खाद्य कीमतों में गिरावट दो-धारी तलवार की तरह
नई दिल्ली। पिछले कुछ महीनों में खाद्य कीमतों में गिरावट से सरकार को मुद्रास्फीति को कवर में रखने में मदद की है, लेकिन यह खर्च करने के मामले में नीति निर्माताओं के बजटीय समस्या को भी दिखाता है। अच्छी फसल और खेती के उत्पादन में वृद्धि हुई, जिसने खाद्य कीमतों को नीचे रखा है, एक तरह से यह डबल धार वाली तलवार साबित हुई है। खाद्य कीमतों में कमी और कमजोर मुद्रास्फीति संख्या का मतलब है कि सरकार को किसनों को और ज्यादा क्षतिपूर्ति करना चाहिए। बता दें कि सरकार अपनी एमएसपी नीति और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2020 तक कृषि आय को दोगुना करने के उद्देश्य से प्रतिबंद्ध है।
बजटीय समस्याओं के अलावा, मुद्रास्फीति नियंत्रण उपभोक्ताओं के लिए अच्छा है। पिछले सप्ताह जारी डेटा के अनुसार धान, दूध और तिलहनों के मुद्रास्फीति में गिरावट आई है, जबकि अनाज, गेहूं और आलू में क्रमशः 5.54%, 8.87% और 80.13% की वृद्धि हुई है। वही होल सेल बाजार में प्याज, अंडे और मांस के मुद्रास्फीति धीमी है। कई लोगों को कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के बाद मुद्रास्फीति में भी बढ़तोरी की उम्मीद थी क्योंकि अक्सर तेल की कीमतों को मुद्रास्फीति से जोड़कर देखा जाता रहा है।
तेल के कीमतों में बढ़ोतरी के बाद भी मुद्रास्फीति की दर एक ही दिशा में है। हालांकि कच्चे तेल की कीमत अर्थव्यवस्था के वित्तीय और चालू खाते को प्रभावित करेगी। बता दें कि मुद्रास्फीति बाजार में वस्तुओं की कीमत को प्रभावित करता है। अगर मुद्रास्फीति कंटोल में है तो समझ लीजिए मूल्य वृद्धि नियंत्रण में है। इसलिए उपभोक्ताओं के लिए यह एक अच्छी खबर है लेकिन खर्च करने के मामले में सराकर के लिए एक समस्या है।
भारत के थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) या थोक मुद्रास्फीति सितंबर 2018 में 5.13% रही जबकि अगस्त में 4.53% थी। समाप्ति तिमाही सितंबर 2018 में थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) वार्षिक वृद्धि 4.98% थी। पिछले तीन तिमाहियों में 4% से अधिक की वृद्धि देखने को मिली है। पिछले तीन तिमाहियों में 4% से अधिक की वृद्धि के बाद, इस अवधि में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) 3.88% बढ़ गया।