Farmers protest:100 दिन में कहां तक पहुंचा किसान आंदोलन, आगे क्या है तैयारी ?
नई दिल्ली: 6 मार्च यानी शनिवार को दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के आंदोलन के 100 दिन पूरे हो रहे हैं। तीन महीने से ज्यादा वक्त में तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़े किसानों ने कई तरह की प्राकृतिक और प्रशासनिक परेशानियां झेली हैं, लेकिन वह अपनी मांगों से टस से मस नहीं हुए हैं। इस दौरान इन्होंने बारिश और ओले झेले हैं तो कड़ाके की ठंड का भी सामना किया है और अब तपती गर्मी झेलने की भी तैयारी शुरू कर चुके हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक विभिन्न वजहों से इस दौरान करीब 250 किसानों की मौत भी हो चुकी है। ज्यादातर लोगों की मौत सर्दी के मौसम में हार्ट अटैक की वजह से हुई है। किसान संगठन कृषि कानूनों को वापस लिए बिना अपने घर वापस लौटने के लिए तैयार नहीं है। दूसरी ओर सरकार ने बार-बार स्पष्ट कर दिया है कि अगर संशोधन चाहते हैं तो वह तैयार है, इसपर अमल भी वह डेढ़ साल तक रोक सकती है। लेकिन, उसका दावा है कि ये कानून किसानों के हित में ही बनाए गए हैं, इसलिए वह किसी भी सूरत में इसे वापस नहीं ले सकती।
100 दिन के किसान आंदोलन में अभी तक की प्रमुख घटना
दिल्ली के सिंघु और टिकरी बॉर्डर पर किसानों का प्रदर्शन पिछले साल 26 नवंबर को शुरू हुआ था, लेकिन फिलहाल गाजीपुर बॉर्डर आंदोलन के प्रमुख केंद्र के रूप में उभरा हुआ दिख रहा है। इस दौरान 40 किसान संगठनों के संयुक्त किसान मोर्चा के प्रतिनिधियों के साथ केंद्र सरकार की कम से कम 10 दौर की लंबी बातचीत हुई, लेकिन दोनों पक्षों में कृषि कानूनों को वापस लेने के मुद्दे पर बात रुक गई। 21 जनवरी को हुई आखिरी दौर की बातचीत में केंद्र सरकार ने तीन कानूनों को डेढ़ साल तक रोकने और विवाद सुलझाने के लिए संयुक्ति समिति बनाने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन, 22 जनवरी को कानूनों को वापस लेने से कम कुछ भी नहीं कहकर किसान संगठनों से सरकार के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इससे पहले 8 दिसंबर को किसान संगठनों ने भारत बंद का आह्वान किया था, जिसका मुख्य असर पंजाब और हरियाणा में दिखा। इस बंद को महाराष्ट्र और बिहार में कुछ राजनीतिक दलों ने भी समर्थन किया था। 16 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार को कानूनों को कुछ समय तक निलंबित रखने का सुझाव दिया था। 21 दिसंबर को किसानों ने प्रदर्शन वाली जगहों पर एक दिवसीय भूख हड़ताल का आयोजन किया और 25 से 27 दिसंबर तक हाइवे पर टोल कलेक्शन रोकने की योजना बनाई। 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने कानूनों के अमल पर रोक लगाते हुए इसपर विचार करने के लिए चार सदस्यीय समिति बना दी। हालांकि, किसान संगठनों ने शुरू में ही इस समिति पर आपत्ति जता दी थी। फिर 26 जनवरी को किसान संगठनों ने दिल्ली पुलिस से चर्चा करके ट्रैक्कर रैली निकाली, जो हिंसक हो गई। रैली में शामिल कुछ किसानों ने राजधानी में उस दिन जमकर हिंसा की और पुलिस वालों को निशाना बनाने की कोशिश की। हालात तब बेकाबू हो गए जब उन्होंने लोकतंत्र की मर्यादा को तार-तार करते हुए लालकिले पर जबरन कब्जा कर लिया और तिरंगे का अपमान करते हुए उसकी प्राचीर पर एक धार्मिक झंडा फहरा दिया। पुलिस के मुताबिक इस दौरान स्टंटबाजी में एक युवा किसान की अपने ही ट्रैक्टर से कुचलकर मौत हो गई।
