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ग़लत तस्वीरों के दम पर बीजेपी का गंगा सफ़ाई का दावा फ़र्ज़ी: फ़ैक्ट चेक

दक्षिण भारत के कई सोशल मीडिया ग्रुप्स में तस्वीरों का एक जोड़ा इस दावे के साथ शेयर किया जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने कुछ ही सालों में गंगा नदी की सफाई के नए कीर्तिमान स्थापित किये हैं.

कुछ सोशल मीडिया ग्रुप्स में #5YearChallenge के साथ, तो कुछ में #10YearChallenege के साथ इन तस्वीरों को शेयर किया गया है और दावा किया गया है कि कांग्रेस की सरकार में गंगा नदी की स्थिति काफ़ी ख़राब थी जिसमें बीजेपी सरकार ने तेज़ी से सुधार किया है.

तमिलनाडु की बीजेपी ईकाई में महासचिव वनथी श्रीनिवासन ने भी इन तस्वीरों को ट्वीट किया है. उन्होंने लिखा कि कांग्रेस सरकार के समय (2014) और अब बीजेपी सरकार के दौरान (2019) गंगा की स्थिति में हुए बदलाव को देखिए.

दक्षिण भारत के कुछ अन्य बीजेपी नेताओं ने भी इन तस्वीरों को अपने आधिकारिक सोशल मीडिया पन्नों पर शेयर किया है.

'द फ़्रस्ट्रेटिड इंडियन' और 'राइट लॉग डॉट इन' जैसे दक्षिणपंथी रुझान वाले सोशल मीडिया ग्रुप्स ने भी इन तस्वीरों को शेयर किया है और हज़ारों लोग इन ग्रुप्स से ये तस्वीरें शेयर कर चुके हैं.

कन्नड़ भाषी फ़ेसबुक ग्रुप 'BJP for 2019 - Modi Mattomme' ने भी पिछले सप्ताह इन्हीं तस्वीरों को पोस्ट किया था और लिखा था, "कितना अंतर आ गया है, आप ख़ुद देखिए. ये बदलाव काफ़ी है ये कहने के लिए- एक बार फिर मोदी सरकार".

लेकिन अपनी पड़ताल में हमने पाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकसभा सीट और हिंदुओं के लिए बहुत बड़ी धार्मिक मान्यता रखने वाले वाराणसी शहर की जिस तस्वीर को 'गंगा की सफ़ाई का सबूत' बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट किया गया, वो ग़लत है.

पड़ताल से पता चला कि ये तस्वीरें 2009 और 2019 की नहीं हैं.

पहली तस्वीर...

रिवर्स इमेज सर्च से पता चलता है कि जिस वायरल तस्वीर को साल 2009 का बताया गया है, उसे साल 2015 से 2018 के बीच 'आउटलुक मैग्ज़ीन' ने फ़ाइल तस्वीर के तौर पर कई दफ़ा इस्तेमाल किया है.

लेकिन ये तस्वीर कब खींची गई थी? ये जानने के लिए हमने आउटलुक मैग्ज़ीन के फ़ोटो एडिटर जितेंद्र गुप्ता से बात की.

उन्होंने बताया, "साल 2011 के मध्य में वो गंगा के हालात पर फ़ोटो स्टोरी करने वाराणसी गए थे. ये उसी सिरीज़ की फ़ोटो है जो बाद में भी कई कहानियों में फ़ाइल तस्वीर के तौर पर इस्तेमाल हो चुकी है."

साल 2011 में केंद्र में कांग्रेस की और उत्तर प्रदेश में बसपा की सरकार थी.

अब दूसरी तस्वीर...

यह वो तस्वीर है जिसके आधार पर बीजेपी नेताओं ने गंगा नदी के कायापलट का दावा किया है और इसे साल 2019 का बताया है.

रिवर्स सर्च से पता चलता है कि ये तस्वीर विकीपीडिया से उठाई गई है.

उत्तरी यूरोप के एक विकीपीडिया पेज पर ये तस्वीर लगी हुई है और इस पेज पर उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर का ब्यौरा दिया गया है.

