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कोरोना वायरस के दौर में भी जारी मुसलमानों को लेकर नफ़रत फैलाने वाली फ़ेक न्यूज़

दिल्ली दंगों के बाद कोरोना वायरस महामारी फैली तो फ़ेक न्यूज़ में इस महामारी ने जगह ले ली. बीबीसी की रिएलिटी चेक.

By श्रुति मेनन
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मुस्लिम लोग
Getty Images
मुस्लिम लोग

फ़ेक या भ्रामक ख़बरें उन पर असली प्रभाव डालती हैं जो ख़ुद को इसका शिकार समझते हैं. कोरोना वायरस महामारी के दौरान भारत में यह एक ख़ास समस्या है जहां समाचार के विश्वसनीय स्रोत अक्सर असत्यापित ऑनलाइन सूचनाओं के ज़रिए पीछे छूट जाते हैं.

ग़लत सूचनाएं अल्पसंख्यक समुदायों के लिए गंभीर परिणाम लेकर आई हैं. इसके साथ ही मांस उद्योग जैसे कुछ बिज़नेस सेक्टर्स के लिए भी यह गंभीर है.

रिएलिटी चेक टीम ने ग़लत सूचनाओं के इस क्षेत्र पर नज़र डाली है और इससे सीधे तौर पर प्रभावित लोगों के बारे में जाना.

धार्मिक तनाव को हवा

भारत में ऑनलाइन फैल रही ग़लत जानकारियों में धर्म एक ख़ास विषय है और कोरोना वायरस महामारी के दौर में यह और अधिक उजागर हुआ है.

इस साल जनवरी से जून के बीच भारत की पांच फ़ैक्ट-चेकिंग वेबसाइट ने जिन झूठे दावों की पोल खोली उस पर हमने नज़र दौड़ाई.

इनमें चार विषय शीर्पर रहे हैं:

  • कोरोना वायरस महामारी
  • फ़रवरी के दिल्ली दंगे
  • नागरिकता संशोधन क़ानून
  • मुस्लिम अल्पसंख्यकों को लेकर दावे

पांच भारतीय वेबसाइटों के 1,447 फ़ैक्ट-चेक्स की ख़बरों में कोरोना वायरस छाया हुआ है. इनमें 58 फ़ीसदी ख़बरें इस विषय से जुड़ी हैं.

इनमें अधिकतर दावे वायरस की उत्पत्ति की साज़िश, लॉकडाउन को लेकर अफ़वाहें और झूठे इलाज को लेकर थीं.

ग्राफ़
BBC
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कोरोना वायरस महामारी के मार्च में शुरू होने से पहले जनवरी से लेकर मार्च की शुरुआत तक फ़ेक न्यूज़ में नागरिकता संशोधन क़ानून की भरमार थी.

इस क़ानून के तहत भारत के तीन पड़ोसी देशों से आने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को नागरिकता दिया जाना है लेकिन इसमें मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया था.

इस क़ानून का देशभर में बहुत विरोध हुआ क्योंकि इसके कारण मुसलमानों को हाशिए पर ढकेल दिए जाने का डर है.

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फ़रवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाक़ों के आसपास जब हिंसा हुई तो उस समय भी बहुत भ्रामक दावे किए गए.

इसमें नकली वीडियो, फ़र्ज़ी तस्वीरों-संदेशों, पुरानी घटना की तस्वीरों और वीडियो का इस्तेमाल किया गया.

कोरोना वायरस ने जब भारत पर हमला बोला?

हमारे विश्लेषण में पाया गया है कि जब अप्रैल में कोरोना के मामलों में बढ़ोतरी हुई तो ग़लत सूचनाओं के ज़रिए मुसलमानों को निशाना बनाया गया.

ऐसा तब हुआ जब निज़ामुद्दीन में इस्लामी समूह तबलीग़ी जमात के कई सदस्य एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे और कुछ लोग कोरोना वायरस पॉज़िटिव पाए गए थे.

इस समूह के सदस्य जैसे-जैसे पॉज़िटिव पाए गए मुसलमानों को लेकर झूठे दावे तेज़ी से फैलने लगे. इनमें यह दावा किया गया था कि मुसलमान जानबूझकर वायरस फैला रहे हैं.

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देश के कई हिस्सों में मुसलमानों के व्यापार का बहिष्कार किया गया.

