कभी मुलायम के ख़ास थे, अब योगी आदित्यनाथ ने सौंपी यूपी की कमान
ओपी सिंह उत्तर प्रदेश पुलिस के नए प्रमुख बनाए गए हैं, मुलायम से लेकर योगी आदित्यनाथ तक का ओपी का सफ़र.
तीन जनवरी को ओम प्रकाश सिंह ने उत्तर प्रदेश पुलिस की कमान संभाल ली.
उत्तर प्रदेश पुलिस महानिदेशक बनने से ठीक पहले ओम प्रकाश सिंह केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर थे और सेंट्रल इंडस्ट्रियल सिक्युरिटी फोर्स (सीआईएसएफ़) के महानिदेशक की अहम ज़िम्मेदारी निभा रहे थे.
ओम प्रकाश सिंह की नियुक्ति काफ़ी हद तक चौंकाने वाली मानी जा रही है, क्योंकि जिन लोगों का नाम रेस में चल रहा था, उसमें ओपी सिंह का नाम दूर दूर तक नहीं लिया जा रहा था. उनकी नियुक्ति पर चौंकाने वाली एक बात ये भी है कि एक समय में वे मुलायम सिंह यादव के बेहद ख़ास अधिकारी माने जाते थे.
जब यूपी पुलिस बन गई 'दबंग चुलबुल पांडे'
यूपी पुलिस को किस सेवा के लिए मिला 'स्मार्ट पुलिस अवॉर्ड'?
यूपी के सियासी गलियारों में ओपी सिंह की नियुक्ति को योगी आदित्यनाथ के जातिवाद से जोड़कर देखा जा रहा है, हालांकि योगी आदित्यनाथ की बिरादरी से आने वाले दूसरे पुलिस अधिकारी भी रेस में थे, ऐसे में पहले बात उस रेस की जिसमें ओपी सिंह ने अपने से चार सीनियर आईपीएस अधिकारियों को पीछे छोड़ दिया है.
सुलखान सिंह के बाद जिस अधिकारी का दावा सबसे मज़बूत माना जा रहा था वो प्रवीण कुमार सिंह थे. डीजी फायर सर्विस के तौर पर तैनात प्रवीण सिंह वरिष्ठता क्रम में सबसे आगे थे और माना जा रहा था कि जिस तरह से वरिष्ठता क्रम को देखते हुए सुलखान सिंह को तैनात किया गया था, वैसे ही ये जिम्मेदारी प्रवीण सिंह को दी जा सकती है.
यूपी पुलिस की कमान और जातीयता का रंग
लेकिन ना तो सीनियरिटी उनके काम आई और ना ही योगी आदित्यनाथ की बिरादरी से होने का फ़ायदा उनको हुआ. प्रवीण सिंह के बाद वरिष्ठता क्रम में होमगार्ड के डीजी सूर्य कुमार शुक्ला दूसरे नंबर पर थे. डीजी रैंकिंग में राजीव राय भटनागर और गोपाल गुप्ता भी ओपी सिंह से सीनियर थे.
इन सीनियरों के अलावा इस रेस में डीजी रैंक के हितेश चंद्र अवस्थी, रजनीकांत मिश्र और भवेश कुमार सिंह के नामों की चर्चा चल रही थी. भवेश कुमार सिंह वरिष्ठता क्रम में भले बेहद नीचे रहे हों लेकिन गोरखपुर में काम करने के चलते उनकी योगी आदित्यनाथ से ट्यूनिंग भी अच्छी मानी जाती है, लेकिन मौका उन्हें भी नहीं मिला.
योगी आदित्यनाथ के सूचना सलाहकार मृत्युंजय कुमार बताते हैं, "देखिए जिन लोगों के नामों की चर्चा मीडिया भी थी, वे लोग भी रेस में थे, लेकिन मुख्यमंत्री ऐसे अधिकारी की नियुक्ति चाहते थे जिसकी छवि रिजल्ट देने वाले अधिकारी की रही हो."
लेकिन ओपी सिंह की तैनाती में जिस बात की सबसे अहम भूमिका रही है, वो है इनके पास कार्यकाल के लिए दो साल का वक्त अभी बाक़ी है. योगी आदित्यनाथ 2019 के आम चुनाव को देखते हुए इस पद पर वैसे शख़्स को बिठाना चाहते थे, जिसके पास कम से कम दो साल का कार्यकाल हो.
