इसीलिए किंगमेकर दुष्यंत चौटाला सीएम से डिप्टी सीएम बनने के लिए तैयार हुए!
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बेंगलुरू। हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019 में 11 महीने पुरानी जननायक जनता पार्टी यानी जेजेपी किंगमेकर बनकर उभरी। सत्तासीन बीजेपी को अंतिम चुनाव परिणामों ने बहुमत से 6 सीटें कम मिली जबकि कांग्रेस को वर्ष 2014 में हुए विधानसभा चुनाव की तुलना में दोगुनी सीटें हासिल हुई। जेजेपी को अंतिम परिणामों में कुल 10 सीटें हासिल हुईं जबकि 7 सीटें निर्दलीय के खातों में गईं। इनमें इनलो और हरियाणा लोकहित पार्टी की एक-एक सीटें शामिल हैं।
चुनाव नतीजे के दिन यानी 24 फरवरी की दोपहर तक जब नतीजे लगभ आ चुके थे, तब ऐसा लग रहा था कि बीजेपी पिछड़ जाएगी अथवा कांग्रेस और बीजेपी के सीटों की संख्या समान होने की स्थिति में 10-12 सीटों पर बढ़त बनाकर रखे हुए नवोदित जेजेपी को सत्ता की चाभी जनता ने सौंप दी है। अंतिम परिणाम आए तो बीजेपी 40 सीट जीत चुकी थी और उसे सत्ता में दोबारा पहुंचने के लिए 6 सीटों की जरूरत थी।
उधर, चुनावी रूझानों के बीच ही अति उत्साह में जननानयक जनता पार्टी के चीफ दुष्यंत चौटाला का बयान आ गया कि जेजेपी किसी भी दल को समर्थन दे सकती हैं बशर्ते उन्हें मुख्यमंत्री का पद दिया जाए। कांग्रेस ने बिना देर किए बीच रूझानों में ही कर्नाटक का ड्रामा दोहराया और दुष्यंत चौटाला को मुख्यमंत्री पद का ऑफर कर दिया। हालांकि दुष्यंत चौटाला का बीजेपी के साथ जाना पहले से तय था, क्योंकि तिहाड़ में बंद उनके पिता अजय चौटाला की रिहाई उनके लिए एक बड़ा फैक्टर है।
कांग्रेस को पूरी उम्मीद थी कि अगर मौजूदा बढ़त (बीजेपी 35, कांग्रेस 35) बरकरार रही तो वह बीजेपी को सत्ता से दूर रखने में कामयाब हो जाएगी, लेकिन वक्त आगे बढ़ा तो कांग्रेस की सीटे धीरे-धीरे कम होती चली गईं और अंततः कांग्रेस 31 सीटों पर सिमट गई। बीजेपी ने तब तक अपने पत्ते जेजेपी के सामने नहीं खोले थे, लेकिन दुष्यंत चौटला ने एक बार फिर बयान जारी किया और कहा कि वो दोनों में किस दल को अपना समर्थन देगी इस पर अभी विचार कर रही है।
दुष्यंत चौटाला मुख्यमंत्री पद के लिए कांग्रेस और बीजेपी से बारगेन करना चाहते थे, लेकिन जीतकर आए निर्दलीय विधायकों ने उनके मंसूबों पर पानी फेरते हुए सिरसा से बीजेपी सांसद सुनीता दुग्गल के साथ एक चार्टेड विमान में दिल्ली रवाना हो गए। दिल्ली पहुंचे निर्दलीय विधायकों ने बीजेपी को बिना शर्त समर्थन देने का ऐलान कर दिया। बहुमत के लिए निर्दलीयों का साथ पाकर बीजेपी निहाल थी। लेकिन बीजेपी के लिए गीतिका शर्मा सुसाइड केस में आरोपी गोपाल कांड़ा एक बड़ा खतरा था। बीजेपी कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा और गोपाल कांडा की तस्वीरे वायरल होने लगी।
देखते ही देखते ही बीजेपी को सोशल मीडिया पर लोग ट्रोल करने लगे कि बीजेपी गोपाल कांडा के सहयोग से सरकार बनाने जा रही है, जिसके खिलाफ कभी बीजेपी के नेताओं ने सड़क पर उतरकर विरोध -प्रदर्शन किया था। हरियाणा लोकहित पार्टी से विधायक चुन गए गोपाल कांडा इससे पहले भी हरियाणा मे वर्ष 2009 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार को बचाने में आगे आया था।
हालांकि तब उस पर एयरहोस्टेस गीतिका शर्मा सुसाइड केस का आरोप नहीं था। वर्ष 2018 में गोपाल कांडा की एयरलाइन कंपनी में काम करने वाली एयरहोस्टेस ने सुसाइड कर लिया था और सुसाइड नोट में सुसाइड के लिए गोपाल कांड का नाम लिया था। गोपाल कांडा की मुश्किल तब और बढ़ गई थी जब गीतिका शर्मा के बाद उसकी मां ने भी सुसाइड कर लिया।
गोपाल कांडा पर संगीन आरोप था। हुड्डा सरकार से गोपाल कांडा की विदाई हो गई, लेकिन 10 वर्ष एक बार गोपाल कांडा के लिए मौका आया जब फिर हरियाणा हंग असेंबली हो गई। बीजेपी ने गोपाल कांडा से औपचारिक मुलाकात कर चुकी थी और अब उसे फैसला लेना था। बीजेपी के साथ निर्दलीय विधायकों की फौज देखकर दुष्यंत चौटाला भी ठिठक गए थे।
