बदलता कश्मीरः पिछले 5-6 वर्षों में यूपीएससी परीक्षा में चुने गए सैकड़ों कश्मीरी युवा
बेंगलुरू। 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर के शांति काल की ओर पूर्ण उन्मुखता के रूप में संबोधित किया जाए तो अतिशियोक्ति नहीं होगी। यह समय था जब आजादी के 72 वर्षों बाद जम्मू और कश्मीर को मिले विशेष राज्य के तमगे को पूरी तरह से छीनकर उसे दो केंद्रशासित प्रदेश के रूप में बदल दिया गया।
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के रूप में सामने आए दोनों केंद्रशासित प्रदेशों के पुनर्गठन को अब पूरा एक वर्ष बीत चुका है, जिसकी बुनियाद 5 वर्ष पहले ही रखी जा चुकी है, जिसकी तस्दीक कश्मीरी युवाओं में सेना और सिविल सेवा परीक्षाओं में बढ़ती रूचि और उनके ताबड़तोड़ चयन से आसानी से समझा जा सकता है।
It’s quite comforting to see young women & men excelling in challenging endeavours in our culture of competition and meritocracy. Congratulations Nadia & all youngesters who made it to Civil Services this year. Jai Hind 🇮🇳 pic.twitter.com/7tCypMC4Rt
— Imtiyaz Hussain (@hussain_imtiyaz) August 4, 2020
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जम्मू- कश्मीर की फ़िजा की हवाओं में शांति घुलने की शुरूआत हुई
कुछेक घटनाओं को किनारे रख दिया जाए, तो जम्मू- कश्मीर की फ़िजा की हवाएं में शांति घुलने की शुरूआत 2014 विधानसभा चुनाव के बाद शुरू हुई जब जम्मू और कश्मीर में बीजेपी-पीडीपी गठबंधन की सरकार सत्ता में पहुंची। हालांकि यह गठबंधन ज्यादा दिन तक नहीं चल पाया और बीजेपी सरकार से अलग हो गई, लेकिन कश्मीरियों को विशेषकर कश्मीरी युवाओं को मुख्यधारा में लाने का प्रयास शुरू हो चुका था।
पुलवामा में हुए आत्मघाती हमले को अगर अपवाद मान लिया जाए तो
फरवरी, 2019 में पुलवामा में हुए आत्मघाती हमले को अगर अपवाद मान लिया जाए तो वर्ष 2014 में गठित जम्मू-कश्मीर में नई गठबंधन सरकार के बाद हालात सामान्य थे, क्योंकि इस दौरान पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ लगभग बंद हो गई है। आतंकवाद की राह पर जाने वाले कश्मीरी युवकों की संख्या में कमी आ गई थी। यही वह समय था अब आतंकवादियों को राज्य में जनता का पहले जैसा समर्थन नहीं मिल रहा। भटके हुए कश्मीरी युवा सेना और सिविल सेवा में घुसने की तैयारी में जुट गए।
दक्षिण कश्मीर के पुलवामा-शोपियां जैसे इलाकों में बना शांति का माहौल
उस दौरान दक्षिण कश्मीर के पुलवामा और शोपियां जैसे इलाकों में शांति का माहौल था, जो पहले असंभव सी बात थी। ऐसा पहली बार हुआ था कि गृहमंत्री अमित शाह के कश्मीर दौरे पर कहीं विरोध प्रदर्शन नहीं हुआ। अमरनाथ यात्रा में तीन लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया और कहीं कोई बड़ी घटना नहीं घटी थी। पहले हर सप्ताह सुरक्षा बलों को पत्थरबाजों से निपटने की चुनौती रहती थी, लेकिन घुसपैठ में कमी से युवाओं के हाथ में पत्थर थमाने वालों की दुकान बंद हो चुकी है।
सुरक्षा बलों पर जनता का भरोसा बढ़ा, पंचायत चुनाव ने बाद बदले हालात
