सवर्णों को आरक्षण पर चिर प्रतिद्वंद्वी भी क्यों दे रहे भाजपा का साथ
चुनावी साल में
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नई दिल्ली। सरकार के सवर्णों को दस प्रतिशत आरक्षण दिए जाने के फैसले को देश का ज्यादातर पार्टियों ने समर्थन दिया है। इसमे सबसे खास बात ये है कि अमूमन भाजपा के खिलाफ रहने वाली ज्यादातर पार्टियां इस बिल को समर्थन कर रही हैं। कांग्रेस ने भी इस बिल को समर्थन दिया है, हालांकि पार्टी ने इसे जेपीसी को भेजने की मांग की है। कांग्रेस ने कहा कि जिस हड़बड़ी में बिल को लाया गया है, वो सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करता है, इसलिए इसे जेपीसी में भेजा जाए।
बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस भी इस बिल के पक्ष में हैं। राष्ट्रीय जनता दल और आम आदमी पार्टी ने इस बिल का विरोध किया है। राजद ने जहां इस तरह के किसी बिल से पहले जातिगत जनगणना की बात की है तो आप ने कहा है कि भाजपा एससी/एसटी और दूसरी पिछड़ी जातियों का आरक्षण खत्म करना चाहती है।
जाति की राजनीति करने वाली पार्टियों के बिल को समर्थन की अपनी वजहें हैं। मायावती जानती हैं कि इस बिल का विरोध करने पर उनके सवर्ण उम्मीदवारों को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। सपा को भी उच्च जाति के लोगों की वोट चाहिए। वहीं जाटों के वोटों पर राजनीति करने वाली राष्ट्रीय लोकदल के लिए भी बिल का विरोध मुश्किल काम है। बिल का विरोध जाटों और गुर्जरों को दूर कर सकता है।
सवर्णों के विरोध का नुकसान मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा झेल चुकी है। ऐसे में लोकसभा चुनाव जब सिर पर हैं तो इस बिल का विरोध एक महंगा सौदा हो सकता है। इसके अलावा इस बिल में मुस्लिम सवर्णों को भी आरक्षण है इसलिए भी इसका विरोध ज्यादातर पार्टियां नहीं कर रही हैं। राजद की बात करें तो पार्टी को पता है कि वो बिल को समर्थन देंगे तब भी उच्च जाति के लोग उनको वोट नहीं देंगे।
एनडीए में सहयोगी रामविलास पासवान और रामदास अठावले जैसे नेताओं ने बिल को समर्थन दिया है। वहीं कुछ पार्टियों ने कहा है कि मुसलमानों को भी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। खासकर टीआरएस ने इस बात को कहा है। विपक्षी पार्टियां इसे दूसरे मुद्दों से ध्यान हटाने की चाल कह रही हैं लेकिन भाजपा इससे खुश दिख रही है।
सामान्य वर्ग के लोगों को सरकारी नौकरी और शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण देने संबधी विधेयक मंगलवार को लोकसभा में पारित हो गया। बुधवार को इसे राज्यसभा में पेश किया गया है। इससे पहले कैबिनेट ने सवर्णों को दस फीसदी आरक्षण के प्रस्ताव पर मुहर लगाई थी।
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