8 दिसंबर को दुनिया भर में 100 फीसदी तक खत्म हो जाएगा कोरोना?, क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
बेंगलुरू। चीन में जन्मा नोवल कोरोना वायरस कितना खतरनाक और जानलेवा है, इसका अंदाजा लगाना अब मुश्किल नहीं रहा, क्योंकि पूरी दुनिया में साढ़े 6 लाख से अधिक लोगों की जान ले चुका इस वायरस प्रकृति और इसके बदलते रूप दिन प्रति दिन इसकी भयावहता को उजागर करते आ रहे हैं। अकेले भारत में अब तक कोरोना से संक्रमित होकर 32 हजार से अधिक लोग मारे जा चुके हैं।
डिस्चार्ज हुए मरीजों में दीर्घकालिक जटिलताओं में मदद के लिए दिशा-निर्देश बना रही है सरकार
दुनिया के लिए एक नया और अबूझ पहेली बना हुआ नोवल कोरोना
दुनिया के लिए एक नया और अबूझ पहेली बना हुआ नोवल कोरोना वायरस के संक्रमण से सुरक्षा ही बचाव का पैमाना है, लेकिन भारत में तेजी से फैल रहे मामलों को देखकर समझा जा सकता है कि लोग कोरोना के घातकता को देखते हुए भी जरूरी सुरक्षा उपायों से कन्नी काट लेते हैं, जिससे खुद के संक्रमण का खतरा तो मोल लेते ही हैं और वायरस का कैरियर बनकर दूसरों में संक्रमण के कारण बने जाते हैं। एक कोविड-19 संक्रमित व्यक्ति औसतन 2 से 3 व्यक्तियों को संक्रमित करता है।
लोगों के लिए सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क अभी भी दुष्कर कार्य बना हुआ है
पिछले चार महीने के अंतराल में भारत समेत पूरी दुनिया सुरक्षा उपायों को लेकर संजीदगी से गाइडलाइन जारी करता रहा है, लेकिन लगातार बढ़ते नए मामलों की तीव्रता और संख्या बतलाते हैं कि सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क पहनना भी कितना दुष्कर कार्य लोगों के लिए बना हुआ है। यही कारण है कि एक से दो और दो से चार और फिर चार से 44 लोगों में फैल रहे लोगों की लापरवाही की वजह से भारत में स्थिति विस्फोटक बन गई है।
वायरस से सुरक्षा के लिए लोगों में बेहद ही संजीदगी की आवश्यकता है
भारत में वर्तमान में प्रति दिन लगभग 50, 000 कोरोना संक्रमितों के नए मामले रिपोर्ट हो रहे हैं, लेकिन चार महीने के बाद भी लोगों को समझ नहीं आया है कि वायरस से सुरक्षा के लिए जरूरी उपायों के लिए कितनी संजीदगी की आवश्यकता है। क्योंकि जब तक कोरोना वायरस के खिलाफ कोई वैक्सीन विकसित नहीं जाती है, तब तक कोरोना के साथ ही जीना और रहना पड़ सकता है।
नोवल नया है, कोरोना वायरस के 4 टाइप पहले ही हमारे बीच मौजूद हैं
नोवल कोरोना वायरस नया है, लेकिन कोरोना वायरस के 4 प्रकार पहले से ही हमारे जिंदगी में मौजूद हैं। कोरोना वायरस ही क्यूं, ऐसे हजारों वायरस और जीवाणु वायुमंडल में मौजूद है, जिससे हमारे शऱीर का इम्यून सिस्टम लड़ता रहता है। चूंकि नोवल कोरोना वायरस नया है और इसकी घातकता के आगे जब इम्यून सिस्टम ने हथियार डाल दिए, तो डाक्टरों और शोधकर्ताओं ने हमारे इम्यून सिस्टम को इसके खिलाफ तैयार करने के लिए वैक्सीन विकसित करने की तैयारी शुरू की।
