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1984 सिख दंगा: बाप-बेटी की वो जोड़ी, जिसने सज्जन कुमार को उसके अंजाम तक पहुंचाया

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नई दिल्ली। 1984 के सिख दंगों में आरोपी कांग्रेस के दिग्गज नेता सज्जन कुमार को कोर्ट ने दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई और उनपर पांच लाख रुपए का जुर्माना ठोका है। लेकिन इस मामले में सीबीआई की सफलता काफी मायने रखती है, इसकी बड़ी वजह यह कि पिता और बेटी की वह जोड़ी जिसने सज्जन कुमार को सजा दिलाने में अहम भूमिका निभाई। एनडीटीवी के अनुसार दोनों पिता-पुत्री की जोड़ी ने सज्जन कुमार को उसके अंजाम तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई है।

पिता-बेटी ने निभाई अहम भूमिका

पिता-बेटी ने निभाई अहम भूमिका

देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 31 अक्टूबर 1984 को उनके सिख बॉडीगार्ड ने हत्या कर दी थी, जिसके बाद भड़के दंगों में तकरीबन 3000 लोगों की जान चली गई थी। चश्मदीदों का कहना है कि इस आक्रोशित भीड़ का नेतृत्व सज्जन कुमार ने किया था। सज्जन कुमार कांग्रेस पार्टी के पहले दिग्गज नेता हैं जिन्हें कोर्ट ने इस मामले में दोषी करार देते हुए सजा सुनाई है। पीड़ित पक्ष के वकील एचएस फुल्का एक जानेमाने वकील है। लेकिन सीबीआई की टीम में पिता-बेटी की भी एक जोड़ी है जिसने सज्जन कुमार को सजा दिलाने में अहम भूमिका निभाई है।

सौजन्य- एनडीटीवी

बेटी ने लगातार की मदद

बेटी ने लगातार की मदद

वर्ष 2010 में आरएस चीमा के पास सीबीआई पहुंची थी और उनसे इस मामले की पैरवी करने की अपील की थी। चीमा ने कोयला घोटाले सहित कई बड़े-बड़े मामलों में खुद का लोहा मनवाया है। ऐसे में सीबीआई ने उन्हें इस मामले की पैरवी करने के लिए कहा, लेकिन चीमा को दिल्ली से चंडीगढ़ मामले की सुनवाई के लिए काफी सफर करना पड़ता था। चीमा की बेटी तरन्नुम चीमा ने हाल ही में कानून की डिग्री हासिल की है और वह अपने पिता की केस में बतौर जूनियर मदद करती हैं।

गवाह का आत्मविश्वास बनाए रखा

गवाह का आत्मविश्वास बनाए रखा

आरएस चीमा ने बताया कि इस मामले की सफलता का श्रेय मैं अपनी बेटी को देना चाहता हूं, जोकि इस केस के लिए दिल्ली आ गई थी। सज्जन कुमार को दो महिलाओं जगदीश कौर और निरप्रीत कौर की गवाही की वजह कोर्ट ने सजा सुनाई है, दोनों ही महिलाओं का परिवार दिल्ली में रहता था, जिसे दंगाइयों ने मौत के घाट उतार दिया था। दरअसल निरप्रीत कौर को इस बात का यकीन नहीं था कि सज्जन कुमार उनके पिता निर्मल कौर की हत्या के लिए जिम्मेदार हैं।

आसान नहीं था

आसान नहीं था

तरन्नुम चीमा ने बताया कि हमने निरप्रीत को अपने सच पर टिके रहने को कहा। कोर्ट में वकील ने उनपर पूछताछ के दौरान कई आरोप लगाए, यहां तक कि उन्हें आतंकवादी भी कहा, क्योंकि बतौर छात्र नेता वह एक बार जेल भी गई थी। लेकिन इन सब के बीच हमारे लिए चुनौती थी कि निरप्रीत को सच पर कायम रखना और उनके हौसले को पस्त नहीं होने देना। इस मामले में तरन्नुम द्वारा राज नगर पुलिस स्टेशन की पुलिस डायरी ने काफी अहम भूमिका निभाई थी।

पुलिस डायरी ने दिखाया पुलिस का बर्बर चेहरा

पुलिस डायरी ने दिखाया पुलिस का बर्बर चेहरा

इस पुलिस डायरी में दर्ज है कि 1 नवंबर से 11 नवंबर 1984 के बीच थाने पर कोई भी बड़ा मामला दर्ज नहीं किया गया, जबकि इस दौरान 341 लोगों की मौत हुई थी। पुलिस डायरी के इस खुलासे के बाद कोर्ट में जज को इस बात का यकीन हुआ कि कैसे हिंसा और अत्याचार के बीच पुलिस ने अपनी आंखें मूंद ली थी। बहरहाल तरन्नुम के उनका संघर्ष अभी यही नहीं खत्म हुआ है, वह इसी मामले में सज्जन कुमार के खिलाफ सुल्तानपुरी मामले में कोर्ट में पैरवी करेंगी।

इसे भी पढ़ें- यूपी में महागठबंधन फाइनल, इतनी सीटों पर लड़ेंगे मायावती और अखिलेश

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English summary
Father daughter duo played key role in the execution of Sajjan Kumar in sikh riot of 1984.
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