इस अगस्त ने हम से छीन लीं ये महान हस्तियां
नई दिल्ली। अगस्त का महीना आज खत्म हो रहा है। 2018 के अगस्त माह में दुनियाभर के कई बड़े बुद्धिजीवी और राजनेता दुनिया छोड़ गए। खासतौर से भारत के लिए ये माह थोड़ा ज्यादा दुख पहुंचाने वाला रहा। अपने-अपने क्षेत्रों की कई दिग्गज हस्तियां इस महीने दुनिया छोड़ गईं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जैसे बड़े नेता दुनिया छोड़ गए तो कुलदीप नैयर जैसे पत्रकारिता जगत के सितारे और वीएस नॉयपॉल जैसे बड़े लेखक भी दुनिया को अलविदा कह गए। वो हस्तियां जो इस अगस्त ने हम से छीन लीं-
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी
तीन बार भारत के प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी इस अगस्त दुनिया छोड़ गए। वो 93 साल के थे। दो महीने तक एम्स में भर्ती रहे वाजपेयी की तबीयत लगातार बिगड़ती रही। कई दिनों तक जीवन रक्षक उपकरणों पर रखे जाने के बाद 16 अगस्त को उनका देहांत हो गया। वाजपेयी 9 साल से बीमार थे और सार्वजनिक जीवन से दूर थे।
भारत रत्न से सम्मानित वाजपेयी 1957 में पहली बार बने लोकसभा सांसद बने। वो 47 साल तक संसद सदस्य रहे। 10 बार लोकसभा और दो बार राज्यसभा के लिए चुने गए। पहली बार 1996 में 13 दिनों के लिए फिर 1998 से 1999 और आखिरी बार 1999 से 2004 तक। वाजपेयी को को पहली बार पांच साल तक गैर-कांग्रेसी सरकार चलाने के लिए जाना जाता है।
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तमिलनाडु के पूर्व सीएम एम करुणानिधि
द्रमुक के मुखिया और पांच बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे एम करुणानिधि का सात अगस्त को निधन हो गया। वो 94 साल के थे। करुणानिधि ने लंबी बीमारी के बाद चेन्नई के कावेरी अस्पताल में आखिरी सांस ली। 50 साल पहले 26 जुलाई, 1969 को उन्होंने डीएमके की कमान अपने हाथों में ली और तब से लेकर अपनी मौत तक वो पार्टी के मुखिया बने रहे। करीब सात दशकों तक वो राजनीति में रहे। दक्षिण भारत की राजनीति का वो एक बड़ा चेहरा थे और बीते कई दशकों से तमिलनाडु की राजनीति उनके इर्द-गिर्द घूमती रही थी।
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कोफी अन्नान
संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान 18 अगस्त को दुनिया को अलविदा कह गए। बीमारी से जूझ रहे अन्नान 80 साल के थे। घाना में 1938 को जन्मे कोफी अन्नान जनवरी 1997 से दिसंबर 2006 तक संयुक्त राष्ट्र के महासचिव पद पर रहे। संयुक्त राष्ट्र में शीर्ष पद तक पहुंचने वाले पहले अफ्रीकी थे। अन्नान को साल 2001 में शांति के नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया था।
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वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर
पत्रकारिता जगत का बड़ा चेहरा रहे वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर का 95 साल की उम्र में 23 अगस्त को निधन हो गया। पत्रकारिता और लेखन में उन्होंने कई मुकाम हासिल किए। अपने क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए 1997 में उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया। नैयर 1996 में संयुक्त राष्ट्र के लिए भारत के प्रतिनिधिमंडल के सदस्य थे। 1990 में उन्हें ग्रेट ब्रिटेन में उच्चायुक्त नियुक्त किया गया था।
नैयर ने कई किताबें लिखीं। उनकी आत्मकथा 'बियांड द लाइंस' काफी चर्चित रही थी। इसका हिंदी में अनुवाद, एक जिंदगी काफी नहीं नाम से प्रकाशित हुआ, जो काफी पसंद की गई। इसके अलावा 'बिटवीन द लाइंस,', 'डिस्टेंट नेवर : ए टेल ऑफ द सब कान्टिनेंट', 'इंडिया आफ्टर नेहरू', 'वाल एट वाघा, इंडिया पाकिस्तान रिलेशनशिप', 'इण्डिया हाउस' जैसी कई किताबें नैयर ने लिखीं। नैयर डेक्कन हेराल्ड, द डेली स्टार, द संडे गार्जियन, द न्यूज, द स्टेट्समैन, डॉन, सहित दुनियाभर के समाचार पत्रों के लिए कॉलम लिखते रहे।
पूर्व लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी
लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष और बड़े वामपंथी नेता सोमनाथ चटर्जी का 13 अगस्त को 89 साल की उम्र में निधन हो गया। अपने राजनीतिक जीवन में 10 बार सांसद रहे चटर्जी को दिल का दौरा पड़ने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था। दो दिनों से उन्हें वेटिंलेटर पर रखा गया लेकिन उन्हें बचाया ना जा सका।
चटर्जी का जन्म 25 जुलाई, 1929 को हुआ था। सोमनाथ चटर्जी ने ब्रिटेन के मिडल टेंपल से बैरिस्टर की पढ़ाई की थी। सोमनाथ चटर्जी ने सीपीएम के साथ राजनीतिक करियर की शुरुआत 1968 में की। 1971 में वह पहली बार सांसद चुने गए। चटर्जी 10 बार लोकसभा सदस्य के रूप में चुने गए। वह 2004 से 2009 तक लोकसभा के स्पीकर रहे।
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मशहूर लेखक वीएस नायपॉल
साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता मशहूर लेखक विद्याधर सूरजप्रसाद नायपॉल का 11 अगस्त को निधन हो गया। 85 साल की उम्र में लंदन स्थित अपने घर में उन्होंने आखिरी सांस ली। भारतीय मूल के नायपॉल का जन्म साल 1932 में त्रिनिदाद में हुआ था। नायपॉल ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की थी। नायपॉल ने अपने साहित्य जीवन में 30 से ज्यादा किताबें लिखीं।
ए बेंड इन द रिवर और अ हाउस फॉर मिस्टर बिस्वास नायपॉल की चर्चित कृतियां हैं। नायपॉल को 1971 में बुकर प्राइज और साल 2001 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। नायपॉल की पहली किताब 'द मिस्टिक मैसर' साल 1951 में प्रकाशित हुई थी।
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