मध्य प्रदेश की जौरा सीट पर भाजपा की राह मुश्किल, दिग्गजों की साख दांव पर
भोपाल। मध्य प्रदेश के मुरैना जिले की जौरा (Joura) सीट पर हो रहे उपचुनाव में भाजपा और कांग्रेस तो दांव आजमा रहे हैं लेकिन बसपा के होने से यहां मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। इस बार कांग्रेस ने पंकज उपाध्याय बनाया है जबकि 2018 में दूसरे स्थान पर रही बसपा ने सोनेराम कुशवाहा को प्रत्याशी बनाया है।

कांग्रेस विधायक बनवारी लाल शर्मा के निधन के चलते ये सीट खाली हुई है। शर्मा को ज्योतिरादित्य सिंधिया के पाले का नेता माना जाता था यही वजह थी सिंधिया यहां पर भाजपा से अपनी पसंद का उम्मीदवार बनाना चाहते थे। हालांकि यहां उनकी नहीं चली और भाजपा ने यहां सूबेदार सिंह राजोधा को उम्मीदवार बनाया है। एक तरफ जहां प्रदेश में उपचुनाव में प्रदेश की दूसरी सीटों पर बिकाऊ नहीं टिकाऊ, दलबदलू और धोखेबाज जैसे आरोप सुनाई पड़ रहे हैं वहीं इस सीट पर ऐसा कुछ नहीं है।
भाजपा की राह मुश्किल
बीते पांच चुनावों के नतीजे ये बताते हैं कि भाजपा की राह यहां पर मुश्किल है। 5 में से सिर्फ एक चुनाव में ही उसे जीत मिली है। कांग्रेस दो सीटों पर जीत चुकी है। बसपा भी यहां भाजपा से अच्छी स्थिति में है और दो चुनाव जीत चुकी है। पिछले चुनाव में भी बसपा यहां भाजपा को तीसरे नंबर पर धकेलते हुए दूसरे नंबर पर रही थी। 2003 में जब प्रदेश में प्रचंड लहर के साथ भाजपा सत्ता में आई थी तब भी यहां कांग्रेस ने जीत गई थी। दूसरे नंबर पर बसपा थी और भाजपा के प्रत्याशी महेश मिश्रा 10 हजार वोट पाकर छठे नंबर पर थे।
सिंधिया परिवार का चलता रहा सिक्का
इस क्षेत्र में कांग्रेस में बीते कई दशक से सिंधिया परिवार का बोलबाला रहा है। जब तक माधवराव सिंधिया थे कांग्रेस उम्मीदवार वही तय करते थे। उसके बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया करने लगे। इस बार ज्योतिरादित्य भाजपा में हैं तो उम्मीदवारों को कमलनाथ ने तय किया है। ऐसे में इस सीट पर जीत कमलनाथ की साख के लिए जरूरी है। वहीं भाजपा से ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ ही नरेंद्र सिंह तोमर आदि की साख भी दांव पर लगी है।
इस सीट पर मजबूत खिलाड़ी रही बसपा ने उपचुनाव के दंगल में उतरकर मुकाबले को और रोमांचक बना दिया है। बसपा यहां 1998 और 2008 में चुनाव जीत चुकी है। 2018 में भी पार्टी प्रत्याशी मनीराम धाकड़ दूसरे नंबर पर रहे थे। यही वजह है कि बसपा से न सिर्फ भाजपा बल्कि कांग्रेस भी डरे हुए हैं।
ब्राह्मण समीकरणों पर जोर
क्षेत्र के समीकरणों को देखते हुए उम्मीद थी कि यहां किसी ब्राह्मण चेहरे को उतार सकती थी। हालांकि भाजपा की तरफ से कद्दावर नेता और गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा इलाके में बड़ा चेहरा हैं। साथ स्टार प्रचारक वीडी मिश्रा और भाजपा नेता प्रभात झा भी इसी इलाके से आते हैं। वहीं कांग्रेस ने ब्राह्मण वोटर को साधने के लिए इस सीट के साथ ही अंचल की 16 सीटों पर चार ब्राह्मण उम्मीदवार उतारे हैं।
5 चुनाव के ये रहे नतीजे
पिछले पांच मुकाबलों में भाजपा यहां कमजोर खिलाड़ी साबित हुई है। 1998 में बसपा के सोनेराम कुशवाहा कुशवाहा ने यहां से जीत दर्ज की थी। 2003 में ये सीट कांग्रेस के कब्जे में गई जब उमेद सिंह बना ने निर्दलीय मनीराम धाकड़ को 2753 वोट से हरा दिया। 2008 में मनीराम धाकड़ बसपा के टिकट पर मैदान में उतरे और कांग्रेस के वृंदावन को हराया। 2013 में सूबेदार सिंह ने कांग्रेस के बनवारी लाल शर्मा को पराजित कर ये सीट भाजपा की झोली में डाली। 2018 में कांग्रेस ने ये सीट फिर से वापस अपने कब्जे में ले ली। बनवारी लाल शर्मा ने बसपा के मनीराम धाकड़ को 15 हजार वोट से हरा दिया। भाजपा के प्रत्याशी सूबेदार सिंह तीसरे नंबर पर रहे थे।
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