आंदोलन के 100 दिन: किसानों ने जाम किया केएमपी एक्सप्रेसवे, टोल भी किए फ्री
नई दिल्ली। कृषि कानूनों के खिलाफ लगातार आंदोलनरत किसानों के दिल्ली की सीमाओं पर धरने को आज 100 दिन हो गए हैं। धरने के 100 दिन होने पर किसान आज केएमपी (कुंडली मानेसर पलवल) एक्सप्रेसवे को जाम कर प्रदर्शन कर रहे हैं। किसानों ने पहले ही ऐलान कर रखा था कि वो शनिवार को सुबह 11 बजे से शाम चार बजे तक, पांच घंटे के लिए केएमपी एक्सप्रेस-वे को जाम करेंगे और सभी टोल भी फ्री कराएंगे। 11 बजे से पहले ही किसानों के जत्थे एक्सप्रेस-वे पर पहुंच गए और 11 बजने पर जाम लगाकार अपना प्रदर्शन शुरू कर दिया।
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किसान एक्सप्रेव-वे पर डटे हैं और हाथों में काली पट्टी बांधकर केंद्र के नए कानूनों के खिलाफ अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं। इसके अलावा डासना, दुहाई, बागपत, दादरी, ग्रेटर नोएडा पर भी किसानों ने जाम का ऐलान किया है। किसानों ने आज बॉर्डर के नजदीक के सभी टोल प्लाजा भी फ्री किए जाने का ऐलान किया है, ऐसे में टोल प्लाजाओं पर भी किसान पहुंच गए हैं और प्रदर्शन कर रहे हैं। आज सुबह कुंडली एक्सप्रेसवे को जाने वाले डासना टोल और कई रास्तों पर पुलिस प्रशासन ने काफी कड़ी नाकेबंदी की थी लेकिन किसान एक्सप्रेसवे पर पहुंचने में कामयाब रहे।
क्या है किसानों की मांग
केंद्र सरकार बीते साल जून में तीन नए कृषि कानून लेकर आई थी, जिनमें सरकारी मंडियों के बाहर खरीद, अनुबंध खेती को मंजूरी देने और कई अनाजों और दालों की भंडार सीमा खत्म करने जैसे प्रावधान किए गए हैं। इसको लेकर किसान जून के महीने से लगातार आंदोलनरत हैं और इन कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। किसानों का आंदोलन जून, 2020 से नवंबर तक मुख्य रूप से हरियाणा और पंजाब में चल रहा था। सरकार की ओर से प्रदर्शन पर ध्यान ना देने की बात कहते हुए 26 नवंबर को किसानों ने दिल्ली के लिए कूच कर दिया। इसके बाद 26 नवंबर, 2020 से देशभर के किसान दिल्ली और हरियाणा को जोड़ने वाले सिंधु बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर गाजीपुर बॉर्डर और दिल्ली के दूसरे बॉर्डर पर धरना दे रहे हैं। जिसे अब 100 दिन हो गए हैं।
किसानों को कहना है कि ये कानून मंडी सिस्टम और पूरी खेती को प्राइवेट हाथों में सौंप देंगे, जिससे किसान को भारी नुकसान उठाना होगा। ऐसे में सरकार इनको रद्द करे। सरकार और किसान नेताओं के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है लेकिन इसमें कोई हल नहीं निकला है। सरकार कानूनों के अमल पर कुछ समय तक रोक के लिए तो तैयार है लेकिन कानूनों को रद्द करने को राजी नहीं है। वहीं किसानों की मांग है कि कानून रद्द किए जाएं।