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किसान आंदोलन के दौरान अपनी जान गँवा देने वाले ये किसान

48 वर्षीय मेवा सिंह प्रदर्शन पर एक कविता लिख रहे थे. कुछ लाइन लिखने के बाद उन्होंने अपने दोस्तों से कहा कि वो अपनी कविता कल पूरी करेंगे. उनकी यह कविता हमेशा के लिए अधूरी रह गई.

By अरविंद छाबड़ा
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बीते साल 26 नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर हज़ारों किसान प्रदर्शन कर रहे हैं. इन प्रदर्शनों के दौरान कई लोगों ने जान भी गंवाई है.

पंजाब सरकार के मुताबिक़, आंदोलन के दौरान अब तक 53 लोगों की जान जा चुकी है. इनमें से 20 की जान पंजाब में और 33 की दिल्ली की सीमाओं पर गई है.

किसान कृषि क़ानूनों को रद्द किए जाने की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि ये क़ानून उनकी ज़िंदगियों को बर्बाद कर देंगे जबकि सरकार इन्हें सुधार बता रही है.

जिन कारणों से किसानों की जान गई, उनमें सड़क दुर्घटना से लेकर ठंड तक जैसे कारण शामिल हैं. वहीं कुछ ने ख़ुद अपनी जान ले ली.

यहां हम आपको किसान आंदोलन के दौरान जान गँवाने वाले ऐसे ही लोगों के बारे में बताएंगे.

मेवा सिंह, 48, टिकरी बॉर्डर पर गई जान

सात दिसंबर का दिन था. जगह थी दिल्ली से लगने वाला टिकरी बॉर्डर. 48 वर्षीय मेवा सिंह प्रदर्शन पर एक कविता लिख रहे थे. कुछ लाइन लिखने के बाद उन्होंने अपने दोस्तों से कहा कि वो अपनी कविता कल पूरी करेंगे.

उनके दोस्त जसविंदर सिंह गोरा याद करते हैं, "हम एक ही कमरे में थे और उस रात देर तक बातें कर रहे थे. मेवा सिंह को भूख लगी और वो कुछ खाने के लिए बाहर निकल गए."

वो बताते हैं, "कोई हमें बताने आया कि एक शख़्स बाहर गिर पड़ा है. हम भागकर बाहर गए तो देखा कि मेवा सिंह ज़मीन पर पड़ा था."

उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया. वहां पहुँचने पर डॉक्टरों ने बताया कि उनकी अस्पताल पहुंचने से पहले ही मौत हो चुकी है.

मेवा अपनी कविता भी पूरी नहीं कर सके. वो मोगा ज़िले से आए थे.

किसान आंदोलन के दौरान अपनी जान गँवा देने वाले ये किसान

भाग सिंह, 76, सिंघु बॉर्डर पर गई जान

पंजाब के लुधियाना ज़िले से आए 76 वर्षीय किसान भाग सिंह की 11 दिसंबर को मौत हो गई थी.

उनके बेटे रघुबीर सिंह कहते हैं कि उनके पिता प्रदर्शन स्थल पर बेहद ठंड में रह रहे थे और आख़िरी दिन उन्हें कुछ दर्द हुआ.

वो बताते हैं, उन्हें पहले सोनीपत के अस्पताल ले जाया गया, वहां से उन्हें रोहतक के अस्पताल ले जाया गया. लेकिन वो बच नहीं सके.

भाग सिंह की मौत ने उनके परिवार को हिलाकर रख दिया है, इसके बावजूद उनका परिवार फिर से प्रदर्शन पर जाने के लिए तैयार है.

उनकी बहु कुलविंदर कौर कहती हैं कि जब तक क़ानून रद्द नहीं होते, वो हार नहीं मानेंगे. उन्होंने कहा, "उन्होंने अपने बच्चों के लिए अपनी जान की क़ुर्बानी दे दी, हम अपने बच्चों के लिए अपनी जान कुर्बान करेंगे."

बाबा राम सिंह, 65, ख़ुदकुशी

हरियाणा के करनाल ज़िले से ताल्लुक रखने वाले एक आध्यात्मिक नेता बाबा राम सिंह ने कथित तौर पर ख़ुद को गोली मार ली थी.

