जानिए, लोकसभा चुनाव से ठीक पहले ये खबर बीजेपी की मुश्किलें क्यों बढ़ा देगी?
नई दिल्ली- नरेंद्र मोदी सरकार को अपने 5 साल के काम के भरोसे सत्ता में वापस लौटने का पक्का यकीन है। लेकिन, उसके सपनों पर पानी फेरने के लिए विपक्ष कोई मौका छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले देश में जिस तरह का सियासी माहौल बना है, उसमें सभी पक्ष 'अभी नहीं तो कभी नहीं' वाले मोड में नजर आ रहा है। ऐसे में आर्थिक मोर्चे पर नाकामी का कोई भी समाचार विपक्ष के हमलों की धार और तेज कर सकता है। हकीकत यही है कि कुछ दिनों में ऐसे आंकड़े सामने आए हैं, जिस पर जवाब देना मौजूदा सत्ताधारी पार्टी के लिए भारी पड़ सकता है।
इन आंकड़ों पर घिर सकती है सरकार
हाल के दिनों में आर्थिक क्षेत्र के जो कुछ आंकड़े सामने आए हैं, उससे एनडीए सरकार के कार्यकाल की सफलता पर सवालिया निशान लगता है। इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक लेख के मुताबिक इस साल जनवरी में इंडस्ट्रियल ग्रोथ घटकर 1.7% रह गया, जो कि पिछले साल दिसंबर में 2.6% था। इससे यह आशंका पैदा हो गई है कि चालू वित्त वर्ष की चौथी तिमाई में भी विकास दर उतनी ही धीमी न रह जाए,जो कि 6 तिमाहियों में सबसे कम रहा था और जिसके कारण भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास को साल-दर-साल 6.6% पर दर्ज किया गया है।
इन आंकड़ों के साथ ही रिजर्व बैंक की एक स्टडी मौजूदा सरकार की परेशानियों में और इजाफा कर सकता है। आरबीआई के मुताबिक लगातार 7वें साल निजी क्षेत्र में कैपिटल एक्सपेंडिचर प्लांस में गिरावट दर्ज की गई है। इसके अनुसार 2017-18 में भारत के प्राइवेट कॉर्पोरेट सेक्टर में 1,48,700 करोड़ रुपये के कुल कैपिटल एक्सपेंडिचर में से 80,200 करोड़ रुपये उस साल मंजूर किए गए थे। यानी यह 2013-14 में यूपीए सरकार के दौरान 2,69,900 करोड़ रुपये के प्राइवेट कैपिटल एक्सपेंडिचर प्लांस की तुलना में 44% कम है।
कहां चूक हुई सरकार?
इन आंकड़ों से यही बात जाहिर होती है कि लगातार दूसरे साल भी अर्थव्यवस्था का विकास दर 7% से कम रहने की आशंका है। जबकि मोदी सरकार के पहले तीन वर्षों में यह चढ़ाव पर था। जैसे 2014-15 में 7.9%, 2015-16 में 8% और 2016.17 में 7.2% । वैसे यूपीए के कार्यकाल में तो आखिरी दो वर्षों में विकास दर 5% से भी नीचे रहा था। हालांकि, अभी सिर्फ औद्योगिक क्षेत्र में ही नहीं, कृषि क्षेत्र में भी लगातार 7 तिमाहियों से एक अंक में ही विकास दर्ज की गई है। मोटे तौर पर इसे मोदी सरकार की नाकामी के तौर पर देखा जा सकता है, जो निवेश बढ़ाने में सफल नहीं हो पाई है। आरबीआई की स्टडी से तो यही पता चलता है कि आर्थिक मंदी की आशंका के चलते निजी सेक्टर की कई योजनाएं अटक गई गई हैं।
लेख में यह भी कहा गया है कि ऐसा लगता है कि यूपीए के दौरान दिए गए बैड लोंस के बारे में समझने में मौजूदा सरकार से देरी हो गई। हालांकि, ये भी सच्चाई है कि मोदी सरकार के इंसॉल्वेंसी कानून और जीएसटी जैसे सुधारों के कारण अर्थव्यवस्था को लाभ भी मिला है। यही नहीं सरकार को आमतौर पर कच्चे तेल की कम कीमतों का भी लाभ मिला है, लेकिन सरकार इन सब अवसरों का राजनीतिक तौर पर उतना फायदा नहीं उठा पाई, जितना उठा सकती थी।
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विपक्ष को मिलेगा नया हथियार
जाहिर है कि ताजा आर्थिक आंकड़े पहले ही रोजगार और किसानों के मुद्दे पर सरकार को घेर रहे विपक्ष को हमले का नया मौका देगा। क्योंकि, विपक्ष पहले से ही दावा करता रहा है कि सरकार अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में आंकड़ों को अपने हक में बढ़ा-चढ़ाकर पेश करती रही है। सरकार के लिए विपक्ष के हमलों का जवाब देना इसलिए भी भारी पड़ सकता है, क्योंकि अब तो जीएसटी और नोटबंदी का असर भी खत्म हो चुका है और जीएसटी से हो रहे फायदे के आंकड़े भी गिनाए जा चुके हैं।
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