क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

आज भी कानों में गूंजती हैं 'ब्लू स्टार' की गोलियां

ऑपरेशन ब्लूस्टार को अब 34 साल बीत चुके हैं जब सेना ने सिखों के सबसे पवित्र धर्मस्थल स्वर्ण मंदिर पर ऑपरेशन ब्लूस्टार को अंजाम दिया था. लेकिन इस घटना की यादें आज भी ज़हन में ताजा हैं.

1 जून, 1984 को मुझे स्वर्ण मंदिर परिसर में स्थित सिख रिफरेंस लाइब्रेरी में जाने का मौका मिला. इस दौरान मुझे स्वर्ण मंदिर में सशस्त्र सिखों की चौकियां देखने को मिलीं. 

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News

ऑपरेशन ब्लूस्टार को अब 34 साल बीत चुके हैं जब सेना ने सिखों के सबसे पवित्र धर्मस्थल स्वर्ण मंदिर पर ऑपरेशन ब्लूस्टार को अंजाम दिया था. लेकिन इस घटना की यादें आज भी ज़हन में ताजा हैं.

1 जून, 1984 को मुझे स्वर्ण मंदिर परिसर में स्थित सिख रिफरेंस लाइब्रेरी में जाने का मौका मिला. इस दौरान मुझे स्वर्ण मंदिर में सशस्त्र सिखों की चौकियां देखने को मिलीं. श्रद्धालु सेवा कार्य के रूप में इन चौकियों के निर्माण के लिए ईंट-गारे को उठाने में लगे हुए थे.

मां के लिए पहुंचा स्वर्ण मंदिर

साल 1984 की शुरुआत में मेरी मां को गाल ब्लेडर का ऑपरेशन कराने के लिए अमृतसर के वरयाम सिंह अस्पताल में भर्ती कराया गया था.

लेकिन इस ऑपरेशन के दौरान वह कोमा में चली गईं. मेरी मां की हालत बिगड़ रही थी और इससे चिंतित होकर मेरे पिता उन्हें अमृतसर से 25 किलोमीटर दूर तरन तारन में स्थित मेरे चाचा के घर लेकर गए.

क्योंकि हमारा पुश्तैनी घर अमृतसर से तीन सौ किलोमीटर दूर श्री गंगानगर, राजस्थान में स्थित था.

मेरी मां की हालत के बारे में पता चलते ही हमारे परिवार के एक शुभचिंतक ने कहा कि हमें स्वर्ण मंदिर में से पवित्र जल लेकर अरदास करनी चाहिए.

मां की वजह से मैं अपनी दो छोटी बहनों को लेकर अपनी मां के साथ रहने के लिए श्री गंगानगर से तरन तारन पहुंच गया.

लेकिन इसके बाद 1 जून को स्वर्ण मंदिर जाकर पवित्र जल लेने के लिए पंजाब रोडवेज़ की बस से स्वर्ण मंदिर पहुंच गया.

ब्रिटेन ने ऑपरेशन ब्लूस्टार से पहले 'सलाह दी थी'

जब सुरक्षाबलों ने रोकी हमारी बस

लेकिन जब सुरक्षाबलों ने बाबा नौद सिंह समाध के पास बस को रुकने का इशारा करके यात्रियों को बस से उतरने को कहा तो हमें काफी आश्चर्य हुआ.

सुरक्षा बलों ने बस में सवार प्रत्येक व्यक्ति की तलाशी ली और उन्हें वापस बस पर चढ़ने के लिए कहा.

लेकिन इसके बाद अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के पास पहुंचने तक हमारे साथ कई बार ऐसा हुआ.

अमृतसर
Getty Images
अमृतसर

हम गुरुद्वारा शहीदां साहिब पर उतरने के बाद संकरे बाज़ारों और गलियों से होते हुए स्वर्ण मंदिर की ओर चलने लगे.

इस दौरान बाज़ार में दुकानों पर मौजूद सामान ने हमारा ध्यान खींचा.

मेरे पिता ने बाज़ार से प्लास्टिक की एक बोतल खरीदी और हम आटा मंडी से होते हुए स्वर्ण मंदिर के पहले गेट पर पहुंच गए.

बाज़ार के बदले हुए रंग

ये उन दिनों की बात है जब पंजाब में जूते रखने के लिए एक ख़ास जगह नहीं हुआ करती थी लेकिन सेवादार जूते लिया करते थे. हमने अपने जूते उतारकर सेवादार को दिए और स्वर्ण मंदिर में चले गए.

स्वर्ण मंदिर में अपना सिर झुकाने के बाद हम इसके पास ही लक्षमंसर चौक पर स्थित अपने पिता की बहन के घर जाने वाले थे.

हम जैसे ही दर्शानी देवरी को पार करके ग्रंथ साहिब के स्थान और परिक्रमा वाले गलियारे की ओर बढ़े तो मुझे भाई अमरीक सिंह दिखाई दिए.

