Free Politics: मुफ्त राजनीतिक घोषणाओं का बुखार दिल्ली होते हुए अब झारखंड भी पहुंचा!
बेंगलुरू। एक समय था जब दक्षिण के राज्यों के राजनीतिक दलों खास तौर से द्रमुक और अन्नाद्रमुक द्वारा सत्ता सुख की खातिर चावल आदि बांटने की लोकलुभावन घोषणाएं आम थीं। अब यह बीमारी उत्तरी राज्यों और देखा जाए तो पूरे देश में कमोबेश हो गई है।
सामयिक उदाहरण के लिए दिल्ली की आम आदमी पार्टी का लिया जा सकता है, जो 200 यूनिट मुफ्त बिजली और 20000 लीटर मुफ्त पानी की घोषणाओं के चलते लगातार दूसरी बार सत्ता पर काबिज हो चुकी है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने महिलाओं के लिए डीटीसी की बस यात्रा भी मुफ्त करवा दी थी। अब इस कड़ी में झारखंड का नाम भी जुड़ गया है।
मुफ्त स्कीमों से हुआ दिल्ली का बुरा हाल, राजकोषीय घाटा 55 गुना बढ़ा, 1750 करोड़ के घाटे में डीटीसी!
गौरतलब है वर्ष 2018 में मद्रास हाईकोर्ट ने दक्षिण भारत से शुरू हुई मुफ्त की राजनीति पर गंभीर टिप्पणी की। अच्छी बात यह थी कोर्ट की यह टिप्पणी मद्रास हाईकोर्ट द्वारा की गई थी, जिसमें माननीय कोर्ट ने कहा कि मुफ्तखोरी से लोग आलसी होते जा रहे हैं।
दक्षिण भारत की राजनीति में मुफ्त चावल से शुरू हुए मुफ्त की राजनीति बदलते दौर में मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, मुफ्त शिक्षा, मुफ्त लैपटॉप के बाद अब मुफ्त स्कूटी तक पहुंच चुकी है। दक्षिण भारत में चुनाव जीतने के लिए कमोबेश यह पैटर्न सभी राजनीतिक दलों में आम है। सवाल यह है कि आखिर मुफ्त वस्तुएं या सुविधाएं उपलब्ध कराने का वादा लोकतंत्र की मूल भावना के प्रतिकूल नहीं है क्या?
मुफ्त राजनीतिक घोषणाओं को लेकर मद्रास हाईकोर्ट द्वारा की गई टिप्पणी निश्चित रूप से चेताने वाली है, जो निः संदेह समाज में फैल रही विसंगति की ओर भी इशारा है, क्योंकि कर्म ही पूजा संस्कृति वाले देश में महज सत्ता के लिए राजनीतिक दल चुनावी वादों के रूप में मुफ्त की राजनीति को प्रश्रय देना शुरू किया है।
भारत के दक्षिणी राज्यों से शुरू हुए मुफ्त की राजनीति का शिगूफा अब उत्तर भारत में तेजी से मीठे ज़हर की तरह फैल रहा है। उत्तर प्रदेश में वर्ष 2012 विधानसभा चुनाव में सरकार में आई अखिलेश यादव सरकार ने मुफ्त लैपटॉप का वादा किया था और इसी के दम पर उन्होंने करीब पांच साल तक सत्ता सुख भोगा।
कहते हैं जैसा राजा, वैसा प्रजा, लेकिन राजनीतिक दलों ने 'जैसी प्रजा, वैसा राजा' को तोड़ निकालकर अपनी मुफ्त की राजनीति का सत्ता का आधार मान लिया। यही कारण है कि अब चुनावी वैतरणी पार करने के लिए लोकलुभावन चुनावी घोषणाएं आम हो गईं हैं।
एक समय था जब चुनाव से ठीक पहले आने वाला केन्द्र या राज्य का बजट लोकलुभावन होता था। उस बजट में जनता के लिए लोकलुभावन घोषणाएं की जाती थीं, रियायतें होती थी, कर छूट होती थी पर ऐसा बहुत कम देखने को मिलता था और न ही जनता के आकर्षण का केंद्र ही रह गईं हैं।
अब केंद्र अथवा किसी राज्य का बजट आता है और चला जाता है, लेकिन लोगों की कानों में जूं नहीं रेंगता है, क्योंकि राज्य सरकारों के मुफ्त की घोषणाओं की स्कीमों ने उनकी आदतों को बिगाड़ रखा है।
उल्लेखनीय है दक्षिण के राज्यों को छोड़कर देश के अन्य राज्यों और केन्द्र में मुफ्त की घोषणाओं का चलन नहीं था। चूंकि अभी यह जानना जरूरी है कि छूट और मुफ्त में जमीन और आसमान का अंतर होता है। मुफ्त शिक्षा, मुफ्त स्वास्थ्य और मुफ्त बीमा अगर सबको निः शुल्क उपलब्ध कराई जाती है, तो यह मुफ्त राजनीति का हिस्सा नहीं हैं।
