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इधर कृषि कानून पर किसान कर रहे हैं आंदोलन और उधर गेहूं के खिलाफ चल रहा है अभियान

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नई दिल्ली। भारत में नए कृषि कानून 2020 में नए प्रावधानों को लेकर जहां हरियाणा और पंजाब के किसान लगातार 7 दिन से राजधानी दिल्ली में आंदोलन कर रहे है, तो दूसरी तरफ मुख्य खाद्यान्न गेहूं को लेकर अमेरिका में अजीबोगरीब अभियान छिड़ा हुआ है। अमेरिका में गेहूं और गेहूं अनाज से बनी खाद्य पदार्थों को स्वास्थ्य कारणों से त्यागने का अभियान चल रहा है। बता दें भारत में गेहूं की गिनती मुख्य खाद्यान्नों में होती है और सर्वाधिक खाए जाने वाले खाद्यन्नों में होती है, जिसकी फसल सबसे अधिक खेती पंजाब और हरियाणा के किसानों द्वारा की जाती है।

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अमेरिका में गेहूं को खाद्यान्न अनाजों के रूप में बहिष्कार की शुरूआत हुई

अमेरिका में गेहूं को खाद्यान्न अनाजों के रूप में बहिष्कार की शुरूआत हुई

अमेरिका में गेहूं को खाद्यान्न अनाजों के रूप में बहिष्कार की शुरूआत एक अमेरिकी हृदय रोग विशेषज्ञ डा. विलियम डेविस की फूड हैबिट पर लिखी गई चर्चित व्हीट बेली (Wheat Belly) से हुई है, जिसमें अमेरिकी डाक्टर ने गेहूं को हृदय रोग के लिए नुकसानदेह करार दिया है। 2011 में लिखी गई यह किताब आज भी अमेरिका में प्रासंगिक बनी है और अमेरिका में खाद्यान्न के रूप में गेहूं को त्यागने का अभियान चल रहा है और बीमारियो से बचने के लिए लोग गेहूं को अपनी किचन की प्लेट से तेजी से गायब कर रहे हैं।

अगर यह अभियान आशंकाओं के प्रतिरूप में जल्द भारत पहुंच गया तो

अगर यह अभियान आशंकाओं के प्रतिरूप में जल्द भारत पहुंच गया तो

माना जा रहा है कि अगर यह अभियान आशंकाओं के प्रतिरूप में जल्द भारत पहुंच गया तो एमएसीपी को लेकर पंजाब और हरियाणा के आंदोलनरत किसानों का क्या होगा, जो अपनी उपज के लिए मंडी खत्म करने और एमएसपी खत्म करने की आशंकाओं के बीच सड़क पर विरोध-प्रदर्शन पर अमादा है। यह आंदोलन पंजाब और हरियाणा में सर्वाधिक मात्रा में उगाए जाने वाली फसल क्रमशः गेहूं और धान को लेकर है और अगर हिंदुस्तान में अमेरिका में गेहूं के खिलाफ चल रहा अभियान पहुंच गया तो सोचिए किसानों का क्या हाल हो सकता है?

अमेरिकी डाक्टर विलियम डेविस की बुक व्हीट बैली ऑनलाइन उपलब्ध है

अमेरिकी डाक्टर विलियम डेविस की बुक व्हीट बैली ऑनलाइन उपलब्ध है

गौरतलब है अमेरिकी डाक्टर विलियम डेविस की किताब व्हीट बैली ऑनलाइन भी उपलब्ध है, जिसमें गेहूं के प्रति उठाई गई आशंकाओं को मुफ्त डाउनलोड करके पढ़ा जा सकता है। चौंकाने वाली बात यह है कि किताब में डा. डेविस का कहना है कि पूरी दुनिया अगर मोटापे, डायबिटीज और हृदय रोगों से स्थाई मुक्ति चाहिए, तो उन्हें पुराने मोटे अनाज मक्का, बाजरा, जौ, चना और ज्वार अथवा मिक्स अनाज से बनी रोटी अथवा ब्रेड ही खाना चाहिए, क्योंकि उनके हिसाब से खालिस गेहूं कई बीमारियों के लिए सीधे-सीधे जिम्मेदार हो सकती है।

पहले मक्का, बाजरा, जौ, ज्वार और चने से बनी रोटियां ही खाई जाती थी

पहले मक्का, बाजरा, जौ, ज्वार और चने से बनी रोटियां ही खाई जाती थी

याद कीजिए, गेहूं से पहले भारत में मोटा अनाज मक्का, बाजरा, जौ, ज्वार और चने से बनी रोटियां ही खाई जाती थी और आज भी ग्रामीण इलाकों में लोगों को मोटे अनाज से बनी रोटियों को खाते हुए देखा जा सकता हैं। वर्तमान में डाक्टर भी मोटे अनाज अथवा चोकर युक्त अनाज खाने की सलाह देते हैं, ताकि पाचन के साथ -साथ डायबिटीज जैसे रोगों से लोग दूर रह सकें। जो लोग डायबिटीज अथवा पाचन रोग से पीड़ित हैं, वो इन तथ्यों से इनकार नहीं करेंगे और भारत वैसे भी मोटापे और डायबिटीज के मामले में दुनिया का राजधानी बन गया है, इससे कौन इनकार कर सकता है।

