क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

#Emergency: जब इंदिरा गांधी ने दिया भारत को शॉक ट्रीटमेंट

25 जून 1975 की सुबह पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय के फ़ोन की घंटी बजी. उस समय वह दिल्ली में ही बंग भवन के अपने कमरे में अपने बिस्तर पर लेटे हुए थे. दूसरे छोर पर इंदिरा गांधी के विशेष सहायक आरके धवन थे जो उन्हे प्रधानमंत्री निवास पर तलब कर रहे थे. जब राय 1 सफ़दरजंग रोड पहुँचे तो इंदिरा गांधी अपनी स्टडी में बड़ी मेज़ के सामने बैठी हुई थीं.

By रेहान फ़ज़ल
Google Oneindia News
इंदिरा गांधी
Getty Images
इंदिरा गांधी

25 जून 1975 की सुबह पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय के फ़ोन की घंटी बजी. उस समय वह दिल्ली में ही बंग भवन के अपने कमरे में अपने बिस्तर पर लेटे हुए थे.

दूसरे छोर पर इंदिरा गांधी के विशेष सहायक आरके धवन थे जो उन्हे प्रधानमंत्री निवास पर तलब कर रहे थे. जब राय 1 सफ़दरजंग रोड पहुँचे तो इंदिरा गांधी अपनी स्टडी में बड़ी मेज़ के सामने बैठी हुई थीं जिस पर ख़ुफ़िया रिपोर्टों का ढ़ेर लगा हुआ था.

इमरजेंसी जैसे हालात में रह रहे हैं हमलोग?

जस्टिस सिन्हा जिन्हें झुका नहीं सकीं इंदिरा गांधी

अगले दो घंटों तक वो देश की स्थिति पर बात करते रहे. इंदिरा का कहना था कि पूरे देश में अव्यवस्था फैल रही है. गुजरात और बिहार की विधानसभाएं भंग की जा चुकी हैं. इस तरह तो विपक्ष की मांगों का कोई अंत ही नहीं होगा. हमें कड़े फ़ैसले लेने की ज़रूरत है.

'शॉक ट्रीटमेंट'

इंदिरा गांधी
Getty Images
इंदिरा गांधी

इंदिरा ने ये भी कहा कि वो अमरीकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की हेट लिस्ट में सबसे ऊपर हैं और उन्हें डर है कि कहीं उनकी सरकार का भी सीआईए की मदद से चिली के राष्ट्रपति सालवडोर अयेंदे की तरह तख़्ता न पलट दिया जाए.

जनता आंधी जिसके सामने इंदिरा गांधी भी नहीं टिकीं

बाद में एक इंटरव्यू में भी इंदिरा ने स्वीकार किया किया कि भारत को एक 'शॉक ट्रीटमेंट' की ज़रूरत थी. इंदिरा ने सिद्धार्थ को इसलिए बुलाया था क्योंकि वह संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ माने जाते थे.

कार्टून
BBC
कार्टून

मज़े की बात ये थी कि उन्होंने तब तक अपने कानून मंत्री एचआर गोखले से इस बारे में कोई सलाह मशविरा नहीं किया था. राय ने कहा कि मुझे वापस जाकर संवैधानिक स्थिति को समझने दीजिए. इंदिरा राज़ी हो गईं लेकिन यह भी कहा कि आप 'जल्द से जल्द' वापस आइए.

राय ने वापस आकर न सिर्फ़ भारतीय बल्कि अमरीकी संविधान के संबद्ध हिस्सों पर नज़र डाली. वो दोपहर बाद तीन बज कर तीस मिनट पर दोबारा 1 सफ़दरजंग रोड पहुँचे और इंदिरा को बताया कि वो आंतरिक गड़बड़ियों से निपटने के लिए धारा 352 के तहत आपातकाल की घोषणा कर सकतीं हैं.

इंदिरा ने राय से कहा कि वो आपातकाल लगाने से पहले मंत्रिमंडल के सामने इस मामले को नहीं लाना चाहतीं. इस पर राय ने उन्हें सलाह दी कि वो राष्ट्रपति से कह सकतीं हैं कि मंत्रिमंडल की बैठक बुलाने के लिए पर्याप्त समय नहीं था.

