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नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 से जुड़ी हर ज़रूरी जानकारी

नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 सोमवार को लोकसभा में पेश किया जाएगा. भारतीय गृहमंत्री अमित शाह इसे पेश करेंगे और इस मद्देनज़र भारतीय जनता पार्टी ने सोमवार से बुधवार तक के लिए ह्विप जारी कर दिया है. केंद्र की तरफ से इसे शीर्ष प्राथमिकता देते हुए इसे सदन में रखे जाने के दौरान सभी सांसदों को उपस्थित रहने को कहा गया है. केंद्रीय मंत्रिमंडल इसे पहले ही मंज़ूरी दे चुका है.

By BBC News हिन्दी
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नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में प्रदर्शन
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नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में प्रदर्शन

नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 सोमवार को लोकसभा में पेश किया जाएगा.

भारतीय गृहमंत्री अमित शाह इसे पेश करेंगे और इस मद्देनज़र भारतीय जनता पार्टी ने सोमवार से बुधवार तक के लिए ह्विप जारी कर दिया है.

केंद्र की तरफ से इसे शीर्ष प्राथमिकता देते हुए इसे सदन में रखे जाने के दौरान सभी सांसदों को उपस्थित रहने को कहा गया है. केंद्रीय मंत्रिमंडल इसे पहले ही मंज़ूरी दे चुका है.

इस विधेयक पर लोकसभा में काफ़ी गहमागहमी होने के आसार हैं.

नागरिकता संशोधन विधेयक (Citizenship Amendment Bill) को संक्षेप में CAB भी कहा जाता है और यह बिल शुरू से ही विवाद में रहा है.

विधेयक पर विवाद क्यों है, ये समझने के लिए इससे जुड़ी कुछ छोटी-छोटी मगर महत्वपूर्ण बातों को समझना ज़रूरी है.

नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 क्या है?

इस विधेयक में बांग्लादेश, अफ़गानिस्तान और पाकिस्तान के छह अल्पसंख्यक समुदायों (हिंदू, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई और सिख) से ताल्लुक़ रखने वाले लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रस्ताव है.

मौजूदा क़ानून के मुताबिक़ किसी भी व्यक्ति को भारतीय नागरिकता लेने के लिए कम से कम 11 साल भारत में रहना अनिवार्य है. इस विधेयक में पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों के लिए यह समयावधि 11 से घटाकर छह साल कर दी गई है.

इसके लिए नागरिकता अधिनियम, 1955 में कुछ संशोधन किए जाएंगे ताकि लोगों को नागरिकता देने के लिए उनकी क़ानूनी मदद की जा सके.

मौजूदा क़ानून के तहत भारत में अवैध तरीक़े से दाख़िल होने वाले लोगों को नागरिकता नहीं मिल सकती है और उन्हें वापस उनके देश भेजने या हिरासत में रखने के प्रावधान है.

ये भी पढ़ें: नागरिकता संशोधन बिल: सरकार और विरोधियों के अपने-अपने तर्क

नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में प्रदर्शन
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नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में प्रदर्शन

नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 का पीडीएफ़ कहां मिलेगा?

विधेयक का शुरुआती परिचय पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च की वेबसाइट पर उपलब्ध है. पीडीएफ़ के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं.

नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर विधेयक को लेकर विवाद क्यों है?

विपक्षी पार्टियों का कहना है कि यह विधेयक मुसलमानों के ख़िलाफ़ है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन करता है.

बिल का विरोध यह कहकर किया जा रहा है कि एक धर्मनिरपेक्ष देश किसी के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव कैसे कर सकता है?

भारत के पूर्वोत्तर राज्यों असम, मेघालय, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश में भी इस विधेयक का ज़ोर-शोर से विरोध हो रहा है क्योंकि ये राज्य बांग्लादेश की सीमा के बेहद क़रीब हैं.

इन राज्यों में इसका विरोध इस बात को लेकर हो रहा है कि यहां कथित तौर पर पड़ोसी राज्य बांग्लादेश से मुसलमान और हिंदू दोनों ही बड़ी संख्या में आकर बसे हैं.

आरोप ये भी है कि मौजूदा सरकार हिंदू मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की कोशिश में प्रवासी हिंदुओं के लिए भारत की नागरिकता लेकर यहां बसना आसान बनाना चाहती है.

