आंखों-देखी: कैसा है अंकित के घर का माहौल, क्या कहते हैं लड़की के पड़ोसी?
पश्चिमी दिल्ली में अंकित सक्सेना की सरेआम हत्या के बाद वहां कैसे हालात हैं?
सब कुछ वैसा का वैसा है.
फ़रवरी की 14 तारीख़ यानी वैलेंटाइंस डे का इंतज़ार करती लाल रंग के फूलों से सजी दुकानें, सड़क पर दौड़ती गाड़ियां, बच्चों का हाथ पकड़कर उन्हें सड़क पार कराती माँएं और मंदिर से आती कीर्तन की आवाज़...
पश्चिमी दिल्ली के रघुबीर इलाके में घुसने पर शुरू में कुछ ऐसी ही तस्वीर नज़र आती है लेकिन थोड़ा आगे बढ़ने पर ये तस्वीर बदलने लगती है.
जगह-जगह पूरी वर्दी में मुस्तैदी से तैनात सुरक्षाकर्मी, लोगों की भीड़ और माइक-कैमरे के साथ इधर-उधर दौड़ते मीडियाकर्मी दिखाई पड़ते हैं.
दिल्ली में 'हॉरर किलिंग', सांप्रदायिक तनाव
जहां अंकित का घर है...
थोड़ा और क़रीब जाने पर 'अंकित सक्सेना की बर्बर हत्या', 'ऑनर किलिंग', 'मुसलमान' और 'सांप्रदायिक तनाव' जैसे शब्द सुनाई पड़ते हैं.
यहां सबको अंकित सक्सेना के घर का पता मालूम है. वही अंकित सक्सेना जिसकी दो दिन पहले 'चाकू से गला रेतकर सरेआम हत्या कर दी गई थी.'
कई तंग गलियों से गुजरते हुए हम उस गली में पहुंचते हैं जहां अंकित का घर है.
घर के आस-पास की दुकानों के शटर गिरे हुए दिखे और घर के बाहर खड़े कुछ लोगों ने हमसे कहा कि हमारा वहां जाना बेकार है क्योंकि अंकित के पिता अस्थियां विसर्जित करने हरिद्वार गए हैं और मां अस्पताल में भर्ती हैं.
क्या हुआ था अंकित के साथ
पश्चिमी दिल्ली के रघुबीर नगर में 23 वर्षीय एक फ़ोटोग्राफ़र अंकित सक्सेना की कथित तौर पर एक युवती के परिवार के चार सदस्यों के साथ बहस के बाद हत्या कर दी गई. वहीं, युवती अंकित का एक मेट्रो स्टेशन के बाहर इंतज़ार कर रही थी.
पुलिस का कहना है कि अंकित सक्सेना के अल्पसंख्यक समुदाय की 20 वर्षीय युवती के साथ संबंध थे.
पुलिस के अनुसार, युवती के पिता, चाचा और उसके 16 वर्षीय भाई ने उनके संबंधों को लेकर आपत्ति जताई और उससे दूर रहने को कहा. इसके बाद बहस के बाद युवती के पिता ने सड़क पर ही कथित तौर पर अंकित की गला रेत कर हत्या कर दी. अंकित की दोस्त का घर उनके घर के आस-पास ही था.
क्या कहते हैं रिश्तेदार और पड़ोसी
अंकित के परिजन और पड़ोसी मीडिया से बेहद ख़फ़ा हैं.
पड़ोस की एक महिला ने कहा, "आप सब यहां से जाइए, प्लीज़, हम किसी को नहीं देखना चाहते. अंकित के माता-पिता ने हमें किसी से बात करने से मना किया है."
एक दूसरी महिला ने कहा, "हमने हिंदू-मुस्लिम वाली बात उठाई ही नहीं. ये बातें मीडिया ने उछाली हैं. हमारा तो मीडिया से भरोसा उठ गया है. झगड़ा बढ़ाने के लिए बहुत से लोग आए लेकिन हम अपने बच्चे की मिट्टी खराब नहीं करना चाहते."
झगड़ा नहीं बढ़ाना...