संजय गांधी और इंदिरा गांधी
Getty Images
संजय गांधी और इंदिरा गांधी

इंदिरा ने सिद्धार्थ शंकर राय से कहा कि वो इस प्रस्ताव के साथ राष्ट्रपति के पास जाएं. कैथरीन फ़्रैंक अपनी किताब इंदिरा में लिखती हैं कि इसका राय ने ये कह कर विरोध किया कि वो पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री हैं, प्रधानमंत्री नहीं.

हाँ उन्होंने ये पेशकश ज़रूर कर दी कि वो उनके साथ राष्ट्रपति भवन चल सकते हैं. ये दोनों शाम साढ़े पांच बजे वहाँ पहुंचे. सारी बात फ़ख़रुद्दीन अली अहमद को समझाई गई. उन्होंने इंदिरा से कहा कि आप इमरजेंसी के कागज़ भिजवाइए.

जब राय और इंदिरा वापस 1 सफ़दरजंग रोड पहुँचे तब तक अंधेरा घिर आया था. राय ने इंदिरा के सचिव पीएन धर को ब्रीफ़ किया. धर ने अपने टाइपिस्ट को बुला कर आपातकाल की घोषणा के प्रस्ताव को डिक्टेट कराया. सारे कागज़ों के साथ आर के धवन राष्ट्रपति भवन पहुँचे.

सुबह 6 बजे कैबिनेट की बैठक

संजय गांधी
Getty Images
संजय गांधी

इंदिरा ने निर्देश दिए कि मंत्रिमंडल के सभी सदस्यों को अगली सुबह 5 बजे फ़ोन कर बताया जाए कि सुबह 6 बजे कैबिनेट की बैठक बुलाई गई है. जब तक आधी रात होने को आ चुकी थी लेकिन सिद्धार्थ शंकर राय अभी भी 1 सफ़दरजंग रोड पर मौजूद थे. वो इंदिरा के साथ उस भाषण को अंतिम रूप दे रहे थे जिसे इंदिरा अगले दिन मंत्रिमंडल की बैठक के बाद रेडियो पर देश के लिए देने वाली थीं.

बीच बीच में संजय उस कमरे में आ जा रहे थे. एक दो बार उन्होंने 10-15 मिनटों के लिए इंदिरा गांधी को कमरे से बाहर भी बुलाया. उधर आर के धवन के कमरे में संजय गांधी और ओम मेहता उन लोगों की लिस्ट बना रहे थे जिन्हें गिरफ़्तार किया जाना था. उस लिस्ट के अनुमोदन के लिए इंदिरा को बार बार कमरे से बाहर बुलाया जा रहा था.

ये तीनों लोग इस बात की भी योजना बना रहे थे कि अगले दिन कैसे समाचारपत्रों की बिजली काट कर सेंसर शिप लागू की जाएगी. जब तक इंदिरा ने अपने भाषण को अंतिम रूप दिया सुबह के तीन बज चुके थे.

सेंसरशिप

राय ने इंदिरा से विदा ली लेकिन गेट तक पहुंचते पहुंचते वो ओम मेहता से टकरा गए. उन्होंने उन्हें बताया कि अगले दिन अख़बारों की बिजली काटने और अदालतों को बंद रखने की योजना बना ली गई है.

राय ने तुरंत इसका विरोध किया और कहा, "ये बेतुका फ़ैसला है. हमने इसके बारे में तो बात नहीं की थी. आप इसे इस तरह से लागू नहीं कर सकते."

जगजीवन राम
Getty Images
जगजीवन राम

राय वापस मुड़े और धवन के पास जा कर बोले कि वो इंदिरा से फिर मिलना चाहते हैं. धवन ने कहा कि वो सोने जा चुकीं हैं. राय ने ज़ोर दिया,'मेरा उनसे मिलना ज़रूरी है.'

बहुत झिझकते हुए धवन इंदिरा गांधी के पास गए और उन्हें ले कर बाहर आए. राय ने कैथरीन फ़्रैंक को बताया कि जब उन्होंने इंदिरा को बिजली काटने वाली बात बताई तो उनके होश उड़ गए.

