देश के राजभवनों में बीजेपी नेताओं का राज, सिर्फ तीन राज्यपाल हैं गैर राजनीतिक
नई
दिल्ली।
देश
में
राज्यपालों
की
भूमिका
पर
वक्त
-वक्त
पर
चर्चा
होती
रही
है
और
कई
गंभीर
सवाल
भी
उठते
रहे
हैं.
अक्सर
कहा
ये
जाता
है
कि
राज्यपाल
का
पद
है
तो
संवैधानिक
लेकिन
केंद्र
की
सरकार
राजभवन
में
अपने
आदमी
को
बैठाकर
उस
राज्य
की
सरकार
पर
नजर
रखवाने
का
काम
कराती
है
और
खासकर
तब
जब
वहां
किसी
विपक्षी
दल
की
सरकार
हो।
इसी
साल
कर्नाटक
में
विधानसभा
चुनाव
के
बाद
पैदा
हुए
हालातों
में
जिस
तरह
से
वहां
के
राज्यपाल
की
भूमिका
रही
उसे
लेकर
तो
मामला
सुप्रीम
कोर्ट
तक
गया।
इसी
तरह
2016
में
उत्तराखंड
में
राष्ट्रपति
शासन
लगाने
के
मामले
में
भी
राज्यपाल
की
भूमिाका
पर
सवाल
उठे
थे
और
फिर
सुप्रीम
कोर्ट
ने
हरीश
रावत
सरकार
को
बहाल
कर
दिया
था।
हाल
ही
में
कई
राज्यों
में
नए
राज्यपालों
की
नियक्तियां
हुईं
और
इनमें
सबसे
ज़्यादा
नजर
जम्मू-कश्मीर
के
राज्यपाल
की
नियुक्ति
पर
थी।
जम्मू-कश्मीर
के
राज्यपाल
के
रूप
में
सत्य
पाल
मलिक
की
नियुक्ति
ने
कई
लोगों
को
चौंकाया।
ये
लोग
उम्मीद
लगाए
बैठे
थे
कि
एक
राजनेता
के
बजाय
जम्मू-कश्मीर
में
राज्यपाल
के
तौर
पर
रक्षा
क्षेत्र
से
जुड़े
किसी
पूर्व
अधिकारी
या
फिर
किसी
सेवानिवृत्त
नौकरशाह
को
नियुक्त
किया
जाएगा।
लेकिन
ऐसा
हुआ
नहीं।
यूपी
से
सबसे
ज़्यादा
राज्यपाल
देश
में
राज्यपालों
की
सूची
पर
एक
नजर
डालें
तो
तीन
राजभवनों
को
छोड़कर
सभी
जगह
बीजेपी
के
नेतृत्व
वाली
एनडीए
सरकार
ने
अपने
नेताओं
को
राज्यपाल
बनाया
है
यहां
तक
कि
पूर्वोत्तर
राज्य
भी
इससे
अछूते
नहीं
रहे
हैं।
लोकसभा
चुनाव
2019
को
लेकर
बीजेपी
खासकर
उत्तर
प्रदेश
पर
सबसे
ज़्यादा
फोकस
कर
रही
है।
राज्यपालों
की
नियुक्ति
में
भी
ये
साफ
देखा
जा
सकता
है।
पिछले
लोकसभा
चुनाव
में
एनडीए
को
यहां
80
में
से
73
सीटें
मिलीं
थी
और
उसके
सामने
इस
प्रदर्शन
को
फिर
से
दोहराने
की
कड़ी
चुनौती
है।
बीजेपी
ने
जम्मू-कश्मीर
समेत
छह
राज्यों
में
राज्यपाल
के
तौर
पर
उत्तर
प्रदेश
से
अपनी
पार्टी
के
नेताओं
को
वरीयता
दी
है।
ये
छह
लोग
समाज
के
अलग-अलग
वर्गों
और
जातियों
से
आते
हैं
और
इनकी
राज्यपालों
के
तौर
पर
नियुक्ति
से
बीजेपी
इन
वर्गों
को
साफ
संदेश
देना
चाहती
है
कि
वो
उनके
साथ
खड़ी
है।
बिहार
के
पूर्व
राज्यपाल
राम
नाथ
कोविंद,
जो
यूपी
से
भी
हैं,
को
भारत
के
राष्ट्रपति
के
रूप
में
चुना
गया
था।
सत्य
पाल
मलिक
एक
जाट
नेता
हैं
और
उनकी
जगह
बिहार
राजभवन
में
भेजे
गए
लालजी
टंडन
उत्तर
प्रदेश
के
पूर्व
मंत्री
रहे
हैं।
यूपी
के
पूर्व
मुख्यमंत्री
और
लोध
ओबीसी
नेता
कल्याण
सिंह
राजस्थान
के
राज्यपाल
हैं,
एक
ब्राह्मण
और
पूर्व
में
उत्तर
प्रदेश
