Farmers Protest: किसान नेता का बड़ा आरोप- आंदोलन बाधित करने की कोशिश कर रहीं एजेंसियां
नई दिल्ली। kisan andolan: केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब हरियाणा के किसानों का विरोध प्रदर्शन पिछले 50 दिनों से भी अधिक समय से जारी है। इस बीच किसान नेताओं और सरकारी प्रतिनिधियों के बीच शुक्रवार को 11वें दौर की वार्ता भी बेनतीजा रही। किसानों ने बैठक में सरकार द्वारा कृषि कानूनों पर तय समय के लिए रोक लगाने और कमेटी गठित करने के प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया। बैठक खत्म होने के बाद देर रात संवाददाताओं से बात करते हुए किसान नेताओं ने बड़ा आरोप लगाया है।
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जम्हूरी किसान सभा के महासचिव कुलवंत सिंह संधू ने बड़ा आरोप लगाता हुए कहा कि किसानों के आंदोलन को बाधित करने के लिए एजेंसियों द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं। बता दें कि किसान संगठनों ने सरकार के साथ 10वें दौर की वार्ता के दौरान मिल रही एनआईए नोटिस का भी मुद्दा उठाया था। इस पर कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए कहा कि अगर किसी निर्दोष को एनआईए का नोटिस गया है तो किसान संगठन सरकार को ऐसे लोगों के नामों की सूची दें। हम उस पर संज्ञान लेंगे और देखेंगे कि किसी निर्दोष को मुश्किल न हो।
#WATCH | Delhi: Farmers at Singhu border present a person who alleges a plot to shoot four farmer leaders and cause disruption; says there were plans to cause disruption during farmers' tractor march on Jan 26. pic.twitter.com/FJzikKw2Va
— ANI (@ANI) January 22, 2021
मीडियाकर्मियों से बात करते हुए किसान नेताओं ने एक शख्स को पेश किया, दावा किया जा रहा है कि उस शख्स ने गणतंत्र दिवस के मौके पर यानी 26 जनवरी को किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान हिंसा फैलाने की योजना का पर्दाफाश किया है। सिंघू बॉर्डर पर प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान किसानों द्वारा पेश किए गए आरोपी ने कहा, '26 जनवरी को किसानों के ट्रैक्टर मार्च के दौरान व्यवधान पैदा करने की योजना थी। इस दौरान कुछ लोग भीड़ से पुलिस पर फायरिंग करते और कुछ पुलिस की वर्दी में छिपकर किसानों पर हमले करते।' किसानों ने आरोपी शख्स को पुलिस के हवाले कर दिया है।
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यूनियनों
की
सोच
में
किसान
हित
नहीं:
कृषिमंत्री
तोमर
बता
दें
कि
शुक्रवार
को
बैठक
के
बाद
केंद्रीय
कृषिमंत्री
नरेंद्र
सिंह
तोमर
ने
कहा
कि
बातचीत
एक
बार
फिर
बेनतीजा
रही
है।
किसान
यूनियनों
की
सोच
में
किसानों
का
कल्याण
नहीं
है,
इसीलिए
हल
नहीं
निकल
रहा
है।
भारत
सरकार
की
कोशिश
थी
कि
वो
सही
रास्ते
पर
विचार
करें
वार्ता
की
गई
लेकिन
यूनियनें
कानून
वापसी
पर
अड़ी
रहीं।
सरकार
ने
एक
के
बाद
एक
प्रस्ताव
दिए
लेकिन
वो
नहीं
माने।
जब
आंदोलन
की
पवित्रता
नष्ट
हो
जाती
है
तो
निर्णय
नहीं
होता,
यही
हो
रहा
है।