ये भी आरोप है कि सरकार इस विधेयक के बहाने एनआरसी लिस्ट से बाहर हुए अवैध हिंदुओं को वापस भारतीय नागरिकता पाने में मदद करना चाहती है.

ये भी पढ़ें: ये बिल भारत को इसराइल बना देगा- ओवैसी

नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में प्रदर्शन
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नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में प्रदर्शन

क्या नागरिकता संशोधन बिल, 2019 राज्यसभा में पारित हो चुका है?

नहीं, यह विधेयक अभी राज्यसभा में पारित नहीं हुआ है.

मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में पेश हुए बिल में कहा गया था कि पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश से आए हुए हिंदू, सिख, पारसी, जैन और दूसरे धर्मावलंबियों को कुछ शर्तें पूरी करने पर भारत की नागरिकता दे दी जाएगी लेकिन 2016 नागरिकता संशोधन बिल में मुसलमानों का ज़िक्र नहीं था.

यह विधेयक लोकसभा में तो पारित हो गया था लेकिन राज्य सभा में लटक गया. इसके बाद चुनाव आ गए.

चूंकि एक ही सरकार के कार्यकाल में के दौरान ये विधेयक दोनों सदनों से पारित होकर राष्ट्रपति की मंज़ूरी के लिए नहीं पहुंच पाया इसलिए बिल निष्प्रभावी हो गया और अब इसे दोबारा से लाया जा रहा है.

ये भी पढ़ें: नागरिकता संशोधन विधेयक पर पूर्वोत्तर भारत में भरोसे का संकट

एनआरसी
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एनआरसी

एनआरसी क्या है?

एनआरसी यानी नेशनल सिटिज़न रजिस्टर. इसे आसान भाषा में भारतीय नागरिकों की एक लिस्ट समझा जा सकता है. एनआरसी से पता चलता है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं. जिसका नाम इस लिस्ट में नहीं, उसे अवैध निवासी माना जाता है.

असम भारत का पहला राज्य है जहां वर्ष 1951 के बाद एनआरसी लिस्ट अपडेट की गई. असम में नेशनल सिटिजन रजिस्टर सबसे पहले 1951 में तैयार कराया गया था और ये वहां अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों की कथित घुसपैठ की वजह से हुए जनांदोलनों का नतीजा था.

इस जन आंदोलन के बाद असम समझौते पर दस्तख़त हुए थे और साल 1986 में सिटिज़नशिप एक्ट में संशोधन कर उसमें असम के लिए विशेष प्रावधान बनया गया.

इसके बाद साल 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में असम सरकार और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन यानी आसू के साथ-साथ केंद्र ने भी हिस्सा लिया था.

इस बैठक में तय हुआ कि असम में एनआरसी को अपडेट किया जाना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट पहली बार इस प्रक्रिया में 2009 में शामिल हुआ और 2014 में असम सरकार को एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया पूरी करने का आदेश दिया. इस तरह 2015 से सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में यह पूरी प्रक्रिया एक बार फिर शुरू हुई.

31 अगस्त 2019 को एनआरसी की आख़िरी लिस्ट जारी की गई और 19,06,657 लोग इस लिस्ट से बाहर हो गए.

ये भी पढ़ें: एनआरसी से हिंदुओं के लिए बंद दरवाज़े खोलेगा सीएबी?

नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में प्रदर्शन
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नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में प्रदर्शन

नागरिकता अधिनियम, 1955 क्या है?

नागरिकता अधिनियम, 1955 भारतीय नागरिकता से जुड़ा एक विस्तृत क़ानून है. इसमें बताया गया है कि किसी व्यक्ति को भारतीय नागरिकता कैसे दी जा सकती है और भारतीय नागरिक होने के लिए ज़रूरी शर्तें क्या हैं.

नागरिकता अधिनियम, 2005 में कितनी बार संशोधन किया जा चुका है?

इस अधिनियम में अब तक पांच बार (1986, 1992, 2003, 2005 और 2015) संशोधन किया जा चुका है.

भारतीय नागरिकता ख़त्म कैसे हो सकती है?

भारतीय नागरिकता तीन आधार पर ख़त्म हो सकती है.

-अगर कोई स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता छोड़ दे

-अगर कोई किसी दूसरे देश की नागरिकता स्वीकार कर ले

-अगर सरकार किसी की नागरिकता छीन ले.

BBC Hindi
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English summary
Every important information related to Citizenship Amendment Bill, 2019
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