क्या देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र में एनडीए सरकार की विफलता के नायक हैं?
बेंगलुरू। महाराष्ट्र में एक महीने के सियासी ड्रामे के बाद शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में एनसीपी और कांग्रेस की साझा सरकार ने शपथ ले ली है। महा विकास अगाड़ी मोर्चा बैनर के तहत गठित महाराष्ट्र की नई सरकार कितनों दिनों की मेहमान है, यह तो नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि 30 वर्ष पुराने साझीदार बीजेपी से दामन छुड़ाकर परस्पर विरोधी कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार में शामिल हुए शिवसेना नहीं चाहेगी कि पार्टी की वैचारिक भिन्नताओं के चलते महा विकास अघाड़ी मोर्च के सरकार समय से पहले गिर जाए।
यही कारण है कि शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे शपथ लेने के बाद बुलाए पहले प्रेस कांफ्रेंस में पत्रकारों द्वारा पूछे गए सेक्युलिरज्म के सवाल को चतुराई से टाल गए। यही नहीं, तीन दलों द्वारा तैयार कॉमन मिनिमम प्रोग्राम का ख्याल रखते हुए शिवसेना चीफ ने ऐतिहासिक शिवाजी पार्क में सजाए शपथ ग्रहण मंच पर पिता और शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे की तस्वीर लगाने से गुरेज किया।
बड़ा सवाल है कि शिवसेना और बीजेपी गठबंधन के बीच का विलेन कौन था, जिससे 30 वर्ष पुराने गठबंधन को तहस-नहस कर दिया। करीब 18 दिन तक बीजेपी और शिवसेना के बीच सुलह-समझौतों का दौर चला, लेकिन बात बनते-बनते भी अंत तक बिगड़ती चली गई और शिवसेना को सरकार गठन के लिए परस्पर विरोधी दल तलाशने पड़ गए।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019 ने नतीजे के बाद से शुरू हुआ संग्राम 50-50 फार्मूले को लेकर शुरू हुआ था। बीजेपी पर दवाब बनाने के लिए शिवसेना द्वारा शुरू की राजनीति का खेल उस दिन अचानक बिगड़ गया जब पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने 50-50 फार्मूले पर शिवसेना को खरी-खरी सुना दिया।
देवेंद्र फडणवीस ने शिवसेना के 50-50 फार्मूले को सिरे से खारिज करते हुए कहा था कि एनडीए गठबंधन सरकार में 5 वर्ष के लिए सिर्फ वो ही मुख्यमंत्री रहेंगे, जो शिवसेना के अह्म से टकरा गया था और उसने प्रण कर लिया कि देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में पार्टी एनडीए गठबंधन में शामिल नहीं होगी।
अपनी अह्म के संतुष्टि के लिए शिवसेना 50-50 फार्मूले और डिप्टी सीएम पद भी छोड़ने को तैयार हो गई थी, लेकिन बीजेपी शीर्ष नेतृत्व देवेंद्र फडणवीस की जगह किसी और मुख्यमंत्री बनाने पर राजी नहीं हुईं। शिवसेना भी अच्छी तरह जानती थी कि बीजेपी उसकी स्वाभाविक पार्टनर है और किसी और दल के साथ गठबंधन सरकार का कोई वजूद नहीं हैं।
यही वजह थी कि महाराष्ट्र में सरकार गठन पर जारी गतिरोध के खात्मे के लिए शिवसेना चाहती थी कि मामले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दखल दे। संघ के दखल के लिए शिवसेना नेता किशोर तिवारी ने बाकायदा संघ प्रमुख मोहन भागवत को पत्र भी लिखा है, जिसमें केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को बीजेपी और शिवसेना के बीच चल रहे सत्ता संघर्ष को सुलझाने की जिम्मेदारी सौंपने की गुजारिश की गई थी।
सूत्रों की मानें तो विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद जब शिवसेना सत्ता के बराबर बंटवारे और ढाई साल के लिए शिवसेना का मुख्यमंत्री बनाने की अपनी जिद पर अड़ी तो भाजपा के रणनीतिकारों ने भी उद्धव ठाकरे को मनाने की जिम्मेदारी नितिन गडकरी को सौंपी थी।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी उद्धव ठाकरे से मुलाकात के लिए मुंबई पहुंचे तो शिवसेना ने देवेंद्र फडणवीस के विरूद्ध गुस्सा जाहिर करते हुए स्पष्ट कर दिया था कि अगर भाजपा गडकरी को मुख्यमंत्री बनाती है तो शिवसेना अपनी सभी शर्तों से पीछे हटने को तैयार है। उद्धव से मुलाकात के बाद गडकरी नागपुर गए तो उन्होंने सर संघचालक मोहन भागवत से भी शिवसेना की नई शर्त को साझा किया।