अमरीक सिंह, संत करतार सिंह भिंडरावाले और संत जरनैल सिंह भिंडरावाले के साथ सिख धर्म को बढ़ावा देने के लिए श्री गंगानगर आया करते थे.

उन्होंने मुझे तुरंत ही पहचानकर कहा, "की हाल है गंगानगर वाल्यो."

लाल रंग की गोल पगड़ी पहने हुए वह अपने एक हाथ में कृपाण और दोनों कंधों पर दो माउज़र लटकाए हुए थे.

ऑपरेशन ब्लूस्टार के ज़ख़्म अब भी क्यों हरे?

जब सुनी गोलियों की आवाज़

हर रोज़ की तरह रागी लोग शबद गा रहे थे और चारों ओर से वाहे गुरु-वाहे गुरू की आवाज़ आ रही थी.

लेकिन जैसे ही हमने दर्शानी देवरी से परिक्रमा वाले गलियारे में कदम रखा तो हमें गोलियों की आवाज़ें सुनाई दीं. इसके बाद लोगों ने बरामदे में छिपना शुरू कर दिया.

स्वर्ण मंदिर में हर रोज माथा टेकने वालों के लिए ये कोई नई बात नहीं थी लेकिन हमारे लिए ये अपने आप में एक नया अनुभव था.

मैं श्रद्धालुओं को सशस्त्र पगड़ी धारी सिखों का सम्मान करते हुए दे रहा था. तभी परिक्रमा वाले गलियारे में हमें मेरे पिता के एक दोस्त मिले जिनका घर स्वर्ण मंदिर के पास ही था.

मेरे पिता के दोस्त खजन सिंह हमें डरा हुआ देखकर परेशान हो गए. उन्होंने मेरे पिता से तुरंत ही उनके घर चलने को कहा और इस तरह हमारी बुआ के घर जाना कैंसल हो गया.

मेरे पिता और उनके दोस्तों के बीच बातचीत देखकर हमें लगा कि स्थिति सामान्य है.

इंदिरा की 'भूल' क्या आज की सियासत के लिए सबक है?

जब पहली बार देखा कर्फ्यू

इसके बाद दुकानदारों ने कर्फ्यू की घोषणा होने के बाद अपने शटर गिराने शुरू कर दिए. ये वो पहला मौका था जब मैंने पहली बार कर्फ्यू लगते हुए देखा था.

रात के खाने के बाद खजन सिंह ने मेरे पिता से स्वर्ण मंदिर चलकर सेवादारी करने के लिए कहा. मेरे पिता इसके लिए तैयार हो गए और मैं भी उनके साथ स्वर्ण मंदिर के लिए निकल पड़ा.

रात करीब 12 बजे हम एक बहुत पुराने पेड़ के पास सेवादारी के रूप में ज़मीन साफ़ कर रहे थे तभी पेड़ पर टंगा हुआ बल्ब एक गोली लगने से धमाके के साथ फूट गया.

इसके बाद चारों ओर अंधेरा हो गया. हम काफी परेशान थे तभी कुछ सेवादार हमें दर्शानी देवरी के पास लेकर गए. लेकिन एक घंटे के बाद हमने सेवाकार्य शुरू किया और खजन सिंह के घर रात 2 बजे तक वापस आ गए.

पंजाब में ज़्यादातर जगह कर्फ्यू

2 जून तक हमें ये नहीं पता था कि पंजाब को सेना के हवाले कर दिया गया है और ज़्यादातर शहरों में कर्फ्यू लगा दिया गया है.

दिन के दौरान सीआरपीएफ़ और सिख युवाओं के बीच गोलियां चलती हुई दिखाई दीं.

खजन सिंह की छत से मैंने देखा कि दुकानदार सशस्त्र सिख युवाओं के आदेश पर अपनी दुकानों के आगे लगे छप्पर हटा रहे हैं क्योंकि वे गलियों में सुरक्षाबलों को साफ देखकर निशाना लगाना चाहते थे.

2 जून को खजन सिंह हमें एक बार फिर स्वर्ण मंदिर लेकर गए जहां हमारी मुलाकात गंगानगर के ही एक व्यक्ति मोहिंदर सिंह कबारिया से हुई.

कबारिया पारंपरिक पगड़ी की जगह गोल पगड़ी पहने हुए थे और उनके कंधे पर एक 303 रायफल लटक रही थी. मुझे इस रायफल के बारे में पता था क्योंकि मैं खुद एक एनसीसी कैडेट था.

कबारिया ने हमारे पिता को उस दौरान मौजूद स्थिति के बारे में चेतावनी देते हुए हम लोगों को घर भेजने की सलाह दी. वह हमें स्वर्ण मंदिर के आटा मंडी गेट तक हमें छोड़ने भी आए.

'जनरैल सिंह भिंडरावाले बिज़ी हैं'

मेरे पिता ने उनसे संत जरनैल सिंह भिंडरावाले के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वह काफी व्यस्त हैं और सिर्फ उनसे मिल रहे हैं जो कि हथियार उठाने के लिए तैयार हैं.

