Farm Bills: क्या मंडी लॉबी के दबाव में हो रहा है कृषि विधेयकों का विरोध ?
नई दिल्ली- सरकार ने गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने की घोषणा करके यह साफ करने की कोशिश की है कि कृषि विधेयकों के पास होने से किसानों को कोई नुकसान नहीं होने जा रहा। यही नहीं कृषि विधेयक में इस तरह के प्रावधान की बात कही गई है, जिससे किसान मंडियों की गुलामी से मुक्त हो सकेंगे और अपनी इच्छा के अनुसार अपनी कीमत पर अपना कृषि उत्पाद बेच सकेंगे। तो सवाल है कि फिर किसानों के नाम पर राजनीतिक पार्टियां इतना हाय-तोबा क्यों मचा रही हैं? हम इन विधेयकों के राजनीतिक विरोध या समर्थन के पीछे नहीं जा रहे। हम सिर्फ कुछ तथ्य आपके सामने रख रहे हैं, जिससे यह सवाल जरूर उठता है कि इसके विरोध के पीछे कहीं मंडी लॉबी तो नहीं है?
कृषि विधेयकों के विरोध के पीछे मंडी लॉबी ?
शिरोमणि अकाली दल की नेता हरसिमरत कौर ने जैसे ही मोदी सरकार से कृषि विधेयकों के विरोध में इस्तीफा दिया इसपर बवाल और ज्यादा बढ़ गया। क्योंकि, सरकार अध्यादेश तो पहले ही लेकर आई थी। उन्हें विरोध करना था तो तभी कर सकती थीं। लेकिन, जब सरकार विधेयक लाई और इसका सियासी दलों के जोरदार विरोध के कारण माहौल बनना शुरू हुआ तो एसएडी नेताओं के कान खड़े हो गए। दरअसल, हरसिमरत कौर का अचानक मंत्री पद छोड़ने के पीछे पंजाब जैसे राज्य में वर्षों से तैयार हुई वह संभ्रांत मंडी व्यवस्था है, जिसकी उपज कई राजनीतिक दल पीढ़ियों से खा रहे हैं। सच्चाई तो यह है कि जो भी राजनीतिक दल पंजाब में सत्ता में आने की इच्छा रखते हैं, वह कभी भी मंडी लॉबी को नाराज करने का जोखिम मोल नहीं ले सकते। क्योंकि, उनका नेटवर्क इतना तगड़ा है, जिससे कि राज्य सरकार का खजाना भी भरता है और बिचौलियों (आढ़तियों) के एक बड़े वर्ग की कमाई भी होती है।
Recommended Video
पंजाब सबसे ज्यादा मंडी टैक्स वसूलता है
दरअसल, जीएसटी लागू होने के बावजूद भी एफसीआई और राज्य की दूसरी खरीद एजेंसियों से राज्य सरकारें मुख्यतौर पर धान और गेहूं की खरीद के लिए लेवी के रूप में मोटी रकम वसूलती हैं। सिर्फ पंजाब और हरियाणा ही दो ऐसे राज्य हैं जहां अभी भी अनाजों की खरीद एपीएमसी (एग्रीकल्चर प्रोड्यूस एंड लाइवस्टॉक मार्केट कमिटी) मंडियों के माध्यम से ही होती है। यही दोनों राज्य कृषि उत्पादों के कारोबार पर सबसे ज्यादा टैक्स भी वसूलते हैं। इसके चलते केंद्र सरकार पर फूड सब्सिडी का बोझ भी बहुत ज्यादा हो चुका है। एफसीआई और दूसरी एजेंसियां इन मंडियों से जो अनाज खरीदती हैं, उसपर पंजाब सरकार उनसे एमएसपी का कुल 8.5 % टैक्स के रूप में वसूलती है। इनमें मार्केट फीस के तौर पर 3%, ग्रामीण विकास सेस 3% और 2.5% आढ़तियों (बिचौलियों) का कमीशन शामिल होता है।
राज्य सरकारों और आढ़तियों की कमाई का जरिया
पंजाब से ज्यादा पीछे हरियाणा भी नहीं है। यहां एमएसपी पर कृषि उत्पादों की खरीद पर 6.5 % का टैक्स वसूला जाता है। इसमें 2% मार्केट फीस, 2% डेवलपमेंट सेस और 2.5% आढ़तियों के नाम पर वसूला जाता है। जबकि, देश के बाकी हिस्सों में यह औसतन 6% रहता है। इन दोनों राज्यों में यह सरकारों और बिचौलियों की कमाई का कितना मोटा जरिया है, यह इन आंकड़ों से पता चलता है। 2019-20 में पूरे देश में मंडी फीस के तौर पर देश में कुल 8,600 करोड़ रुपये वसूले गए। इनमें से सिर्फ पंजाब (1,750 करोड़) और हरियाणा (850 करोड़) का हिस्सा 2,600 करोड़ रुपये है।
केंद्र सरकार को होता है बड़ा नुकसान
जीएसटी से पहले एफसीआई अनाज खरीद के लिए जो मंडियों को विभिन्न लेवी का भुगतान करती थी, वह कई बार एमएसपी का औसतन 13% तक होता था। हरियाणा में तब यह 11.5%, पंजाब में 14.5% और आंध्र प्रदेश में 13.5% तक था। जबकि, तब भी राजस्थान में यह सिर्फ 3.6% ही होता था। मंडी लॉबी की इस मार का सबसे बड़ा भुक्तभोगी केंद्र सरकार ही रही है। मसलन, 2019-20 में केंद्र ने एफसीआई और दूसरी एजेंसियों के जरिए जो सिर्फ धान और गेहूं की खरीद की थी, उसकी एवज में उसे 7,600 करोड़ रुपये सिर्फ मंडी टैक्स और आढ़तियों के कमीशन के रूप में देने पड़ गए। जबकि, जीएसटी लागू होने से पहले साल 2015-16 में एफसीआई ने अकेले पंजाब, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और ओडिशा जैसे राज्यों को वैट, मंडी टैक्स और आढ़ितों के कमीशन की एवज में 10,336 करोड़ रुपये का भुगतान किया था।
इसे भी पढ़ें- शशि थरुर का तंज- सरकार ने पूरी तरह से NDA का नया अर्थ दे दिया है "No data available"