MP: ब्यावरा में भाजपा के लिए कठिन लड़ाई, एक मिथक ने बढ़ाई मुश्किल
भोपाल। मध्य प्रदेश के उपचुनाव में इस बार जहां बाकी सीटों पर बिकाऊ या टिकाऊ और गद्दार जैसे मुद्दे कांग्रेस उछाल रही है वहीं तीन विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां ये मुद्दे नहीं हैं। राजगढ़ की ब्यावरा सीट इन्हीं में से एक है। ब्यावरा सीट कांग्रेस विधायक गोवर्धन दांगी के निधन से खाली हुई है।
कांग्रेस ने इस सीट पर रामचंद्र दांगी को उम्मीदवार बनाया है तो भाजपा ने नारायण सिंह पंवार को मैदान में उतारा है। बसपा से गोपाल सिंह भिलाला ताल ठोक रहे हैं। हालांकि बसपा का ब्यावरा में खास असर नहीं है। इस सीट पर मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा में ही है। दोनों दलों के सामने अपने अंसतुष्टों को साधने की चुनौती भी है। जो इन्हें साध लेगा वह चुनाव निकाल लेगा।
वहीं इस सीट पर एक मिथक भी उम्मीदवारों की मुश्किल बढ़ रहा है। पिछले पांच चुनाव से यहां पर जो भी एक बार जीता है वह दोबारा चुनाव नहीं जीता है। भाजपा के नारायण सिंह पंवार यहां से एक बार चुनाव जीत चुके हैं जबकि एक चुनाव हारे हैं। वहीं कांग्रेस के रामचंद्र दांगी दो बार चुनाव हार चुके हैं। ऐसे में कांग्रेसियों को उम्मीदवार है कि दांगी यहां से चुनाव जीतेंगे।
ब्यावरा
का
जातिगत
समीकरण
ब्यावरा
सीट
पर
अगर
जातिगत
समीकरणों
की
बात
करें
तो
दांगी,
यादव,
लोध
और
गुर्जर
मतदाता
निर्णायक
स्थिति
में
हैं।
यही
वजह
कि
भाजपा
और
कांग्रेस
दोनों
इन्हें
साधने
में
लगे
हुए
हैं।
क्षेत्र
में
ढाई
लाख
मतदाता
हैं
जिनमें
22
हजार
दांगी,
18
हजार
सोंधियां,
17
हजार
यादव,
12
हजार
गुर्जर
और
13-13
हजार
लोधा
एवं
मुस्लिम
मतदाता
है।
वैसे
तो
ज्यादातर
सीटों
पर
कांग्रेस
उम्मीदवारों
का
चयन
कमलनाथ
ने
किया
है
लेकिन
यहां
दिग्विजय
की
चली
है।
ये
सीट
कभी
दिग्विजय
सिंह
के
संसदीय
क्षेत्र
में
रही
है।
यहां
दिग्विजय
सिंह
ने
रामचंद्र
दांगी
को
समर्थन
दिया
है।
ऐसे
में
यहां
दांगी
की
जीत
के
साथ
दिग्विजय
की
प्रतिष्ठा
भी
जुड़ी
हुई
है।
दांगी
के
समर्थन
में
दिग्विजय
के
पुत्र
और
पूर्व
मंत्री
जयवर्धन
सिंह
ने
यहां
डटे
हुए
हैं।
वहीं इस सीट पर भाजपा के सामने भितरघात की समस्या बनी हुई है। यहां से भाजपा जिलाध्यक्ष समेत कई लोग टिकट के दावेदार थे लेकिन नारायण सिंह पंवार को टिकट मिला। ऐसे में कई लोग नाराज चल रहे हैं। भाजपा के लिए इन्हें साधकर रखना बहुत जरूरी है।
ये
रहे
पिछले
पांच
चुनावों
के
नतीजे
1998
के
बाद
5
चुनावों
में
तीन
बार
कांग्रेस
और
दो
बार
भाजपा
को
जीत
मिली
है।
1998
में
कांग्रेस
के
बलराम
सिंह
गुज्जर
ने
भाजपा
के
बद्रीलाल
यादव
को
6532
वोट
से
हराकर
सीट
पर
कब्जा
किया
था।
2003
में
भाजपा
के
बद्रीलाल
ने
यहां
जीत
दर्ज
की।
उन्होंने
कांग्रेस
के
टिकट
पर
चुनाव
में
उतरे
रामचंद्र
दांगी
को
4915
मतों
के
अंतर
से
शिकस्त
दे
दी
थी।
2008
में
कांग्रेस
के
टिकट
पर
पुरुषोत्तम
दांगी
ने
भाजपा
के
बद्रीलाल
को
13
हजार
से
अधिक
वोटों
से
हरा
दिया।
2013
के
विधानसभा
चुनाव
में
भाजपा
के
नारायण
सिंह
पंवार
ने
कांग्रेस
के
रामचंद्र
दांगी
को
हराकर
सीट
भाजपा
की
झोली
में
डाल
दी।
2018
में
कांग्रेस
के
गोवर्धन
दांगी
ने
भाजपा
के
नारायण
सिंह
पंवार
को
हरा
दिया।
हालांकि
हार-जीत
का
अंतर
मात्र
826
वोट
का
ही
था।
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