भारतीय किसानों ने रिकॉर्ड स्तर पर उगाया गेहूं, लेकिन बेचने में आ रही कई दिक्कतें
नई दिल्ली। भारत को कृषि प्रधान देश के रूप में पहचाना जाता है, यहां की अधिकतर आबादी खेती के काम से जुड़ी हुई है। लेकिन इस बार कोरोना वायरस लॉकडाउन के कारण किसानों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने रिकॉर्ड स्तर पर गेहूं की खेती तो कर ली, लेकिन इसे बाजारों में बेच पाने में ज्यादा सफल नहीं हो पाए। हैरानी की बात ये रही कि किसानों ने इतनी मात्रा में गेहूं उगा लिया, कि उन्हें दूसरे स्थानों पर जमीन किराए पर लेनी पड़ी, ताकि अपनी फसल को वहां रखा जा सके।
सीएनबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, 50 साल के सुक्रामपाल (किसान) ने बड़ी मात्रा में फसल की पैदावार की लेकिन उनकी सबसे बड़ी समस्या यही रही कि आखिर इसे बेचा कैसे जाए। हरियाणा के सुक्रामपाल के घर के पास स्थित तीनों बड़े बाजारों में काफी कम संख्या में स्टाफ काम कर रहा है। मार्च के आखिर से देश में लगाए गए लॉकडाउन के कारण ग्रामीण भारत में मजदूर नहीं मिल पा रहे हैं। जिसके चलते फसल को समेटने और उसकी पैदावार से लेकर उसे एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने में परेशानी आ रही है।
भारत चीन के बाद दुनिया में गेहूं का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है। किसानों के लिए सबसे बड़ी पेरशानी ये है कि अगर वह जल्द से जल्द अपनी फसल को नहीं बेचेंगे तो नमी के कारण वो खराब हो सकती है। जिसकी बाद में कोई कीमत नहीं रह जाएगी। लॉकडाउन के कारण भारत के 7 हजार से ज्यादा थोक खाद्य बाजार प्रभावित हुए हैं। जो भारत के 1.3 बिलियन निवासियों की खाद्य आपूर्ति करने वाला एकमात्र चैनल है।
घरौंदा अनाज बाजार के कमिशन एजेंट का कहना है, 'लगभग 90 प्रतिशत मजदूर नहीं हैं। पिछले समय में लगभग 5,000 मजदूर थे, और इस सीजन में केवल 500 हैं। हमने इससे पहले ऐसा कभी नहीं देखा है।' भारत में गेहूं उगाने वाले किसान इन थोक बाजारों में कमीशन एजेंटों को कानून द्वारा विशेष रूप से अपना अनाज बेचते हैं, जो इसे राज्य के खरीदारों और निजी व्यापारियों को बेचते हैं। कमीशन एजेंट आमतौर पर मजदूरों को ट्रैक्टर ट्रॉलियों पर गेहूं की बोरियों को उतारने, साफ करने, तोलने, पैक करने और फिर से लोड करने के लिए लगाते हैं और फिर सरकारी और निजी गोदामों में रखवाते हैं। लेकिन इस साल मजदूरों की कमी के कारण काफी परेशानी आ रही है।
इस साल भारत में सर्दियों की (2019-2020) गेहूं की फसल 106.21 मिलियन टन रही। जबकि चीन में ये 133.5 मिलियन टन थी। एक किसान का कहना है, 'हमारे पास गेहूं स्टोर करने का कोई साधन नहीं है। हाल ही में हुई बारिश और ओलावृष्टि के बाद, मैं अपनी फसल की गुणवत्ता को लेकर चिंतित हूं।' भारत के लगभग 85 प्रतिशत किसानों के पास पांच एकड़ से भी कम भूमि है, इसलिए अपेक्षाकृत कम फसल या भुगतान में कोई देरी, उनकी आजीविका को प्रभावित कर सकती है।
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