आटा मंडी पर सेवादार लोगों से सेवा करने की गुहार लगा रहे थे. वह लोगों को ईंट-गारे का सामान दे रहे थे ताकि श्रद्धालु उन्हें सिख रिफरेंस लाइब्रेरी में ले जाकर चौकियों के निर्माण में मदद कर सकें.

उन्होंने मुझे और मेरी बहन को भी एक-एक ईंट दी और ऊपर ले जाने को कहा.

जब मैं छत पर पहुंचा तो मैंने दो सशस्त्र सिखों को देखा और वहां लंगर का सामान दाल-रोटी भी रखी हुई थी.

इसके बाद हम खजन सिंह के घर वापस आ गए. लेकिन शाम तक एक बार फिर फायरिंग शुरू हो गई.

खजन सिंह के घर से मैंने एक आदमी को सुरक्षाबलों की गोलियों का जवाब देते हुए देखा. हमने एक अफवाह सुनी कि सशस्त्र सिखों के एक समूह ने सीआरपीएफ की बंदूकें छीन ली हैं और कुछ लोगों की मौत हुई है.

बीतती रात के साथ खराब हुई स्थिति

जैसे-जैसे रात बीतती गई, वैसे स्थिति खराब होती गई. वहां अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई थी. मेरे पिता ने सीआरपीएफ के जवानों से बच्चों और महिलाओं को सुरक्षित जगह पर पहुंचाने के लिए कहा. लेकिन उन्होंने कहा कि वे मजबूर हैं और इस बारे में सिर्फ़ सेना कोई फैसला ले सकती है.

2 जून को मेरे पिता और खजन सिंह एक बार फिर स्वर्ण मंदिर गए लेकिन वो मुझे साथ नहीं ले गए. हालांकि, वह 2 जून की आधी रात तक सुरक्षित घर वापस आ गए. इस दौरान हमने गोलियां चलने की आवाज़ें सुनीं.

3 जून तक सेना ने स्थिति को अपने नियंत्रण में ले लिया और इसके बाद संघर्ष सामने दिखने लगा.

मैं अपने पिता और खजन सिंह के बीच हो रही बातचीत सुनने के लिए बहुत उत्सुक था.

इस तरह मुझे पता चला कि वे हरचंद सिंह लोंगोवाल और गुरबचन सिंह तोहरा और दूसरे सिख नेताओं के बारे में बात कर रहे थे.

3 जून को सिखों के पांचवे गुरू 'गुरू अर्जुन देव' का शहीदी दिवस था. लेकिन सामान्य तौर-तरीकों से अलग इस दिन ठंडा और मीठा पानी नहीं बांटा जा रहा था.

तभी अचानक लोग सेना की चेतावनी के बारे में बात करने लगे जिसमें कहा गया था कि जो लोग स्वर्ण मंदिर से निकलना चाहते हैं वो निकल सकते हैं.

मेरे पिता ने स्वर्ण मंदिर से निकलने का फ़ैसला किया. उन्होंने मंदिर के तालाब से पवित्र जल लिया और जब वह बाहर की ओर निकल रहे थे तभी उन्होंने कई लोगों को स्वर्ण मंदिर में जाते हुए देखा.

जब सीआरपीएफ ने मुझे रोक लिया

मैंने सीआरपीएफ के सुरक्षाकर्मियों को युवा सिखों की तलाशी लेते हुए देखा. मैंने सोचा कि वे मेरी भी तलाशी लेंगे और उन्होंने मुझे रोका भी लेकिन तभी महिलाओं का समूह वाहेगुरू-वाहेगुरू का जाप करते हुए आईं और हम सीआरपीएफ की पकड़ से निकल आए.

हम सब हाथ पकड़कर बाहर आए और गुरुद्वारा शहीदां साहिब पहुंचे और वहां हमें तरन तारन जाने वाली बस दिखाई. 52 सीटों वाली ये बस अपनी क्षमता से तीन गुना ज़्यादा भरी हुई थी. इस बस को रोककर उसकी सात बार तलाशी ली गई और इस दौरान सभी लोग वाहेगुरू का जाप करते रहे.

तरनतारन पहुंचकर हमें पता चला कि सेना ने इस क्षेत्र को अपने नियंत्रण में ले लिया है और हम इस दौरान गोलियों की आवाज़ें सुन सकते थे.

इस समय स्वर्ण मंदिर के हालात का जायज़ा लेने का कोई तरीका नहीं था. सिर्फ बीबीसी रेडियो सेवा की बदौलत हमें पता चला कि सेना स्वर्ण मंदिर में घुस चुकी है और इस कार्रवाई को ऑपरेशन ब्लू स्टार नाम दिया गया.

बाद में मुझे पता चला कि खजन सिंह का घर उन इमारतों में शामिल था जिन्होंने गोलीबारी का सामना किया और ये जगह जलकर राख हो गई.

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Even today the buzz in the ears is Blue Star tablets
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X