बिहारः आरा सीट पर लेफ्ट और राइट में कांटे की जंग, क्या BJP इस बार जीत का गणित बिठा पाएगी?
पटना। राजा भोज की ऐतिहासिक नगरी के रूप में जानी जाने वाली आरा (Arrah) में विधानसभा चुनाव को लेकर गहमागहमी तेज हो गई है। 28 अक्टूबर को पहले चरण में हो रहे चुनाव में यहां मुख्य मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के प्रत्याशियों के बीच ही है लेकिन अभी तक किसी के भी पक्ष में कोई चुनावी लहर नहीं दिख रही है। मतदाताओं का शांत मूड प्रत्याशियों की बेचैनी बढ़ा रहा है।
भाजपा ने यहां से अपने पुराने नेता अमरेंद्र प्रताप सिंह पर भरोसा जताया है। वहीं महागठबंधन के सीट बंटवारे में राजद ने अपने सिटिंग विधायक का टिकट काटकर इस बार लेफ्ट के हिस्से में दी है। यहां से भाकपा माले ने कयामुद्दीन अंसारी को प्रत्याशी बनाया है। उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा से प्रवीण सिंह मैदान में हैं तो पप्पू यादव की जाप ने ब्रजेश कुमार सिंह को टिकट दिया है।
भाजपा
की
परंपरागत
सीट
भाजपा
की
परंपरागत
सीट
रहे
इस
विधानसभा
क्षेत्र
में
भाजपा
के
सामने
इस
बार
कमल
खिलाने
की
चुनौती
है।
2015
के
चुनाव
में
महागठबंधन
की
लहर
में
भाजपा
के
चार
बार
के
विधायक
अमरेंद्र
प्रताप
सिंह
अपनी
सीट
नहीं
बचा
पाए
थे।
राजद
के
नवाज
आलम
ने
उन्हें
हरा
दिया
था।
हालांकि
अमरेंद्र
प्रताप
सिंह
666
के
नजदीकी
अंतर
से
ये
मुकाबला
चूके
थे।
यही
वजह
है
कि
एक
बार
फिर
भाजपा
के
टिकट
पर
एनडीए
प्रत्याशी
अमरेंद्र
प्रताप
सिंह
को
सबसे
दमदार
माना
जा
रहा
है।
वहीं
पिछली
बार
की
हार
के
बाद
अमरेंद्र
प्रताप
सिंह
कोई
चूक
नहीं
करना
चाहेंगे।
पहली
बार
लेफ्ट
को
उम्मीद
आरा
विधानसभा
सीट
पर
पिछले
कई
चुनावों
से
भाजपा
और
आरजेडी
में
ही
मुकाबला
होता
रहा
है।
राजपूत
वोटरों
के
दबदबे
वाली
इस
सीट
पर
2000
से
2010
तक
यहां
अमरेंद्र
प्रताप
बीजेपी
का
कमल
खिलाते
रहे
हैं।
लेफ्ट
पार्टियां
यहां
से
कभी
चुनाव
नहीं
जीती
हैं।
ऐसे
में
माले
यहां
से
जीत
का
ये
सुनहरा
मौका
नहीं
खोना
चाहेगी।
खासकर
जब
उसे
राजद
जैसे
प्रमुख
दल
ने
अपने
सिटिंग
विधायक
का
टिकट
काटकर
ये
सीट
दी
है।
राजद
की
पिछली
जीत
से
माले
को
जरूर
उत्साह
मिलेगा।
आराम में कुल 327492 मतदाता हैं जिनमें 1,77,520 पुरुष और 149,966 महिलाएं हैं। वैसे तो ये राजपूत वोटरों के प्रभाव वाली सीट है लेकिन शहरी क्षेत्र में वैश्य, कायस्थ वोटरों का ध्रुवीकरण चुनाव परिणाम में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। ये वोटर परंपरागत रूप से भाजपा के समर्थक माने जाते रहे हैं। यही वजह है कि भाजपा अमरेंद्र प्रताप सिंह की जीत की उम्मीद कर रही है।
पिछले
5
चुनाव
के
नतीजे
पिछले
5
चुनाव
के
नतीजे
देखें
तो
यहां
भाजपा
का
दबदबा
दिखता
है।
1990
में
पहली
बार
इस
सीट
पर
कमल
खिला
लेकिन
उसके
बाद
भाजपा
ने
यहां
से
जीत
का
चौका
लगाया।
2000
में
अविभाजित
बिहार
के
आखिरी
चुनाव
में
भाजपा
के
अमरेंद्र
प्रताप
सिंह
ने
राजद
के
अब्दुल
मलिक
को
15,453
वोट
से
हराकर
जीत
हासिल
की
थी।
2005
में
फरवरी
और
अक्टूबर
दो
बार
विधानसभा
चुनाव
हुए
और
दोनों
बार
अमरेंद्र
प्रताप
सिंह
ने
राजद
के
नवाज
आलम
को
पराजित
किया।
2010
में
फिर
से
भाजपा
के
टिकट
पर
उतरे
अमरेंद्र
प्रताप
सिंह
ने
लोजपा
के
श्री
कुमार
सिंह
को
18,940
वोट
के
बड़े
अंतर
से
हराया।
2015
में
जब
जेडीयू
और
आरजेडी
साथ
मिलकर
विधानसभा
में
उतरे
तो
अमरेंद्र
प्रताप
सिंह
राजद
के
नवाज
आलम
से
नजदीकी
मुकाबले
में
666
वोट
से
चुनाव
हार
गए।
नवाज
आलम
को
70,004
वोट
मिले
थे
जबकि
अमरेंद्र
प्रताप
सिंह
69,338
मत
प्राप्त
करके
दूसरे
नंबर
पर
रहे
थे।
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