कहा गया कि वो किसानों की दुर्दशा को देखकर व्यथित थे. 9 दिसंबर को पहली बार सिंघु बॉर्डर जाने के बाद सिंह ने एक डायरी लिखी थी, जिसे पढ़ने वाले एक ग्रंथी कहते हैं कि आध्यात्मिक नेता ठंड के मौसम में प्रदर्शन स्थल पर बैठे किसानों की परेशानियों को देखकर दुखी थी.

उन्होंने सरकार पर प्रदर्शनकारी किसानों की अनदेखी करने का आरोप लगाया था.

अमरीक सिंह, 75, टिकरी बॉर्डर पर गई जान

गुरदासपुर के रहवासी अमरीक दूसरे प्रदर्शनकारियों के साथ बहादुरगढ़ बस अड्डे के नज़दीक रह रहे थे. 25 दिसंबर को ठंड से उनकी मौत हो गई.

मृतक के बेटे दलजीत सिंह कहते हैं, "वो अपनी तीन साल की पोती के साथ प्रदर्शन पर बैठे थे. हमने सोच रखा था कि जब तक प्रदर्शन ख़त्म नहीं हो जाता तब तक प्रदर्शन स्थल पर ही रहेंगे."

वो कहते हैं, "उस दिन वो उठे नहीं. हम उन्हें डॉक्टर के पास लेकर गए, जहां डॉक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया."

मलकीत कौर, 70, सड़क दुर्घटना में मौत

पंजाब के मनसा ज़िले के एक गांव की रहने वाली मलकीत कौर मज़दूर मुक्ति मोर्चा की एक सदस्य थीं, वो अपने घर लौट रही थीं, तभी फतेहाबाद के नज़दीक एक सड़क दुर्घटना में उनकी मौत हो गई.

मोर्चा के राज्य प्रमुख भगवंत सिंह कहते हैं, "वो कुछ दिनों तक प्रदर्शन में बैठी थीं. 27 दिंसबर की रात हम लंगर वाली जगह के नज़दीक रुके. एक कार उन्हें टक्कर मारकर निकल गई. हमें लगा कि उन्हें सिर्फ चोटें आई होंगी, लेकिन उनकी जान चली गई."

गाँव वालों का कहना है कि मलकीत कौर का परिवार कर्ज़ में डूबा है और उन्होंने सरकार से मदद की अपील की है.

जनक राज, बरनाला, 55, कार में आग लगने से जिंदा जल गए

जनक राज भारतीय किसान यूनियन (उगराहाँ) के एक कार्यकर्ता थे. शनिवार रात बहादुरगढ़- दिल्ली बॉर्डर के नज़दीक वो जिस कार में सो रहे थे, उसमें आग लग गई और वो ज़िंदा जल गए.

वो पेशे से एक मैकेनिक थे. उनके बेटे साहिल 28 नवंबर की उस घटना को याद करते हुए कहते हैं, "उनके बिना सब सूना सूना लगता है, ख़ासकर तब जब उनके घर आने का वक़्त होता था."

वो बताते हैं, "एक मैकेनिक ने प्रदर्शन में शामिल ट्रैक्टरों की बिना पैसे की मरम्मत का वादा किया था. मेरे पिता भी उनकी मदद करने लगे. वो साइकल ठीक करने का काम करते थे, लेकिन उन्हें थोड़ा बहुत ट्रैक्टर मरम्मत करने का काम भी आता था."

भीम सिंह, 36, संगरूर. सिंघु बॉर्डर पर मौत

16 दिसंबर को वो सिंघु बॉर्डर पहुंचे थे, जहां वो फिसलकर एक गढ़े में गिर गए.

एक किसान नेता मनजीत सिंह कहते हैं कि वो अपने सास-ससुर के साथ रह रहे थे.

उन्होंने बताया, "वो शौच के लिए गए थे और वहां वो फिसलकर गिर गए. हमने सरकार से उनके परिवार को मदद देने के लिए कहा है."

यशपाल शर्मा, शिक्षक, 68, बरनाला

यशपाल शर्मा की प्रदर्शन के दौरान एक टोल प्लाज़ा पर दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई थी.

वह एक सेवानिवृत्त शिक्षक थे और एक किसान भी थे. उनकी पत्नी राज रानी कहती हैं कि वो रोज़ की तरह ही वहां गए थे.

आंखों में आंसू लिए राज रानी कहती हैं, "उन्होंने अपनी चाय बनाई. हमने सोचा भी नहीं था कि ये हो जाएगा और वो इस तरह वापस लौटेंगे."