नोवल कोरोना वायरस के खिलाफ कोई माकूल दवा बाजार में उपलब्ध नहीं
इसका सीधा अर्थ यह है कि जब तक नोवल कोरोना वायरस के खिलाफ कोई माकूल वैक्सीन बाजार में उपलब्ध नहीं हो जाता है, तब तक हमें और आपको इसके संक्रमण से बचाना बेहद जरूरी है, वरना किसी भी स्वस्थ इंसान के इसकी चपेट में आने में ज्यादा समय नहीं लगता हैं। मास्क, सोशल डिस्टेंसिग जैसे उपाय कोरोना को खुद से दूर रखने के लिए रामबाण हैं, लेकिन लापरवाही ऐसी बीमारी है, जिसके चलते कोरोना जीत जाती है और इंसान मर जाता है।
वायरस का वजूद मानव जाति के विकास से पहले ही धऱती पर मौजूद है
नोवल कोरोना वायरस नया है, लेकिन वायरस का वजूद मानव जाति के विकास से पहले ही इस धऱती पर मौजूद है। आधुनिक समय में जैसे-जैसे इंसान ने तरक्की की और ऐसे खतरनाक वायरस के खिलाफ दवाएं और टीके तैयार किए और इंसान वायरस से सुरक्षित रहने लगा। वरना खसरा, पोलियो, चेचक, स्पेनिश फ्लू और हेपाटाइटिस जैसे दर्जनों घातक वायरस से हम आज भी जूझ रहे होते। इसलिए जरूरी है कि जब तक वैक्सीन नहीं है, तब तक सुरक्षित रहें।
बाहर से ज्यादा लोग घर के अंदर होने वाले लोग कोरोना से संक्रमित होते हैं
दक्षिण कोरिया के महामारी विशेषज्ञों ने एक शोध में पाया गया कि बाहर से ज्यादा लोग घर के अंदर होने वाले लोग कोरोना महामारी से संक्रमित होते हैं। अब बड़ा सवाल है कि ऐसा क्यूं हो रहा है। इसका जवाब सीधा और सरल है और वह यह है कि बाहर गया इंसान कोरोना के संपर्क आकर परिवार के सभी सदस्यों तक कोरोना पहुंचा सकता है, इसलिए घर के अंदर बैठे लोग अधिक संक्रमित हो जाते हैं।
स्वस्थ हुए लोगों के दोबारा संक्रमित होने के खतरे पर रिसर्च हो रहा है
लगातार दुनिया भर के डॉक्टर्स और वैज्ञानिक इस बारे में रिसर्च कर रहे हैं कि कोरोना वायरस का प्रभाव शरीर में कब तक रहता है। इसलिए कोरोना संक्रमित व्यक्ति का टेस्ट निगेटिव भी आ जाता है, तो उससे भी उचित दूरी बनानी जरूरी हो जाता है। कोरोना वायरस से ठीक होने के बाद शरीर में इम्युनिटी कितने दिनों तक बनी रहती है, इसका भी कोई पैमाना नहीं हैं। स्वस्थ हुए लोगों के दोबारा संक्रमित होने के खतरे पर इसलिए रिसर्च हो रहा है।
भारत में लॉकडाउन को वायरस के उन्मूलन को हथियार मान लिया गया
यह सच्चाई है कि कोरोना के रोकथाम के लिए ज्यादा दिन तक किसी भी देश को लॉकडाउन में नहीं रखा जा सकता है। लॉकडाउन का उद्देश्य होता है कि वायरस से निपटने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं की तैयारी करना। विशेषकर भारत में लॉकडाउन को वायरस के उन्मूलन को हथियार मान लिया गया। लोगों ने लॉकडाउन को इसी तरह लिया और जैसे ही लॉकडाउन में ढील दी गई, लोग बाजार में बगैर सुरक्षा उपायों के बाजार में तफरी के लिए निकल पड़े।
लॉकडाउन में सरकार तैयार हो गई, स्वास्थ्य सेवाएं तैयार थी, लेकिन आप?
