30 साल बाद जगी न्याय की आस, तिहाड़ में बंद Yasin Malik ने 4 IAF ऑफिसर्स की कर दी थी हत्या
श्रीनगर। जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से 25 जनवरी 1990 की कड़कड़ाती ठंड में एक दिल दहलाने वाली खबर आई थी। खबर ऐसी थी जिसने सर्दी में भी सुरक्षा एजेंसियों के पसीने छुड़ा दिए थे। इंडियन एयरफोर्स (आईएएफ) के 40 जवानों पर जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के मुखिया यासीन मलिक ने हमला किया और चार आईएएफ ऑफिसर्स की हत्या कर दी थी। इस घटना का ट्रायल 30 वर्ष बाद शुरू हुआ है। कश्मीर में जिस समय यह घटना घटी थी, वह ऐसा दौर था जिसमें घाटी में आतंकवाद और चरमपंथ ने सिर उठाना शुरू कर दिया था। आइए आज आपको उसी समय में वापस लेकर चलते हैं और बताते हैं कि उस दिन आखिर हुआ क्या था। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मलिक कोर्ट में पेश होगा।
25 जनवरी को अचानक बरसीं गोलियां
25 जनवरी 1990 को घाटी में खून जमा देने वाली ठंड थी। सुबह 7:30 बजे का वक्त था और कोहरे की चादर में आईएएफ के 40 कर्मी संत नगर क्रॉसिंग पर अपने-अपने वाहनों में सवार होने को तैयार थे। ये सभी कर्मी ऑफिस के लिए निकल रहे थे। अचानक जेकेएलएफ के आतंकियों ने 40 आईएएफ कर्मियों पर हमला कर दिया। कुछ कर्मियों में महिलाएं भी शामिल थीं। घायल महिलाओं में से दो की उसी क्षण मृत्यु हो गई और दो गंभीर रूप से घायल हो गई थीं। उन पर चारों तरफ गोलियों की बौछार हो रही थी। किसी को कुछ समझ नहीं आया कि अचानक क्या हो गया है। अपने साथियों को बचाने के लिए आगे आए स्क्वाड्रन लीडर रवि खन्ना भी इसमें शहीद हो गए थे। रवि खन्ना की उम्र उस समय करीब 37 वर्ष थी। घटनास्थल पर मौजूद लोगों की मानें तो रवि ने कार में आए आतंकियों की तरफ से हो रही गोलियों की बौछार से अपने साथियों को बचाने की पूरी कोशिश की थी।
24 नवंबर 1990 को दायर चार्जशीट
इस केस की जांच में प्रत्यक्षदर्शियों ने यासीन मलिक और दूसरे आतंकियों को पहचाना था। करीब 67 लोगों की गवाही दर्ज हुई थी। कुछ वर्षों बाद बीबीसी को दिए इंटरव्यू में मलिक ने इस बात को कुबूला था कि उसने आईएएफ के सैनिकों की जान ली थी।24 नवंबर 1990 में सीबीआई की तरफ से मामले की चार्जशीट दायर की गई जिसमें कई बातों का जिक्र किया गया था। जहां उस समय सरकारें लगातार मलिक के साथ पर्दे के पीछे वार्ता में शामिल थीं,अलगाववादियों ने केस को जम्मू से श्रीनगर शिफ्ट करने की मुहिम छेड़ दी थी। इस वर्ष 26 अप्रैल को जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट ने केस पर लगे स्टे को हटा दिया था। इसके अलावा मलिक की उस याचिका को भी खारिज कर दिया गया जिसमें उसने ट्रायल को शिफ्ट करने की अपील की थी।
श्रीनगर में टाडा कोर्ट न होने से मुश्किल
सीबीआई की तरफ से गवाहों के बयानों के आधार पर टाडा कोर्ट में मलिक और उसके साथियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई थी।नवंबर 1990 में चार्जशीट दायर होने के बाद से ही इस केस में कोई भी हलचल नहीं हुई थी। 1995 में मलिक के ट्रायल पर जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट की सिंगिल बेंच की ओर से स्टे दिया गया था क्योंकि श्रीनगर में कोई भी टाडा कोर्ट नहीं था। मलिक ने साल 2008 में स्पेशल कोर्ट में एक याचिका दायर की थी जिसमें उसने अमरनाथ यात्रा की वजह से होने वाली सुरक्षा व्यवस्था के चलते केस को श्रीनगर शिफ्ट करने की मांग की थी।
चार आतंकी आज तक फरार
इस केस में मलिक के अलावा उसके साथी बीए सोफी, मोहम्मद रफीक पहलू उर्फ नानाजी, जावेद अहमद मीर और शौकत अहमद बख्शी भी इस केस में आरोपी हैं। तीन आरोपी जिसमें जेकेएलएफ के फाउंडर अमनउल्ला खान भी शामिल था, उनकी मौत हो चुकी है। वहीं चार लोगों को 17 सितंबर 1990 को कोर्ट ने भगोड़ा घोषित कर दिया था। इन लोगों की गिरफ्तारी आज तक नहीं हो सकी है। अमनउल्ला खान इस हमले का मास्टरमाइंड था। इस आतंकी हमले के बाद ही यासीन मलिक अपना प्रभाव जम्मू कश्मीर और घाटी के युवाओं के बीच बढ़ाता गया।