वहां मौज़ूद एक लड़की के मुताबिक, "हमारे मुहल्ले में कल एक आदमी आया था. कह रहा था, आप एक आवाज़ उठाइए, 100 बंदे खड़े हैं, मस्जिद में चलते हैं. हमने तुरंत फ़ोर्स बुलाई तो वो भागा चला गया."
वो आदमी कौन था? इसके जवाब में सबने कहा, "पता नहीं कौन था वो... उससे पहले मनोज तिवारी (बीजेपी के दिल्ली के अध्यक्ष) यहां आए थे. उनके जाते ही एकदम से आया था. हमें कुछ नहीं मालूम, हमें झगड़ा नहीं बढ़ाना."
ये औरतें रुआंसी होकर बताती हैं, "इतना हंसमुख लड़का था, हमेशा हंसी-मज़ाक करता रहता था. इतना टैलेंटेड था. आप कहीं भी पूछ लो, सब यही कहेंगे जो हम कह रहे हैं."
अधेड़ उम्र के एक शख्स ने बताया, "जिस दिन ये हुआ, उसी दिन वो दोपहर में मेरे पास आया था. मेरे कंधे पर हाथ रखकर हाल पूछा था."
पड़ोसियों ने बताया कि अंकित के माता-पिता पूरी रात रोते रहे और सुबह तक घर से रोने की आवाज़ें आती रहीं.
अंकित की एक रिश्तेदार ने कहा, "अब हम इन्हें अकेले यहां नहीं रहने देंगे. एक ही लड़का था, वो भी चला गया. किसका मुंह देखकर जिएंगे?"
अंकित के दोस्तों की जुबानी
अंकित के घर के पास मोबाइल की एक दुकान है. सोशल मीडिया पर इसी दुकान के सामने खड़ी उनकी फ़ोटो भी देखने को मिल रही है.
दुकान में जाने पर पता चलता है कि अंकित यहां अक्सर आया करते थे. दुकान में काम करने वाला एक लड़का उनका करीबी दोस्त है.
वो अंकित के यूट्यूब चैनल 'आवारा बॉयज़' के लिए भी काम करता था. दुकान के मालिक से भी उनकी अच्छी जान-पहचान थी.
उन्होंने बताया, "उस दिन दोपहर में अंकित लैपटॉप लेकर यहां आया था. तकरीबन एक घंटे तक रहा, अपने यू-ट्यूब चैनल की कुछ वीडियो एडिट कर रहा था. शाम में जब ये झगड़ा हुआ, उसके कुछ मिनट पहले मेरी ही दुकान के सामने खड़े होकर फ़ोन पर बात कर रहा था."
दुकान मालिक का दावा
दुकान के मालिक ने हमें सीसीटीवी फ़ुटेज भी दिखाए. हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि वो ये फ़ुटेज किसी को नहीं दे सकते क्योंकि पुलिस ने उन्हें ऐसा करने से मना किया है.
फुटेज़ में देखा जा सकता है कि अंकित रात आठ बजे के लगभग दुकान के बाहर चहलकदमी कर रहा है और फ़ोन पर बात कर रहा है.
दुकान मालिक ने बताया, "मीडिया में ख़बरें आ रही हैं कि लड़की दो दिन से लापता थी. ऐसा कुछ नहीं है, वो उसी दिन शाम को बाहर निकली थी और उसे वापस लौटने में देर हुई तो उसके माता-पिता, भाई और मामा ने अंकित को बीच सड़क पर रोक लिया."
बहस होने लगी...
दुकान मालिक के मुताबिक़, "अंकित से गुलरेज़ (लड़की का बदला हुआ नाम) के परिवार की बहस होने लगी. वो उसे पकड़कर मारने लगे तभी किसी ने अंकित के घर पर ख़बर कर दी और उसके माता-पिता ने आकर बीच-बचाव करने की कोशिश की. मैंने भी झगड़ा शांत करने की कोशिश की."
"अंकित ने कहा कि अंकल आप पुलिस थाने चलिए, गुलरेज़ मेरे साथ नहीं है. हमने भी उन्हें पुलिस को बुलाने को कहा. इसके बाद मामला थोड़ा शांत हो गया और दोनों पक्ष अलग-अलग होकर खड़े हो गए. मैं अंकित को लेकर वापस दुकान में आ गया."
