फ़ैक्ट चेकः कोरोना से शिकार क्या शाकाहारी लोग नहीं होते?
झूठी और गुमराह करने वाली स्वास्थ्य सलाह व्यापक रूप से ऑनलाइन फैल रही हैं.
दुनियाभर में कोरोना वायरस महामारी का कहर जारी है. साथ ही झूठी और गुमराह करने वाली स्वास्थ्य सलाह भी व्यापक रूप से ऑनलाइन फैल रही हैं.
हमने इनमें से कुछ सबसे हालिया उदाहरण लिए हैं और यह जाना है कि ये कहां से पैदा हुई हैं.
वे डॉक्टर जिन्होंने शाकाहारी बनने की सिफ़ारिश नहीं की
अक्सर ऐसे संदेश साझा होते हैं जिनमें आमतौर पर ठीक सलाह होती है, लेकिन इनमें अतिरिक्त दावे भी मिले होते हैं जो साफतौर पर गुमराह करने वाले होते हैं और ये नुकसानदेह भी हो सकते हैं.
चूंकि, ये बार-बार एनक्रिप्टेड सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर साझा किए जाते हैं ऐसे में इन्हें ट्रैक करना मुश्किल हो सकता है.
भारत के दो प्रमुख मेडिकल संस्थानों और एक प्रमुख भारतीय डॉक्टर ने व्हॉट्सएप ग्रुप्स पर बड़े पैमाने पर साझा किए गए एक ऐसे फर्ज़ी संदेश की आलोचना की है जिसमें उनके नाम पर स्वास्थ्य सलाह दी गई है.
इस संदेश में वायरस से बचने के लिए ली जाने वाली सावधानियों की एक लंबी सूची दी गई है. इनमें सामाजिक दूरी का पालन करने, भीड़भाड़ से बचने और साफ-सफाई रखने जैसी कई काम की चीज़ें शामिल हैं.
लेकिन, इसमें शाकाहारी बनने की भी सलाह दी गई है. इसमें बेल्ट, अंगूठी या कलाई घड़ी पहनने से भी बचने की बात कही गई है.
इनमें से किसी भी उपाय से वायरस से बचने में मदद मिलने का कोई प्रमाण नहीं है.
कोविड-19 को लेकर डब्ल्यूएचओ की पोषण संबंधी सलाह में प्रोटीन के साथ फल और सब्जियां लेने की बात कही गई है.
फ्लू वैक्सीन से कोविड-19 का जोखिम नहीं बढ़ता है
यह इस वजह से अहम है क्योंकि इसमें एक वास्तविक स्टडी की ओर इशारा किया गया है.
फेसबुक पर बड़े पैमाने पर साझा की गई एक पोस्ट में दावा किया गया है कि अगर आपके कभी इंफ्लूएंजा टीका लगा है तो आपके कोविड-19 की चपेट में आने के ज्यादा आसार हैं.
इस पोस्ट में साक्ष्य के तौर पर यूएस मिलिटरी की छापी गई स्टडी के बारे में बताया गया है.
लेकिन, यह स्टडी अक्तूबर 2019 में छपी थी. उस वक्त तक कोविड-19 शुरू नहीं हुआ था. साथ ही इसमें इस्तेमाल किए गए आँकड़े 2017-18 के फ्लू सीज़न के हैं.
इस बात के कोई साक्ष्य नहीं हैं कि फ्लू जैब (फ्लू की वैक्सीन) से आपके कोविड-19 के संपर्क में आने का जोखिम बढ़ जाता है.
यूएस सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल की सलाह स्पष्ट हैः "इंफ्लूएंजा वैक्सीनेशन से लोगों के दूसरे रेस्पिरेटरी संक्रमणों की जद में आने के आसार बढ़ नहीं जाते हैं."
लंबे वक्त तक फेस मास्क पहनना नुकसानदेह नहीं
एक और गुमराह करने वाला आर्टिकल सोशल मीडिया पर साझा किया जा रहा है. इसमें कहा गया है कि लंबे वक्त तक मास्क पहनना सेहत के लिए ख़तरनाक़ हो सकता है.
यह दावा पहली बार स्पैनिश भाषा में ऑनलाइन सामने आया था. इसे दक्षिण और मध्य अमरीका में भी बड़े पैमाने पर साझा किया गया था.
बाद में इसका अनुवाद अंग्रेजी भाषी प्लेटफॉर्म्स पर भी आ गया. इनमें एक नाइजीरियाई न्यूज़ साइट भी शामिल थी जहाँ से यह 55,000 से ज़्यादा बार फेसबुक पर साझा किया गया.