विकीपीडिया ने इस पन्ने पर फ़ोटो वेबसाइट फ़्लिकर के लिए अमरीकी फ़ोटोग्राफ़र केन वीलैंड द्वारा खींची गई इसी तस्वीर को इस्तेमाल किया है.

फ़ोटोग्राफ़र के अनुसार मालवा साम्राज्य की रानी अहिल्याबाई होलकर के नाम पर बने वाराणसी स्थित 'अहिल्या घाट' की ये तस्वीर मार्च 2009 में खींची गई थी.

साल 2009 में भी केंद्र में कांग्रेस की ही सरकार थी और सूबे की कमान बसपा नेता मायावती के हाथ में थी.

यानी जिन तस्वीरों के आधार पर बीजेपी के नेता गंगा की सफ़ाई का दावा कर रहे हैं, वे दोनों ही तस्वीरें कांग्रेस के कार्यकाल में खींची गई थीं.


गंगा की स्थिति

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल ही गंगा की सफ़ाई के लिए सरकार के प्रयासों का मूल्यांकन करने वाली एक संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि गंगा सफ़ाई के लिए सरकार द्वारा उठाए गए क़दम पर्याप्त नहीं हैं.

वहीं नेशनल ग्रीन ट्रिब्‍यूनल भी गंगा की सफ़ाई को लेकर सरकार को फटकार लगा चुका है.

पिछले साल 112 दिन तक अनशन पर बैठने वाले पर्यावरणविद् प्रोफ़ेसर जीडी अग्रवाल उर्फ़ स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद ने अपना जीवन गंगा की सफ़ाई के लिए ही दे दिया था.

https://twitter.com/zoo_bear/status/1050412579233775616

अनशन के दौरान जीडी अग्रवाल ने कहा था, "हमने प्रधानमंत्री कार्यालय और जल संशाधन मंत्रालय को कई सारे पत्र लिखे, लेकिन किसी ने भी जवाब देने की ज़हमत नहीं उठाई."

साल 2014 में बतौर प्रधानमंत्री कैंडिडेट नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में गंगा की सफ़ाई का ज़िक्र किया था. तब उन्‍होंने सांसद प्रत्याशी के रूप में गंगा को नमन करते हुए कहा था- "न मैं यहाँ ख़ुद आया हूँ, न किसी ने मुझे लाया है, मुझे तो माँ गंगा ने बुलाया है."

पीएम मोदी ने सत्‍ता में आने के बाद शुरुआती साल में गंगा सफ़ाई को लेकर गंभीरता भी दिखाई थी और इसके लिए गंगा संरक्षण मंत्रालय बनाया गया था.

एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार ने राज्य सभा में बताया था कि साल 2014 से जून 2018 तक गंगा नदी की सफ़ाई के लिए 3,867 करोड़ रुपये से अधिक राशि ख़र्च की जा चुकी है. जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण राज्य मंत्री डॉ. सत्यपाल सिंह ने जुलाई 2018 में राज्यसभा में ये जानकारी दी थी.

लेकिन साल 2018 में एक आरटीआई में यह सामने आया कि मोदी सरकार के पास कोई ऐसे आंकड़े नहीं हैं जिनसे पता चल सके कि अब तक गंगा की कितनी सफ़ाई हुई है.

ग़लत दावा, पहली बार नहीं...

नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने अब तक के कार्यकाल में कथित तौर पर जिस तेज़ी से सड़कों का विकास किया, उसे दिखाने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने सोशल मीडिया पर कुछ तस्वीरें पोस्ट की थीं, उन्हें बीबीसी ने अपनी पड़ताल में ग़लत पाया था.

बीजेपी ने आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे और दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे की तस्वीरों के आधार पर वेस्टर्न पेरिफ़ेरल एक्सप्रेस-वे का काम तेज़ी से पूरा करने का ग़लत दावा पेश किया था.