वर्ष 2018 के अंत में जम्मू-कश्मीर में हुए पंचायत चुनावों में 70 फीसदी से ज्यादा मतदाताओं ने वोट डाले। स्थानीयों ने तंकवादियों को खाना खिलाना बंद कर दिया था। एक मोटे अनुमान के अनुसार अब घाटी में आतंकवादियों की संख्या सैंकड़ों में सिमट गई थी, क्योंकि सेना ने घाटी से आंतकियों के संपूर्ण सफाए के लिए अभियान छेड़ दिया था। इसलिए आतंककारियों की छोटी जिंदगी देखकर युवकों का आतंकी गतिविधियों से मोहभंग होने लगा।
कश्मीरी युवा शांति से रहना चाहते हैं और समृद्धि की ओर बढऩा चाहते हैं
आंतकियों के सफाए और कश्मीर बढ़ते शांति प्रयासों का परिणाम था कि कश्मीरी युवा अब खुलकर बोलने लगे कि वो शांति से रहना चाहते हैं और समृद्धि की ओर बढऩा चाहते हैं। इसी के चलते मुख्यधारा में शामिल होने वाले युवाओं की सफलता के किस्से भी तेजी से प्रसारित हो रहे हैं। चाहे वे प्रशासनिक परीक्षाओं में सफलता के झंडे गाडऩे वाले युवा हों या खेलों में नाम कमाने वाले खिलाड़ी, उनको सोशल मीडिया पर फॉलो करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है।
युवकों को आतंकवाद की ओर धकेलने की वजह को खत्म किया गया
कहते हैं बेरोजगारी और मनोरंजन के साधनों की कमी घाटी के युवकों को आतंकवाद की ओर भटकने की मुख्य वजह थी। सुबह से लेकर रात तक बिना काम घूमने वाले युवा, आतंकवादी समूहों के हत्थे आसानी से चढ़ जाते थे। पत्थर फेंकने जैसे काम के लिए उन्हें 200-400 रुपए मिल जाते थे। इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए जम्मू-कश्मीर से सरकार गिरने के बाद लगे राज्यपाल शासन के दौरान यहां यूथ एंगेजमेंट कार्यक्रम शुरू किए गए। अब राज्य के करीब 4 लाख छात्र और युवा खेल, सांस्कृतिक आदि गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे।
कश्मीर में सेना, पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों के बीच तारतम्यता दिखी
पिछले कुछ सालों में कश्मीर में सेना, पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों के बीच जिस तारतम्य के साथ काम हो रहा है, ऐसा जम्मू और कश्मीर में पहली बार अनुभव किया गया। इससे सूचनाओं के आदान-प्रदान और संयुक्त अभियानों में बढ़ोतरी हुई है। एक बड़ा परिवर्तन यह देखने को मिला है कि मुठभेड़ में मारे जाने वाले आतंककारियों के जनाजों में शामिल होने वाले लोगों की संख्या हजारों से घट कर 200-300 तक सिमट गई।
31 वर्षों बाद Terrorist Free हुआ त्राल और डोडा जिला
जम्मू-कश्मीर पुलिस की ओर से 25 जून को त्राल सेक्टर में तीन आतंकवादियों के मारने के बाद दावा किया और दशकों के बाद इस क्षेत्र में हिज्बुल मुजाहिद्दीन की कोई उपस्थिति नहीं रही। एक समय में आतंकियों को ठिकाना रहा दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले का त्राल सेक्टर आतंकी कमांडर बुरहान वानी और जाकिर मूसा का आशियाना है, जिन्हें सुरक्षाबलों ने पहले ही मार गिराया था। हाल में सुरक्षाबलों ने त्राल के चेवा उल्लार इलाके में 3 आतंकी ढेर किए, जिसके बाद कश्मीर जोन के आईजी विजय कुमार ने बताया कि अब त्राल सेक्टर में हिज्बुल मुजाहिद्दीन का एक भी सक्रिय आतंकवादी नहीं बचा है, सारे आतंकी मारे जा चुके हैं।
केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद 6 वर्षों में मारे गए 1149 आतंकी
SATP (South Asia Terrorism Portal) के आंकड़ों के अनुसार नरेन्द्र मोदी सरकार के आने के बाद जम्मू-कश्मीर में अब तक कुल 1149 आतंकवादी मारे गए हैं। आंकड़ों के अनुसार 2014 में 114 आतंकवादी मारे गए थे। वहीं, 2015 में 115, 2016 में 165, 2017 में 220, 2018 में 271, 2019 में 163 और इस साल अब तक सुरक्षा बलों ने 128 आतंकवादियों को मार गिराया है।
2020 की पहली छमाही में मारे जा चुके हैं 128 से अधिक
पाक पोषित पाक प्रभावित जम्मू-कश्मीर में वर्ष 2020 की पहली छमाही के दौरान अब तक 128 आतंकवादी मारे गए हैं। इनमें से अकेले जून के महीने में 48 आतंकवादी मारे गए हैं। डीजीपी ने कहा, "इस वर्ष के दौरान मारे गए 128 आतंकवादियों में से 70 हिजबुल मुजाहिदीन के हैं, वहीं लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और जैश-ए-मोहम्मद (JeM) के 20-20 हैं, बाकी अन्य आतंकवादी संगठनों से हैं।
कश्मीर में आर्मी भर्ती के दौरान घाटी के युवकों की जबर्दस्त भीड़
आतंकी गुटों में कुछ वर्षों पहले पढ़े-लिखे युवक बड़ी संख्या में भर्ती होते थे। उन्हें सोशल मीडिया के जरिए बरगलाया जाता था, लेकिन अब इसी के कारण आतंकवाद से उनका मोहभंग हो रहा है। कुछ समय पूर्व तक उग्रवाद की राह पर बढ़े युवकों की उम्र 7 से 12 साल में पूरी होती थी, अब यह कुछ सप्ताह में सिमट गई और ऐसे युवा अब शिक्षा व रोजगार की दिशा में दिलचस्पी ले रहे हैं। कश्मीर में आर्मी भर्ती के दौरान घाटी के युवकों की जबर्दस्त भीड़ और पिछले 5-6 सालों में आईएएस और आईपीएस बनने वाले कश्मीरी य़ुवकों की कहानी गवाह है कि कश्मीर की हवा बदल गई है।
अनुच्छेद 370 पर नाराजगी की रिपोर्ट को जोरदार लगा तमाचा
जम्मू एवं कश्मीर के 575 स्थानीय युवकों के अगस्त, 2019 में श्रीनगर में भारतीय सेना में भर्ती होने की खबर उन लोगों के गालों पर जोरदार तमाचा था, जो विशेष राज्य का तमगा छीने जाने के बाद कश्मीर में गुस्से और नाराजगी की रिपोर्ट बांट रहे थे। जम्मू-कश्मीर में यह नजारा विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद को रद्द होने के महीने के भीतर हुआ था। भर्ती हुए 575 कश्मीरी युवाओं को भारतीय सेना की जम्मू एवं कश्मीर लाइट इन्फैंट्री रेजिमेंट में शामिल किया गया।
2009 में IAS परीक्षा टॉप करने वाले पहले कश्मीरी बने थे शाह फैसल
जम्मू-कश्मीर में बदलते हालात की तस्वीर बनकर शाह फैसल उभरे थे, जो 2009 में भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) परीक्षा टॉप करने वाले पहले कश्मीरी बने थे। उसके बाद से शाह फैसल घाटी में युवाओं को मिल रही नई दिशा और उम्मीद का चेहरा बन गए थे। हालांकि कुछ अंतराल के बाद शाह फैसल ने अपने पद से इस्तीफा देकर राजनीति में जाने का फैसला कर लिया, जिसके लिए उन्होंने कश्मीर और देश के हालात का हवाला दिया। स्थिति साफ थी, लेकिन जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा छिना तो शाह फैसल अब गुमनामी के बादशाह बनकर रह गए हैं।
2019 में कुल 829 चयनित कैंडीडेट में 16 कश्मीरियों युवाओं का चयन हुआ