बीजेपी शायद इसी का इंतजार कर रही थी, क्योंकि बीजेपी चाहकर भी गोपाल कांडा का साथ लेकर हरियाणा में सरकार नहीं बनाने के लिए आगे बढ़ पा रही थी। दुष्यंत चौटाला को पता था कि बीजेपी निर्दलीय के सहयोग से बहुमत को आंकड़े तक पहुंच सकती है और यह मौका छूट गया तो उसको पांच साल विपक्ष में बैठना पड़ सकता है, क्योंकि गोपाल कांडा को छोड़कर भी बीजेपी को शेष 6 विधायकों का समर्थन लेकर सत्ता में आने में दिक्कत नहीं थी।
दुष्यंय चौटाला जो रूझानों में अतिमहत्वाकांक्षा के शिकार हो गए थे और अतिउत्साह में मुख्यमंत्री पद की शर्त रख चुके थे। अचानक ढीले पड़ गए। बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह इसी समय का इंतजार कर रहे थे। उन्होंने अपने सिपाहसलाराों को दुष्यंत चौटाला के पीछे लगाया और दिल्ली आने का न्यौता दिया।
दुष्यंत चौटाला के पास बीजेपी के साथ जाने के अलावा और कोई चारा नहीं था। क्योंकि कांग्रेस चाहते हुए भी सरकार बनाने में अक्षम थी। कांग्रेस के पक्ष में आकंड़े तभी सही हो पाते जब जेजेपी के साथ-साथ 6 और निर्दलीय विधायक कांग्रेस को समर्थन की घोषणा करते, लेकिन गोपाल कांडा के नेतृत्व में सभी निर्दलीय तो बीजेपी के पक्ष में पहले ही समर्थन पत्र सौंप चुके थे।
दुष्यंत चौटाला को अपनी अनुभवहीनता का यही एहसास हुआ और बीजेपी को समर्थन देकर सरकार में शामिलि होने का मन बनाते हुए बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात के लिए दिल्ली पहुंच गए। दिल्ली पहुंचने के बाद अमित शाह ने उन्हें डिप्टी सीएम का ऑफर दिया, जिसे वक्त की नजाकत समझते हुए दुष्यंत चौटाला ने तुरंत स्वीकार कर लिया है।
हालांकि मीडिया के सामने आने के बाद दुष्यंत चौटाला ने यह जरूर कहा कि उन्होंने बीजेपी को समर्थन प्रदेश की प्रगति में साथ देने के लिए किया है, लेकिन दुष्यंत चौटाला जानते थे कि अगर वो जरा भी देर करते तो भाग्य उनसे रूठ सकती थी, जो उनकी पार्टी और उनके राजनीतिक कैरियर के लिए विनाशकारी हो सकता था।
इस तरह रूझानों में किंगमेकर बनकर उभरे जेजेपी चीफ दुष्यंत चौटाला चंद घंटों के बाद ही बीजेपी की सरकार के लिए कीमेकर बन गए। दिलचस्प बात यह है कि जेजेपी की पार्टी का लोगो भी चाभी ही है और जेजेपी की चाभी बीजेपी को हरियाणा के सिंघासन तक पहुंचने का जरिया बन सकी। किंगमेकर से कीमेकर का सफर दुष्यंत चौटाला ने महज 8 घंटे में सफर किया।
करीब रात 10 बजे बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने दुष्यंत चौटाला वाले विक्टरी इमेज के साथ फोटो मीडिया में पेश की थी। दुष्यंत चौटाला अच्छी तरह समझ चुके थे कि किंगमेकर बने रहे तो निर्दलियों का किंगमेकर उनका हक मार ले जाएगा। शायद इसीलिए दुष्यंत चौटाला ने समय की नजाकत को समझते हुए मुख्यमंत्री पद की शर्त को किनारे रखकर डिप्टी सीएम के पद को स्वीकार करने और समझदारी दिखाने में नहीं चूके।
अब कांग्रेस दुष्यंत चौटाला पर बीजेपी का बी टीम होने का आरोप लगा रहा है, जो राजनीतिक स्टंटबाजी के अलावा कुछ नहीं है। हालांकि कांग्रेस भी जानती है कि हरियाणा में सत्ता तक पहुंचने के लिए उसके पास विकल्प नहीं है और अगर वह जेजेपी को मना भी लेती तब भी हरियाणा में सरकार बनाने में नाकाम रहती।
इसमें एक दूसरा पहलू यह भी था कि कर्नाटक में दूसरे नंबर पर होने के बाद जेडीएस के मिलकर सरकार बनाने और फिर सत्ता से बाहर होने का दर्द अभी उसका नया ही था। कांग्रेस चाहती भी तो 7 निर्दलीयों को अपने पक्ष में नहीं ला सकती थी। एक तो उन्होंने पहले ही बीजेपी को समर्थन पत्र सौंप दिया था, दूसरे अधिकतर जीत कर आए निर्दलीय बीजेपी नेता रहे थे।
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