दुकान मालिक ने हमें जो फ़ुटेज दिखाई थी वो उसी समय की थी जहाँ अंकित दुकान के बाहर फ़ोन पर बात करता दिखा था. कुछ समय बाद अंकित वहाँ से चला गया.
दुकान मालिक ने आगे का घटनाक्रम ख़ुद तो नहीं देखा मगर आस-पास के जानने वालों से मिली जानकारी के आधार पर दावा करते हैं कि 'उसके बाद अंकित को किसी ने आकर कहा कि गुलरेज़ की मां ने उसकी मां को धक्का दे दिया है और वो गिर गई हैं. अंकित दौड़ता हुआ उधर गया और अपनी मां को उठाने के लिए झुका.'
उनका दावा है कि 'तभी लड़की के भाई और मामा ने उसकी (अंकित) बाँहें पकड़ लीं और उसके पिता ने उसके गले में कसाई वाला छुरा भोंक दिया.' ये ख़बर मिलते ही कुछ और लोगों के साथ दुकान मालिक घटनास्थल की ओर भागे.
क्या लोगों ने नहीं बचाया?
दुकान मालिक का कहना है कि अंकित को धोखे से मारा गया. वो कहते हैं, "उसे पीछे से पकड़कर मारा गया. सामने आते तो अंकित चार लोगों पर भारी पड़ता. उस वक़्त इतना ख़ून बह रहा था कि पूछिए मत..."
उनके मुताबिक, "गुलरेज़ के लिए अंकित से अच्छा लड़का और कोई हो ही नहीं सकता था. उसके मां-बाप भी अंकित से अच्छा लड़का नहीं ढूंढ़ पाते. हमें ऐसा बिल्कुल अंदेशा नहीं था कि अंकित की जान को ख़तरा है, वरना हम पुलिस सिक्योरिटी मांगते."
पश्चिमी दिल्ली के डीसीपी विजय कुमार सिंह ने बताया कि गुलरेज़ का परिवार फ़िलहाल पुलिस हिरासत में है और गुलरेज़ को नारी निकेतन भेज दिया गया है.
लड़की का घर
गुलरेज़ का घर अंकित के घर से ज़्यादा दूर नहीं है. गली के आखिर में तीसरे माले पर गुलरेज़ का घर है जहां हरे रंग का चमकता झंडा दिखाई देता है. घर पर ताला लगा हुआ था और पड़ोसियों ने बताया कि वहां कोई नहीं है.
छत पर खड़ी एक लड़की ने कहा, "ये बहुत ही अच्छे लोग थे. हम कुछ ही दिन पहले यहां शिफ़्ट हुए हैं. सबने हमारी बहुत मदद की. मुझे भरोसा ही नहीं हो रहा कि ये ऐसा कर सकते हैं."
एक और पड़ोसी महिला ने कहा, "अंकित और गुलरेज़ का अफ़ेयर था लेकिन दोनों को किसी ने साथ नहीं देखा. दोनों बेहद शालीन बच्चे थे."
वो एक लंबी सांस लेकर कहती हैं, "जो हुआ उससे किसी का फ़ायदा नहीं हुआ. दो परिवार बर्बाद हो गए. काश! दोनों की शादी हो जाती. अब गुलरेज़ का परिवार यहां आएगा भी तो हम उन्हें रहने नहीं देंगे. हम अपने बच्चों को ख़तरे में नहीं डाल सकते."
चलते-चलते हमारा ध्यान उस घर की छत पर गया, जिस पर हरा झंडा लहरा रहा था. उस घर की अरगनी (कपड़े फैलाने वाला तार) उस बालकनी के छज्जे से बंधी थी, जहां तुलसी का पौधा लगा हुआ था.
उस अरगनी पर 'असलम का कुर्ता' और 'सोनम की ओढ़नी' साथ सूख रही थी. हमें अंकित के रिश्तेदारों की बातें याद आईं जिन्होंने हमसे कहा था, "ये हिंदू-मुसलमान का मामला नहीं है, बस इंसाफ़ और नाइंसाफ़ी का है..."