वर्ष 2019 के संघ लोक सेवा आयोग के अंतिम परिणाम 5 अगस्त, 2020 को घोषित किए जा चुके हैं और इस बार घोषित 829 चयनित कैंडीडेट में 16 कश्मीरियों युवाओं का चयन हुआ है। जम्मू-कश्मीर से सफल घोषित किए गए 16 कैंडीडेट में शामिल कुपवाड़ा जिले की नादिया बेग कश्मीर की सबसे युवा आईएएस चुनी गई हैं। वर्ष 2018 यूपीएससी परिणाम भी जम्मू-कश्मीर के युवाओं की संख्या बेहतर थी और ऑल इंडिया रैंकिंग में तीसरे स्थान पर कश्मीर के जुनैद आए थे। 2017 में आईएएस चुने गए कश्मीरी युवक साद मियां खान की रैंकिंग 25वीं आई थी।।
2019 UPSC परिणाम में महज 23 साल की उम्र में IAS चुनी गई नादिया
2019 यूपीएससी परिणाम में महज 23 साल की उम्र में आईएएस चुनी गईं कश्मीर के कुपवाड़ा जिले की नादिया बेग ने महज दूसरे प्रयास में सफलता हासिल कर ली। उन्होंने परीक्षा में 350वीं रैंक हासिल की है। नादिया जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली से अर्थशास्त्र (ऑनर्स) स्नातक हैं और उन्होंने अपनी पूरी तैयारी दिल्ली में रहकर की। नादिया ने बताया कि उन्होंने सफलता के लिए बहुत मेहनत की और कहती है कि उनकी सफलता से उनके इलाके के बहुत से प्रेरित होंगे।
नादिया ही नहीं, उनकी दो बहनें भी SKIMS में MBBS कर रही हैं
कुपवाड़ा के पुंजवा गांव में कक्षा 12 की परीक्षा पास करने के दिन ही उन्होंने आईएएस बनने का ख्वाब देखा था। 12वीं के बाद जामिया मिलिया इस्लामिया से स्नातक की पढ़ाई के लिए दिल्ली आ गई नादिया ने वर्ष 2017 के बाद यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी। नादिया ही नहीं, उनकी दो बहनें भी SKIMS में MBBS कर रही हैं और उनका भाई भी सिविल सर्विसेज की तैयारी भी कर रहा है, जिसने हाल में बीबीए कंपलीट किया है। हालांकि दिलचस्प यह है कि नादिया 2018 के पहले अटेंप्ट में प्रीलिम्स भी नहीं निकाल पाईं थीं, लेकिन उन्होंने हौसला नहीं छोड़ा।
पिछले 6 सालों में सैकड़ों कश्मीरी युवा यूपीएससी में चुने गए
वर्ष 2009 में फैजल शाह, 2016 में अतहर आमिर और वर्ष 2017 बिलाल, जुनैद और अब 2019 में नादिया कुछ ऐसे नाम है, जो एक हस्ताक्षर बनकर उभरे है। इन होनहार युवाओं ने आतंकवाद ग्रस्त जम्मू-कश्मीर की फ़िजा को बदलने का काम किया है। एक वह दौर था जब 20 साल के आतंक के दौर में कश्मीर से जहां सिर्फ चार आईएएस और आईपीएस ही चुने जा सके, लेकिन इसके बाद युवाओं की सोच बदली और घाटी में आतंकवाद और अलगाववाद को दरकिनार करते हुए एक नई सोच के साथ आगे बढ़े, जिससे आतंकवाद और अलगाववाद पीड़ित कश्मीर तेजी से बदल गया है।
1990 से 2009 तक राज्य में मात्र दो आईएएस और दो आईपीएस
बीते 6 वर्षों में ही 74 युवा संघ लोक सेवा (यूपीएससी) की प्रतिष्ठित परीक्षा में अपना नाम दर्ज करवा चुके हैं। यह कारवां अब लगातार बढ़ता जा रहा है। 1990 से 2009 तक राज्य में मात्र दो आईएएस और दो आईपीएस निकले हैं। 2009 में शाह फैजल के आईएएस में टॉप करने के बाद युवाओं की सोच में बदलाव आना शुरू हुआ। उनमें भी विश्वास जागा कि वे भी शाह फैजल की तरह आईएएस कर अधिकारी बन सकते हैं।