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26 जनवरी के हिंसक प्रदर्शन के बाद आंदोलन
26 जनवरी की हिंसा के बाद किसान संगठन कुछ उपद्रवी किसानों के चलते आलोचनाओं के शिकार बन गए। ट्रैक्टर रैली के दौरान कुछ कथित देश-विरोधी ताकतों ने जिस तरह से देश की संप्रभुता को चुनौती दी, उससे देश के सामान्य नागरिकों के कान खड़े हो गए और सुरक्षा एजेंसियों के भी कंठ सूखने लगे। किसान संगठनों की इस बदनामी का असर ये हुआ कि कई किसान संगठनों ने अगले दिन ही अपना बोरिया-बिस्तर समेट लिया। दिल्ली पुलिस ने भी कार्रवाई तेज करते हुए सभी बड़े किसान नेताओं को रैली के लिए मिली इजाजत से वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए कानूनी नोटिस थमा दिए। जिन किसान नेताओं का हिंसा में पुलिस को साफ रोल नजर आया, उनकी धर-पकड़ शुरू हो गई। एक वक्त ऐसा लगा कि अब सारे बड़े किसान नेता गिरफ्तार हो जाएंगे। 26 जनवरी की घटना का दाग ऐसा था कि योगेंद्र यादव और राकेश टिकैत जैसे लोग न्यूज चैनलों पर रोते-बिलखते नजर आए। लेकिन, यही आंसू जाटलैंड के किसान नेता राकेश टिकैत के लिए मास्टरस्ट्रोक का काम कर गया। उनके समर्थन में पश्चिमी उत्तर प्रदेश से बड़ी संख्या में किसान गाजीपुर में जुटने शुरू हो गए। जैसे-जैसे किसानों की तादाद बढ़ती गई, टिकैत के सुर भी बदलने लगे। आज आलम ये है कि ना सिर्फ गाजीपुर बॉर्डर आंदोलन का प्रमुख केंद्र बन चुका है, बल्कि टिकैत इस आंदोलन के सबसे बड़े नेता बनकर उभर चुके हैं। शायद ही ऐसा कोई दिन बीत रहा है जब टिकैत केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री मोदी तक को सीधी चुनौती ना दे रहे हों। इसी बढ़े हौसले के साथ किसान संगठनों ने 6 फरवरी को तीन घंटे का चक्का जाम का आयोजन किया तो 18 फरवरी को चार घंटे का रेल रोको आंदोलन चलाया। उधर, 26 जनवरी की हिंसा को सुनियोजित साजिश बताते हुए दिल्ली पुलिस ने उस टूलकिट को अपना हथियार बना लिया, जिसे स्विटजरलैंड की क्लाइमेट ऐक्टिविस्ट थ्रेटा थनबर्ग ने गलती से सार्वजनिक कर दिया था। इस मामले में पुलिस ने भारतीय क्लाइमेट ऐक्टिविस्ट दिशा रवि को गिरफ्तार किया और उसके साथियों पर शिकंजा कसना शुरू किया। लेकिन, पुलिस की इस कार्रवाई का भारी विरोध शुरू हो गया और आखिरकार अदालत ने भी इन आरोपियों को कानूनी सुरक्षा कवच मुहैया करवा दिया।
किसान आंदोलन स्थल के ताजा हालात