पूरी कहानी पढ़ें:BJP के 5yearchallenge कैंपेन में ये दावा फ़र्ज़ी

 

पढ़ें 'फ़ैक्ट चेक' की अन्य कहानियाँ:

By BBC News हिन्दी
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ग़लत तस्वीरों के दम पर बीजेपी का गंगा सफ़ाई का दावा फ़र्ज़ी: फ़ैक्ट चेक

दक्षिण भारत के कई सोशल मीडिया ग्रुप्स में तस्वीरों का एक जोड़ा इस दावे के साथ शेयर किया जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने कुछ ही सालों में गंगा नदी की सफाई के नए कीर्तिमान स्थापित किये हैं.

कुछ सोशल मीडिया ग्रुप्स में #5YearChallenge के साथ, तो कुछ में #10YearChallenege के साथ इन तस्वीरों को शेयर किया गया है और दावा किया गया है कि कांग्रेस की सरकार में गंगा नदी की स्थिति काफ़ी ख़राब थी जिसमें बीजेपी सरकार ने तेज़ी से सुधार किया है.

तमिलनाडु की बीजेपी ईकाई में महासचिव वनथी श्रीनिवासन ने भी इन तस्वीरों को ट्वीट किया है. उन्होंने लिखा कि कांग्रेस सरकार के समय (2014) और अब बीजेपी सरकार के दौरान (2019) गंगा की स्थिति में हुए बदलाव को देखिए.

दक्षिण भारत के कुछ अन्य बीजेपी नेताओं ने भी इन तस्वीरों को अपने आधिकारिक सोशल मीडिया पन्नों पर शेयर किया है.

'द फ़्रस्ट्रेटिड इंडियन' और 'राइट लॉग डॉट इन' जैसे दक्षिणपंथी रुझान वाले सोशल मीडिया ग्रुप्स ने भी इन तस्वीरों को शेयर किया है और हज़ारों लोग इन ग्रुप्स से ये तस्वीरें शेयर कर चुके हैं.

कन्नड़ भाषी फ़ेसबुक ग्रुप 'BJP for 2019 - Modi Mattomme' ने भी पिछले सप्ताह इन्हीं तस्वीरों को पोस्ट किया था और लिखा था, "कितना अंतर आ गया है, आप ख़ुद देखिए. ये बदलाव काफ़ी है ये कहने के लिए- एक बार फिर मोदी सरकार".

लेकिन अपनी पड़ताल में हमने पाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकसभा सीट और हिंदुओं के लिए बहुत बड़ी धार्मिक मान्यता रखने वाले वाराणसी शहर की जिस तस्वीर को 'गंगा की सफ़ाई का सबूत' बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट किया गया, वो ग़लत है.

पड़ताल से पता चला कि ये तस्वीरें 2009 और 2019 की नहीं हैं.

पहली तस्वीर...

रिवर्स इमेज सर्च से पता चलता है कि जिस वायरल तस्वीर को साल 2009 का बताया गया है, उसे साल 2015 से 2018 के बीच 'आउटलुक मैग्ज़ीन' ने फ़ाइल तस्वीर के तौर पर कई दफ़ा इस्तेमाल किया है.

लेकिन ये तस्वीर कब खींची गई थी? ये जानने के लिए हमने आउटलुक मैग्ज़ीन के फ़ोटो एडिटर जितेंद्र गुप्ता से बात की.

उन्होंने बताया, "साल 2011 के मध्य में वो गंगा के हालात पर फ़ोटो स्टोरी करने वाराणसी गए थे. ये उसी सिरीज़ की फ़ोटो है जो बाद में भी कई कहानियों में फ़ाइल तस्वीर के तौर पर इस्तेमाल हो चुकी है."

साल 2011 में केंद्र में कांग्रेस की और उत्तर प्रदेश में बसपा की सरकार थी.

अब दूसरी तस्वीर...

यह वो तस्वीर है जिसके आधार पर बीजेपी नेताओं ने गंगा नदी के कायापलट का दावा किया है और इसे साल 2019 का बताया है.

रिवर्स सर्च से पता चलता है कि ये तस्वीर विकीपीडिया से उठाई गई है.

उत्तरी यूरोप के एक विकीपीडिया पेज पर ये तस्वीर लगी हुई है और इस पेज पर उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर का ब्यौरा दिया गया है.