प्रवीण कुमार सिंह का कार्यकाल जून, 2018 तक ही था, ऐसे में बहुत संभव है कि ये बात उनके पक्ष में नहीं गई हो.
मृत्युंजय कुमार कहते हैं, "यही बात होती तो जनवरी, 2020 तक के कार्यकाल वाले भवेश कुमार सिंह को लाया जा सकता था, उनके पास सीएम के साथ काम करने का अनुभव भी था."
हालांकि हक़ीक़त यही है कि योगी आदित्यनाथ ने पहले सुलखान सिंह और अब ओपी सिंह को राज्य पुलिस की कमाना सौंपी हैं, जो उनकी अपनी बिरादरी से आते हैं. अगर यही स्थिति पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव या मायावती के कार्यकाल में बनती तो मीडिया में जातीय रंग देकर पेश करती.
कभी मुलायम के ख़ास थे ओपी सिंह
वैसे दिलचस्प ये भी है कि अखिलेश यादव ने जनवरी, 2015 में जगमोहन यादव की वरीयता को नज़रअंदाज़ करते हुए अरविंद कुमार जैन को पुलिस प्रमुख बनाया था, हालांकि जैन के बाद जब जगमोहन यादव छह महीने के लिए पुलिस महानिदेशक बने थे तब अखिलेश सरकार पर जातीयता के ख़ूब आरोप लगे थे.
बहरहाल योगी सरकार द्वारा ओम प्रकाश सिंह को अहम ज़िम्मेदारी को लेकर कई विश्लेषक इसलिए भी चौंक रहे हैं क्योंकि कभी इनकी पहचान मुलायम सिंह यादव के ख़ास अधिकारी की रही है.
क्या वाकई एनकाउंटर से यूपी में कम हुए हैं अपराध?
यूपी में बीजेपी नेताओं और पुलिस के बीच बढ़ता टकराव
यूपी के सियासी मामलों पर नजर रखने वाले लोग आज भी 2 जून, 1995 का गेस्ट हाउस कांड नहीं भूले होंगे जब समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने कथित तौर लखनऊ के मीराबाई मार्ग के स्टेट गेस्ट हाउस में मायावती पर हमला कर दिया था. राज्य सरकार से समर्थन वापस लेने के चलते मायावती पर ये हमला हुआ था.
तब लखनऊ ज़िला पुलिस प्रमुख का पद ओम प्रकाश सिंह के पास ही था. उन पर आरोप लगा था कि उनके नेतृत्व वाली पुलिस समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं के सामने मूक दर्शक बनी रही थी.
यूपी की राजनीति को नज़दीक से कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता बताते हैं, "ओपी सिंह पर लगे आरोप इसलिए भी गंभीर थे क्योंकि उन्होंने 2 जून, 1995 को तड़के ही ज़िले का प्रभार संभाला था. एक जून को उन्हें मुलायम सिंह ने बुला लिया था."
इससे पहले भी वो कई मौकों पर मुलायम सिंह के कृपा पात्र बने थे. दिसंबर, 1993 में बहुजन समाज पार्टी के समर्थन की बदौलत मुलायम मुख्यमंत्री बने थे. अप्रैल 1994 में बुलंदशहर के हस्तिनापुर विधानसभा उप-चुनाव से ठीक पहले ज़िला पुलिस ने इलाके के कुख़्यात गैंगस्टर महेंद्र फौजी का इनकाउंटर किया था. तब ओपी सिंह बुलंदशहर के एसएसपी हुआ करते थे.
शरद गुप्ता बताते हैं, "महेंद्र फौजी को बहुजन समाज पार्टी का आदमी माना जाता था. उसके एनकाउंटर पर मायावती ने मुलायम सिंह पर ओपी सिंह को सस्पेंड करने का भारी दबाव बनाया था. सोचिए मुलायम ने सजा के तौर पर क्या किया, बुलंदशहर के एसएसपी को बुलाकर सीधे लखनऊ का एसएसपी बना दिया था."
इस बात को लेकर भी मायावती काफ़ी चिढ़ गई थीं और उन्होंने कांशीराम से इस बारे में मुलायम सिंह की शिकायत की. शिकायत इसी बात की थी कि जिस आदमी पर कार्रवाई करने की बात थी, उसे प्राइम पोस्टिंग दे दी है.