आक्रांता और मुगल शासक जलालुद्दीन बाबर भारत लेकर आया था गेहूं

आक्रांता और मुगल शासक जलालुद्दीन बाबर भारत लेकर आया था गेहूं

दिलचस्प बात यह है कि 1980 के बाद भारत में अधिक प्रचलित हुए अनाज गेहूं भारत फसल भी नहीं है। माना जाता है कि गेहूं मध्य एशिया और अमेरिकी अनाज है, जिसे विदेशी आक्रांता और मुगल वंश का संस्थापक जलालुद्दीन बाबर भारत लेकर आया था और तब से भारत में गेहूं का प्रचलन ही नहीं बढ़ा, बल्कि इसकी बहुतायत में खेती होने लगी। हालांकि गेहूं बहुत सालों तक एलीट अनाज बना रहा था और तब मध्यवर्गीय और निम्न मध्यवर्गीय आबादी में जौ काफी लोकप्रिय थी और मौसम के अनुसार भारत में लोग मक्का, बाजरा, ज्वार जैसे मोटे अनाजों की रोटियां खाते थे।

भारत के पारंपरिक अनाजों में भी गेहूं का उल्लेख नहीं मिलता है

भारत के पारंपरिक अनाजों में भी गेहूं का उल्लेख नहीं मिलता है

उल्लेखनीय है भारत के पारंपरिक अनाजों में भी गेहूं का उल्लेख नहीं मिलता है। भारतीय अनाजों में प्रमुखत जौ और चावल की अधिक चर्चा है, जिन्हें मांगलिक कार्यों और पूजा पाठ में भी इस्तेमाल किया जाता रहा है। आज भी भारतीय मांगलिक कार्यो में चावल को अक्षत के रूप में इस्तेमाल करते है, जबकि जौ का इस्तेमाल पूजा-पाठ और यज्ञ में आहुति के लिए इस्तेमाल किया जाता है। प्राचीन ग्रंथों में भी इन्हीं दोनों अनाजों का उल्लेख है और भारतीयों की निरोगी काया के लिए लिए भी मोटे अनाजों की भूमिका स्पष्ट होती है, जो बदले हुए जमाने में आज भी प्रासंगिक बना हुआ है।

स्वास्थ्य और निरोगी काया का राज भी भारतीय मोटे अनाजों में छिपा है

स्वास्थ्य और निरोगी काया का राज भी भारतीय मोटे अनाजों में छिपा है

पुराने जमाने के बुजुर्गों और किसानों के स्वास्थ्य और निरोगी काया का राज भी मोटे अनाज ही थे, जिसे खाकर लोग न केवल बीमारी से दूर रहते थे, बल्कि दीर्घायु भी होते है, जबकि वर्तमान में बारीक पिसे गेहूं के आटे और मैदा से निर्मित खाद्य पदार्थ बीमारी के कारण बनकर उभरे हैं, जो डायबिटीज, अपचन और मोटापे के लिए सबसे बड़े जिम्मेदार हैं। एक पीढ़ी पहले भारतीयों के मोटे होने की बात आश्चर्य थी, लेकिन वर्तमान में 77 फीसदी से अधिक भारतीय ओवरवेट हैं। हालांकि इसके लिए बदलती जीवन शैली का भी बड़ा हाथ है, जिसने लोगों को घरों पर बैठा दिया है।

अनाज गेहूं की लोचनीयता ही उसकी लोकप्रियता का बड़ा कारण है

अनाज गेहूं की लोचनीयता ही उसकी लोकप्रियता का बड़ा कारण है

दरअसल, गेहूं की लोचनीयता ही उसकी लोकप्रियता का बड़ा कारण है, जिसकी खाद्य सामग्री न केवल देखने में खूबसूरत होती है, बल्कि यह आसानी से तैयार भी हो जाती है। यह सभी जानते हैं कि पतला और बारीक पिसा हुआ अनाज बेहतर पाचन शक्ति के सही नहीं है, लेकिन अगर डाक्टर ने सलाह नहीं दी है, तो अधिकांश परिवारों की थाली का प्रधान अनाज गेहूं बना हुआ, लेकिन अब समय आ गया है कि रसोई में मोटे अनाजों को प्राथमिकता दी जाए और गेहूं की मात्रा को खाने की थाली से घटाई जाए, जिसके नुकसान की पुष्टि अब अमेरिकी डाक्टर ने भी कर दी है।