उन्होंने राय से इंतज़ार करने के लिए कहा और कमरे से बाहर चली गईं. इस बीच धवन के दफ़्तर से संजय ने बंसी लाल को फ़ोन किया कि राय बिजली काटने की योजना का विरोध कर रहे हैं.

बंसी लाल ने जवाब दिया, "राय को निकाल बाहर करिए... वो खेल बिगाड़ रहे हैं. वो अपने आपको बहुत बड़ा वकील समझते हैं लेकिन उन्हें कुछ आता जाता नहीं."(जग्गा कपूर, वाट प्राइस पर्जरी: फ़ैक्ट्स ऑफ़ शाह कमीशन)

जब राय इंदिरा का इंतज़ार कर रहे थे तो ओम मेहता ने उन्हें बताया कि इंदिरा सेंसरशिप तो चाहती हैं लेकिन अख़बारों की बिजली काटने और अदालतें बंद करने का आइडिया संजय का है.

जब इंदिरा वापस लौटीं तो उनकी आंखें लाल थीं. उन्होंने राय से कहा, "सिद्धार्थ बिजली रहेगी और अदालतें भी खुलेंगीं." राय इस ख़ुशफ़हमी में वापस लौटे कि सब कुछ ठीक हो गया है.

जेपी की गिरफ़्तारी

जब 26 जून को तड़के इंदिरा सोने गईं, गिरफ़्तारियां शुरू हो चुकीं थी. सबसे पहले जयप्रकाश नारायण और मोरारजी देसाई को हिरासत में लिया गया. इंदिरा गांधी ने सिर्फ तीन लोगों की गिरफ़्तारी की अनुमति नहीं दी थी. वो थे तमिलनाडु के नेता कामराज, बिहार के समाजवादी नेता और जयप्रकाश नारायण के साथी गंगासरन सिन्हा और पुणे के एक और समाजवादी नेता एसएम जोशी.

दिल्ली के बहादुर शाह ज़फ़र मार्ग पर जब अख़बार प्रिंट के लिए जा रहे थे, तभी उनकी बिजली काट दी गई. अगले दिन सिर्फ हिंदुस्तान टाइम्स और स्टेट्समैन ही छप पाए क्योंकि उनके प्रिंटिंग प्रेस बहादुर शाह ज़फ़र मार्ग पर नहीं थे.

इंदिरा उस रात बहुत कम सो पाईं लेकिन जब वो तड़के सुबह कैबिनेट की बैठक में आईं तो बिल्कुल भी थकी हारी नहीं लग रहीं थीं. आठ कैबिनेट मंत्रियों और पांच राज्य मंत्रियों ने बैठक में हिस्सा लिया.( नौ मंत्री दिल्ली से बाहर थे.)

जैसे ही ये लोग बैठक में आए उन्हें आपातकाल उद्घोषणा और गिरफ़्तार किए गए नेताओं की लिस्ट दी गई. इंदिरा ने बताया कि आपात काल लगाने की ज़रूरत क्यों हुई.

स्वर्ण सिंह का सवाल

स्वर्ण सिंह
Getty Images
स्वर्ण सिंह

सिर्फ़ एक मंत्री ने सवाल पूछा. वो थे रक्षा मंत्री स्वर्ण सिंह. उनका सवाल था,'किस कानून के तहत गिरफ़्तारियां हुई हैं?' इंदिरा ने उनको संक्षिप्त जवाब दिया जिसे वहाँ मौजूद बाक़ी लोग नहीं सुन पाए.

कोई मतदान नहीं हुआ, कोई मंत्रणा नहीं हुई. पीएन धर ने अपनी किताब इंदिरा गांधी, द इमरजेंसी एंड इंडियन डेमोक्रेसी में लिखा कि भारत में इंमरजेंसी को मंज़ूरी देने वाली ये बैठक मात्र आधे घंटे में ख़त्म हो गई.

आपातकाल को किसी ने चुनौती नहीं दी. कुछ महीनों बाद संपादकों को साथ एक बैठक में इंदिरा ने बिल्कुल सही फ़रमाया,' वेन आई इंपोज़्ड द इमरजेंसी नॉट ईविन ए डॉग बार्क्ड.'

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Emergency: When Indira Gandhi gave India Shock Treatment
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X