आर्टिकल में दावा किया गया था कि ज़्यादा लंबे वक्त तक मास्क पहनकर सांस लेने से कार्बन डाईऑक्साइड सांस के ज़रिए अंदर जाती है.
इससे चक्कर आते हैं और शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है. ऐसी सिफारिश की जाती है कि हर 10 मिनट में मास्क हटाना चाहिए.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन के डॉ. रिचर्ड मिहिगो ने बीबीसी को बताया कि ये दावे सही नहीं हैं और वास्तव में इन पर चलना ख़तरनाक़ हो सकता है.
उन्होंने कहा, "नॉन-मेडिकल और मेडिकल मास्क बुने गए धागों से बने होते हैं. इनमें सांस लेने की उच्च क्षमता होती है. इन मास्क से आप सामान्य तरीक़े से सांस ले सकते हैं और ये कणों को इनसे गुज़रकर अंदर जाने से रोकते हैं."
उन्होंने यह भी कहा है कि मास्क हटाकर सांस लेने से नुकसानदेह असर से बचने की सलाह मानने से वास्तव में संक्रमण का जोखिम हो सकता है.
ऐसी कुछ स्थितियां हैं जिनमें फेस मास्क पहनने की शायद सलाह न दी जाए. ये हैः
- दो साल से कम उम्र के बच्चे जिनके फ़ेफ़ड़े पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाए हैं
- रेस्पिरेटरी बीमारियों वाले लोग जिन्हें सांस लेने में दिक़्क़त हो सकती है.
धूम्रपान से वायरस से बचने में मदद नहीं मिलती
यह दावा बार-बार आ रहा है. धूम्रपान करने वाले ज़रूर चाहते होंगे कि यह दावा सही हो. लेकिन, ऐसा है नहीं.
इस बात के साक्ष्य नहीं हैं कि ये लोग कोविड-19 के कम जोखिम में हैं. लेकिन, इस तरह के आर्टिकल्स भरे पड़े हैं जिनमें कहा गया है कि धूम्रपान करने वालों को कोरोना होने का डर कम है.
मिसाल के तौर पर, यूके मेल ऑनलाइन का यह आर्टिकल लीजिए. यह दसियों हजार बार साझा किया गया है. इसमें कहा गया है कि इस बात के ज्यादा साक्ष्य हैं कि स्मोकिंग से कोरोना वायरस का जोखिम कम हो सकता है.
इसमें कहा गया है कि कई देशों में हुए अध्ययनों की एक समीक्षा से यह पता चलता है कि अस्पताल में भर्ती होने वाले कोविड-19 के मरीज़ों में धूम्रपान करने वालों की तादाद कम है.
इसमें यह भी कहा गया है कि एक्सपर्ट्स इसके बीच में संबंध ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं.
एक प्रमुख फ्रांसीसी हॉस्पिटल के कराए अध्ययन से यह पता चलता है कि निकोटिन कोविड-19 के संक्रमण को फैलने से रोकने की वजह हो सकती है.
निकोटिन पैच और निकोटिन रिप्लेसमेंट थेरेपीज के कोरोना वायरस पर असर को लेकर रिसर्च जारी है.
लेकिन, डब्ल्यूएचओ का कहना है, "कोविड-19 के इलाज या इसे रोकने में तंबाकू या निकोटिन के बीच लिंक की पुष्टि करने के लिहाज़ से अभी पर्याप्त जानकारी नहीं है."
इसमें कहा गया है कि स्मोकिंग के साथ जुड़ी दूसरी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को देखते हुए धूम्रपान करने वाले लोग कोरोना वायरस से गंभीर रूप से बीमार होने के ज़्यादा जोखिम में हैं.
साथ ही इस बात की स्पष्ट मेडिकल सलाह है कि जो लोग स्मोकिंग करते हैं उन्हें मौजूदा महामारी के चलते इसे छोड़ देना चाहिए क्योंकि इससे उन्हें फ़ेफड़ों की गंभीर बीमारी हो सकती है.
दिल्ली में श्रुति मेनन और नैरोबी में पीटर म्वाई की रिसर्च
To ensure the safety of our staffers, we decided yesterday not to sell fuel to those not wearing face masks at fuel retail outlets across India in view of #CoronavirusPandemic: Ajay Bansal, president of All India Petroleum Dealers Association pic.twitter.com/LDWmhf92Ls
— ANI (@ANI) April 19, 2020