41 साल पहले अब्बू के बनाए कानून (PSA) के शिकंजे में आ गए फारुख अब्दुल्ला, तब लकड़ी तस्कर थे निशाने पर
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नई दिल्ली। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 को हटाए जाने से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई हुई। अब्दुल्ला की हिरासत को लेकर श्रीनगर से लेकर दिल्ली तक हंगामा मचा हुआ है। जो खबरें आ रही हैं उसके मुताबिक अब्दुल्ला को उनके घर के एक ही कमरे में रखा जाएगा और बाकी कमरे सीज कर दिए जाएंगे। केंद्र सरकार की ओर से कोर्ट में मौजूद सॉलिसिटर जनरल से जानकारी दी कि उन्हें पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) के तहत हिरासत में रखा गया है। आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस कानून के तहत अब्दुल्ला को हिरासत में रखा गया है, उसे उनके पिता ने ही घाटी में लागू किया था। आइए आपको बताते हैं कि पीएसए क्या है और क्यों फारूख अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला इसे घाटी में लेकर आए थे।
तस्करी रोकने के लिए बना कानून
इस कानून को सन् 1978 में लाया गया था और फारूख अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला उस ने ही इस कानून को घाटी में लागू किया था। कानून लागू होने के समय शेख अब्दुल्ला ही जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री थे। जिस समय इस कानून को लागू किया गया था, उस समय इसका मकसद लकड़ी की तस्करी को रोकना था। बाद में इस कानून को आतंकवाद रोकने के लिए जरूरी उपायों में शामिल कर लिया गया। कानून के तहत सरकार किसी इलाके को संरक्षित घोषित करती है और इसके बाद वहां पर नागरिकों के आने-जाने पर कुछ पाबंदियां लगा दी जाती हैं। अगर कोई भी जबरन दाखिल होने की कोशिश करता है तो फिर उसे हिरासत में लेकर पूछताछ की जाती है। यह कानून सरकार को अधिकार देता है कि वह ऐसे किसी को भी व्यक्ति को हिरासत में ले सकती है जो सुरक्षा व्यवस्था के लिए खतरा हो सकता है।
बिना ट्रायल दो वर्ष के लिए हिरासत
पीएसए के तहत सरकार किसी को भी बना ट्रायल के दो साल तक नजरबंद कर सकती है। अब्दुल्ला को पीएसए के तहत नजरबंद रखने का फैसला रविवार रात किया गया। अब्दुल्ला से पहले कश्मीर के पूर्व आइएएस ऑफिसर और नेता शाह फैसल को इस कानून के तहत नजरबंद किया गया है। पीएसए के बाद उनके घर को वैकल्पिक जेल में बदल दिया गया है। वह अपने ही घर में ही रहेंगे। हालांकि उन पर दोस्तों और रिश्तेदारों से न मिलने की कोई पाबंदी नहीं है। इस कानून के तहत कई बार सरकार की ओर से अलगाववादी नेताओं को हिरासत में रखा जा चुका है और हर बार अलगाववादी नेताओं को इस कानून के तहत हिरासत में रखने पर घाटी में काफी बवाल हुआ है।
उमर ने किया था खत्म करने का वादा
एमेनेस्टी इंटनेशनल की साल 2010 में आई रिपोर्ट के मुताबिक सन् 1978 में जब से इसे लागू किया तब से अब तक इस कानून के तहत करीब 20,000 लोगों को हिरासत में रखा जा चुका था। इस वर्ष अप्रैल में जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम और शेख अब्दुल्ला के पोते उमर अब्दुल्ला ने राज्य के लोगों के वादा किया था कि अगर उनकी पार्टी ने विधानसभा चुनाव जीता तो इस कानून को खत्म कर दिया जाएगा। उमर ने अनंतनाग के खानबल में हुई चुनावी रैली में कहा था , 'अगर खुदा ने चाहा तो सत्ता में आने के कुछ ही दिनों के अंदर इसे खत्म कर दिया जाएगा और इसके तहत दर्ज सभी केसेज को भी वापस ले लिया जाएगा।' इस कानून के तहत कई पत्थरबाजों पर केस दर्ज हो चुके हैं। आतंकी मर्सरत आलम को भी इसी केस के तहत जेल में रखा गया था।
कानून में हुए कुछ बदलाव भी
साल 2012 में जब उमर राज्य के मुख्यमंत्री थे तो इस कानून में कुछ बदलाव किए गए थे। इन बदलावों में सबसे अहम था कि 18 वर्ष से कम उम्र के किसी भी युवक को इस कानून के तहत नजरबंद नहीं किया जा सकता है। साथ ही अथॉरिटीज को किसी को भी हिरासत में लेते समय पूरी वजहें भी बतानी जरूरी होंगी।