऐसे शख्स थे जिनकी तारीफ जयललिता भी करती थीं और उनसे राजनीतिक विचार विमर्श भी करती थीं। एक वक्त जब जयललिता विपक्षियों से परेशान होकर चेन्नई छोड़ना चाहती थीं तो रामास्वामी ने ही उन्हें धैर्य से काम लेने की सलाह दी थी।
एबी वर्धन
इसी साल 2 जनवरी को सीपीआई के दिग्गज नेता एबी वर्धन का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। वर्धन अपने पूरे राजनीतिक सफर में केवल एक ही चुनाव में जीत पाए।
वो 1957 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी थे। उसके बाद वर्धन ने 1967 और 1980 के लोकसभा के चुनावों में भी भाग लिया लेकिन वे जीत नहीं सके। 1996 में वर्धन को सीपीआई का महासचिव बनाया गया।
पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र
प्रख्यात पर्यावरणविद् वयोवृद्ध और गांधीवादी अनुपम मिश्र भी इसी साल 19 दिसंबर को इस दुनिया को अलविदा कह गए। मिश्र गांधी शांति प्रतिष्ठान के ट्रस्टी और राष्ट्रीय गांधी स्मारक निधि के उपाध्यक्ष थे।
'राजस्थान की रजत बूंदें', 'आज भी खरे हैं तालाब' और 'साफ माथे का समाज' उनकी प्रमुख रचनाएं थीं। उन्हीं के प्रयास से सूखाग्रस्त अलवर में जल संरक्षण का काम शुरू हुआ था।
चंडी प्रसाद भट्ट के साथ काम करते हुए उन्होंने उत्तराखंड के चिपको आंदोलन में जंगलों को बचाने के लिये सहयोग किया था। वह जल-संरक्षक राजेन्द्र सिंह की संस्था तरुण भारत संघ के लंबे समय तक अध्यक्ष भी रहे थे।
मुफ्ती मोहम्मद सईद
जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद का निधन इसी साल 7 जनवरी को हुआ और उनके निधन के बाद उनकी बेटी ने मुख्यमंत्री के रूप में कुर्सी संभाली।
मुफ्ती मोहम्मद सईद स्वतंत्र भारत के पहले मुस्लिम गृहमंत्री थे। साल 1989 में इनकी बेटी रूबैया सईद का अपहरण कर लिया गया था। रुबैया के बदले में आतंकवादियों ने अपने पांच साथियों को रिहा कराया था।
साल 2015 में जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव में पीडीपी सबसे बड़ी पार्टी बनी और भाजपा के साथ गठबंधन कर मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री बने।