मायावती को पसंद नहीं हैं ओपी सिंह
शरद गुप्ता बताते हैं, "मायावती जी चाहती थीं कि ओपी सिंह को वहां भेजा जाए जहां ना ऑफ़िस हो और ना ही गाड़ी घोड़ा मिले. तब मुलायम सिंह ने ओपी सिंह को कुंभ ज़िले का प्रभार सौंपा था. लोग जानते हैं कि कुंभ मेले में लगने वाले ज़िले का बज़ट कितना ज़्यादा होता है और इसे प्राइम पोस्टिंग से कम नहीं माना जाता."
मायावती ने गेस्टहाउस कांड के बाद मुख्यमंत्री बनते ही ओपी सिंह को सस्पेंड कर दिया था. हालांकि मुलायम सिंह जब दोबारा मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने ओपी सिंह को नोएडा का एडिशनल डायरेक्टर जनरल बनाया था.
ओपी सिंह ना केवल मुलायम सिंह के ख़ास रहे, बल्कि उनकी करीबी राजनाथ सिंह से भी रही. सीआईएसएफ़ के महानिदेशक के तौर पर उनकी नियुक्ति की एक वजह ये भी बताई जाती रही है.
ओपी सिंह के बैच के सेवानिवृत हो चुके एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी कहते हैं, "यही ओपी सिंह की ख़ासियत है, वे हर किसी के करीब हो सकते हैं. मौजूदा समय में बीजेपी सरकार के लिए उनका चयन सबसे ठीक माना जा सकता है."
बेहद अनुभवी हैं ओपी सिंह
मृत्युंजय कुमार के मुताबिक, ओपी सिंह को राज्य का कमान सौंपने की एक बड़ी वजह ये भी रही है कि उनके पास उत्तर प्रदेश में काम करने का अनुभव रहा है और दूसरे राजनीतिक दलों के साथ काम करने का अनुभव भी रहा है.
इतना ही नहीं ओपी सिंह के एक ख़ासियत आगे बढ़कर लीडर की भूमिका निभाने वाले अधिकारी की रही है, इसकी झलक उन्होंने अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही दिया था.
शरद गुप्ता बताते हैं, "1992-93 में ओपी लखीमपुरी खीरी में एसएसपी थे. ज़िला आतंकवाद की चपेट में था. सुरक्षा कारणों से एसएसपी को बीकॉन के बिना चलने को कहा गया, तो ओपी ने प्रेस कांफ्रेंस करके कहा था वे अपने पुलिसकर्मियों का मोरल डाउन नहीं करना चाहते हैं."
यूपी पुलिस के साथ विभिन्न ज़िम्मेदारियों को निभाने के अलावा सीआईएसएफ़ में ओपी सिंह के कार्यकाल की काफ़ी संतोषजनक माना जाता है. चाहे वो वीआईपी सुरक्षा का मसला हो या एयरपोर्ट पर सुरक्षा. उनके काम की तारीफ़ होती रही है. नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फ़ोर्स में भी नई तकनीक लाने का श्रेय ओपी सिंह को दिया जाता है.
मूल रूप से बिहार के गया ज़िले के ओपी सिंह के सामने अपने करियर के शिखर पर ऐसे राज्य की पुलिस व्यवस्था को संभालने की ज़िम्मेदारी है, जिसने बीते एक साल में 895 एनकाउंटर करने का काम किया है. नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के मुताबिक राज्य में चार हज़ार से ज़्यादा लोगों की सालाना हत्याएं होती हैं और तीन लाख तक सालाना मुक़दमे दर्ज होते हैं.
ओपी सिंह के सामने सबसे बड़ी चुनौती यूपी पुलिस की भ्रष्ट छवि को दुरुस्त करने के साथ साथ अपराध की रफ़्तार को कम करने की होगी. इस दौरान राज्य में सांप्रदायिक सद्भाव नहीं बिगड़े, इसकी चुनौती भी उन्हें निभानी होगी.
ओपी सिंह की छवि जितनी आक्रामक और सख्त पुलिस अधिकारी की रही है, उतना ही लगाव उनका संगीत से भी रहा है. ख़ास मौकों पर वे खुद बेहतरीन आवाज़ में गाने गाते रहे हैं. मुकेश को अपना पसंदीदा गायक मानने वाले ओपी सिंह के गायक का अंदाज़ आप इस लिंक पर देख सकते हैं.
https://www.youtube.com/watch?v=yUK_vdQ4h7Y