लगातार अर्थव्यवस्था को बंद नहीं रखा जा सकता है इसलिए भी लॉकडाउन में ढ़ील दी गई। इसका अर्थ और अनर्थ दिल्ली जैसे महानगरों शराब के दुकानों में लगी भीड़ और त्योहारों में बिना सोशल डिस्टेंसिंग के बाजारों में जुटी भीड़ से समझा जा सकता है। लॉकडाउन में सरकार तैयार हो गई, स्वास्थ्य सेवाएं तैयार कर ली गईं, लेकिन दुर्भाग्य ही कहेंगे कि जिसकी सुरक्षा के लिए यह तैयारी की गई, वो देश के नागरिक वायरस के खिलाफ लड़ाई में तैयार नहीं हो पाए।
भारत की जनसंख्या बहुत ज्यादा है, इसलिए पॉजिटिव केस बढ़ेंगे?
एम्स के डायरेक्टर डॉक्टर रणदीप गुलेरिया कहते हैं कि अगर डेथ कम हो और संख्या ज्यादा हो तो कोरोना से लड़ाई बहुत मुश्किल नहीं है। उनका कहना है कि पॉजिटिव केस से घबराना नहीं है। भारत की जनसंख्या बहुत ज्यादा है, इसलिए पॉजिटिव केस बढ़ेंगे। हमें डेथ रेट पर फोकस करना चाहिए। डाक्टर गुलेरिया का यह बयान उन लोगों के लिए ही है, जो अपने ही नहीं, अपने परिवार, समाज और देश के लिए लापरवाह हैं ताकि लाइफ की पॉजिविटी बनी रहे।
मामले भले कम हो जाएं, कोरोना को जड़ से उखाड़ फेंकना मुश्किल है
कोरोना विशेषज्ञों के मुताबिक भले ही अगले तीन महीनों में कोरोना वायरस के मामले कम हो जाएं, लेकिन इसे जड़ से उखाड़ फेंकना मुश्किल है। उनका कहना है कि कोरोना को समाप्त होने में बहुत समय लगेगा। ऐसा अनुमान है कि इसमें शायद साल भर भी लगे। दुनिया के कई देश अब चरणबद्ध तरीके से लॉकडाउन हटा रहे हैं, लेकिन इसे लेकर कोई ख़ास रणनीति नहीं है ताकि जीवन पहले की तरह सामान्य हो सके।
हमारी सबसे बड़ी समस्या इससे बाहर निकलने की नीति को लेकर है
डिनब्रा विश्वविद्यालय में संक्रामक रोग महामारी विज्ञान के प्रोफ़ेसर मार्क वूलहाउस कहते हैं, हमारी सबसे बड़ी समस्या इससे बाहर निकलने की नीति को लेकर है कि हम इससे कैसे पार पाएंगे। वो बताते हैं कि कोरोना महामारी से बाहर निकलने की रणनीति पूरी दुनिया में किसी देश के पास नहीं है, इससे बचाव के लिए सुरक्षा उपायों को अनुपालन ही सबसे बड़ी रणनीति है, क्योंकि यह अभी भी वैज्ञानिकों के लिए चुनौती बनी हुई है।
कोरोना से बचाव को एक बड़ा उपाय टीका हो सकता है
कोरोना से बचाव को एक बड़ा उपाय टीका हो सकता है, जो शरीर को कोरोना के खिलाफ लड़ने में प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर सकता है। फिलहाल, पूरी दुनिया के वैज्ञानिक कोरोना वायरस के टीके पर शोध तेज गति कर रहे हैं, लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं है कि यह प्रयोग कब सफल होगा। वैक्सीन कब और कैसे मिलेगा, इस पर भी कोई सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है। शुरूआत में यह सबके लिए उपलब्ध होगा, इस पर भी प्रश्नचिन्ह हैं।
पारंपरिक तरीका है कि वायरस के संक्रमण को कम से कम फैलने दिया जाए
कोरोना से बचाव का एक पारंपरिक तरीका यह है कि वायरस के संक्रमण को कम से कम फैलने दिया जाए, जिसके लिए सभी को सुरक्षा उपायों पर अमल करना जरूरी है, क्योंकि प्रतिबंधों में ढील से मामले इसलिए बढ़ते हैं, क्योंकि लोग लॉकडाउन को हथियार मानकर अपना हथियार घर छोड़कर तफरी के लिए निकल पड़ते हैं, जिससे वो अपना ही नहीं, दूसरों की जिंदगी दांव पर लगा देते हैं।
चीज़ों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा देना संभव नहीं है