रियायत और छूट एक लोककल्याणी सरकार में मानदंडों में शामिल हैं, जिस पर नागरिक हितों की सुरक्षा का दायित्व होता है। छूट और मुफ्त में अंतर तब शुरू हो जाता है जब यह छूट किसी वर्ग विशेष तक सीमित कर दिया जाता है। मुफ्त भोजन, मुफ्त खाद्यान्न, बिना काम के भत्तों का वितरण महज सत्ता की सीढ़ियां हैं, जो लगातार सामाजिक व्यवस्था पर घातक असर डालती आ रही है।
मुफ्त की राजनीति को सत्ता की सीढ़ी की तरह मानते हैं राजनीतिक दल
महत्वपूर्ण सवाल यह है कि जिन मुफ्त की राजनीति के सहारे एकमुश्त वोट हासिल करके राजनीतिक दल सत्ता के सिंहासन तक पहुंचते हैं, वो सत्ता पर काबिज होने के बाद मुफ्त योजनाओं को लागू करने के लिए फंड कहां से जुटाते हैं? इसका जवाब बेहद आसान और सपाट है, क्योंकि ऐसे मुफ्त के वादों को पूरा करने के लिए सत्ताधारी दल सरकारी खजाने लुटाते हैं। सरकारी खजाना वो होता है, जिसे एक आम जनता प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों के माध्यम भरता है।
मुफ्त घोषणाओं को पूरा करने में सरकारी धन खर्च करते हैं राजनीतिक दल
आसान भाषा में कहें तो सरकारी खजाना करों और शुल्क से एकत्र किया हुआ धन है, जो देश के विकास के योजनाओं पर खर्च होना चाहिए, लेकिन अब सरकारी खजाने को राजनीतिक दल मुफ्त की घोषणाओं को पूरा करने में खर्च कर रहे हैं, जिससे राज्य या देश के आधारभूत और जरूरी कार्यों के लिए पैसा ही नहीं बचता है, क्योंकि एक आम आदमी के करों से प्राप्त राशि के उपयोग को मुफ्त की घोषणाओं में व्यय किया जा रहा है, जो देश को पीछे ले जाने वाला है।
लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा करने के लिए खर्च होने चाहिए सरकारी खजाना
क्योंकि इससे पहले सरकारी खजाने में एकत्र हुए धन को सरकार लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा करने और सेवाओं का विस्तार करने में खर्च करती थी। इनमें सबको समान रूप से शिक्षा का अवसर, उच्च व तकनीकी शिक्षा की पहुंच, साधनहीन योग्य युवाओं को उच्च शिक्षा में सब्सिडी, सबको चिकित्सा सुविधा, पानी बिजली की सुविधा, सस्ता और बेहतर आवागमन, गरीबों को सस्ता अनाज जैसी सुविधाएं शामिल हैं। कभी आपने सोचा है कि स्नातक की परीक्षा के लिए एक आम छात्र से जो फीस लिया जाता है, वह उसके तीन वर्ष की स्नातक के कोर्स का महज 10वां हिस्सा होता है।
सड़कें टूटी हैं उनमें खड्डे हैं तो उनकी मरम्मत भी सरकारी खजाने से होंगी
सड़कें अगर टूटी हैं उनमें खड्डे हैं तो उनकी मरम्मत भी सरकारी खजाने से होंगी। सरकारी अस्पताल में अगर 1 रुपए फीस और मुफ्त दवाईयां मिल रहीं हैं, तो इसलिए क्योंकि सरकार द्वारा सब्सिडाइज्ड हैं। स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय से महरूम इलाकों में यह तभी पहुंच पाएंगे जब सरकारी खजाने में पैसे होंगे, लेकिन मुफ्त की घोषणाओं और ऐसी घोषणा करने वाली राजनीतिक दलों पर मोहित होकर सत्ता में बिठाने वाले वोटर भी त्रासदी के लिए जिम्मेदार हैं और उन्हें सड़क, चिकित्सा और स्कूल जैसे मूलभूत जरूरतों के लिए आवाज उठाने का कोई हक नहीं रह जाता है। यह सर्वविदित सच है कि जब देश में रहने वाले सभी लोग समान रूप से विकास में भागीदार बनेंगे, तभी देश विकास की पथ पर आगे बढ़ेगा।