कोरोनावायरस महामारी में डायबिटीज पीड़ित लोग अधिक शिकार हुए हैं

कोरोनावायरस महामारी में डायबिटीज पीड़ित लोग अधिक शिकार हुए हैं

यह बात दीगर है कि कोरोनावायरस महामारी में डायबिटीज पीड़ित लोग अधिक शिकार हुए हैं, जिनका औसत करीब 70 फीसदी है। इसलिए जरूरी है कि गेंहू से स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान के बारे हुए अनुसंधान को गंभीरता से लिया जाए ताकि भविष्य में मोटापे और उससे जनित डायबिटीज से बचा जा सके और अगर इसके लिए गेहूं को तिलांजलि देना पड़े, तो जिंदगी के लिए उससे तौबा करने में किसको दिक्कत हो सकती है और अब डाक्टर भी मोटे अनाज की ओर लोगों को बढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।

डाइटीशियन भी गेहूं को कई विलासक बीमारियों की जननी बता चुके हैं

डाइटीशियन भी गेहूं को कई विलासक बीमारियों की जननी बता चुके हैं

अमेरिकी डाक्टर विलियम डेविस की बातों को एक बार अगर किनारे रख दिया जाए तो डाइटीशियन और डाक्टर्स भी गेहूं को कई बिलासक बीमारियों की जननी बता चुके हैं। सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्या है गेहूं अनाज में जो स्वास्थ्य के अनूकूल नहीं होता है और स्वस्थ रहने के उपायों के लिए डाक्टरों और डाइटीशियन द्वारा पुरातन और मोटे अनाजों की ओर मुड़ने की सलाह देते हैं।

गेहूं में पाया जाने वाला प्रोटीन ग्लूटेन स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है

गेहूं में पाया जाने वाला प्रोटीन ग्लूटेन स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है

विशेषज्ञों के मुताबिक गेहूं में पाया जाना वाला प्रोटीन ग्लूटेन स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने के लिए जिम्मेदार है, जो मोटे अनाजों में नहीं पाया जाता है। गेहूं में मौजूद ग्लूटेन प्रोटीन की वजह से उसे गूंथने में आसानी होती है, जबकि मोटे अनाज को गूंथने मे मुश्किल होती है। कहा जाता है कि ग्लूटेन प्रोटीन सीलिएक रोग से पीड़ित रोगों के लिए बेहद खतरनाक होता है।

ग्लुटेन प्रोटीन युक्त रोटी खाने से सीलिएक रोग से पीड़ुित परेशान होते हैं

ग्लुटेन प्रोटीन युक्त रोटी खाने से सीलिएक रोग से पीड़ुित परेशान होते हैं

ग्लुटेन प्रोटीन युक्त रोटी खाने से सीलिएक रोग से पीडि़त लोगों को पेट के रोगों में शामिल क्रमशः अफरा, गैस, डायरिया, उल्टी, माइग्रेन और जोड़ों के दर्द की तकलीफ होती है। सीलिएक रोग सीधे छोटी आंत की पाचनक्रिया को प्रभावित करता है, जो कि लाइलाज बीमारी होती है, लेकिन गेहूं के परहेज से इससे बचा जा सकता है। फिलहाल, पूरी दुनिया में गेहूं में पाए जाने वाले ग्लूटेन प्रोटीन पर रिसर्च हो रहा है।

40 फीसदी लोग ग्लुटेन प्रोटीन को नहीं पचा सकते हैं: अमेरिकी वैज्ञानिक

40 फीसदी लोग ग्लुटेन प्रोटीन को नहीं पचा सकते हैं: अमेरिकी वैज्ञानिक

अमेरिकी वैज्ञानिक डा. डेविड पर्लमुटर ग्लुटेन प्रोटीन के सख्त खिलाफ है, उनके मुताबिक 40 फीसदी लोग ग्लुटेन प्रोटीन को नहीं पचा सकते हैं। डा. डेविड ने भी गेहूं के अलावा चीनी, कार्बोहाइड्रेट वाली चीजों की मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक बताते हैं। यही वजह है कि आजकल बाजार में ग्लुटेन फ्री आटे की डिमांड है, जिसे सफेद चावल के आटे, आलू के स्टार्च, टैपियोका के स्टार्च, ज्वार गम, और नमक मिलाकर तैयार किया जाता है।

Comments
English summary
With the new provisions in the new Agricultural Law 2020 in India, where farmers from Haryana and Punjab have been agitating in the capital Delhi for 7 consecutive days, on the other hand there has been a strange campaign in the US about the main food grains wheat. There is a campaign in the US to abandon wheat and wheat grain foods for health reasons. In India, wheat is counted as the main food grains and among the most eaten food items, whose crop is most cultivated by the farmers of Punjab and Haryana.
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