राकेश टिकैत ने एक वक्त ऐलान किया था कि वह अक्टूबर तक कहीं नहीं जाने वाले। लेकिन, फिर उन्होंने अपनी वही मांग दोहरानी शुरू कर दी कि जब तक सरकार तीनों कृषि कानून वापस नहीं ले लेती वो कहीं नहीं जा रहे। आंदोलन लंबा खींचने के लिए किसान संगठनों ने जत्थों में लोगों को बुलाने की रणनीति बनाई है, ताकि किसान आएं, कुछ दिन दिल्ली के बॉर्डर पर डेरा डालें और फिर अपने गांवों की ओर लौट जाएं। इस तरह से आंदोलन को ज्यादा लंबा खींचा जा सकता है। इस बीच किसानों ने गर्मी से बचने के लिए भी तैयारियां शुरू कर दी हैं। प्लास्टिक के टेंट की जगह घास-फूस की झोपड़ियां तैयार की जा रही हैं। सिंघु और टीकरी बॉर्डर पर तो पानी के इंतजाम के लिए बोर बेल तक गाड़ने की कोशिशें की जा रही हैं। तपती गर्मी से बचने के लिए ट्रैक्टरों से कूलर और पंखे मंगवाए जा रहे हैं। किसानों की ओर से जेनरेटर तक के इंतजाम शुरू किए गए हैं। दूसरी तरफ किसानों ने आंदोलन का दायरा दिल्ली की सीमाओं और पंजाब और हरियाणा से बढ़ाकर देशव्यापी कर दिया है। यूपी के मेरठ, राजस्थान, पश्चिम बंगाल,उत्तराखंड और तेलंगाना में भी किसान महापंचायतों का आयोजन हो रहा है। महाराष्ट्र में भी इसकी जोर-शोर से तैयारी की गई थी, लेकिन कोरोना के बढ़ते संक्रमण ने उनके इरादों पर पानी फेर दिया है। उधर किसान आंदोलन के लिए वैश्विक समर्थन जुटाने की भी भरपूर कोशिशें जारी हैं। यहां तक कि ब्रिटिश पार्लियामेंट तक भी इसपर चर्चा करने के लिए तैयार हो गई है। हालांकि, इसका अंजाम क्या होगा यह कहना मुश्किल है। दूसरी तरफ सरकार कई बार कह चुकी है कि वह किसानों से खुले दिल से बात करने को राजी है, लेकिन कानून वापस लेने के लिए वह तैयार नहीं है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी संसद में किसानों से गुजारिश की है कि वह भरोसा रखें कि सरकार जो भी कर रही है वह किसानों के हित में ही कर रही है। लेकिन, अभी तक कानून वापस लेने और नहीं लेने पर ही मसला अटका हुआ है। उधर भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत को यह भी आशंका है कि पिछले कुछ दिनों से सरकार इस मसले पर जिस तरह से पूरी तरह शांत बैठी है, वह कुछ ना कुछ योजना बनाने में जरूर लगी हुई है।
किसान संगठनों की आगे की क्या है तैयारी
किसान संगठनों ने अपनी मांगों को लेकर आंदोलन के 100वें दिन यानी शनिवार को दिल्ली के पास वेस्टर्न और ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे को बंद करने की योजना बनाई है। यह बंद सुबह 11 बजे से शाम 4 बजे तक रखा जाएगा। यही नहीं किसान संगठन अगले दो महीनों में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी भाजपा प्रत्याशियों को वोट नहीं देने की मुहिम छेड़ने की घोषणा की है। राकेश टिकैत ने कहा है कि मतदाताओं से अपील की जाएगी कि वह भाजपा उम्मीदवारों को वोट ना दें। इसके साथ ही 8 मार्च को महिला दिवस के दिन महिलाओं को सरकार के खिलाफ प्रदर्शन में आगे रखने की योजना बनाई गई है। जबकि 'एमएसपी दिलाओ'अभियान शुक्रवार यानी 5 मार्च से ही शुरू किया जा रहा है। उधर टिकैत ने किसानों से कहा कि वह अपने ट्रैक्टर तैयार रखें और जब भी उनसे कहा जाए वह दिल्ली की ओर कूच कर जाएं। समय-समय पर वह इसके लिए 40 से 50 लाख ट्रैक्टर तैयार रखने की बात कह चुके हैं।
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