चीन के साथ तनाव के बीच पिनाक मिसाइल सिस्टम के लिए रॉकेट बनना शुरू
नई दिल्ली। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने चीन के साथ पूर्वी लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर जारी टकराव के बीच ही बड़े पैमाने पर पिनाक रॉकेट्स, लॉन्चर्स और इससे जुड़े उपकरणों के उत्पादन की तैयारी कर ली है। शुक्रवार से डीआरडीओ ने उस प्रक्रिया को शुरू कर दिया है जिसके तहत पिनाका के लिए जरूरी उपकरणों का उत्पादन होगा। अधिकारियों की तरफ से इस बात की जानकारी दी गई है।
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DRDO ने सौंपी सभी जानकारियां
अधिकारियों की तरफ से बताया गया है कि डीआरडीओ ने पिनाक रॉकेट सिस्टम्स के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए जरूरी सभी जरूरी जानकारियां डायरेटोरेट जनरल ऑफ क्वालिटी एश्योरेंस (डीजीक्यूए) को सौंप दिया है। डीजीक्यूए ही सभी रक्षा उपकरणों के स्तरों और गुणवत्ता मानों को सुनिश्चित करता है। रक्षा मंत्रालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया है, 'आज एक मील का पत्थर हासिल किया गया जब पिनाक वेपन सिस्टम की अथॉरिटी होल्डिंग सील्ड पर्टिकुलर्स (एएचएसपी) की जिम्मेदारी डीआरडीओ ने डीजीक्यूए को जिम्मेदारी सौंप दी।' एएचएसपी वह अथॉरिटी है जो अहम रक्षा उत्पादों के लिए जरूरी डाटा को जुटाती है।
सिर्फ 44 सेकेंड्स में 12 रॉकेट्स
पिनाक वेपन सिस्टम एक फ्री फ्लाइट आर्टिलरी रॉकेट सिस्टम है इसकी रेंज 37.5 किलोमीटर है। पिनाक रॉकेट्स को मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर से लॉन्च किया जाता है। लॉन्चर बस 44 सेकेंड्स में 12 रॉकेट्स दागता है। इसका नाम भगवान शिव के धनुष 'पिनाक' के नाम से प्रेरित है। इस मिसाइल सिस्टम को चीन और पाकिस्तान से लगी सीमाओं पर तैनात करने के मकसद से बनाया गया है। इस वेपन सिस्टम को पुणे स्थित डीआरडीओ लैब, अर्मामेंट रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टैब्लिशमेंट (एआरडीई) की तरफ से डेवलप किया गया है। सन् 1980 में DRDO ने पिनाक रॉकेट सिस्टम को डेवलप करना शुरू किया। 1990 के आखिरी दौर में पिनाक मार्क-1 के सफल टेस्ट हुए। भारत ने सन् 1999 में हुए करगिल संघर्ष के दौरान भी सफलतापूर्वक पिनाक सिस्टम का यूज किया था।