वो बताती हैं, "वो कहा करते थे कि मैं चलते-फिरते ही मरूंगा, बिस्तर पर नहीं. भगवान ने उनकी इच्छा पूरी कर दी. लोग उनकी वजह से मेरी इज़्ज़त किया करते थे. उम्मीद है कि (प्रधानमंत्री) मोदी प्रदर्शनकारियों की सुनेंगे और इस तरह और लोगों की जान नहीं जाएगी."

काहन सिंह, 74, बरनाला, सड़क दुर्घटना

25 नवंबर को वो पंजाब हरियाणा बॉर्डर के खनौरी जाने के लिए अपनी ट्रैक्टर-ट्रॉली को तैयार कर रहे थे. वहां दिल्ली कूच करने से पहले किसान एक प्रदर्शन के लिए इकट्ठा हुए थे.

उनके पोते हरप्रीत सिंह कहते हैं कि वो 25 सालों से प्रदर्शनों में हिस्सा ले रहे थे.

उनके मुताबिक़, "वो ग्राम इकाई के एक खजांची थे. वो अपना ट्रैक्टर खड़ा करके उसके लिए एक वॉटरप्रूफ कवर लेने गए थे. तभी उनके साथ दुर्घटना हो गई. हम उन्हें अस्पताल लेकर गए लेकिन वो बच नहीं सके. सरकार ने हमें पांच लाख रुपए का मुआवज़ा दिया है. इसके साथ हम परिवार के एक सदस्य के लिए नौकरी की भी मांग कर रहे हैं."

बलजिंदर सिंह गिल, 32, लुधियाना, हादसे में मौत

लुधियाना के गांव के रहने वाले बलजिंदर 1 दिसंबर को ट्रैक्टर लेने गए थे. लेकिन वो हादसे का शिकार हो गए और उनकी जान चली गई.

उनकी मां चरनजीत कौर कहती हैं, "मेरा पोता पूछता है कि उसका पिता ट्रैक्टर लेने के बाद वापस क्यों नहीं आया. वो पूछता है कि उसके पिता को चोट कैसे लगी."

तीन साल पहले उनके पिता की मौत हो गई थी. चरनजीत कहती हैं कि उनका परिवार बलजिंदर की कमाई पर ही जीता था. "अब बस मैं और मेरी बहू रह गए हैं. परिवार में अब कोई कमाने वाला नहीं बचा है."

इन मौतों के बावजूद किसानों का हौसला कायम है. वो जान गँवाने वालों के लिए बलिदान, शहादत जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं.

मृतकों को श्रद्धांजलि देने के लिए की गई एक रैली में किसान नेता जोगिंदर सिंह उगराहाँ ने घोषणा की, "हम वचन लेते हैं कि इन बलिदानों को बेकार नहीं जाने देंगे और आख़िरी जीत तक अपना संघर्ष जारी रखेंगे."

उन्होंने कहा कि संघर्ष और बलिदान मांगेगा लेकिन वो इसके लिए तैयार हैं.

क्या इन मौतों ने प्रदर्शनकारी किसानों का मनोबल गिरा दिया है?

इस पर किसान नेता हरिंदर कौर बिंदू ने बीबीसी से कहा, "हम हर दिन औसतन एक किसान को खो रहे हैं. इससे हम दुखी हैं लेकिन निश्चित रूप से हमारा मनोबल कमज़ोर नहीं हुआ है. बल्कि हर मौत के साथ हमारा हौसला और मज़बूत ही होता जा रहा है."

बीबीसी ने पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि "वो किसानों की मौतों से दुखी हैं जो अपने अस्तित्व की लड़ाई में सर्दियों में ठिठुरने के लिए मजबूर हैं और केंद्र की बेरुख़ी भी झेल रहे हैं. अभी तक पंजाब में हमारे 20 किसानों की जान गई है और अन्य 33 ने दिल्ली की सीमाओं पर अपनी जान गंवाई है."

उन्होंने कहा, "ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है और ये सब ख़त्म होना चाहिए. मैं केंद्र सरकार से अपील करता हूं कि वो किसानों की सुध लें और मसले को जल्द से जल्द सुलझाएं. ना तो पंजाब और ना ही देश अब इस संकट की वजह से अपने अन्नदाताओं की जानों का और बलिदान सह पाएगा."

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English summary
Ffarmers who lost their lives during the farmers movement
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