विकीपीडिया ने इस पन्ने पर फ़ोटो वेबसाइट फ़्लिकर के लिए अमरीकी फ़ोटोग्राफ़र केन वीलैंड द्वारा खींची गई इसी तस्वीर को इस्तेमाल किया है.

फ़ोटोग्राफ़र के अनुसार मालवा साम्राज्य की रानी अहिल्याबाई होलकर के नाम पर बने वाराणसी स्थित 'अहिल्या घाट' की ये तस्वीर मार्च 2009 में खींची गई थी.

साल 2009 में भी केंद्र में कांग्रेस की ही सरकार थी और सूबे की कमान बसपा नेता मायावती के हाथ में थी.

यानी जिन तस्वीरों के आधार पर बीजेपी के नेता गंगा की सफ़ाई का दावा कर रहे हैं, वे दोनों ही तस्वीरें कांग्रेस के कार्यकाल में खींची गई थीं.


गंगा की स्थिति

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल ही गंगा की सफ़ाई के लिए सरकार के प्रयासों का मूल्यांकन करने वाली एक संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि गंगा सफ़ाई के लिए सरकार द्वारा उठाए गए क़दम पर्याप्त नहीं हैं.

वहीं नेशनल ग्रीन ट्रिब्‍यूनल भी गंगा की सफ़ाई को लेकर सरकार को फटकार लगा चुका है.

पिछले साल 112 दिन तक अनशन पर बैठने वाले पर्यावरणविद् प्रोफ़ेसर जीडी अग्रवाल उर्फ़ स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद ने अपना जीवन गंगा की सफ़ाई के लिए ही दे दिया था.

https://twitter.com/zoo_bear/status/1050412579233775616

अनशन के दौरान जीडी अग्रवाल ने कहा था, "हमने प्रधानमंत्री कार्यालय और जल संशाधन मंत्रालय को कई सारे पत्र लिखे, लेकिन किसी ने भी जवाब देने की ज़हमत नहीं उठाई."

साल 2014 में बतौर प्रधानमंत्री कैंडिडेट नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में गंगा की सफ़ाई का ज़िक्र किया था. तब उन्‍होंने सांसद प्रत्याशी के रूप में गंगा को नमन करते हुए कहा था- "न मैं यहाँ ख़ुद आया हूँ, न किसी ने मुझे लाया है, मुझे तो माँ गंगा ने बुलाया है."

पीएम मोदी ने सत्‍ता में आने के बाद शुरुआती साल में गंगा सफ़ाई को लेकर गंभीरता भी दिखाई थी और इसके लिए गंगा संरक्षण मंत्रालय बनाया गया था.

एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार ने राज्य सभा में बताया था कि साल 2014 से जून 2018 तक गंगा नदी की सफ़ाई के लिए 3,867 करोड़ रुपये से अधिक राशि ख़र्च की जा चुकी है. जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण राज्य मंत्री डॉ. सत्यपाल सिंह ने जुलाई 2018 में राज्यसभा में ये जानकारी दी थी.

लेकिन साल 2018 में एक आरटीआई में यह सामने आया कि मोदी सरकार के पास कोई ऐसे आंकड़े नहीं हैं जिनसे पता चल सके कि अब तक गंगा की कितनी सफ़ाई हुई है.

ग़लत दावा, पहली बार नहीं...

नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने अब तक के कार्यकाल में कथित तौर पर जिस तेज़ी से सड़कों का विकास किया, उसे दिखाने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने सोशल मीडिया पर कुछ तस्वीरें पोस्ट की थीं, उन्हें बीबीसी ने अपनी पड़ताल में ग़लत पाया था.

बीजेपी ने आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे और दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे की तस्वीरों के आधार पर वेस्टर्न पेरिफ़ेरल एक्सप्रेस-वे का काम तेज़ी से पूरा करने का ग़लत दावा पेश किया था.

पूरी कहानी पढ़ें:BJP के 5yearchallenge कैंपेन में ये दावा फ़र्ज़ी

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English summary
False claim of BJPs Ganga purview on false pictures Fact check
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