नई दिल्ली। भारत रत्न किसे मिलेगा या किसे नहीं या किसको मिलना चाहिए, किसको नहीं, इसे लेकर एक बार फिर से विवाद शुरू हो गया है।
इन सबके बीच एक बार फिर से हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का नाम सबकी जुबां पर हैं। मेजर ध्यानचंद की वजह से भारत को हॉकी में तीन बार गोल्ड मेडल हासिल हुआ था और ध्यानचंद की वजह से भारतीय हॉकी ने उस दौर में दुनिया पर अपना दबदबा बनाया जब जर्मनी जैसे देशों का बोलबाला था।
जैसे ही यह खबर आनी शुरू हुई कि उनका नाम भारत रत्न के लिए राष्ट्रपति के पास भेज दिया गया है, वनइंडिया ने उनके बेटे अशोक ध्यानचंद जो कि खुद भी हॉकी के खिलाड़ी रह चुके, से बात की। अपनी फ्लाइट का इंतजार कर रहे अशोक ध्यानचंद ने बड़े इत्मीनान से हमसे बात की।
थोड़ी देर की बातचीत में ही हमें यह समझते देर नहीं लगी कि हॉकी के जादूगर जो सम्मान सरकार की ओर से पहले मिलना चाहिए था, वह आज तक नहीं मिल सका है, इसकी तकलीफ न सिर्फ उनके परिवार को है बल्कि हॉकी प्रशंसकों और खुद हॉकी को भी है। एक नजर इस बातचीत के कुछ खास अंश पर।
एक बार टूटा भरोसा, इस बार थोड़ा मुश्किल
अशोक ध्यानचंद से हमने इस खबर के बारे में उनकी प्रतिक्रिया ली तो उनका जवाब था, 'न सिर्फ मेरे परिवार के लिए बल्कि हॉकी के लिए भी गर्व की बात है।' उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी बात है कि जिस समय उन्हें यह पुरस्कार दिया जाना चाहिए था, उन्हें नहीं मिला। लेकिन इस बात को कोई गिला-शिकवा नहीं है।
उनके मुताबिक उन्हें और उनके पूरे परिवार को तकलीफ इस बात की है कि जब पिछले वर्ष हमें लगा कि ध्यानचंद जी को यह पुरस्कार मिलेगा, उस समय ही आखिरी क्षणों में सरकार ने हमारा भरोसा तोड़ा दिया।
ऐसे में अब इस बार जब तक हमें सरकार की ओर से इसकी पुष्टि नहीं कर दी जाती और आधिकारिक चिट्ठी नहीं मिल जाती तब तक हम इस बात पर यकीन नहीं कर सकते हैं। वह यह कहना भी नहीं भूले कि भारत सरकार के रवैये से आज 'महानतम' खिलाड़ी की श्रेणी में आने वाले ध्यानचंद सिर्फ 'महान' बनकर रह गए हैं।
क्राउड पुलर नहीं बल्कि देश का गौरव बढ़ाने वाले खिलाड़ी ध्यानचंद
मेजर ध्यानचंद ने सेंटर फॉरवर्ड पर खेलते हुए 400 गोल का रिकॉर्ड अपने नाम बनाया है। कुछ दिनों पहले खबर आई थी कि यूपीए सरकार ने पिछले वर्ष जब क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न दिया तो आखिर क्षणों में उसने अपना फैसला बदला था।
सरकार की ओर से मेजर ध्यानचंद को पुरस्कार देने की तैयारी की जा चुकी थी। मेजर ध्यानचंद के बेटे अशोक इस बात से इंकार नहीं करते हैं कि सरकार ने यह कदम पूरी तरह से वोट बैंक की पॉलिसी के चलते उठाया था।
उन्होंने कहा कि ध्यानचंद एक ऐसे खिलाड़ी रहे हैं जिन्होंने देश का मान बढ़ाया और जिन्होंने देश के लिए एक नई गौरव गाथा लिखी। वह बाकी खिलाडि़यों की तरह सिर्फ भीड़ आकर्षित करने वाले खिलाड़ी नहीं रहे हैं।
उन्हें जो कुछ भी मिलना चाहिए था, वह सरकार की ओर से कभी नहीं मिल सका। साथ ही उन्हें अब नरेंद्र मोदी की नई सरकार से काफी उम्मीदें हैं कि वह भारत रत्न के साथ ध्यानचंद को वह सम्मान प्रदान करेगी जिसके वह हकदार हैं।
भारत रत्न के साथ राजनीति और विवाद गलत
भारत रत्न देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। इस सम्मान पर भी पिछले करीब दो वर्षों से राजनीति और विवाद का साया नजर आने लगा है। हमनें अशोक ध्यानचंद से जानने की कोशिश की कि क्या वह इस प्रतिष्ठित सम्मान के साथ होने वाली राजनीति और इसके साथ जुड़ने वाले विवादों को गलत मानते हैं? इस पर उन्होंने कहा, 'भारत रत्न ' की प्रतिष्ठा बहुत ऊंची है और इसे राजनीति से दूर ही रखा जाना चाहिए।
राजनीतिक भावना से प्रेरित होकर कभी भी इस सम्मान के साथ खिलवाड़ नहीं किया जाना चाहिए। इस पुरस्कार को योग्य लोगों को देकर लोगों का मान और देश का सम्मान बनाए रखने की कोशिश हर सरकार को करनी चाहिए।
उम्मीद है सबकी दुआएं रंग लाएंगी
मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न दिए जाने के लिए उनके बेटे अशोक ध्यानचंद और देश के हॉकी खिलाडि़यों के साथ ही दूसरे क्षेत्रों के खिलाड़ी जैसे मिल्खा सिंह की ओर से भी लगातार आवाज उठाई गई है। अशोक ध्यानचंद को पूरी उम्मीद है कि इस बार वह दुआएं रंग लाएंगी और मेजर ध्यानचंद जिन्हें लोग दद्दा कहकर बुलाते हैं, भारत रत्न से जरूर नवाजे जाएंगे।