Farmers protest:क्या ट्रैक्टर रैली ने कृषि कानूनों पर केंद्र सरकार की स्थिति और मजबूत कर दी है ?
Farmers protest:कृषि कानूनों के खिलाफ करीब दो महीने से जारी किसान आंदोलन से किसान नेताओं की पकड़ ढीली पड़नी शुरू हो चुकी है। किसान संगठनों में अपने ही नेताओं के रवैए पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। खासकर 26 जनवरी को हुई हिंसा के बाद बड़बोले किसान नेताओं के पास ना तो बाकी देश से सहानुभूति मिलने की उम्मीद बची है और लगता है कि अब सरकार भी उन्हें ज्यादा तबज्जो नहीं देने जाने जा रही है। आगे अगर किसान नेताओं की सरकार से कृषि कानूनों को लेकर कोई बातचीत शुरू भी हुई तो किसान नेताओं में वह पहले वाला भरोसा नहीं रह गया है और इससे निश्चित तौर पर पहले से ही किसी भी सूरत में कृषि कानूनों को वापस नहीं लेने पर अडिग सरकार का इरादा और सख्त हो सकता हो सकता है।
दो संगठनों ने आंदोलन खत्म करने की घोषणा कर दी
मंगलवार को ट्रैक्टर रैली में हुई हिंसा के बाद दो महीने की किसान संगठनों की एकता में दरार पड़ चुकी है। कुछ किसान नेता भले ही हिंसा के बावजूद सीनाजोरी करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें पता चल चुका है कि अब उनको कहीं भाव नहीं मिलने जा रहा है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण ये है कि दो बड़े किसान संगठनों की ओर से आंदोलन से खुद को अलग करने की खबरें आ रही हैं। किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष वीएन सिंह ने रिपब्लिक डे की वारदातों से आहत होकर धरना समाप्त करने की घोषणा की है तो भारतीय किसान यूनियन भानु गुट के राष्ट्रीय अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह ने 26 जनवरी की हिंसा से दुखी होकर आंदोलन खत्म कर दिया है।
सरकार जो आशंका जता रही थी, वह सच साबित हुई
जाहिर है कि ट्रैक्टर रैली के दौरान हिंसा के बाद जो स्थिति पैदा हुई है, उससे सरकार के उन दावों की पुष्टि हो रही है कि किसानों के बीच कुछ ऐसी ताकतें मौजूद हैं, जो सरकार की हर कोशिशों के बावजूद समझौता नहीं होने दे रहे हैं। क्योंकि, अबतक किसान आंदोलन के आलोचकों का मुंह किसान संगठन यही कहकर बंद करा रहे थे कि दो महीने का उनका आंदोलन शांतिपूर्ण है और इसमें नक्सली और खालिस्तानी तत्वों के शामिल होने के आरोप गलत हैं। लेकिन, लालकिले को कलंकित करने, सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने और दिल्ली की सड़कों पर पूरी तरह का धैर्य का परिचय देने वाली दिल्ली पुलिस के जवानों के साथ बर्बरता करने की जो तस्वीरें आई हैं, उससे खुद उनकी बोलती बंद हो चुकी है। अब सरकार के पास यह कहने का पूरा मौका है कि यह सिर्फ कुछ किसानों का आंदोलन नहीं है, बल्कि इसमें कुछ कट्टरपंथी ताकतें भी शामिल हैं।
किसान नेताओं के सामने विश्वसनीयता का संकट
इन बदले हुए हालातों को ऐसे समझ लीजिए कि अगर किसानों के साथ आगे किसी तरह की बातचीत होती है तो अबतक डेढ़ से दो साल तक कृषि कानूनों को ठंडे बस्ते में डालने तक जैसा आश्वासन देने वाली केंद्र सरकार अपना स्टैंड अब सख्त कर सकती है। इसकी बानगी ऐसे समझिए कि सरकार के एक सूत्र के मुताबिक, 'आगे बढ़ने की हमारी रणनीति निश्चित ही बदल जाएगी।' क्योंकि, 'आप लालकिले में जबरन नहीं घुस सकते और वहां पर झंडा फहराने के बाद नहीं कह सकते कि आइए कानूनों पर बातचीत करें।' लगता है कि किसान नेताओं के लिए हिंसक वारदातों की जिम्मेदारी लेना और उससे मुंह मोड़ना दोनों ही उन्हें भारी पड़ने वाला है। क्योंकि, अब सरकार के सामने उनकी विश्वसनीयता ही संकट में पड़ चुकी है। क्योंकि, सरकारी सूत्र ने कहा है कि 'अगर किसान नेताओं की हमारे साथ कोई सहमति बन जाती है और ये लोग (प्रदर्शनकारी) उसे मंजूर नहीं करते तो ये नेता क्या कर लेंगे? '
किसान नेताओं के पास नहीं बचे ज्यादा विकल्प
अब हो सकता है कि सरकार किसान नेताओं को यह मौका दे कि उनके लिए यही अवसर है कि वह उसके साथ समझौते के लिए राजी हो जाएं और आंदोलन से सम्मानजनक तरीके से निकलने का रास्ता निकालें। क्योंकि, एक सूत्र की बातों में इस बात का संकेत साफ नजर आ रहा है। उसने कहा है, 'सरकार ने अभी तक लचीला रुख अख्तियार किया है और कई तरह के समाधान निकाले हैं, जिन्हें किसानों ने खारिज कर दिया है। लेकिन, अब चीजें बदल गई हैं और उत्पाती तत्वों ने बातचीत को डीरेल करने की स्थिति पैदा की है। हमें उम्मीद है कि किसान नेता इस मौके का फायदा उठाकर समाधान निकालने में मदद करेंगे। ' इस सूत्र ने बिना ज्यादा कुछ कहे किसानों को यह भी संदेश देने की कोशिश की है कि 'दिल्ली पुलिस ने बहुत ही ज्यादा धैर्य रखा, नहीं तो आज (मंगलवार को) हालात और भी भयावह हो सकते थे।'
भाजपा ने भी दिए स्टैंड सख्त करने के संकेत
आने वाले दिनों में इस आंदोलन पर सरकार के होने वाले रुख का संकेत बीजेपी के बड़े नेताओं से भी मिल रहा है। मसलन, वरिष्ठ पार्टी नेता पी मुरलीधर राव ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा है,'हम सोच रहे थे कि सरकार ने सुधार के लिए जो फॉर्मूला दिए हैं उसके खिलाफ विरोध हो रहा है। लेकिन, लगता है कि यह भारतीय गणतंत्र और उसकी भावना के खिलाफ है। राष्ट्रीय राजधानी में आज (मंगलवार को) जो कुछ भी हुआ, वह विश्वास और स्वतंत्रता का उल्लंघन है।' वे बोले- 'लोकतंत्र में आप सरकार को चुनौती देने के लिए आंदोलनकर करते हैं।..........लेकिन, आप संप्रभुता और गणतंत्र की भावना को चुनौती नहीं दे सकते। '
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