मुफ्त के लालची वोटर्स देश के विकास में भागीदार नहीं बन सकते
निःसंदेह मुफ्त के लालची वोटर्स अथवा नागरकि देश के विकास में भागीदार नहीं बन सकते हैं, क्योंकि किसी को देश की नहीं, अपने घर की चिंता है, लेकिन यह भूल गए कि उनका घर तभी सुरक्षित रहेगा जब देश मजबूत होगा। ऐसी लोकलुभावन मुफ्त की योजनाएं सत्ता तक पहुंचने का माध्यम तो बन सकती हैं, लेकिन इससे गंभीर सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक विसंगतियां पैदा हो रही हैं। राजधानी दिल्ली का आंकड़ा सामने हैं, जहां पहले कार्यकाल में मुफ्त बिजली-पानी की घोषणाओं से सत्ता में काबिज हुई आम आदमी पार्टी ने दूसरे कार्यकाल में के लिए मुफ्त बस और मेट्रो यात्रा का प्रस्ताव किया। दिल्लीवासियों ने एक फिर आम आदमा पार्टी को जमकर वोट दिया।
केजरीवाल ने दिल्ली मेट्रो में मुफ्त यात्रा के प्रस्ताव को दी थी मंजूरी
वह तो भला हुआ कि दिल्ली सीएम केजरीवाल द्वारा प्रस्तावित दिल्ली मेट्रो में मुफ्त यात्रा के प्रस्ताव को मंजूरी नहीं मिली वरना विश्व के सबसे सफल मेट्रो परियोजना यानी दिल्ली मेट्रो का क्या हाल होता, समझा जा सकता है। केजरीवाल सरकार के पिछले पांच वर्ष के कार्यकाल और मुफ्त बिजली-पानी और उसके राजनीतिक प्रचार-प्रसार के लिए खर्च किए सरकारी खजाने से पैसों के कारण दिल्ली राजकोषीय घाटा 55 गुणा बढ़ चुका है। दिल्ली के राजकोषीय घाटे का यह आंकड़ा सिर्फ पिछले दो वर्ष का है। वर्ष 2019-20 में पेश किए गए दिल्ली बजट में 5,902 करोड़ रुपए का राजकोषीय घाटा अनुमानित है जो वर्ष 2018-19 के संशोधित अनुमान से 5,213 करोड़ रुपए अधिक है।
दिल्ली में महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा ने डीटीसी का भट्ठा बैठा
यही नहीं, महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा ने दिल्ली परिवहन निगम यानी डीटीसी का भट्ठा बैठ गया है। केजरीवाल सरकार ने दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 से ठीक पहले दिल्ली में महिलाओं के लिए डीटीसी बसों में मुफ्त यात्रा की घोषणा की थी। वह डीटीसी, जिसकी हालत पहले से खराब थी। दिल्ली विधानसभा के आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) का कामकाज घाटा 1750.37 करोड़ रुपए पहुंच गया था। रिपोर्ट में कहा गया कि डीटीसी कामकाजी नुकसान उठा रही है। वर्ष 2013-14 में डीटीसी का कामकाजी घाटा महज 942.89 करोड़ रुपए था। निः संदेह राजधानी की आधी आबादी यानी महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा ने डीटीसी के कमर तोड़ने की काफी है।
झारखंड सरकार ने 100 यूनिट फ्री बिजली देने की घोषणा की
दिल्ली की आम आदमी पार्टी के लोक लुभावन और मुफ्त की राजनीति की देखा-देखी अब अन्य राज्य भी सत्ता में बने रहने के लिए ऐसी घोषणा करने से बाज नहीं आ रहे हैं। ताजा उदारहण झारखंड की हेमंत सोरेन का लिया जा सकता है, जिन्होंने मंगलवार को पेश किए बजट में 100 यूनिट बिजली मुफ्त देने की घोषणा की है। हेमंत सरकार उक्त घोषणाओं के माध्यम से अपने वोट बैंक को और मजबूत करना चाहती है ताकि उनसे अगली बार चुनाव में सत्ता में आने के लिए किसी बैशाखी की जरूरत न पड़े। मालूम हो, अभी झारखंड की हेमंत सोरेन की अगुवाई में काबिज गठबंधन सरकार में कांग्रेस, और राजद शामिल हैं।