सब्ज़ी बेचने वाले इमरान (जो अपना असली नाम नहीं बताना चाहते हैं) बीबीसी से कहते हैं कि व्हाट्सऐप पर एक आए एक फ़र्ज़ी वीडियो में दिखाया गया कि मुस्लिम व्यक्ति ब्रेड पर थूक रहा है जो वायरल हो गया था और इसमें मुसलमानों के बहिष्कार का आह्वान किया गया था.

उत्तर प्रदेश में रहने वाले इमरान कहते हैं, "जब हम आमतौर पर सब्ज़ी बेचने गए थे तो हम गांवों में दाख़िल होने से पहले डरते थे."

इमरान और उनके समुदाय के दूसरे सब्ज़ी विक्रेता शहर के बाज़ार में सब्ज़ी बेचते हैं.

राजधानी दिल्ली में अल्पसंख्यकों के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए काम करने वाले अल्पसंख्यक आयोग ने पुलिस को आधिकारिक रूप से निर्देश दिया था कि वो मुसलमानों को रिहाइशी इलाक़ों में घुसने से मना करने वाले या व्यापार न करने देने वाले लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करे.

आयोग के अध्यक्ष ज़फ़रुल इस्लाम ने बीबीसी से कहा, "तबलीग़ी जमात से जुड़े लोगों पर ही नहीं बल्कि भारत के सभी हिस्सों में मुसलमानों पर हमले हुए."

मांस का कारोबार करने वालों को बनाया गया निशाना

भारत में इस झूठी बात का दावा भी ज़ोर-शोर से किया गया कि शाकाहारी खाना खाने से और मांस छोड़ देने से आप कोरोना वायरस संक्रमण से बच सकते हैं.

सरकार ने ऐसी झूठी ख़बरों को फैलने से रोकने के लिए अभियान चलाया है.

इन झूठे व्हाट्सऐप संदेशों और सोशल मीडिया पोस्ट ने सिर्फ़ मुसलमानों ही नहीं बल्कि मांस उद्योग से जुड़े दूसरे ग़ैर-मुस्लिम समूहों पर भी असर डाला.

अप्रैल तक भारतीय विभागों ने आंकलन किया था कि मुर्गी पालन उद्योग को 130 अरब का नुक़सान हुआ.

चिकन विक्रेता
Getty Images
चिकन विक्रेता

भारत में मांस की भरपाई के लिए मुर्गी पालन भी एक अहम स्रोत है.

महाराष्ट्र के एक मांस व्यापारी सुजीत प्रभावले कहते हैं, "हम मुफ़्त में मुर्ग़े बांट रहे थे क्योंकि हमें मालूम नहीं था कि हम इस स्टॉक का क्या करेंगे. हमारी बिक्री 80 फ़ीसदी तक गिर गई थी."

महाराष्ट्र के ही एक अन्य मांस व्यापारी तौहीद बरास्कर कहते हैं, "मैंने व्हाट्सऐप पर एक संदेश देखा कि चिकन खाने से कोरोना वायरस फैलता है तो इसके कारण लोगों ने मांस ख़रीदना बंद कर दिया."

मांस को लेकर जो झूठी ख़बरें वायरल हुईं उसमें पूर्व भारतीय क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर का बयान भी था जिसमें वो मांस की दुकान बंद करने की मांग कर रहे हैं.

फ़ैक्ट-चेकिंग वेबसाइट अल्ट-न्यूज़ के संस्थापक प्रतीक सिन्हा कहते हैं, "भरोसेमंद स्रोत से ग़लत सूचनाएं लोगों तक पहुंचती रहेंगी तो वो उस पर बिना फ़ैक्ट जांचे भरोसा करने लगेंगे."

केवल मांस उद्योग ही फ़ेक न्यूज़ से पीड़ित नहीं रहा,अंडे और मक्के की बिक्री पर भी असर पड़ा क्योंकि मक्का मुर्गों को खिलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

आधिकारिक डाटा के अनुसार, जनवरी और जून के बीच अंडों की बिक्री दिल्ली में 30 फ़ीसदी, मुंबई में 21 फ़ीसदी और हैदराबाद में 52 फ़ीसदी तक गिरी.

मांग में कमी आने के कारण मक्के के किसान अपनी फसल भारत सरकार के तय किए गए न्यूनतम ख़रीद मूल्य से 35 फ़ीसदी से भी कम दामों पर बेच रहे हैं.

डाटा विश्लेषण शादाब नज़मी ने किया है.

BBC Hindi
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English summary
Fake news spreading hate on Muslims, continued even during the Coronavirus era
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