जिसका डर था वही हुआ, विशेषज्ञों का दावा-कोरोना का कम्युनिटी ट्रांसमिशन शुरू
नई दिल्ली- भारत में कोविड-19 ग्रुप से जुड़े विशेषज्ञों के एक ग्रुप ने दावा किया है कि देश में कोरोना वायरस तीसरे स्टेज में पहुंच चुका है। यह एक ऐसी स्थिति होती है, जब किसी संक्रमित मरीज के बारे में यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि उसके शरीर में वायरस कहां से आया। क्योंकि, अब तक यही माना जाता रहा है कि भारत के लिए इस बीमारी को दूसरे स्टेज तक ही रोकना बेहतर है। यानि किसी की ट्रैवल हिस्ट्री है और उसके संपर्क और उसके संपर्क। लेकिन, अगर यह स्थिति को कोरोना पार कर चुका है तो यह जरूर चिंता करने वाली बात है।
कोरोना का कम्युनिटी ट्रांसमिशन शुरू-विशेषज्ञ
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के एक ग्रुप ने दावा किया है कि भारत में आबादी के एक बड़े समूह के बीच कोरोना वायरस के संक्रमण का कम्युनिटी ट्रांसमिशन शुरू है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के इस ग्रुप में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के कुछ डॉक्टर और देश की स्वास्थ्य सेवाओं की सबसे बड़ी संस्था इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के कोविड-19 ग्रुप के दो सदस्य भी शामिल हैं। बता दें कि आज तक देश में कोरोना संक्रमण के कुल 1,98,706 मामले सामने आ चुके हैं, लेकिन सरकार लगातार इस स्टैंड पर कायम है कि देश कोरोना संक्रमण के थर्ड स्टेज यानि कम्युनिटी ट्रांसमिशन की स्थिति में नहीं पहुंचा है।
लॉकडाउन-4 से हुई ज्यादा परेशानी
कम्युनिटी ट्रांसमिशन शुरू होने के बारे में विशेषज्ञों ने जो रिपोर्ट तैयार की है उसे इंडियन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन, इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसीन और इंडियन एसोसिएशन ऑफ एपिडेमियोलॉजिस्ट्स ने प्रधानमंत्री को सौंपी है। रिपोर्ट में कहा गया है, 'यह उम्मीद करना अवास्तविक है कि इस स्टेज पर कोविड-19 वैश्विक महामारी को समाप्त किया जा सकता है, ये देखते हुए कि देश में बड़े पैमाने पर या आबादी के एक भाग में कम्युनिटी ट्रांसमिशन पहले से ही अच्छी तरह से स्थापित हो चुका है।' रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जिस फायदे से लॉकडाउन को कड़ाई से अपनाया गया था, लगता है कि उसका लाभ तो हासिल जरूर हुआ है, मसलन इस दौरान देश ने इस बीमारी से लड़ने के लिए खुद को तैयार किया। लेकिन, इसमें चौथे लॉकडाउन के बाद लोगों को हुई ज्यादा दिक्कतें, अर्थव्यवस्था और आम जनता के जीवन में दिक्कत आने पर चिंता भी जताई गई है।
विशेषज्ञों की भूमिका सीमित रखने का आरोप
इस रिपोर्ट में देश में कोविड-19 से निपटने के लिए रणनीति बनाने को लेकर कुछ सवाल भी उठाए गए हैं। मसलन, विशेषज्ञों ने माना है कि 25 मार्च से 31 मई तक का लॉकडाउन बहुत ही ज्यादा सख्त था, फिर भी देश में 25 मार्च से 24 मई के बीच कोरोना के मामले 606 से बढ़कर 1,38,845 तक पहुंच गए। सबसे बड़ी बात ये है कि इसमें केंद्र सरकार पर सवाल उठाया गया है कि महामारी को लेकर फैसले लेने में एपिडेमियोलॉजिस्ट्स से सलाह नहीं ली गई। 'क्या भारत सरकार ने एपिडेमियोलॉजिस्ट्स से सलाह ली थी जो कि मॉडलर्स की तुलना में संक्रमाक बीमारियों को ज्यादा समझते हैं, ऐसा होता तो शायद ज्यादा अच्छा होता।' यही नहीं इसमें ये भी कहा गया है कि 'नीति निर्माताओं ने प्रशासनिक नौकरशाहों पर ज्यादा भरोसा कर लिया। एपिडेमियोलॉजी, पब्लिक हेल्थ, प्रिवेंटिव मेडिसीन और समाज वैज्ञानिकों के विशेषज्ञों की भूमिका सीमित रही।'
रणनीति में कमी का भी लगाया आरोप
सबसे बड़ी बात की विशेषज्ञों के मुताबिक आज भारत को मानवता से जुड़े संकट और बीमारी के फैलने दोनों ही मामले में भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। इसमें कहा गया है कि बार-बार रणनीति और नीति बदलने से ऐसा लगता है कि पहले से योजना में कमी थी और नीति निर्माताओं ने महामारी के नजरिए से एक व्यापाक सोच के साथ रणनीति नहीं तैयार की।
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