वर्ष 2017 में पहली बार सर्वाधिक कुल 14 कश्मीरियों आईएएस चुने गए
वर्ष 2010 के बाद कश्मीरी युवाओं के यूपीएससी में चुने जाने की संख्या में लगातार बढ़ोतरी होने लगी। वर्ष 2013 में तो राज्य के रिकॉर्ड 13 उम्मीदवारों ने आईएएस सूची में जगह बनाई। इनमें तीन महिला उम्मीदवार थीं। 13 में से 8 उम्मीदवार तो कश्मीर संभाग से ताल्लुक रखते थे। वर्ष 2014 में कश्मीरी युवाओं ने अपना ही रिकॉर्ड तोड़ा और कुल 16 युवाओं ने भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में अपना नाम दर्ज करवाया। इनमें छह जम्मू संभाग के दूरदराज के क्षेत्रों के थे। वर्ष 2015 में 10 युवाओं ने आईएएस चुने गए।
वर्ष 2016 में 10 और वर्ष 2017 में 14 युवाओं ने आईएएस पास किए थे
वर्ष 2016 में 10 और वर्ष 2017 में 14 युवाओं ने आईएएस पास किए थे। वर्ष 2018 में कुल 15 जम्मू-कश्मीर के छात्रों ने यूपीएससी की परीक्षा पास करने में सफल हुए थे जबकि हालिया 2019 में कुल 16 कश्मीरी युवाओं ने यूपीएससी एग्जाम में झंडा गाड़ने में सफल रहे है। इसमें 23 वर्षीय नादिया ने बेहद कम उम्र में आईएएस चुनी गईं।
कश्मीरी छात्रों को UPSC एग्जाम में 5 वर्ष तक उम्र की सीमा बढ़ाई गई
यह सब संभव इसलिए हो सका, क्योंकि सरकार और प्रशासन ने मुस्तैदी से कश्मीरी युवाओं को आतंकवाद और अलगाववाद से दूर रखने में मेहनत की। सरकार ने हर वो कोशिश की, जिससे कश्मीरी युवाओं को भटकाने से बचाया जा सके। यही कारण था कि केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के छात्रों को यूपीएससी के एग्जाम में पांच साल तक उम्र की सीमा बढ़ा दी गई जनरल कैंडिडेट के लिए अधिकतम उम्र की सीमा 32 साल है, जबकि दूसरे कैंडिडेट्स को कैटेगरी के हिसाब से छूट मिली है।
कश्मीर को सिर्फ आतंक ही नहीं, बल्कि अलगाववाद से भी मिलेगी आजादी
मोदी सरकार ने घाटी को आतंकियों को समर्थन देने वाले अलगाववादियों से भी आजाद करने की तैयारी कर चुकी है। अनुच्छेद-370 खत्म करने के बाद सरकार ने जम्मू-कश्मीर के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक विकास के अलावा सुरक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने का जो रोडमैप बनाया था, जिसमें सबसे पहले अलगाववादियों की प्रासंगिकता को ही खत्म किया गया। अलगाववाद से निपटने के साथ ही सरकार ने अपने लिए सबसे बड़ी चुनौती के तौर पर घाटी के युवाओं में घर कर गए धार्मिक कट्टरवाद को माना है। इसका निवारण कर वहां के युवाओं को मुख्य धारा में वापस लाने के लिए भी आधारभूत योजना बनाई गई।
कश्मीरी युवाओं को भटकाने वाले नेताओं के बच्चे विदेश में करते हैं पढ़ाई
कश्मीरी युवाओं के हाथों में किताबों की जगह बंदूक और पत्थरबाजी को बढ़ावा और स्कूल-कॉलेजों में आग लगाने के लिए उकसा कर उनके भविष्य को स्कूलों और कॉलेजों से दूर करने वाले 112 अलगाववादी नेताओें के 210 बच्चे विदेशों में अपना भविष्य संवार रहे हैं। कुल जमा 14 हुर्रियत नेताओं के 21 पुत्र, पुत्रियां, बहनें और बहुएं अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरब, इरान, तुर्की, मलेशिया और पाकिस्तान में पढ़ रहे हैं या वहां बसकर ऐशो आराम की जिंदगी जी रहे हैं।