कांग्रेस के दिग्गजों की वजह से दिलचस्प हुआ यूपी में पांचवें चरण का चुनाव
नई दिल्ली- 6 मई को पांचवें चरण में उत्तर प्रदेश की 14 लोकसभा सीटों में मतदान होना है। इनमें से 12 सीटों पर अभी बीजेपी का कब्जा है, जबकि रायबरेली और अमेठी कांग्रेस की फर्स्ट फैमिली की गढ़ मानी जाने वाली सीटें हैं। लेकिन, इस बार सपा-बसपा के एक साथ मैदान में होने से ज्यादातर क्षेत्रों में समीकरण बदला हुआ है। महागठबंधन से मिल रही कठिन चुनौती के बावजूद, बीजेपी हर हाल में अपनी सीटें बरकरार रखना चाह रही है। वहीं कांग्रेस को उम्मीद है कि वह न केवल अपनी परिवार वाली सीटें बचा लेगी, बल्कि कुछ और सीटों को भी अपने कैंडिडेट के दम पर बीजेपी से छीनने में कामयाब रहेगी। यानी इस चरण में कांग्रेस के दमदार उम्मीदवारों की मौजूदगी ने कुछ लोकसभा क्षेत्रों में चुनाव को न केवल त्रिकोणीय बना दिया है, बल्कि बेहद रोचक भी बना दिया है।
महागठबंधन ने बदला पिछला समीकरण
इस चरण में कांग्रेस के मंसूबे और बीजेपी की रणनीति में सबसे बड़ी बाधा एसपी-बीएसपी-आएलडी के बीच बना महागठबंधन है। जाहिर है कि महागठबंधन में शामिल सभी पार्टियों का अपना एक परंपरागत जातीय जनाधार है, जिसके चलते 2014 के चुनाव वाला समीकरण इस फेज में पूरी तरह उलट-पुलट हो गया है। अगर पांचवें चरण की 14 सीटों की बात करें, तो 2014 में सपा या बसपा उनमें से 10 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी। अगर 2019 के चुनाव में दोनों पार्टियों के वोट शेयर को जोड़ दें, तो महागठबंधन कई सीटों पर बीजेपी से आगे निकल जाता है। लेकिन, ये अवध इलाके की सीटें हैं, जिसे कांग्रेस अपना परंपरागत गढ़ मानती रही है और इस बार उसके जोश के पीछे प्रियंका गांधी वाड्रा की महासचिव के तौर पर एंट्री भी है।
प्रियंका की पहली बड़ी चुनौती
राहुल गांधी ने अपनी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को पूर्वी उत्तर प्रदेश का ही प्रभारी बनाया है। मतलब साफ है कि इस दौर में कांग्रेस की सफलता या असफलता का सारा दारोमदार उनपर ही रहने वाला है। उन्होंने इलाके में पार्टी को मजबूत करने के लिए पिछले कुछ महीने में जो भी मेहनत की है, उससे पार्टी को इस दौर में अच्छे परिणामों का भरोसा है। दरअसल, कांग्रेस की इतनी उम्मीद का कारण ये है कि 2009 में पार्टी ने इलाके की 14 में 7 सीटें जीत ली थीं। इसलिए पार्टी को इस बार अमेठी और रायबरेली के अलावा धौरहरा, बाराबंकी, फिरोजाबाद और सीतापुर में भी बीजेपी के साथ सीधे और दमदार मुकाबले का विश्वास है।
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कांग्रेस की उम्मीद का कारण
पांचवां फेज कांग्रेस के लिए इसलिए भी अहम है, क्योंकि इस दौर में पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी, उनकी मां और पार्टी की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी, जितिन प्रसाद, निर्मल खत्री और तनुज पुनिया जैसे कद्दावर उम्मीदवार पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। सीतापुर में कांग्रेस ने कैसर जहां को उतारा है, जो 2014 में बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ी थीं और दूसरे नंबर पर रही थीं। इस बार यहां बसपा ने नकुल दुबे को उतारा है। फतेहपुर में कांग्रेस ने राकेश सचान को टिकट दिया है, जो 2014 में सपा के उम्मीदवार थे। इस चुनाव में ये सीट बसपा के खाते में है, जिसने सुखदेव प्रसाद को मौका दिया है। यानी अमेठी और रायबरेली के अलावा कांग्रेस ने इन सभी सीटों पर भी उम्मीद लगा रखी है, क्योंकि उसे अपने कद्दावर उम्मीदवारों पर चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय बना देने का भरोसा है।
बीजेपी कैसे दोहराएगी पिछला प्रदर्शन?
बीजेपी को पांचवें दौर में दो मोर्चों का सामना करना पड़ रहा है। एक तो उसे इन 14 सीटों पर प्रियंका गांधी वाड्रा की मौजूदगी के कारण कांग्रेस समर्थकों में बढ़े उत्साह से निपटना है, तो दूसरी तरफ महागठबंधन के वोटरों के अंकगणित का सामना करना है। बीजेपी के लिए इस दौर की हर एक सीट बेहद अहम है और यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या वह पिछले चुनाव वाला अपना प्रदर्शन इस बार भी दोहरा पाएगी? क्योंकि, अवध क्षेत्र की इन्हीं सीटों में राजधानी लखनऊ की भी सीट है, जहां गृहमंत्री राजनाथ सिंह के मुकाबले में एसपी ने पूनम सिन्हा को प्रत्याशी बनाया है, और कांग्रेस ने प्रमोद कृष्णम को खड़ा किया है।
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