ब्रिटेन के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार सर पैट्रिक वेलेंस कहते हैं, चीज़ों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा देना संभव नहीं है। कोरोना वायरस से संक्रमित होने के कारण अन्जाने में लोगों की रोग प्रतिरोधक शक्ति भी बढ़ सकती है, लेकिन इसे होने में काफ़ी साल लग सकते हैं और तब तक एक बड़ा तबका संक्रमित होकर मौत के मुंह में पहुंच चुका होगा।
लोगों द्वारा उनके व्यवहार में हमेशा के लिए बदलाव लाना बेहद जरूरी है
कोरोना से सुरक्षा का तीसरा विकल्प है लोगों द्वारा उनके व्यवहार में हमेशा के लिए बदलाव लाना है। इससे कि संक्रमण का स्तर कम रहेगा। इसके बाद कांटैक्ट ट्रेसिंग जैसे उपायों से मरीज़ों की पहचान और उनके संपर्क में आए लोगों को ढूंढने की प्रक्रिया अपनाई जा सकती है। नए मरीजों की संख्या कम होगी, तो केस लोड घटेगा और संक्रमित मरीजों की मृत्यु दर में कमी लाई जा सकती है।
कोरोना को लोगों को जीवन के हिस्से के रूप स्वीकार कर लेना चाहिए
एक हेल्थ एक्सपर्ट्स ने कोविड-19 पर परीक्षण कर रहे वैज्ञानिकों द्वारा अलग-अलग रिपोर्ट्स में इस बात को स्वीकार किया है कि कोरोना को लोगों को जीवन के हिस्से के रूप स्वीकार कर लेना चाहिए, क्योंकि हो सकता है कोरोना की यह स्ट्रेन, जिससे इस समय पूरी दुनिया प्रभावित है, वह हमेशा-हमेशा हमारे साथ रहे। यह तब प्रभावी रहेगा जब तक इसके खिलाफ कोई वैक्सीन बाजार में उपलब्ध नहीं हो जाती है।
कोरोना के दूसरे लहर की संभावनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता
क्योंकि कोरोना महामारी की दूसरी लहर की संभावनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। संक्रमण की संख्या कम होते ही प्रतिबंधों में छूट और संक्रमितों की संख्या में अचानक हुई बढ़ोतरी भारत ने देख लिया है। चीन और अमेरिका में अचानक कोरोना वायरस के मामले बढ़े हैं। हालांकि कई देशों में इसके मामले तेजी से घटे भी हैं, जिसे महामारी की पहली लहर खत्म होने का संकेतक समझा जा सकता है। WHO ने भी कोरोना की दूसरी लहर आने की चेतावनी दे चुका है। महामारी जितनी लंबी चलेगी, उतनी ही अधिक इसकी लहरें आने की संभावना है।
छोटे रूप में आ सकती है कोरोना की दूसरी लहर
अमेरिका के कई राज्यों में एक साथ कोरोना के मामले नहीं आए और यहां लॉकडाउन और क्वारंटीन करने का काम भी अलग-अलग चरणों में हुआ। कुछ हेल्थ एक्सपर्ट ने चेतावनी दी है कि लॉकडाउन को अगर पूरी योजना के साथ एक तरीके से नहीं हटाया गया और लोग एक जगह से दूसरी जगह यात्रा करते रहे तो कोरोना वायरस फिर फैल सकता है और इसकी दूसरी लहर जल्द आ सकती है।
कोरोना की दूसरी लहर ठंड के मौसम में आ सकती है
अमेरिका के सीडीसी के निदेशक, डॉक्टर रॉबर्ट रेडफील्ड और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इनफेक्शियस डिजीज के निदेशक डॉक्टर एंथोनी फौसी समेत कई हेल्थ एक्सपर्ट का मानना है कि कोरोना वायरस की दूसरी लहर ठंड के मौसम में आ सकती है। यही कारण है कि स्वास्थ्य विशेषज्ञ लगातार लॉकडाउन में ढील मिलने के बाद संक्रमण के बढ़ते मामलों पर नजर बनाए हुए हैं, जो कोरोना वायरस की दूसरी लहर भी हो सकती है।
80 फीसदी लोगों के मास्क पहनने से संक्रमण के दर आई गिरावट
हांगकांग और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की एक संयुक्त स्टडी और कंप्यूटर मॉडल के अनुसार बिना मास्क की तुलना में अगर 80 फीसदी आबादी सार्वजनिक स्थानों पर मास्क पहन कर निकले तो संक्रमण फैलने की दर 8 फीसदी तक तेजी से गिर सकती है।
लोग जानना चाहते हैं कि कोरोना की दहशत कब तक खत्म होगी?
जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के मेडिकल साइंस के इतिहासकार डॉक्टर जेरेमी ग्रीन का कहना है कि फिलहाल जो लोग पूछ रहे हैं कि ये सब कब खत्म होगा तो वो इस बीमारी के इलाज या वैक्सीन की बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि वो इस बात को जानना चाहते हैं कि लोगों के दिमाग की दहशत कब तक खत्म होगी।
8 दिसंबर को दुनिया भर में 100 फीसदी तक खत्म हो जाएगा कोरोना
सिंगापुर यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी एंड डिजाइन के शोधकर्ताओं ने ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ड्रिवेन डाटा एनालिसिस के जरिए बाताया है कि दुनिया भर में कोरोनावायरस कब तक खत्म होगा। इस अध्ययन के अनुसार 8 दिसंबर 2020 को दुनिया भर में कोरोनोवायरस 100 फीसदी तक खत्म हो जाएगा।
नीति आयोग ने भविष्यवाणी की थी कि देश में नए मामले 16 मई तक खत्म हो जाएंगे
नीति आयोग (NITI Ayog) के सदस्य और चिकित्सा प्रबंधन समिति के प्रमुख वीके पॉल (VK Paul) ने एक अध्ययन पेश किया था, जिसमें उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि देश में नए मामले 16 मई तक खत्म हो जाएंगे। उनके अध्ययन के अनुसार 3 मई से भारत में रोजाना आने वाले मामलों में 1500 से थोड़ा ऊपर जाएगा और 12 मई तक 1,000 मामलों तक गिर जाएगा और 16 मई तक शून्य हो जाएगा।
सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क से खत्म होगा नोवल कोरोना वायरस
पिछले 4-6 महीनों में एक बात सौ फीसदी सही साबित हो गई है कि कोरोना को फिलहाल सिर्फ सोशल डिस्टेंसिंग से रोका जा सकता है। जिन देशों ने भी इस पर क़ाबू पाया, वहां यही हथियार अपनाया गया। भारत में भी सोशल डिस्टेंसिंग करने को कहा जा रहा है और इसीलिए सरकार को लॉकडाउन करना पड़ा और सोशल डिस्टेंसिंग को तब तक जीवन का हिस्सा बनाकर रखना होगा, तब तक कोई वैक्सीन जैसा विकल्प नहीं उपलब्ध हो जाता है।
2022 तक जारी रह सकता है सोशल डिस्टेंसिंग पर अमल
कोरोना की तीव्रता को देखकर माना जा रहा है कि भारत समेत पूरी दुनिया में सोशल डिस्टेंसिंग का यह दौर 2022 तक चलने वाला है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ अमरीका में सोशल डिस्टेंसिंग का अमल 2022 तक जारी रह सकता है। उम्मीद है कि 2022 तक कोविड-19 की वैक्सीन और दवा खोज ली जाएगी, लेकिन तब तक सोशल डिस्टेंसिंग और क्वारंटीन का पालन करना होगा।
17 नवंबर को चीन में मिला था कोरोना का पहला मामला
दक्षिण चीन मॉर्निंग पोस्ट के मुताबिक चीन में कोरोना का पहला मामला 17 नवंबर को ही मिला था। कोरोना वायरस से संक्रमित पहले शख्स की उम्र 55 साल थी, हालांकि शख्स कोरोना मुक्त हुआ या नहीं। इसकी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। 17 नवंबर के बाद हर रोज पांच नाए मामले सामने लगे और 15 दिसंबर तक संक्रमितों की संख्या 27 पहुंच गई, जबकि 20 दिसंबर तक यही संख्या 60 के आंकड़े को पार कर गई।