सूत्र बताते हैं कि संघ भी नितिन गडकरी को महाराष्ट्र का अगला मुख्यमंत्री बनाने की शिवसेना के शर्त को हरी झंडी मिल गई थी। संघ की सहमति के बाद यह जानकारी उद्धव ठाकरे को दी गई, जिसके बाद शिवसेना की ओर से उक्त प्रस्ताव बीजेपी कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा को भेजा गया, लेकिन बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व उक्त प्रस्ताव को यह कहकर खारिज कर दिया कि इससे उचित राजनीतिक संदेश नहीं जाएगा।
बीजेपी शीर्ष नेतृत्व ने शिवसेना के मुख्यमंत्री बदलने के प्रस्ताव को दो कारणों से खारिज किया। एक, मुख्यमंत्री बदलना शिवसेना के दबाव को मान लेना होगा, जिसका राजनीतिक संदेश ठीक नहीं जाएगा। दूसरा, बीजेपी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का पूरा कैंपने देवेंद्र फडणवीस के नाम पर पड़ा था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद अपने भाषण में दिल्ली में नरेंद्र और मुंबई में देवेंद्र जैसा लोकप्रिय नारा दिया था। इसलिए मुख्यमंत्री के नाम पर कोई समझौता नहीं किया गया। हालांकि कोई यह नहीं बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व नहीं भांप सका कि शिवसेना अह्म की संतुष्टि के लिए वहां तक पहुंच जाएगी, जहां वह आज बैठ गई है।
शिवसेना किसी भी सूरत में देवेद्र फडणवीस को बीजेपी-शिवसेना गठबंधन सरकार में मुख्यमंत्री बनाने को तैयार नहीं थी, लेकिन उसके मुख्यमंत्री बदलने के प्रस्ताव को हरी झंडी नहीं मिली तो उसने तय कर लिया कि अब वह बिना बीजेपी के सरकार गठन करके दिखाएगी।
शिवसेना को यह बात भी बहुत अखर रही थी कि दो हफ्ते हो चले बीजेपी और शिवसेना की खींचतान में एक बार भी बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा महाराष्ट्र मुद्दे पर शिवसेना से बातचीत की कोशिश नहीं गई। यह बात शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे कई बार मीडिया के दिए अपने बयानों में यह कह चुके थे कि बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष मामले में हस्तक्षेप क्यों नहीं कर रहे हैं।
उल्लेखनीय है 18 नवंबर तक महाराष्ट्र में गठन को लेकर दोनों दलों के बीच कोशिशें खत्म हो गईं तो और सीएम देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। दिलचस्प बात यह है कि देवेद्र फडणवीस के खिलाफ खड़ी शिवसेना ने बीजेपी द्वारा ऑपर किए 16-17 मंत्री पद और डिप्टी सीएम पद को ठुकरा दिया था।
देवेंद्र फडणवीस के खिलाफ अपनी नाराजगी को शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के संपादकीय में भी टारगेट किया गया था। सामना संपादकीय में देवेंद्र फडणवीस को आउटगोइंग सीएम करार दिया गया था। माना जाता है कि बीजेपी शीर्ष नेतृत्व यह आकलन करने में नाकाम रही कि शिवसेना उसके बिना भी सरकार बना सकती है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि शिवसेना अच्छी तरह जानती थी कि देवेंद्र फडणवीस को रास्ते से हटा पाना मुश्किल है, क्योंकि देवेंद्र को पीएम नरेंद्र मोदी का आशीर्वाद हासिल है। शिवसेना यह भी अच्छी तरह से समझती है कि बीजेपी से उससे अलग होकर एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर साझा सरकार में टिकाऊ नहीं होगी। कॉमन मिनिमम प्रोग्राम भी परस्पर विरोधी दलों को साथ लेकर चलने में मुश्किल खड़ी करेगा। यही वजह थी कि शिवसेना ने अंतिम क्षण तक संघ को महाराष्ट्र सरकार के गठन में जारी गतिरोध को दूर करने के लिए शामिल किया था।
दरअसल, भाजपा शीर्ष नेतृत्व को पूरा भरोसा था कि शिवसेना कांग्रेस के साथ नहीं जा सकती और अगर जाना भी चाहेगी तो कांग्रेस कभी भी इसके लिए तैयार नहीं होगी, क्योंकि उसकी धर्मनिरपेक्षता की राजनीति उसे ऐसा नहीं करने देगी। इसलिए कोई अन्य विकल्प न होने से देर-सबेर शिवसेना झुक जाएगी।
लेकिन देवेंद्र फडणवीस के खिलाफ शिवसेना अपनी जिद में ऐसे अड़ी कि बीजेपी को सतह पर ले आई। शिवसेना की राह आसान करने में एनसीपी चीफ शरद पवार तुरूप के इक्का साबित हुए, जिससे बीजेपी एक भी चाल कामयाब नहीं हो पाई। शरद पवार ने ही असमंजस में फंसी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को राजी किया और असंभव को संभव करने में बड़ा योगदान निभाया।
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