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Farmers Protest:क्या 2018 के इन दोनों विधेयकों में छिपा है किसान-सरकार के बीच गतिरोध का हल

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नई दिल्ली- किसान संगठनों और सरकार के बीच नए कृषि सुधार कानूनों को लेकर जारी गतिरोध को दूर करने के लिए 2018 में संसद में पेश दो प्राइवेट मेंबर विधेयक काम आ सकता है। तब किसान संगठनों की ओर से काफी कोशिशों के बावजूद संसद में इन विधयकों पर चर्चा नहीं हुई थी। इस संबंध में उस दौरान किसीन राष्ट्रपति से भी मिले थे और उनसे इसके मुताबिक कानून बनवाने के लिए पहल करने का अनुरोध भी किया था। गौरतलब है कि प्राइवेट मेंबर बिल वह होता है, जो कोई सांसद निजी हैसियत से संसद में रखता है, जबकि बाकी बिल मंत्रियों की ओर से पेश किया जाता है, जो कि सरकारी विधेयक होता है।

2018 के दोनों प्राइवेट मेंबर बिल क्या थे?

2018 के दोनों प्राइवेट मेंबर बिल क्या थे?

2018 में प्राइवेट मेंबर बिल में से एक था- 'कर्जदारी से किसानों की आजादी विधेयक,2018' और दूसरा- 'कृषि वस्तुओं के लिए गारंटी लाभकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य के किसानों का अधिकार विधेयक,2018'। इन विधेयकों को अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने ड्राफ्ट किया था, जो 'दिल्ली चलो' प्रदर्शन में शामिल किसानों के 500 संघों का छतरी संगठन है। लोकसभा में इन विधेयकों को सांसद राजू शेट्टी ने पेश किया था, जो कि एक खुद बड़े किसान नेता हैं। उन्हें कांग्रेस, शिवसेना, सीपीएम,बसपा, तृणमूल, डीएमके और एनसीपी समेत 21 दलों का समर्थन मिला था। जानकारों का दावा है कि दोनों विधेयक आपस में एक-दूसरे के पूरक हैं।

उन दोनों बिलों में क्या मांग की गई थी ?

उन दोनों बिलों में क्या मांग की गई थी ?

दोनों बिलों के नाम से ही जाहिर है कि इसके जरिए किसानों की कर्ज से आजादी और उनके उत्पाद के लिए लाभकारी मूल्य की मांग की गई थी। पहले बिल में सरकार इसके लिए बाध्य होती कि वह सभी तरह के किसानों का हर तरह का कृषि कर्ज माफ करे और निजी तौर पर कर्ज देने वालों की सारी देनदारियों को शून्य घोषित करे। देनदारियों का भुगतान सरकार की ओर से हो और कर्जदारों से कोई वसूली ना हो। इस बिल को लाने का मकसद यह बताया गया कि देश को खाद्य सुरक्षा मुहैया कराने और संप्रभुत्व संपन्न राष्ट्र के तौर पर कार्य करने में योगदान देने के लिए देश किसानों का कर्जदार है। दूसरे बिल में सरकार को ऐसी व्यवस्था करनी थी कि खेती की लागत कम हो जाए, जैसे कि डीजल, बीज, खाद, कीटाणुनाशकों, मशीन और उपकरणों के दाम कम किए जाएं। यही नहीं कृषि उत्पादों की लागत में किसान परिवारों की मेहनत, जमीन का किराया भी शामिल करने जैसे प्रावधान शामिल किए गए।थे।

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दोनों बिलों का संसद में क्या हुआ ?

दोनों बिलों का संसद में क्या हुआ ?

दोनों बिलों पर अभी तक संसद में विचार नहीं किया गया है। भारती किसान यूनियन के महासचिव जगमोहन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया है कि किसानों की अभी भी वही मांगें हैं, जो दोनों विधेयकों में की गई थीं। उन्होंने कहा, 'सामान्य तौर पर लोकसभा भंग होने के साथ ही निजी मेंबर बिल अलग कर दिया जाता है और उसे दोबारा पेश किया जा सकता है। लेकिन, अगर सरकार चाहती तो दो साल में इसपर विस्तृत चर्चा करवा सकती थी।'

क्या आज भी वो विधेयक प्रासंगिक हैं ?

क्या आज भी वो विधेयक प्रासंगिक हैं ?

किसान नेता जगमोहन सिंह का दावा है कि किसान आज एमएसपी से भी आधी कीमत पर फसल बेचते हैं, जबकि सरकार 24 अनाजों का समर्थन मूल्य तय करती है। उनके मुताबिक किसान आज भी डॉक्टर स्वामीनाथन रिपोर्ट के आधार पर उत्पाद का उचित मूल्य पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। क्रांतिकारी किसान यूनियन के डॉक्टर दर्शन पाल का कहना है कि, 'तीनों किसान-विरोधी बिलों को वापस लेने के साथ ही हमारी आज भी वही मांगे हैं जो उन बिलों में ड्राफ्ट की गई थीं।'

गौरतलब है कि किसानों का दावा मोदी सरकार की दलीलों से ठीक उलट है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को अपने मासिक मन की बात कार्यक्रम में कृषि सुधारों को किसानों के हित में बताया है, जिससे किसानों को ज्यादा आजादी मिली है और वह किसी भी मंडी में अपना अनाज बेच सकते हैं। सरकार एमएसपी जारी रखने का भी वादा कर रही है और उसका यह भी कहना है कि मौजूदा व्यस्था में किसान बिचौलियों से पूरी तरह से मुक्त हो गए हैं और अपना अनाज वह जहां चाहे बेच सकते हैं और तीन दिन के अंदर उनका भुगतान निश्चित है।

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English summary
Farmers Protest: May these two bills of 2018 take out of the deadlock between farmer and government
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