विधानसभा
अध्यक्ष
रहे
केशरी
नाथ
त्रिपाठी
पश्चिम
बंगाल
के
राज्यपाल
हैं
और
इसी
तरह
ब्रिगेडियर
(सेवानिवृत्त)
बीडी
मिश्रा
अरुणाचल
प्रदेश
के
राज्यपाल
हैं
और
जाटव
नेता
बेबी
रानी
मौर्य
उत्ताखंड
की
राज्यपाल
हैं,
ये
दोनों
भी
उत्तर
प्रदेश
से
ही
आते
हैं।
सत्य पाल को मिला शाह का साथ
कहा जाता है कि लोकसभा चुनाव के दौरान जब अमित शाह उत्तर प्रदेश के प्रभारी महासचिव थे तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजनीति पर सत्य पाल मलिक की समझ और पकड़ से वो काफी प्रभावित हुए थे। हालांकि कहा जाता है कि जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के पद के लिए पूर्व पुलिस अधिकारियों और नौकरशाहों के नाम चर्चा में थे लेकिन सत्य पाल मलिक को चुना गया क्योंकि बीजेपी और आरएसएस एक राजनेता को इस पद चाहते थे। आरएसएस के लिए श्यामा प्रसाद मुखर्जी के वक्त से ही कश्मीर मुद्दा अहम रहा है। मलिक की नियुक्ति का अर्थ ये भी है कि घाटी की ओर केंद्र के दृष्टिकोण पर आरएसएस की पकड़ बनी रहेगी क्योंकि मलिक 2004 में ही बीजेपी में शामिल हुए और पार्टी में उनकी गहरी जड़ें नहीं हैं और ऐसे में आरएसएस पर्दे के पीछे से अपना एजेंडा चलाती रहेगी।
पूर्वोत्तर में भी बीजेपी के लोग
बीजेपी ने पूर्वोत्तर में भी गवर्नर के रूप में राजनेताओं को ही चुना है। ये इस क्षेत्र में उसके अपने राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाने के उद्देश्य को पूरा करता है। 2014 से नरेंद्र मोदी सरकार ने इस क्षेत्र के लोगों को कई बार ये अहसास दिलाने की कोशिश की है कि वो उनके साथ है। यहां तक कि एक केंद्रीय मंत्री ने हर पखवाड़े में कम से कम एक बार सातों पूर्वोत्तर राज्यों का दौरा किया है।
'2019 में नरेंद्र मोदी के दोबारा प्रधानमंत्री चुने जाने की 50 फीसदी संभावना'
सीर्फ तीन राज्यपालों का बीजेपी से नाता नहीं
पूर्वोत्तर
में
अरुणाचल
प्रदेश
को
छोड़कर
सभी
जगह
बीजेपी
ने
अपने
नेताओं
को
राज्यपाल
बनाया
है,
अरुणाचल
में
ब्रिगेडियर
(सेवानिवृत्त)
बीडी
मिश्रा
राज्यपाल
हैं।
इसी
तरह
ईएसएल
नरसिम्हन
जो
एक
सेवानिवृत्त
आईपीएस
अधिकारी
और
खुफिया
ब्यूरो
के
पूर्व
निदेशक
हैं,
वो
आंध्र
प्रदेश
और
तेलंगाना
के
राज्यपाल
हैं
और
उनकी
नियुक्ति
यूपीए
-2
सरकार
ने
की
थी।
भारत
के
पूर्व
मुख्य
न्यायाधीश
पी
सतशिवम
ऐसे
तीसरे
गैर-बीजेपी
नेता
हैं
जो
राज्यपाल
के
तौर
पर
काम
कर
रहे
हैं।
अगस्त
2014
में
उन्हें
केरल
का
राज्यपाल
बनाया
गया
था।
बाकी
सभी
जगह
देश
में
जो
राज्यापल
हैं
वो
पूर्व
में
राजनेता
रहे
हैं
और
सत्ताधारी
पार्टी
से
संबंध
रखते
हैं।
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